पंचलाइट कहानी की समीक्षा सारांश उद्देश्य चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर फणीश्वर नाथ रेणु जी की कहानी पंचलाइट का सारांश panchlight kahani ka saransh गोधन
पंचलाइट कहानी की समीक्षा
पंचलाइट श्री फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध वातावरण-प्रधान आंचलिक कहानी है, जिसमें बिहार के ग्रामांचल का जीता-जागता चित्र प्रस्तुत किया गया है और गाँव की दलबन्दी, संकीर्णता तथा सामाजिक रूढ़ियों के खोखलेपन को उधेड़ने का प्रयास किया गया है। संक्षेप में कहानी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
कथानक
गाँव के महतो टोली द्वारा रामनवमी के मेले से पेट्रोमैक्स, जिसे वे 'पंचलाइट' कहकर पुकारते हैं, खरीदी जाती है। उसके उद्घाटन के अवसर पर पूजन का आयोजन होता है। संध्या समय कीर्तन मण्डली आती है। औरतें इकट्ठी होती हैं, किन्तु ऐन मौके पर यह मालूम होता है कि महतो टोली में 'पंचलाइट' जलाने का जानकार कोई नहीं है। गाँव के दूसरी टोली वाले ताना कसते हैं। अतः वे उनकी सहायता लेकर उनकी कृतज्ञता के बोझ को ढोना उचित नहीं समझते हैं।
गाँव की एक लड़की मुनरी, जिसके प्रेमी गोधन को सिनेमा के गीत गाने के अपराध में जाति-बहिष्कृत कर दिया गया है, बतलाती है कि गोधन पेट्रोमैक्स जलाना जानता है। टोली का सरदार अपनी जाति की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए गोधन की सजा को वापस लेता है। गोधन बुलाया जाता है, वह बिना स्प्रिट के ही गरी के तेल द्वारा पेट्रोमैक्स जलाकर अपनी दक्षता सिद्ध कर सब पर प्रभाव जमा लेता है और सभी उसे आदर की दृष्टि से देखने लगते हैं।
कहानी का कथानक सामाजिक पृष्ठभूमि पर उकेरा गया है, जो कल्पित होते हुए भी यथार्थ के बहुत समीप है। कहानी में पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष की भावना का बड़ा ही मनोवैज्ञानिक सजीव चित्र प्रस्तुत किया गया है।
पात्र और चरित्र-चित्रण
कहानी में व्यक्ति चरित्र की अपेक्षा वर्ग चरित्र की प्रधानता है। सरदार, दीवान, गुलरी, फुटंगी आदि प्राचीन रूढ़ियों से ग्रस्त ग्रामीणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे स्वच्छन्द आचरण के विरोधी हैं। कल-पुर्जे वाली चीज का पूजा करने के अन्धविश्वास के समर्थक हैं। मुनरी और गोधन के चरित्र गाँव के दूसरे वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो प्रगतिशील विचारों वाले हैं। गोधन स्वतन्त्र विचारों वाला युवक है। उसका अपराध इतना ही है कि वह सिनेमा के गीत गाता है। वह मुनरी से प्रेम करता है और इसीलिए जाति-बहिष्कार के दण्ड को सहन करता है। मुनरी गाँव की साधारण युवती है, जो गोधन के जाति-बहिष्कृत हो जाने पर भी पूर्ववत् प्रेम रखती है, किन्तु नारी के सहनशील संकोच और लज्जा के कारण सबके सामने अपने प्रेमी का नाम नहीं ले पाती और सहेली के माध्यम से सरदार के पास गोधन का नाम कहलवा भेजती है।
कहानी में पात्रों की संख्या कोई विशेष अधिक नहीं है। सभी पात्र प्रामांचल की किसी विशेषता को व्यक्त करने के लिए रखे गये हैं। पात्रों का चरित्र-चित्रण लेखकीय स्वकथन द्वारा हुआ है। कथोपकथन का सहारा बहुत थोड़ा लिया गया है, फिर भी चरित्र-चित्रण अत्यन्त ही स्वाभाविक और सशक्त बन पड़ा है।
कथोपकथन
