कर्मनाशा की हार कहानी की समीक्षा कर्मनाशा की हार कहानी कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश karmnasha ki har kahani ka uddeshya भैरो पाड़े शिवप्रसाद सिंह
कर्मनाशा की हार कहानी की समीक्षा
कर्मनाशा की हार डॉ.शिवप्रसाद सिंह की सामाजिक कहानी है जिसमें ग्रामांचलीय समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों, रूढ़ियों तथा वर्ग-संघर्षों की जीती-जागती तस्वीर उतारी गयी है। संक्षेप में कहानी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश कथानक
भैरो पाड़े का छोटा भाई कुलदीप मल्लाह की विधवा लड़की फुलमतिया से अवैध सम्बन्ध करके सामाजिक कलंक का विषय बन जाता है। कुलदीप भाई तथा समाज के भय से गर्भिणी प्रेयसी को छोड़कर भाग जाता है। तभी कर्मनाशा की बाढ़ अपना उम्र रूप धारण करती है। लोगों में यह अन्धविश्वास पहले से ही घर कर गया है कि बिना नर-बलि लिये कर्मनाशा की बाढ़ नहीं घटेगी। धनेसरा चाची के माध्यम से फुलमतिया के काले कारनामे गाँव वालों को मालूम हो जाते हैं और सभी इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उसी के भयंकर पाप का परिणाम सारे गाँव वालों को भुगतना पड़ रहा है। अतः फुलमतिया तथा उसके अबोध बच्चे को जीते-जी कर्मनाशा की बाढ़ में फेंककर इस पाप से छुटकारा पाने का निश्चय किया जाता है। फुलमतिया नवजात शिशु को लेकर कर्मनाशा के तट पर गाँव वालों के साथ रोती-बिलखती खड़ी है। उसी समय भैरो पाड़े वैशाखी के सहारे पहुँचते हैं। उन्हें फुलमतिया के पाप की घटना से अवगत कराया जाता है। कुछ समय तक तो भैरो पाड़े का स्वाभिमान जाग उठता है। वे अपनी वंश-मर्यादा की चिन्ता करने लगते हैं, किन्तु थोड़ी ही देर में उनका हृदय परिवर्तित हो जाता है और वे अकड़ कर विरोध करते हुए मुखिया को करारा-सा जवाब देते हैं कि "कर्मनाशा की बाढ़ दुधमुँहे बच्चे और अबला की बलि देने से नहीं रुकेगी, उसके लिए तुम्हें अपने पसीने बहाकर बाँधों को ठीक करना होगा।" वे कुलदीप की कायरता को धिक्कारते हुए बच्चे को कन्धे पर चिपकाये वैशाखी के सहारे खड़े हो जाते हैं। मुखिया व्यंग्य कसते हुए सामाजिक दण्ड की धमकी देता जिस पर भैरो पाड़े कहते हैं कि समाज कर्मनाशा से कम नहीं है। यदि एक-एक के पापों की गिनती की जाय तो सभी को परिवार समेत कर्मनाशा के पेट में जाना पड़ेगा। भैरो पाड़े के इस साहस के आगे मुखिया और गाँव के सभी लोगों को चुप हो जाना पड़ता है और कर्मनाशा को भी हार माननी पड़ती है।
कहानी का कथानक आंचलिक होने के साथ सामाजिक भी है। यह यथार्थ के बहुत निकट है। कथा-सूत्र बिखरा होने पर भी सुगठित और जिज्ञासापूर्ण है।
पात्र और चरित्र चित्रण
