खून का रिश्ता कहानी की समीक्षा | Bhisham Sahni Story Khoon Ka Rishta

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खून का रिश्ता कहानी की समीक्षा

  
खून का रिश्ता कहानी खून का रिश्ता कहानी की समीक्षा खून का रिश्ता कहानी का सारांश खून का रिश्ता कहानी की विशेषता Bhisham Sahni Story Khoon Ka Rishta UP board class 12th sahityik Hindi - खून का रिश्ता भीष्म साहनी की वर्तमान समाज में टूटते रिश्तों की वास्तविकता एवं वातावरण प्रधान कहानी है। कहानी तत्त्वों की दृष्टि से 'खून का रिश्ता' कहानी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- 

कथानक या सारांश

अपनी सगाई मात्र सवा एक रुपया में ही सम्पन्न कराने हेतु बाबूजी के आधुनिक पुत्र वीरजी कटिबद्ध हैं। वीरजी के माता-पिता समधी के द्वार पर अपनी प्रतिष्ठा के अनुसार पूरी लाव-लश्कर के साथ जाना चाहते हैं। वीरजी के चाचा सेवानिवृत्त वृद्ध मंगलसेन विकलांग होते हुए भी इस अवसर पर पूर्ण सम्मान प्राप्त करने के लिए उतावले हैं, लेकिन उनकी भाभी, भाई और नौकर तक उनकी उपस्थिति को अपनी तौहीन समझते हैं।

सगाई में मंगलसेन को भेजने के लिए विवश भाभी ने उसके लिए अपनी पुत्री मनोरमा से धुला हुआ पाजामा और एक पगड़ी भी दिलाई। जूतों में पॉलिश भी की गई। मंगलसेन का इस प्रकार कायाकल्प किया गया। बाबूजी और मंगलसेन लड़की के पिता के घर जाकर सगाई की रस्म पूरी करके वापस आ गये। 

समधी के घर से प्राप्त सामानों में चाँदी की तीन कटोरी और दो चम्मच देखकर वीरजी की माँ का पारा गरम हो गया। उन्हें सन्देह हुआ कि एक चाँदी की चम्मच में मंगलसेन ने अवश्य हेराफेरी की है; फलतः बाबूजी ने उन्हें दण्डित करने की धमकी भी दी। दैवयोग से वीरजी का साला उसी समय आ पहुँचा और चाँदी की एक चम्मच मनोरमा को देकर तुरन्त वापस चला गया। मंगलसेन पर इस प्रकार लगा आरोप निराधार सिद्ध हुआ। खून का रिश्ता टूटते-टूटते जुड़ा रह गया। इस प्रकार कहानी का कथानक विचारोत्तेजक, प्रभावोत्पादक एवं जीवन के यथार्थ से जुड़ा है। 

शीर्षक

वर्तमान समाज में रिश्तों में आती दरार और उनके बिगड़ते बनते समीकरणों का कहानी के आरम्भ से अन्त तक विवेचन किया गया है। कहानी में माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध पुत्र वीरजी अपनी सगाई में सवा रुपया लेने और केवल एक आदमी के भेजने की जिद पर अड़ा है। तुनकमिजाज बाबूजी को बेटे की बात माननी पड़ती है। वीरजी का हृदय मंगलसेन के खून के रिश्ते को बेइज्जत होते देख टूक-टूक होता है और वह उस रिश्ते की रक्षा के लिए मंगलसेन को सगाई में भेजकर दम लेता है। चाँदी की चम्मच की चोरी के आरोप में एकबार फिर से 'खून के रिश्ते' का खून होने लगता है, किन्तु उसी समय वीरजी का साला वह चम्मच लेकर उपस्थित होता है और खून का रिश्ता एक बार फिर से दागदार होने से बच जाता है। मंगलसेन भी 'खून के रिश्ते' का लिहाज रखते हुए अपनी बेइज्जती को भूल जाता है। 'खून का रिश्ता' शीर्षक निश्चित रूप से अत्यन्त सार्थक और उपयुक्त है।

