जिंदगी और जोंक कहानी की समीक्षा अमरकांत जिंदगी और जोंक कहानी की संवेदना जिंदगी और जोंक कहानी के पात्र हिंदी कहानी संवेदना और शिल्प भाषा शैली उद्देश्य
जिंदगी और जोंक कहानी की समीक्षा
जिंदगी और जोंक अमरकांत जी की प्रसिद्ध कहानी है।आपने जिंदगी और जोंक को परस्पर एक दूसरे से चिपककर उसका रक्त चूसने की बात कहकर जीवन के कटु सत्य और विषम से विषम परिस्थितियों में रहते हुए भी जीने की प्रबल इच्छाशक्ति को उजागर किया है। प्रस्तुत कहानी की समीक्षा निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत करना समीचीन होगा -
कथानक
जिंदगी और जोंक कहानी का कथानक अत्यंत संक्षिप्त ,स्पष्ट एवं सुसंगठित है। रजुआ नामक एक दलित युवक के इर्द -गिर्द सारी कथा घूमती है। रजुआ अनेक कठिनाइयों एवं यातनाओं को झेलता है ,परन्तु अपनी प्रबल जिजीविषा के कारण काफी दिनों तक जीवित रहता है। उसे देखकर लेखक सोचता है कि वह जोंक की तरह जिंदगी से चिपका हुआ है और उसे छोड़ना नहीं चाहता है। अंत में लेखक के मन में अनिर्णय की स्थिति उत्पन्न होती है। वह रजुआ को ध्यान पूर्वक देखता है ,तो उसकी समझ में नहीं आता है कि रजुआ अपनी जिंदगी से जोंक की भाँती चिपका हुआ है कि रजुआ की जिंदगी उससे जोंक की तरह चिपककर उसका रक्त चूस रही है। कथा की शुरुआत में रजुआ एक खंडहर में पड़ा दीन -हीन एवं अनाथ के रूप में सामने आता है और अंत में उसका कंकाल दिखाई पड़ता है ,किन्तु उसके अन्दर जीने की प्रबल इच्छा है ,तभी तो वह नाना प्रकार की कठिनाइयों को झेलता हुआ लम्बा समय तक जीवित रहा है।
पात्र योजना
रजुआ , जिंदगी और जोंक कहानी का प्रमुख पात्र है। सम्पूर्ण कथा के केंद्र में रजुआ की उपस्थिति है। वह निम्न मध्यमवर्ग का पात्र है। यद्यपि उसका नाम गोपाल है तथापि वह रजुआ के नाम से ही अधिक चर्चित है। उसके ब्राह्य रूपाकार को स्थापित करते हुए लेखक ने लिखा है कि उसकी खोपड़ी किसी हलवाई की दुकान पर दिन में लटकते काले गैस के लैंप की भाँती हिल डुल रही थी। गाल पिचके हुए ,आँखें धँसी हुई ,छाती की हड्डियाँ साफ़ बाँस की खपच्चियों की तरह दिखाई दे रही रही थी। पेट नाद की तरह फूला हुआ था। रजुआ बाहर से जितना कुरूप है। अन्दर से उतना ही स्वच्छ है। वह अपनी दयनीय स्थिति के बाद भी भीख नहीं माँगता ,अपितु मेहनत करके पेट पालने को श्रेयकर समझता है। उसमें अपार जिजीविषा है। रजुआ के अतिरिक्त मुहल्ले में रहने वाले लोगों का चरित्र भी उजागर हुआ है। मुहल्ले के लोग भी मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के हैं। इनमें शिवनाथ बाबू का नाम प्रमुख है।
संवाद
किसी भी कहानी के संवाद ,कथावस्तु को आगे बढ़ाने के साथ साथ पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को भी उजागर करते हैं। जिंदगी और जोंक कहानी के संवाद सहज ,सरल ,पात्रानुकूल एवं प्रसंगानुरूप हैं। इस कहानी में कथावस्तु को अग्रसर करने वाले संवादों की अधिकता है। जैसे पगली के प्रति रजुआ की आत्मीयता तथा बरन की बहू का उसकी संचित धनराशि को दबा लेना आदि घटनाओं की सूचना संवादों के माध्यम से ही पाठकों को होती है - रजुआ ने आजकल दाढ़ी क्यों रख छोड़ी है। - मैंने पत्नी से पूछा। रजुआ की बात छिड़ने पर मेरी बीबी हँस अवश्य देती। मुस्कराकर उत्तर दिया - "आजकल वह भगत हो गया है। बरन की बहू को उसके कृत्य की सजा देने के लिए उसने दाढ़ी बढ़ा ली है और रोजना शनिचरी देवी पर जल चढ़ाता है। "
वातावरण
जिंदगी और जोंक कहानी के लिए कहानीकार ने निम्न मध्यवर्गीय लोगों के जीवन को आधार बनाया है। दीन-हीन रजुआ की दयनीय स्थिति चित्रण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। रजुआ की स्थिति का निरूपण अत्यंत मार्मिक एवं ह्रदय स्पर्शी है। वातावरण सृजन में लेखक ने चित्रात्मकता की सृष्टि किया है। यथा - 'शिवनाथ बाबू के घर के सामने सड़क की दूसरी ओर स्थित खंडहर में नीम के पेड़ के नीचे एक दुबला पतला काला आदमी गन्दी लुंगी में लिपटा चित पड़ा था ,जैसे रात में आसमान से टपककर बेहोश हो गया हो अथवा दक्षिण भारत का भूला -भटका साधु निश्चित स्थान पाकर चुपचाप नाक से हवा खींच - खींच कर प्राणायाम कर रहा हो। " इसी प्रकार एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति का परिवेश दर्शनीय है - बगल की चौकी पर धुंधली लालटेन कभी कभी चकमक कर उठती उसके चारों ओर उड़ते पतंगे कभी कमीज के अन्दर घुस जाते जिससे तबीयत एक असह्य खीज से भर उठती। "
भाषा शैली
जिंदगी और जोंक कहानी में सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग हुआ है। अभिव्यक्ति को सार्थक और संप्रेषण हेतु बनाने के लिए लेखन ने स्थान स्थान पर वांछित लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी सफल प्रयोग किया है। जैसे - मारते मारते भूंसा बना दूंगा,चेहरे पर हवाईयां सी उड़ रही थी ,नीच और नीबू को दबाने से ही रस निकलता है। इस कहानी की भाषा इसकी वर्णन शैली को चित्रोपम बनाने में पूर्णतः सफल है। रजुआ के व्यक्तित्व का चित्रण करते समय उस भिखमंगे के आकार की एक एक रेखा स्पष्ट हो जाती है - भिखमंगा नाटा था ,गाल चिपके हुए ,आँखें धँसी हुई और छाती की हड्डियाँ साफ़ बाँस की खपच्चियों की तरह दिखाई दे रही थी। पेट नाद की तरह फूला हुआ। " इस प्रकार हम देखते हैं कि भाषा प्रसंग एवं पात्र के अनुरूप तथा शैली स्वाभाविक एवं व्यावाहारिक है।
उद्देश्य
जिंदगी और जोंक कहानी में कहानीकार ने समाज की यथार्थ स्थिति को रूपायित किया है। अपने आस पास एवं अगल - बगल के परिवेश की यथार्थ सामाजिक स्थिति को चित्रित करके जनमानस को ऐसी सामाजिक सच्चाई से अवगत कराना और दीन -हीन व्यक्ति की अदम्य जिजीविषा का ज्ञान कराना ही इस कहानी का उद्देश्य है।
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