अंत भला तो सब भला पर निबंध | Essay on ant bhala to sab bhala

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अंत भला तो सब भला पर निबंध Essay on ant bhala to sab bhala hindi Ant bhala to sab bhala story अच्छी नीयत से किये गये भले कार्य का अंत भी भला ही होता

अंत भला तो सब भला पर निबंध Essay on ant bhala to sab bhala in hindi

 
अंत भला तो सब भला पर निबंध Essay on ant bhala to sab bhala in hindi छत्तीसगढ़ के एक जिले दुर्ग की बात है। वहाँ पूरे इलाके में पानी की बड़ी समस्या थी। दुर्ग गवर्नमेंट हाई स्कूल के हेडमास्टर पंडित दीनानाथ तिवारी ने सुझाव दिया कि क्यों न विद्यार्थी शिक्षक मिलकर एक कुआँ खोद लें ताकि समस्या से छुटकारा पाया जाय । सभी ने इस योजना की सराहना की ।

कुएँ की खुदाई का काम

वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर सभी के लिये एक सुविधाजनक स्थान का चयन कर बड़ी धूमधाम से भूमि पूजन हुआ और शुरू किया गया कुएँ की खुदाई का काम। विद्यालय के सभी कर्मचारी, शिक्षक, विद्यार्थी मिलकर बड़े उत्साह से जमीन खोदने लगे। बच्चे अपने खेल के कालखंड को उसी शुभ कार्य में लगाने लगे ।
 
अंत भला तो सब भला पर निबंध Essay on ant bhala to sab bhala in hindi
गड्ढा अभी दस-बारह फुट गहरा भी न खुद पाया था कि नीचे से बड़ी-बड़ी चट्टानें झलकनी शुरू हो गईं। कुदाली की चोट से मिट्टी की जगह चिन्गारियाँ उछलतीं। हेडमास्टर साहब ने पी.डब्ल्यू.डी. के इन्जीनियर श्री गुप्ता साहब से सलाह ली । उन्होंने बड़ा निराशाजनक उत्तर दिया कि साहब यहाँ तो पानी निकल ही नहीं सकता। मास्टर साहब को बड़ा झटका लगा और उन्हें बुखार आ गया। वे सोचने लगे कि पहले ही जो लोग देखते थे मजाक उड़ाते थे अब तो और भी ज्यादा शर्मिन्दगी हो जायेगी । आखिर उन्होंने गड्ढे को बंद करवाने का विचार कर लिया। परंतु मास्टर साहब की पत्नी बड़ी धार्मिक व साहसी महिला थी। उन्होंने मास्टर साहब का हौसला बढ़ाया और कुआँ खुदवाने का जिम्मा स्वयं ले लिया। डायनामाइट लगाकर चट्टानें तोड़ी जाने लगीं । धड़ाम-धड़ाम चट्टानें टूटतीं और सारा वातावरण दहल जाता। लोग मजाक उड़ाने से बाज न आते । मास्टरनी जी ज्येष्ठ मास की भरी दोपहरी में छाता लगाकर सारे दिन खड़ी रहकर कुएँ की खुदाई करवातीं ।

शीतल स्वच्छ जल की धार

एक दिन होस्टल के पंडित जागेश्वर सब्जी लेने के लिये बाजार के लिए निकले परंतु धूप तेज देखकर कुएँ में काम करने उतर पड़े।खोदते-खोदते जैसे ही उन्होंने दो चट्टानों के बीच कुदाली मारी और मिट्टी हटाई कि अचानक चिलचिलाती धूप में तपती चट्टानों से शीतल स्वच्छ जल की धार फूट पड़ी। पंडित जी ने फौरन एक छोटा गड्ढा बना दिया और पल भर में झरझर करता ठंढा पानी चट्टानी स्रोत से भरने लगा। पंडित जी ने झट से चुल्लू भर पानी से आचमन कर डाला और तुरन्त ही यह खुशखबरी मास्टरनी जी को जाकर सुनाई । सुनकर किसी को विश्वास न हुआ । 

शाम तक यह खबर दावानल की तरह सारे शहर में फैल गई। कुएँ के पास दर्शकों का ताँता लग गया। शुभचिन्तक खुश होते तो ईर्ष्यालु मन ही मन कुछ बुदबुदा कर चले जाते ।
 

भले का अंत भला

दो रात कुएँ के किनारे बैठकर भजन हुए, प्रसाद वितरण हुआ। भाग्य की बात कुएँ में एक के बाद एक पाँच मीठे पानी की झरने आयीं । कुआँ तेजी से भरने लगा। जल्दी से जल्दी बारिश के पहले उसे पक्का बाँधा गया। उसकी जगत पर मास्टर साहब का नाम संगमरमर के पत्थर पर खुदवा कर जड़ा गया। कुआँ 'तिवारी वेल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी सभी उसके ठंढे पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं व उन्हें याद करते हैं । इसी को कहते हैं- 
भले का अंत भला । अच्छी नीयत से किये गये भले कार्य का अंत भी भला ही होता है । 

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