पात्र और चरित्र चित्रण

कहानी खून का रिश्ता में मानवीय सामाजिक और पारिवारिक सम्बन्धों का विवेचन किया गया है। विशेष रूप से सभी पात्रों के चरित्रों को सँवारा गया है। यह भाव और चरित्र-प्रधान कहानी है। मानव चरित्र की प्रतिष्ठा ही मुख्य विषय है। कहानीकार ने कहानी में प्रमुख पात्र के रूप में वीरजी को प्रस्तुत कर लक्ष्यसिद्धि का संकल्प लिया है। स्वतन्त्र भारत में अपनी भावी जिन्दगी को सँवारने के लिए प्रमुख पात्र वीरजी दहेजरहित विवाह का विस्मयकारी निर्णय लेता है और उसमें सफल भी होता है। वीरजी की माँगें एक स्वस्थ गृहिणी का चरित्रांकन है। वह कभी खून के रिश्ते की गरिमा को साकार रूप देती है तो कभी उसी पात्र मंगलसेन की उपेक्षा भी करती है। चरित्र की सूक्ष्मता और चारित्रिक भंगिमाओं का वैविध्य कहानी में दर्शनीय है। पात्रों की यथार्थता को कहानी में मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। चरित्र-चित्रण में विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। 

कथोपकथन

खून का रिश्ता कहानी की समीक्षा | Bhisham Sahni Story Khoon Ka Rishta
कहानी के कथोपकथन पूर्ण नियन्त्रित, चमत्कारयुक्त हैं। कहानी में जिज्ञासा और कौतूहल को उजागर करनेवाले संवाद सर्वत्र प्रयुक्त हुए हैं। कहानी के संवाद कथानक को गतिशील बनानेवाले, अत्यन्त चुटीले और पात्रों के चरित्रों को उजागर करनेवाले हैं। पुत्र वीरजी के दहेज-विरोधी और माँ और पिता के क्षुब्ध वात्सल्यपूर्ण चरित्र का दो संवाद यहाँ द्रष्टव्य हैं- 

"मैंने कह दिया, माँ, मेरी सगाई सवा रुपये में होगी और केवल बाबूजी सगाई डलवाने जायेंगे। जो मंजूर नहीं हो तो अभी से..." 

इस प्रकार कथोपकथन और संवाद की दृष्टि से यह कहानी अत्यन्त सफल कहानी है।

भाषा शैली

किसी कहानी का प्राणतत्त्व भाषा-शैली होता है। 'खून का रिश्ता' कहानी को कहानीकार ने सरल एवं बोधगम्य भाषा के द्वारा प्रभावशाली बनाया है। चित्रात्मकता एवं प्रवाहमयता के साथ-साथ भाषा में अर्थ की उपयुक्तता का पूर्ण ध्यान रखा गया है। भाषा की सांकेतिकता से सूक्ष्म मानवीय सम्बन्धों को उजागर करने के लिए उसकी व्यंजना-शक्ति बढ़ाई गई है। क्रियाओं के वेग और अन्तर्द्वन्द्व के विचार से किया गया शब्द-चयन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है - 

वीरजी का चेहरा क्रोध और लज्जा से तमतमा उठा। मनोरमा को डर लगा कि बात और बिगड़ेगी, वीरजी कहीं बाबूजी से न उलझ बैठे। माँजी को भी बुरा लगा। धीमे से कहने लगी, "देखो जी, नौकरों के सामने मंगलसेन की इज्जत-आबरू का कुछ तो ख्याल रखा करो। आखिर तो खून का रिश्ता है। कुछ तो मुँह मलाहिजा रखना चाहिए। दिन-भर आपका काम करता है।' 

"मैंने उसे क्या कहा है, " बाबूजी ने हैरान होकर पूछा। 
"यों रुखाई के साथ नहीं बोलते। वह क्या सोचता होगा? इस तरह बेआबरूई किसी की नहीं करनी चाहिए।" 

भाषा को अंग्रेजी और उर्दू शब्दों के प्रयोग से चुलबुली बनाया गया है। सलामत, उसूल, लर्जिस, तकरार, आबरू, ख्याल, तख्त, मजाक, हैसियत आदि उर्दू शब्दों और सूटकेस, इंस्पेक्टर जैसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग स्वाभाविक रूप में हुआ है। कहानीकार ने भाषा को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए यत्र-तत्र दाँत तले ओंठ दबाना, दुम हिलाना, थू-थू करना, पीठ पर चाबुक पड़ना आदि मुहावरों का प्रयोग करके अपनी भावाभिव्यक्ति को भी सफल बनाया है।

