झूठ के पाँव नहीं होते पर मौलिक कहानी लेखन

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झूठ के पाँव नहीं होते पर मौलिक कहानी लेखन Jhuth Ke Panv Nahi Hote झूठ के पाँव नहीं होते उक्ति के आधार पर घटना या मौलिक कहानी एक झूठ को छिपाने के लिए

झूठ के पाँव नहीं होते उक्ति के आधार पर घटना या मौलिक कहानी

 
झूठ के पाँव नहीं होते उक्ति के आधार पर घटना या मौलिक कहानी झूठ के पाँव नहीं होते उक्ति का अर्थ है कि झूठ बोलने वाले में स्थिरता नहीं होती। कहने का अर्थ है कि झूठ बोलने वाला व्यक्ति अपनी बात पर कभी टिका नहीं रहता।

इस उक्ति पर आधारित एक मौलिक कहानी इस प्रकार है - संसार में सभी तरह के व्यक्ति होते हैं। कुछ लोग झूठ बोलते हैं और कुछ लोग सच बोलते हैं। कुछ तो एक झूठ को छिपाने के लिए हजारों झूठ बोल जाते हैं। इसी कहानी से मिलता जुलता एक उदाहरण है गोपाल नाम के व्यक्ति का । किसी गाँव में गोपाल नाम का एक व्यक्ति था। वह बहुत अधिक धनवान था। इसी कारण से वह अहंकारी भी था। गोपाल का एक बेटा था राकेश वह अपने बेटे राकेश को पढ़ा-लिखाकर विदेश में भेजना चाहता था। जिससे वह आस-पास के गाँव वाले लोगों के बीच मैं खुद को सबसे ऊँचा दिखा सके। गोपाल की गाँव में जमीन थी। इसके साथ ही उसका शहर में भी अपना व्यवसाय था । उसने शहर में भी अपना काफी कारोबार बढ़ा रखा था । 

झूठ के पाँव नहीं होते पर मौलिक कहानी लेखन
गोपाल अपने बेटे के लिए नए-नए सपने गढ़ता रहता था। वह सोचता था कि मेरा बेटा पढ़-लिखकर और ज्यादा पैसा कमाएगा। दूसरी तरफ गोपाल का बेटा, जिसे न पढ़ने-लिखने में कोई रुचि थी और न ही अपने पिता के व्यवसाय में। वह तो अपने पिता के पैसे खर्च करता था और आराम की जिंदगी जीता था। अब गोपाल को यही डर सताता रहता था कि न तो बेटा कुछ कमा पाएगा और न ही मेरा व्यवसाय आगे बढ़ा पाएगा। वह अपने बेटे को बहुत समझाने का प्रयास करता था लेकिन उसका बेटा कोई भी बात मानने को तैयार नहीं होता था।यह देखकर गोपाल का मन दुखी होता है इसके बाद उसने कोशिश करके अपने बेटे को किसी रिश्तेदार के यहाँ शहर में रहने के लिए भेजा। वह गाँव वालों से झूठ बोलता था कि उसका बेटा विदेश चला गया है और उसको वहाँ पर एक बड़ी नौकरी मिल गई है। सभी गाँव वाले सोचते थे कि यह तो अपने बेटे को विदेश भेज सकता है क्योंकि इसके पास तो बहुत पैसा है। 

जिस शहर में गोपाल ने अपने बेटे को भेजा था उसी शहर में गाँव के एक किसान के बेटे मदन की भी नौकरी लग गई थी। मदन राकेश को एक दिन अचानक से शहर में मिल जाता है । मदन राकेश से पूछता है कि तुम तो विदेश चले गए थे तो यहाँ पर कैसे? राकेश ने मदन से कहा है कि मैं यहाँ किसी काम से आया हुआ हूँ। लेकिन जब मदन राकेश को बहुत दिनों तक उसी शहर में रहते हुए देखा तो वह समझ गया कि राकेश के पिता ने गाँव में झूठ बोला है कि उनका बेटा विदेश में है। मदन ने गाँव जाकर इस बात को अपने घर में बताया। 

गाँव में धीरे-धीरे सभी को यह बात पता चल गई थी। राकेश के पिता ने बात को पहले तो घुमा-फिरा दिया बाद में सभी को सब सच बता दिया। उन्होंने कहा कि मैं अहंकार के कारण ही यह सब झूठ बोल रहा था। इसके बाद गोपाल समझ गया कि अब तो सबको सच्चाई पता चल ही गई। अतः उसने अपने बेटे को वापिस अपने पास गाँव में ही बुला लिया है। तब उसे एहसास होता है कि एक झूठ को छिपाने के लिए उसे कितनी बातें बनानी पड़ी। इसीलिए कहते हैं कि 'झूठ के पाँव नहीं होते'। वह आखिरकार पकड़ा ही जाता है। Jhuth Ke Panv Nahi Hote

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