कहानी में कथोपकथन बहुत ही थोड़ा है, फिर भी वह अत्यन्त ही सशक्त और स्वाभाविक है। संवादों में कृत्रिमता नहीं है। संवादों में व्यंग्य और विनोद की बहुलता है।
वातावरण की प्रधानता
कहानी में वातावरण की ही प्रधानता है। ग्रामांचल का सजीव चित्र कहानी को पढ़ते समय पाठकों के समक्ष आ जाता है। देश-काल और परिस्थितियों का चित्रण प्रस्तुत करने में कहानीकार को विशेष सफलता प्राप्त हुई है। ग्रामीण अन्धविश्वास, रूढ़ियों, संकीर्णताओं आदि का बड़ा ही प्रभावशाली वर्णन कहानी में किया गया है।
शीर्षक
कहानी का शीर्षक 'पंचलाइट' है, जो पूरी कहानी का केन्द्र बिन्दु है। कहानी का शीर्षक कौतूहलपूर्ण संक्षिप्त होते हुए भी अत्यन्त ही सारगर्भित है, जिसकी जानकारी के लिए पाठकों को आद्योपान्त कहानी पढ़नी पड़ती है। (6) कौतूहल- कहानी में कौतूहल शीर्षक से ही प्रारम्भ हो जाता है और अन्त तक बना रहता है, जिसके कारण कहानी अत्यन्त ही मनोरंजक और आकर्षक हो जाती है।
अन्तर्द्वन्द्व
कहानी में मुनरी तथा सरदार के अन्तर्द्वन्द्वों का बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण पेट्रोमैक्स के न जला पाने पर तथा दूसरी टोली वालों से हुआ है।
भाषा-शैली
कहानी की भाषा सरल है, जिसमें ग्रामांचलों के शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो ग्रामीणों की अशिक्षा और उनके अज्ञान का परिचायक है। कल कब्जा, पुन्याह, अलबत्ता, नेम-टेम, चौका-पीढ़ी आदि आंचलिक शब्दों के प्रयोग से ग्रामीण चित्रमयता सजीव हो उठी है। कहानी में उर्दू के शब्दों का भी जैसे शोरगुल, दिमाग, मायूसी, काबिल, बेवजह आदि शब्दों है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा सशक्त और प्रभावशाली हो गयी है। कहानी की शैली व्यंग्य और विनोदपूर्ण प्रयोग हुआ है। कहानी वर्णनात्मक शैली में लिखी गयी है। गोधन शब्द को व्यक्त करने के लिए मुनरी द्वारा 'चिगोचिधचिन' शब्दों के प्रयोग की आंचलिक शैली उल्लेखनीय है, जिसके प्रत्येक शब्द 'चि' निकालकर गोधन का बोध होता है।
उद्देश्य
कहानी का उद्देश्य ग्रामीण समाज की अशिक्षा, अज्ञानता, अन्धविश्वास, रूढ़िग्रस्तता आदि का चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना है। कहानीकार ने ग्रामांचल के खोखले अन्धविश्वासों और रूढ़ियों की बखिया उधेड़ कर पाठकों के समक्ष रख दिया है।
पंचलाइट कहानी का सारांश
पंचलाइट को क्रय करना-महतो टोले की पंचायत में पन्द्रह महीने से जुर्माने का धन जमा होता आ रहा था। रामनवमी के मेले में पंचों ने पेट्रोमैक्स खरीदा, जिसे वे पंचलाइट कहते थे। पंचलाइट खरीदने से दस रुपये बचे। पंचों द्वारा इस प्रकार बचे हुए दस रुपये से पूजा की सामग्री खरीद कर पूजा करने का निर्णय किया गया। टोले भर के लोग पंचलाइट को देखने आये थे।
कीर्तन की विधिवत तैयारी करना-दस रुपये की पूजा सामग्री खरीद ली गयी। सब लोग इकट्ठे हो गये। छड़ीदार जगनू महतो रह-रह कर लोगों को चेतावनी दे रहा था—हाँ दूर, जरा दूर से, छू मत देना, ठेस न लगे।" सरदार ने अपनी स्त्री से कहा - "साँझ को पूजा होगी, जल्दी से नहा-धोकर चौक-पीढ़ी लगाओ।" कीर्त्तन-मण्डली के सरदार मूलधन ने अपने व्यक्तियों से कहा- "देखो, आज पंचलैट की रोशनी में कीर्त्तन होगा।" सूर्य अस्त होने के एक घण्टा पहले ही टोले भर के लोग सरदार के दरवाजे पर इकट्ठा होने लगे।