कहानी का महत्त्वपूर्ण तत्त्व शैली होता है, जिसके द्वारा कहानी में लेखक प्राण-प्रतिष्ठा करता है। कहानी की सभी शैलियों का शब्द-चयन मुग्धकारी है। बाबूजी की शैली इस कहानी में ओज गुण से युक्त है। मंगलसेन के प्रति सन्तू (नौकर) की शैली व्यंग्यप्रधान है। 

देश काल और वातावरण

सभी परिस्थितियों की योजना कहानी में साभिप्राय और क्रमानुगत है। देश-काल और परिस्थितियों (वातावरण) का आँचलिक और स्थानीय रंग कहानी में उपस्थित है। कहानी का प्रारम्भिक दृश्य मंगलसेन के दिवास्वप्न से सम्बन्धित है; यथा- वह (मंगलसेन) अपने भतीजे वीरजी की सगाई पर सम्भावित सम्मान का स्वप्न देखता है- "वह समधियों के घर पर बैठा है और वीरजी की सगाई हो रही है। उसकी पगड़ी पर केसर के छींटें हैं और हाथ में दूध का गिलास, जिसे वह घूँट-घूँट करके पी रहा है। ले आओ, आधा गिलास।” प्रेम, वात्सल्य, करुणा, आश्चर्य आदि की सरसता वातावरण के प्रभाव से सजीव हो उठी है। समाज में दरकते सम्बन्धों का चित्रण समाज के वर्तमान वातावरण के यथार्थ चित्रण द्वारा किया गया है। माता-पिता की सोच पर प्रश्न-चिह्न लगाते पुत्र का यह साकार-चित्र देखिए-

कोने में बैठे सन्तू ने भी हैरान होकर सिर उठाया। माँ झट से बोली, "हाय-हाय बेटा, शुभ-शुभ बोलो। अपने रईस भाइयों को छोड़कर इस मरदूद को साथ ले जायें? सारा शहर थू-थू करेगा।"

"माँजी, अभी तो आप कह रही थीं, खून का रिश्ता है। किधर गया खून का रिश्ता? चाचाजी गरीब हैं इसीलिए?" इस प्रकार देश-काल और वातावरण की दृष्टि से यह अत्यन्त सफल कहानी है। 

उद्देश्य

साहनी ने 'खून का रिश्ता' कहानी के माध्यम से दहेज (सामाजिक कोढ़ का) उन्मूलन करने का डिण्डिमघोष किया है। कहानी के शीर्षक की महत्ता के आधार पर मानवता, सामाजिकता तथा भाईचारे की भावना को सुदृढ़ बनाना ही कहानी का उद्देश्य है। कहानी का मूल उद्देश्य व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता, सहृदयता, ममत्व और समता-भाव संचारित करना है। इस कहानी में प्रमुख नारी पात्र वीरजी की माँ ने उसकी खुशी के सम्मुख अपने समस्त आदर्शों तथा प्रलोभन का परित्याग किया है। मात्र खून के रिश्ते की बहुमूल्य कीमत के लिए कहानी का यह परित्यागपूर्ण समापन पाठक को चकित कर देनेवाला है। 

वीरजी का चरित्र चित्रण खून का रिश्ता कहानी

खून का रिश्ता भीष्म साहनी की कहानी के मुख्य पात्रों में वीरजी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह आधुनिक युवावर्ग का प्रतिनिधित्व है और समाज में बदलाव लाने का समर्थक है। उसके चरित्र की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

सच्चा प्रेमी
आधुनिक युवा वीरजी अवश्य है, किन्तु प्रेम के नाम पर उसमें आज के युवकों जैसी उच्छृंखलता बिल्कुल नहीं है। पति-पत्नी के पवित्र सम्बन्धों और उसकी कोमल भावनाओं को वह न केवल समझता है, वरन् उनको अहमियत भी देता है। अपनी सगाई के थाल पर ढके लाल रूमाल के सम्बन्ध में उसकी यह कल्पना इस तथ्य को प्रमाणित करती हुई एक सच्चा प्रेमी सिद्ध करती है-
 
