भारत में खेल संस्कृति का विकास खेलो इंडिया अभियान भारत में खेल संस्कृति का विकास खेलो इंडिया अभियान भारत एक ऐसा देश है जहाँ क्रिकेट को धर्म की तरह
भारत में खेल संस्कृति का विकास खेलो इंडिया अभियान
भारत में खेल संस्कृति का विकास खेलो इंडिया अभियान भारत एक ऐसा देश है जहाँ क्रिकेट को धर्म की तरह पूजा जाता है, लेकिन अन्य खेल लंबे समय तक उपेक्षित रहे। स्वतंत्रता के बाद के दशकों में खेलों को शिक्षा और करियर का हिस्सा बनाने की बजाय केवल शौक या मनोरंजन तक सीमित रखा गया। गाँवों में कुश्ती, कबड्डी और खो-खो जैसे पारंपरिक खेल तो जीवित थे, पर शहरों में बच्चों का अधिकांश समय पढ़ाई और ट्यूशन में बीतता था। ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश के अनुपात में हमेशा निराशाजनक रहा। इसी पृष्ठभूमि में वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने “खेलो इंडिया” नामक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया, जिसका उद्देश्य केवल पदक जुटाना नहीं, बल्कि पूरे देश में खेलों को संस्कृति का अभिन्न अंग बनाना था।
खेल आधारभूत संरचना का विकास
खेलो इंडिया अभियान की नींव तीन मजबूत स्तंभों पर टिकी है – आधारभूत संरचना का विकास, प्रतिभा की खोज और उसे निखारना तथा खेलों को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाना। सबसे पहले सरकार ने देश भर में खेलो इंडिया सेंटर और खेलो इंडिया स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने की योजना शुरू की। पुराने पड़े स्टेडियमों को आधुनिक बनाया गया, नए सिंथेटिक ट्रैक, स्विमिंग पूल और मल्टी-स्पोर्ट्स हॉल बनाए गए। अब गाँव-कस्बों के बच्चे भी उन सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं जिनके बारे में पहले वे केवल टीवी पर देखा करते थे। दूसरा बड़ा कदम था प्रतिभा खोज। खेलो इंडिया यूथ गेम्स, खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स और खेलो इंडिया विंटर गेम्स जैसे वार्षिक आयोजन शुरू हुए, जिनमें लाखों बच्चे हिस्सा लेते हैं। इन प्रतियोगिताओं में चयनित खिलाड़ियों को आठ साल तक हर साल पाँच लाख रुपए की छात्रवृत्ति मिलती है ताकि वे बिना आर्थिक चिंता के प्रशिक्षण ले सकें।इस अभियान का सबसे क्रांतिकारी पहलू था खेलों को शिक्षा के साथ जोड़ना। अब कई राज्य बोर्ड और सीबीएसई ने खेलों को ग्रेडिंग का हिस्सा बना दिया है। स्कूलों में अलग से खेल अवधि अनिवार्य की गई है और शिक्षकों को खेल प्रशिक्षण दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप अभिभावक अब बच्चे को कोचिंग सेंटर भेजने की बजाय खेल अकादमी भेजने में गर्व महसूस करने लगे हैं। लड़कियों की भागीदारी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। हरियाणा, मणिपुर, असम जैसे राज्यों से आने वाली बालिकाएँ निशानेबाजी, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी और एथलेटिक्स में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झंडे गाड़ रही हैं।
पारंपरिक एवं आदिवासी खेलों को मुख्यधारा में शामिल
खेलो इंडिया ने पारंपरिक और आदिवासी खेलों को भी मुख्यधारा में लाने का काम किया है। मल्लखंभ, गटका, थांग-ता, कलारीपयट्टू और खो-खो जैसे खेल अब राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जगह पा रहे हैं। इससे न केवल ये खेल जीवित रहे, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ा गया। साथ ही दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए अलग खेलो इंडिया पैरा गेम्स शुरू किए गए, जिससे समाज में समावेशी सोच को बल मिला।इस अभियान के फल अब साफ दिखाई दे रहे हैं। टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, जिसमें सात पदक आए। पेरिस ओलंपिक 2024 में भी निशानेबाजी, कुश्ती, भारोत्तोलन और एथलेटिक्स में कई युवा खिलाड़ी खेलो इंडिया के उत्पाद थे। नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, लवलीना बोरगोहेन, अविनाश साबले जैसे नाम आज घर-घर में जाने जाते हैं। इन सफलताओं ने बच्चों में यह विश्वास जगाया है कि भारत में भी खेलों से सुनहरा भविष्य बनाया जा सकता है।
नए भारत के निर्माण की दिशा में तेजी
आज भारत में खेल अब केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक व्यवसाय, करियर और राष्ट्रीय गर्व का विषय बन चुके हैं। खेलो इंडिया ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि सरकार इच्छाशक्ति दिखाए, सुविधाएँ मुहैया कराए और समाज की सोच बदले, तो भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में भी विश्व स्तरीय खेल संस्कृति विकसित की जा सकती है। यह अभियान केवल खेलों का नहीं, बल्कि एक नए, स्वस्थ, आत्मविश्वासी और गर्वीले भारत का निर्माण कर रहा है। आने वाले वर्षों में जब हम ओलंपिक में दर्जनों पदक जीतेंगे, तो उसके पीछे खेलो इंडिया की नींव साफ दिखाई देगी। यह अभियान भारत को न केवल खेल महासत्ता बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ा रहा है, बल्कि हमारे युवाओं को यह संदेश दे रहा है कि सपने देखो, मेहनत करो और खेलो इंडिया।


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