'पंचलाइट' जलाने की समस्या-सरदार ने पंचलैट खरीदने का पूरा किस्सा लोगों को सुनाया। टोले के लोगों ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी नजरों से देखा। परन्तु उस सारे टोले में पंचलैट जलाना किसी को न आता था। समस्या यह थी कि पंचलैट जलायेगा कौन? खरीदने से पहले यह बात किसी के दिमाग में आयी नहीं थी। आज किसी ने अपने घर में ढिबरी न जलायी थी। पंचलैट न जलने से पंचों के चेहरे उतर गये थे। राजपूत टोले के लोगों ने उनका मजाक बनाया। सबने धैर्य साथ उनका मजाक सहन किया।
गोधन का बिरादरी में शामिल किया जाना-सारे टोले में पंचलैट जलाने की विद्या बस एक ही व्यक्ति जानता है और वह है-गोधन । केवल गुलरी काकी की बेटी मुनरी जानती है कि गोधन पंचलैट जलाना जानता है। परन्तु गोधन को तो पंचों ने बिरादरी से निकाल रखा था, क्योंकि वह 'सलीमा' के गीत सुनाकर और बाँसुरी बजाकर मुनरी को अपनी ओर आकर्षित किया करता था। मुनरी ने अपनी सहेली कनेली के कान में यह बात बतायी। कनेली ने यह सूचना सरदार के कान तक पहुँचा दी कि गोधन पंचलैट जलाना जानता है। अब यह विचार करने की बात थी कि बिरादरी से हुक्का बन्द गोधन को बुलाया जाय या नहीं। सरदार ने कहा कि-'जाति की बन्दिश ही क्या जबकि जाति की इज्जत पानी में बही जा रही है! क्योंजी दीवान?' सबकी राय से गोधन को बुलाना तय हो गया। छड़ीदार को गोधन के पास बुलाने भेजा, परन्तु गोधन ने आने से इनकार कर दिया। छड़ीदार ने आकर रोनी सूरत बना कर कहा कि गोधन को मना लिया जाय, नहीं तो कल से मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे। अन्त में पंचों की राय से गुलरी काकी गयी और वह गोधन को मना लायी। अब गोधन की बिरादरी में खुल्लस हुई।
गोधन के सात खून का क्षमा किया जाना-गोधन आकर पंचलैट जलाने लगा। उसने स्प्रिंट माँगी। उपस्थित जन-समूह मैं फिर मायूसी छा गयी। स्प्रिट तो लायी ही नहीं गयी थी। गोधन ने स्प्रिंट के अभाव में गरी के तेल से ही लाइट जला दी।
पंचलैट को जलती देखकर सब प्रसन्न हो गये और गोधन की प्रशंसा करने लगे। मुनरी ने हसरत भरी दृष्टि से गोधन को देखा। आँखें चार हुईं और आँखों से बात हुई— “कहा-सुना माफ करना। मेरा क्या कसूर!” सरदार ने गोधन को बड़े प्यार से अपन पास बुलाया और कहा—“तुमने जाति की इज्जत रखी है। तुम्हारा सात खून माफ। खूब गाओ सलीमा का गाना।” गुलरी काकी ने गोधन को रात के खाने पर निमन्त्रित किया। गोधन ने एक बार फिर मुनरी को देखा, मुनरी की पलकें झुक गयीं।
आंचलिक कहानी पंचलाइट
आंचलिक शब्द का प्रयोग प्रायः उपन्यास के प्रसंग में ज्यादा किया जाता है। किन्तु अब यह काव्य-कविता, कहानी आदि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त किया जाने लगा है। इससे किसी अंचल-विशेष (क्षेत्र-विशेष) या ग्राम-विशेष का बोध होता है। आलोच्य कहानी बिहार प्रदेश के पूर्णिया जिले के ग्रामीण क्षेत्र और उसके यथार्थ वातावरण का चित्रांकन करती है। इसमें बिहार के ग्रामीण अंचल की सामाजिक परिस्थितियों और मनोवृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है। हमारे गाँव परस्पर विद्वेष, ईर्ष्या और रूढ़िवादिता से ग्रस्त होकर टोलियों-टुकड़ों में बँटे हुए हैं। इनमें