थाल पर रखे लाल रूमाल को देखते ही उनका रोम-रोम पुलकित हो उठा। सहसा ही वह ससुराल की चीजों से गहरा लगाव महसूस करने लगे। इस रूमाल को जरूर प्रभा ने अपने हाथ से छुआ होगा। उनका जी चाहा कि रूमाल को हाथ में लेकर चूम लें। इस भेंट को देखकर उनका मन प्रभा से मिलने के लिए बेताब होने लगा।" 

दृढ़ निश्चयी
वीरजी निश्चय कर चुका है कि उसकी सगाई में न दान-दहेज लिया जायगा और न गाजे-बाजे का कोई आडम्बर होगा। केवल एक व्यक्ति ही सगाई के लिए जायेगा। इसीलिए वह सभी प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक दबावों को दरकिनार करते हुए अपने निश्चय पर दृढ़ रहता है। अपने माता-पिता को दान-दहेज और आडम्बररहित सगाई समारोह के लिए तैयार करता है। उसके दृढ़ निश्चयी चरित्र का यह जीता-जागता उदाहरण है। 

आधुनिक युवा
वर्तमान प्रगतिवादी युग का वीरजी आधुनिक युवा है। पुरानी परम्पराओं और रूढ़ियों में वह विश्वास नहीं करता। नई सोच के द्वारा वह समाज में परिवर्तन लाना चाहता है। इसीलिए वह अपनी सगाई में केवल सवा रुपया दहेज के नाम पर स्वीकार करने का अपने माता-पिता पर दबाव डालता है। अपनी सगाई में वह कोई आडम्बर नहीं करना चाहता, इसलिए अपने माता-पिता से वह कहता है कि केवल बाबूजी जाकर सगाई का शगुन ले आएँ।
 
जैसी कथनी वैसी करनी
रंचमात्र भी वीरजी की कथनी और करनी में अन्तर नहीं है। वह जो कहता है, वही करता है। अपनी सगाई में उसने सवा रुपया लेने की बात कही है और वह उस पर अन्त तक दृढ़ रहता है। अपने माता-पिता से भी वह यही चाहता है कि वे जो कहें, उसी के अनुसार आचरण भी करें। अपने पिता को उनके सिद्धान्तों का स्मरण कराता हुआ वह उनको उन पर दृढ़ रहने के लिए प्रेरित करता हुआ कहता है - 

"क्या आप खुद नहीं कहा करते थे कि ब्याह-शादियों पर पैसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। अब अपने बेटे की सगाई का वक्त आया तो सिद्धान्त ताक पर रख दिये। बस, आप अकेले जाइये और सवा रुपया लेकर सगाई डलवा लाइये।" 

खून के रिश्तों का हिमायती
खून के रिश्तों की अहमियत समझनेवाला वीरजी मानवतावादी युवक है। वह घर- परिवार में सब प्रकार से उपेक्षित चाचा मंगलसेन को सगाई में अपने पिता के साथ भेजने का निर्णय लेता है। मंगलसेन को अपने माता-पिता द्वारा साथ न ले जाए जाने के प्रश्न पर अपनी माँ से वह यह प्रश्न पूछकर उसे निरुत्तर कर देता है-"माँजी अभी तो आप कह रही थीं, खून का रिश्ता है। किधर गया खून का रिश्ता? चाचाजी गरीब हैं इसलिए।" 

आज के युवकों के लिए वीरजी आदर्श हैं। उसके चरित्र द्वारा कहानीकार आज के युवाओं को यह सन्देश देना चाहता है. कि यदि वीरजी की तरह आज के युवा दहेज जैसी कुप्रथा के विरोध में उठ खड़े हो जाएँ तो एक क्षण का भी समाज से इसके उन्मूलन में विलम्ब न होगा। समाज की कुरीतियों के प्रति जब तक युवावर्ग जागृत नहीं हो जाता, देश और समाज का उद्धार तब तक नहीं हो सकता है।

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