कहानी के मुख्य पात्र भैरो पाड़े हैं। फुलमतिया, कुलदीप, धनेसरा चाची और मुखिया कहानी के गौण पात्र हैं, जो भैरो पाड़े के चरित्र-विकास में सहायक सिद्ध होते हैं। भैरो पाड़े को अपनी झूठी वंश-मर्यादा का बड़ा ध्यान रहता है, इसलिए वे कुलदीप और फुलमतिया के सम्बन्ध का समर्थन नहीं करते, किन्तु कुलदीप के भाग जाने पर उनकी मानवीय नैतिकता जाग उठती है और वे कुलदीप को कायर मानकर बच्चे और फुलमतिया की रक्षा के लिए तैयार हो जाते हैं। वे अन्धविश्वासों का खुलकर विरोध करते हैं और मुखिया को ललकारते हैं कि गाँव में कोई ऐसा परिवार नहीं जो निष्कलंक हो। भैरो पाड़े प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति हैं। वे नर-बलि द्वारा बाढ़ रोकने के अन्धविश्वास को नहीं मानते। वे कहते हैं कि बाढ़ बाँध बाँधने से रोकी जा सकती है। मुखिया ग्रामीण समाज की परम्पराओं, अन्धविश्वासों से ग्रस्त पुराने विचारों का समर्थक व्यक्ति है। कुलदीप की सुन्दरता और यौवन से ईर्ष्या करता है। फुलमतिया और नवजात शिशु की बलि देने में वह अपनी क्रूरता और निर्ममता का पूर्ण परिचय देता है। कुलदीप तथा फुलमतिया समाज के सामान्य युवक-युवती हैं, जिनमें यौवन की अल्हड़ता है। उनमें समाज का विरोध करने का साहस नहीं है। कुलदीप तो इतना कायर है कि वह फुलमतिया को प्रत्यक्ष रूप में अपनाने का साहस भी नहीं करता और चुपके से भाग जाता है। धनेसरा चाची गाँव की उन स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनके पेट में कोई बात नहीं पचती और दूसरे की कमजोरियों का कीचड़ उछालना ही जिसका काम है। पात्रों का चित्रण कथोपकथन, लेखकीय कथन तथा पात्रों के क्रिया-कलापों द्वारा किया गया है, जो अत्यन्त ही स्वाभाविक, सरल और स्पष्ट है।
कथोपकथन
कहानी में कथोपकथन अत्यन्त ही स्वाभाविक, सरल और व्यंग्यपूर्ण है जिनमें ग्रामांचलीय मनोवृत्तियों का पूर्ण परिचय मिलता है। धनेसरा चाची और मुखिया की बातों में ग्रामीण महिलाओं की ईर्ष्या झाँक रही है। भैरो, कुलदीप और फुलमतिया की बातचीत में अधिकार, भय और करुणा के दर्शन होते हैं। भैरो और मुखिया के वार्तालाप में भैरो पाड़े का साहस, उनकी निर्भीकता और स्पष्टवादिता दिखलाई देती है, जिनके सामने किसी को कुछ कह सकने की हिम्मत तक नहीं होती। इस प्रकार कहानी में कथोपकथन अत्यन्त ही संक्षिप्त, स्वाभाविक, तर्कपूर्ण और नाटकीयता से परिपूर्ण है।
वातावरण
वातावरण की दृष्टि से कहानी अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। कर्मनाशा की भयावह बाढ़ का बड़ा ही रोमांचकारी सजीव चित्र उरेहा गया है। उसमें काव्यमयी चित्रमयता है। पाठकों को कहानी पढ़ते समय सारा दृश्य आँखों के सामने नाचने लगता है। चैत की रात, गर्मी से जली-तपी कर्मनाशा तथा दूर तक फैले लाल रेत और चाँदनी में चमकती सीपियों का बड़ा ही सुन्दर चित्र खींचा गया है। वातावरण के सजीव चित्रण से कहानी में जान आ गयी है।
भाषा शैली
कहानी की भाषा सरल और बोधगम्य है। उसमें हिन्दी के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू तथा देशज शब्दों के भी प्रयोग हैं, जिससे भाषा अत्यन्त ही प्रभावशाली बन गयी है। मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रयोग से वर्णन में सजीवता आ गयी है और प्रेमचन्द की भाषा-शिल्प की सारी विशेषताएँ एक साथ ही कहानी में आ गयी हैं। कहानी वर्णनात्मक शैली में लिखी गयी है जिसमें व्यंग्य के पुट बड़े ही मार्मिक हैं।
