एक खत का इंतज़ार

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एक खत का इंतज़ार अस्पताल के उस वीरान कोने में, जहाँ समय ठहर सा गया था, चालीस पार की अवनि पिछले दस सालों से एक गहरी ख़ामोशी में लेटी थी। दस साल पहले,

एक खत का इंतज़ार


स्पताल के उस वीरान कोने में, जहाँ समय ठहर सा गया था, चालीस पार की अवनि पिछले दस सालों से एक गहरी ख़ामोशी में लेटी थी। दस साल पहले, एक दर्दनाक हादसे ने उसकी यादों को ऐसे छीना था कि वो किसी पहचान को थाम न पाती। सिर्फ़ खाली निगाहों से दीवारों को तकती रहती।

पर इन दस सालों में एक शख़्स था जो कभी नहीं बदला - समीर। अवनि से बेइंतहा प्यार करने वाला समीर, जिसने कभी इज़हार की हिम्मत नहीं की। जवानी में जब उसने अवनि को प्रपोज़ करने का मन बनाया था, उसी दिन अवनि का वो भयानक एक्सीडेंट हो गया। समीर ने सोचा, शायद अवनि किसी और से प्यार करती है, और किस्मत ने उसे बचा लिया इज़हार के दर्द से। पर उसने अवनि का साथ नहीं छोड़ा।

हर शाम, समीर अस्पताल आता। वो अवनि के बिस्तर के पास बैठ जाता और उसे अपनी दिनभर की हर छोटी-बड़ी कहानी सुनाता। शहर की चहल-पहल, अपने काम के किस्से, मौसम का मिज़ाज, और कभी-कभी अपनी अधूरी ख्वाहिशें भी। अवनि उसकी आवाज़ सुनती रहती, अक्सर उसकी आँखों में कोई भाव नहीं होता। पर कुछ साल पहले एक चमत्कार हुआ। समीर की कहानियों के अंत में, अवनि धीरे-धीरे उसे पहचानने लगी। उसके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान आती, वो अपना हाथ बढ़ाती, समीर को गले लगाती और फिर उसकी बाहों में ही सुकून से सो जाती। अगली सुबह, सब फिर भूल जाती। यह उनका रोज़ का सिलसिला बन गया था।

एक खत का इंतज़ार
एक शाम, समीर अपनी कहानी ख़त्म कर चुका था। उसने अपनी आख़िरी बात कही और अवनि की तरफ देखा, इंतज़ार में कि वह हमेशा की तरह उसे गले लगाए और सो जाए। लेकिन आज अवनि ने आँखें नहीं मूंदीं। उसकी नज़रें समीर पर टिकी थीं, उन खाली आँखों में आज एक अजीब-सी चमक थी।

अवनि ने काँपते होंठों से फुसफुसाया, "तुमने... तुमने वो खत पढ़ा... जो मैंने लिखा था... उस दिन?"

समीर सन्न रह गया। खत? किस दिन? उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने अवनि का हाथ पकड़ा, "कौन सा खत अवनि? क्या कह रही हो तुम?"

अवनि की आँखें नम हो गईं, और उसने दर्द से भरी आवाज़ में कहा, "वही खत... उसी दिन... जब... जब मैं गिरने वाली थी..." उसकी आवाज़ फिर शब्दों में खो गई, यादें फिर धुंधली पड़ने लगी थीं।

समीर कुछ और नहीं रुका। वह बेतहाशा अस्पताल से भागा, अपने घर की तरफ। उसने उन सभी चीज़ों को याद किया जो अवनि के एक्सीडेंट वाले दिन से उसने संभाल कर रखी थीं, उन्हें कभी खोला नहीं था - एक दराज में बंद, धूल जमी हुई। उसने हाँफते हुए वो द्र्वार खोला। सबसे ऊपर एक छोटा-सा चमड़े का पर्स था, अवनि का। उसके अंदर उसने कभी झाँका भी नहीं था, उस दर्दनाक याद से बचने के लिए।

उसने थरथराते हाथों से पर्स खोला। अंदर एक मुड़ा हुआ कागज़ था। एक खत। समीर ने उसे खोला। उसकी आँखों के सामने अवनि की चिर-परिचित सुंदर लिखावट नाचने लगी।

'समीर,

आज तुमसे एक बात कहनी है, जो बहुत दिनों से मेरे दिल में है। मुझे नहीं पता तुम क्या सोचोगे, पर... मैं तुमसे प्यार करती हूँ। हाँ, तुमसे। और आज मैं तुम्हें बताने वाली थी... मैंने बहुत हिम्मत जुटाई है ये लिखने की। उम्मीद है तुम समझोगे...'

आगे के शब्द अधूरे थे, कागज़ पर खून के हल्के निशान थे। समीर वहीं ज़मीन पर बैठ गया, उसकी आँखों से आँसुओं की नदी बह निकली। अवनि उससे प्यार करती थी! यह प्यार एकतरफा नहीं था! जिस दिन वो उसे प्रपोज़ करने वाला था, उसी दिन अवनि भी अपने प्यार का इज़हार करने वाली थी!

वह तुरंत उठा, खत को सीने से लगाए वापस अस्पताल की ओर भागा। हर कदम के साथ उसके दिल में एक नई उम्मीद जग रही थी – एक ऐसी उम्मीद जो दस साल पहले मर चुकी थी। वह अवनि को बताएगा कि उसने खत पढ़ लिया है, कि वह भी उससे कितना प्यार करता है! वह उसके चेहरे पर मुस्कान देखेगा, आज उसे गले लगाएगा और उसे कभी सोने नहीं देगा।

वह अवनि के कमरे की ओर लपका। दरवाज़े पर नर्स खड़ी थी, आँखों में उदासी थी। उसने समीर को देखा और धीरे से सिर झुका दिया। "माफ़ करना, बेटा... अभी-..."

समीर का हाथ अपने आप खत पर कस गया। उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अवनि की साँसें थम चुकी थीं।

जो खत दस साल पहले लिखा गया था, वह आज पढ़ा गया। और जिस पल उनके प्यार को जीवन मिलना था, उसी पल उसने हमेशा के लिए दम तोड़ दिया। समीर वहीं, अस्पताल के उस वीरान गलियारे में, अपने हाथ में वो अधूरा खत लिए, एक ऐसी दास्तान पर रोता रहा, जो कभी पूरी हो ही न पाई। एक ऐसा प्यार, जो ज़िन्दगी के सबसे दुखद मोड़ पर एक खामोश इंतज़ार में दफ़्न हो गया।



- नितेश सिंह

COMMENTS

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  1. "हिंदिकुंज प्रकाशन की यह एक सराहनीय पहल है कि वे केवल उत्कृष्ट और सार्थक रचनाओं को ही मंच देते हैं। हिंदी साहित्य के लिए आपका यह प्रयास अमूल्य है।"

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