ग्राम की थोथी नैतिक मान्यताओं का भी बड़ा सजीव और यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया गया है। रीति-रिवाजों, अन्धविश्वासों के सजीव चित्र प्रस्तुत किए गये हैं। पंचलाइट के लाने पर उसका पूजन-कीर्त्तन और प्रसाद वितरण इसके पुष्ट प्रमाण हैं। कहानी में क्षेत्रीय बोलियों, मुहावरों व लोकोक्तियों का सफल प्रयोग हुआ है। इस तरह कहानीकार ने कहानी में आंचलिकता का पूर्ण निर्वाह किया है। निश्चय ही यह एक सफल आंचलिक कहानी है।
पंचलाइट कहानी के मुख्य पात्र का चरित्र चित्रण
गोधन 'पंचलाइट' कहानी का सर्वप्रमुख पात्र और उसका नायक है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती है -
- भोला-भाला अल्हड़ ग्रामीण युवा -गोधन महतो टोले का भोला-भाला अल्हड़ ग्रामीण युवा है। उसकी अल्हड़ता का आलम यह है कि वह पंचायत के तमाम विरोध के बाद भी सिनेमा का गाना-'हम तुमसे मोहब्बत करके सलम' गाना नहीं छोड़ता । उसके इस अल्हड़पन की उसे सजा भी मिलती है। गाँव की पंचायत सजा के रूप में उस पर दस रुपरा जुर्माना करती है और उसका हुक्का-पानी भी बन्द कर देती है।
- चतुर और होशियार -गोधन ग्रामीण होते हुए भी बहुत चतुर और होशियार है। इसका प्रमाण यही है कि सम्पूर्ण महतो टोले से वही एक ऐसा व्यक्ति है, जो पेट्रोमैक्स जलाना जानता है। उसकी चतुराई का प्रमाण यह भी है कि जब टोले के सामने पंचलाइट जलाने की समस्या उठ खड़ी होती है तो वह अपनी प्रेमिका मुनरी को यह बात बता देता है कि वह पेट्रोमैक्स जलाना जानता है। मुनरी उसकी इस बात को पंचायत तक पहुँचा भी देती है। पंचायत उसकी होशियारी पर मुग्ध है, इसका वर्णन कहानीकार ने इस रूप में किया है-“उपस्थित जन-समूह में फिर मायूसी छा गई। लेकिन, गोधन बड़ा होशियार लड़का है। बिना इसपिरिट के ही पंचलैट जलाएगा। -लोगों के दिल का मैल दूर हो गया। गोधन बड़ा काबिल लड़का है।"
- स्वाभिमानी युवा -गोधन बड़ा मानी युवा है। पंचायत के हुक्का-पानी बन्द किए जाने को उसने अपना अपमान समझा, इसलिए वह पंचायत द्वारा पंचलैट जलाने के लिए बुलाए जाने पर वहाँ जाने से मना कर देता है और छड़ीदार से व्यंग्यपूर्वक कहता है-“पंचों की क्या परतीत है? कोई कल-कब्जा बिगड़ गया तो मुझे दण्ड-जुरमाना भरना पड़ेगा।" जिस मुनरी काकी के कहने पर उसे सजा सुनाई गई थी, उसी के मनाने पर वह पंचलैट जलाने के लिए आता है।
- समाज की प्रतिष्ठा के प्रति संवेदनशील - गोधन अपने समाज की मान-प्रतिष्ठा के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। पंचायत ने उस पर दस रुपये जुर्माना किया है और उसका हुक्का-पानी भी बन्द कर दिया है, किन्तु जब उसी पंचायत और समाज की प्रतिष्ठा पर बन आई तो वह अपने पूर्व के अपमान को भुलाकर पंचलैट जलाने के लिए तैयार हो जाता है और बिना स्प्रिंट के भी पंचलैट जलाकर अपने समाज, जाति और पंचायत की मान-प्रतिष्ठा की रक्षा करता है।
इस प्रकार कहानीकार ने गोधन को एक प्रगतिशील जनहितकारी युवा के रूप में प्रस्तुत करके यह सन्देश दिया है कि व्यक्तिगत मान-प्रतिष्ठा से देश, जाति और समाज की प्रतिष्ठा कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है और व्यक्ति को सब प्रकार से उसकी रक्षा करनी चाहिए।
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