संकर सहर सर नर नारि बारिचर पद का अर्थ व्याख्या

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संकर सहर सर नर नारि बारिचर पद का अर्थ व्याख्या कवि ने वाराणसी नगरी में फैलने वाली महामारी की विभीषिका का अंकन कर एवं उससे मुक्ति दिलाने के लिए अपने इष

संकर सहर सर नर नारि बारिचर पद का अर्थ व्याख्या


संकर सहर सर नर नारि बारिचर, 
विकल संकल, महामारी माजा भई है। 
उछरत उतरात हहरात मरि जात, 
भभरि भगात जल-थल मीचु मई है। । 
देव न दयाल महिपाल न कृपा लचित, 
बारानसी बाढ़ति अनीति नित नई है। 
पापि रघुराज! पाहि कपिराज रामदूत ! 
रामहू की बिगरी तुहीं सुधारि लई है ।।
 
प्रसंग- कवि ने वाराणसी नगरी में फैलने वाली महामारी की विभीषिका का अंकन कर एवं उससे मुक्ति दिलाने के लिए अपने इष्टदेव राम और उनके सेवक हनुमान से याचना करते हुए तुलसी जी कहते हैं।

व्याख्या- शंकरजी का यह नगर वाराणसी एक सरोवर की भाँति है और इसमें रहने वाले नर-नारी इसके जल-जीव के समान है। इस समय ये सभी अत्यन्त व्याकुल हैं, क्योंकि इनको महामारी रूपी माजा रोग (जो जल-जीवों को सताता मारता है) हो गया है। फलस्वरूप रोगग्रस्त हो जाने से ये सभी (जल जीवों की भाँति) उछलते, तैरते, घबराते और मर जाते हैं या फिर घबराते हुए भागने-दौड़ने लगते हैं। इनकी इस अस्त-व्यस्त रोगग्रस्त और भयग्रस्त दुरावस्था को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सारा जल-थल ही मृत्युमय हो गया है, क्योंकि महामारी रूपी माजा रोग से ग्रस्त प्राणी चाहे जल में रहें या थल पर, पटापट मरते चले जाते हैं।
 
इस सब पर भी दुरावस्था की इन घड़ियों में इन पर न तो देवतागण दयालु है, न राजागण ही कृपालु मना है अर्थात् इनकी सहायता न तो देवकृपा से हो पाती है और न ही राजादि अधि कारी वर्ग इनकी कुछ सेवा सहायता कर रहा है। फलस्वरूप वाराणसी नगरी में नित्य प्रति नई-नई अनीतिपरक स्थिति बढ़ती जाती है। ऐसे में हे राम! आप ही इनकी रक्षा करो। राम के दूत वानरराज हनुमान। आप ही इनकी रक्षा करें, क्योंकि अतीतकाल में राम की बिगड़ी स्थिति (संकटकालीन घड़ियों) को भी आपने ही सुधारा (सम्भाला था। उसी प्रकार अब इनकी संकट ग्रस्त स्थिति को भी सुधारें और इसको महामारी के भयंकर प्रकोप से मुक्त करें . 
 
विशेष - उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएं हैं - 
  1. एक बार तुलसी के समय में ही, वाराणसी में महामारी का प्रकोप हुआ था। यह वर्णन उसी का सच्चा, एकदम यथार्थता और भावानुभूतिपरव चित्र उपस्थित करता है। 
  2. महिपाल न कृपालचित में समकालीन राज्याधिकारियों के प्रति क्षोभ और व्यंग्य किया गया है। 
  3. तुलसी सेव्य सेवक भक्ति के अनुयायी थे। इसी से, राम और रामभक हनुमान दोनों को ही उन्होंने अपना इष्टदेव माना था और इसी से उन्होंने दोनों से ही विनय की है। 
  4. रूपक, अनुप्रास, अत्युक्ति और व्याजस्तुति आदि अलंकारों का प्रयोग । 
  5. प्रस्तुत छन्द कवि के लोकनायकत्व होने का साक्षी है।

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