भारत की विदेश नीति और वैश्विक संबंध भारत की विदेश नीति और वैश्विक संबंध एक जटिल, गतिशील और बहुआयामी विषय है, जो देश की ऐतिहासिक विरासत, भौगोलिक स्थित
भारत की विदेश नीति और वैश्विक संबंध
भारत की विदेश नीति और वैश्विक संबंध एक जटिल, गतिशील और बहुआयामी विषय है, जो देश की ऐतिहासिक विरासत, भौगोलिक स्थिति, सांस्कृतिक मूल्यों, आर्थिक हितों और रणनीतिक प्राथमिकताओं से गहराई से प्रभावित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से, भारत ने अपनी विदेश नीति को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए आकार दिया है। भारत की विदेश नीति का आधार गुट-निरपेक्षता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, और वैश्विक सहयोग जैसे सिद्धांतों पर टिका है, जो समय के साथ विकसित हुए हैं, लेकिन इसके मूल में राष्ट्रीय हितों की रक्षा और वैश्विक शांति को बढ़ावा देना हमेशा प्राथमिकता रहा है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन
स्वतंत्रता के बाद भारत की विदेश नीति का प्रारंभिक चरण पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में आकार लिया। नेहरू ने गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया, जिसका उद्देश्य था कि भारत न तो पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले पूंजीवादी खेमे में शामिल हो और न ही सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी खेमे में। यह नीति उस समय के शीत युद्ध के दौर में भारत को एक स्वतंत्र आवाज प्रदान करती थी। गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत ने नव-स्वतंत्र देशों को एकजुट करने और उनकी आवाज को वैश्विक मंच पर बुलंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह नीति न केवल भारत की स्वायत्तता को दर्शाती थी, बल्कि विकासशील देशों के बीच एकजुटता को भी बढ़ावा देती थी।
क्षेत्रीय संबंध और पड़ोसी पहले नीति
भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू क्षेत्रीय स्थिरता और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना रहा है। दक्षिण एशिया में भारत का भौगोलिक और सांस्कृतिक प्रभाव इसे क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करता है। भारत ने अपने पड़ोसियों, जैसे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी है। "पड़ोसी पहले" नीति के तहत भारत ने आर्थिक सहायता, बुनियादी ढांचा विकास, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। हालांकि, पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध जटिल रहे हैं। भारत-पाकिस्तान संबंधों में ऐतिहासिक तनाव, विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे को लेकर, और सीमा विवादों ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को बढ़ाया है। दूसरी ओर, चीन के साथ भारत के संबंध आर्थिक सहयोग और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का मिश्रण रहे हैं। डोकलाम और गलवान घाटी जैसे सीमा विवादों ने भारत-चीन संबंधों में तनाव को उजागर किया है, लेकिन दोनों देशों ने संवाद और कूटनीति के माध्यम से तनाव को कम करने की कोशिश की है।
वैश्विक स्तर पर, भारत ने प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की रणनीति अपनाई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के संबंध पिछले कुछ दशकों में विशेष रूप से मजबूत हुए हैं। रक्षा, प्रौद्योगिकी, व्यापार और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है। क्वाड (Quad) जैसे गठजोड़, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति को और मजबूत किया है। यह गठजोड़ चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। रूस के साथ भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखा है, जो आज भी रणनीतिक साझेदारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आर्थिक कूटनीति भारत की विदेश नीति का एक अन्य महत्वपूर्ण आयाम है। भारत ने वैश्विक व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों और आर्थिक साझेदारियों को प्राथमिकता दी है। ASEAN, यूरोपीय संघ, और अफ्रीकी देशों के साथ भारत के आर्थिक संबंध तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत की "लुक ईस्ट" नीति, जो अब "एक्ट ईस्ट" नीति के रूप में विकसित हो चुकी है, ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों को गहरा किया है। इसके अलावा, भारत ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए विकास सहायता और सॉफ्ट पावर कूटनीति का उपयोग किया है। भारतीय डायस्पोरा भी भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो विश्व भर में भारत के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाता है।
जलवायु और वैश्विक शासन
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक शासन जैसे मुद्दों पर भारत ने सक्रिय भूमिका निभाई है। भारत ने पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण प्रतिबद्धताएं जताई हैं और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान किया है। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसे पहल भारत की वैश्विक नेतृत्व की क्षमता को दर्शाते हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत ने सुधारों की वकालत की है, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए। भारत का मानना है कि वैश्विक शासन संरचनाओं को और अधिक समावेशी और प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने की आवश्यकता है।
भारत की विदेश नीति में सॉफ्ट पावर का भी महत्वपूर्ण योगदान है। योग, आयुर्वेद, बॉलीवुड, और भारतीय व्यंजनों ने विश्व भर में भारत की सांस्कृतिक छवि को मजबूत किया है। भारतीय साहित्य, कला और दर्शन ने भी वैश्विक मंच पर भारत की सकारात्मक छवि बनाई है। इसके अलावा, भारत ने मानवीय सहायता और आपदा राहत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे इसकी वैश्विक छवि एक जिम्मेदार और सहयोगी राष्ट्र के रूप में उभरी है।
वैश्विक स्तर पर बढ़ती अनिश्चितताएं
आज के दौर में, भारत की विदेश नीति का लक्ष्य एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करना है। भारत ने अपनी आर्थिक प्रगति, तकनीकी विकास, और सैन्य क्षमता के आधार पर वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति को और सशक्त किया है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर बढ़ती अनिश्चितताएं, जैसे कि भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार युद्ध, और जलवायु संकट, भारत के लिए चुनौतियां पेश करते हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीतियों को और अधिक लचीला और नवोन्मेषी बनाना होगा।
निष्कर्षतः, भारत की विदेश नीति और वैश्विक संबंध एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो राष्ट्रीय हितों, क्षेत्रीय स्थिरता, और वैश्विक सहयोग को संतुलित करने का प्रयास करता है। यह नीति न केवल भारत की आकांक्षाओं को पूरा करती है, बल्कि विश्व शांति और समृद्धि में भी योगदान देती है। जैसे-जैसे भारत वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका को और मजबूत करता है, उसकी विदेश नीति का विकास और अनुकूलन वैश्विक व्यवस्था में उसकी स्थिति को और अधिक प्रभावशाली बनाएगा।


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