उद्देश्य
सामाजिक अन्धविश्वासों और परम्परागत रूढ़ियों को तोड़कर उससे ऊपर उठकर स्वस्थ मानवतावादी दृष्टिकोणों की स्थापना ही कहानी का मुख्य उद्देश्य है। श्रम के महत्त्व को प्रतिष्ठापित कर जन-चेतना को एक नयी दिशा प्रदान करना कहानीकार का अपना दृष्टिकोण है।
कर्मनाशा की हार कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण
भैरो पाड़े शिवप्रसाद सिंह द्वारा लिखित 'कर्मनाशा की हार' नामक कहानी के प्रमुख पात्र हैं। ये गाँव के कुलीन ब्राह्मण हैं। इनका परिवार भरा-पूरा है। इनके पुरखे एक नामी पण्डित थे। इनके चरित्र की प्रधान विशेषताएँ निम्नलिखित
धर्म-प्रेमी - भैरो पाड़े एक धर्मनिष्ठ एवं कर्मकाण्ड में आस्था रखने वाले व्यक्ति हैं। वे अपने हाथ से सूत कातकर जनेऊ बनाते और पहनते हैं, धर्म-कर्म में लगे रहते हैं, पत्रा देखते हैं और सत्यनारायण की कथा बाँचते हैं।
न्यायप्रिय- अपने भाई से प्रेम करने पर भी वे उसके अनैतिक और अशिष्ट व्यवहार को देखकर उस पर क्रुद्ध हो जाते हैं और उसे भला-बुरा कहकर पीट भी देते हैं।
साहसी और निर्भीक- भैरो पाड़े परम साहसी और निर्भीक हैं। विपत्ति से नहीं घबराते। पिता की मृत्यु के बाद पिता का कर्ज, देख-रेख के लिए दुधमुँहा बच्चा और बाढ़ से ध्वस्त मकान मिला, किन्तु वे घबराये नहीं और एक साहसी व्यक्ति के समान सम्पूर्ण विघ्न-बाधाओं को झेलते हुए सम्मान के साथ कुलदीप का पालन किया तथा वंश की मर्यादा को बनाये रखने का प्रयास किया।
सच्चरित्र - भैरो पाड़े एक सच्चरित्र व्यक्ति के रूप में चित्रित हुआ है। उसे अपने पूर्वजों के मान-सम्मान का ध्यान है। गाँव की बहू-बेटियों को वह अपनी बहू-बेटी समझता है। जब कुलदीप फुलमतिया से प्रेम करता है तो भैरो पाड़े उसे डाँटता- फटकारता है।
भातृ-प्रेमी - भैरो पाड़े को अपने भाई से अत्यन्त प्रेम है। वह अपने छोटे भाई का पालन-पोषण करता है। जब कुलदीप घर से भाग जाता है तो पाड़े दुःख के सागर में डूब जाता है। वह सोचने लगता है—'राम जाने कैसा होगा-सूखी आँखों से दो बूँदें गिर पड़ीं', 'अपने से तो कौर भी नहीं उठा पाता था, भूखा बैठा होगा कहीं।' वह कुलदीप को खोजता फिरता है।
प्रगतिशील व्यक्ति - कर्मनाशा की हार का भैरो पाड़े प्रगतिशील विचारों का व्यक्ति है। इसी कारण वह अन्ध-विश्वासों का खण्डन करता है। रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए वह घोषणा करता है-
"कर्मनाशा की बाढ़ दुधमुँहे बच्चे और एक अबला की बलि देने से नहीं रुकेगी, उसके लिए तुम्हें पसीना बहा कर बाँधों को ठीक करना होगा।"
इस प्रकार भैरो पाड़े का चरित्र एक आदर्शवादी, गम्भीर, सच्चरित्र, विचारशील तथा प्रगतिशील विचारों के मानव का चरित्र है, जो समाज में फैली कुरीतियों और अन्ध-विश्वासों को समाप्त करने का प्रयास करता है।
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