भारत में किसान आंदोलन पर निबंध | Essay on Farmer Protest in Hindi

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भारत में किसान आंदोलन पर निबंध


भारत में किसान आंदोलन पर निबंध Essay on Farmer Protest in Hindi भारत में किसान आंदोलन कोई नई समस्या नहीं है लेकिन अगर सही तरीके से किसानों का मार्गदर्शन किया जाए तो इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। भारत में किसान आंदोलन के चलन को प्रारंभ से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रमुख दशाओं को हम विभिन्न रूपों में समझ सकते हैं . 

भारत एक कृषि प्रधान देश

भारत में किसान आंदोलन पर निबंध | Essay on Farmer Protest in Hindi
भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की लगभग एक तिहाई आबादी कृषि कार्यों में संलग्न है। तो जाहिर सी बात है कि किसानों की समस्याएँ भी अपने आप में बहुत बड़ी रही होंगी और जब इन्हीं समस्याओं का उचित समाधान नहीं मिल पाता है तो किसान सड़कों पर उतरकर अपनी नाराजगी जताते हैं, संभवतः यही विशाल जन-समूह किसान आंदोलन का रूप ले लेता है । लेकिन हमें सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि आखिर ऐसी कौन-सी वजहें रही हैं कि किसानों को अपना सारा काम-काज छोड़कर सड़कों पर उतरने की नौबत आ गई क्योंकि भारत में किसानों की समस्याएँ निरंतर चली आ रही हैं। यदि हम आजादी के पहले की बात करें तो भारतीय किसान कभी भू-राजस्व की दर में हो रही बढ़ोतरी को लेकर तो कभी अवैध कराधान, मनमानी बेदखली और अवैतनिक श्रम की समस्याओं से परेशान होकर तत्कालीन शासन-व्यवस्था के खिलाफ एकजुट होकर विरोध में उतरते रहे और नील विद्रोह, पाबना विद्रोह, दक्कन विद्रोह, चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह, मोपला विद्रोह, बारदोली सत्याग्रह आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

किसानों की समस्याएँ

आजादी के बाद किसानों की प्रमुख समस्याओं को सबसे ऊपर रखा गया और विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं और कई तरह के कार्यक्रमों को चलाकर सरकारों द्वारा किसानों की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया गया, जिसमें हरित क्रांति ने प्रमुख भूमिका निभाई और बहुत हद तक किसानों की समस्याओं को कम किया। लेकिन हाल के वर्षों में आई कुछ प्रमुख कृषि नीतियों ने एक बार फिर से किसानों के मन में रोष उत्पन्न कर दिया जिसने अंततः किसानों को एमएसपी के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन के लिए एकजुट कर दिया। इस आंदोलन का मुख्य क्षेत्र दिल्ली और आस-पास के इलाके रहे। इस आंदोलन में जो प्रमुख समस्या उभरकर सामने आई वह थी, कुशल नेतृत्व क्षमता का अभाव जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन सरकार और कुछ प्रमुख किसान आंदोलनकारियों के बीच लंबे समय तक बातचीत संभव नहीं हो सकी और यह समस्या गहराती गई। लेकिन अंततः सरकार ने किसानों की बात मानते हुए अपने पक्ष को भी एक उचित दिशा दी जिसका दूरगामी प्रभाव हमें आगे के कुछ वर्षों में देखने को अवश्य मिलेगा। लेकिन कारण चाहे जो भी हो किसान आंदोलन ने एक बात तो साबित कर दी कि कृषि क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक और शिक्षित होने की आवश्यकता है ताकि वे अपने मूल्यों को सही तरीके से पहचान सकें।


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