शांति और युद्ध : शांति स्थापित करने में युद्धों का योगदान

SHARE:

शांति और युद्ध : शांति स्थापित करने में युद्धों का योगदान महाराज वह नहीं होता जो अपनी सीमाओं के भीतर रहकर शासन करे, बल्कि महाराज या सम्राट वह होता है

शांति और युद्ध : शांति स्थापित करने में युद्धों का योगदान

हाराज वह नहीं होता जो अपनी सीमाओं के भीतर रहकर शासन करे, बल्कि महाराज या सम्राट वह होता है जो अपनी सीमाओं का निरन्तर विस्तार करता भारतीय अश्वमेध यज्ञ की अवधारणा का पवित्र उद्देश्य भी तो यही था।भारतीय संस्कृति की महानतम् धर्मग्रंथ श्रीमदभगवतगीता के प्रथम श्लोक में भी युद्ध का वर्णन है। रामायण, महाभारत में भी युद्ध का बढ़-चढ़कर वर्णन हैं, स्वयं श्रीकृष्ण अर्जुन योद्धा को युद्ध करने के लिये प्रेरित करते हैं, तो श्रीराम भी द्वारा ही रावण का नरसंहार करते हैं।

शांति और युद्ध : शांति स्थापित करने में युद्धों का योगदान
क्षत्रिय ( योद्धाओं) को सदा से ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।युद्ध लड़कर ही अशोक, समुद्रगुप्त, महाराणा प्रताप, शिवाजी, सिकन्दर, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस महान कहलाये, और हमारे हृदय में विराजमान हैं, नेपोलियन बोनापार्ट, अलेक्ज़ेंडर, अब्राहम लिंकन आदि युद्धों के कारण ही अमर हैं।युद्ध का स्वरूप विनाशकारी होता है, लेकिन जब विकल्प निष्फल हो जाते हैं तब यह शान्ति स्थापित करने के लिये अनिवार्य और अत्यावश्वयक हो जाता है, प्रथम विश्वयुद्ध व द्वितीय विश्वयुद्धों का अन्तिम उद्देश्य भी शान्ति स्थापित करना ही था। 

'युद्ध सफलता से तभी लड़ा जा सकता है जब उसका सही कारण जनता को मालूम न हो।  "युद्ध ही शान्ति का एकमात्र उपाय हैं।"हालाकि युद्ध का स्वरूप विनाशकारी, हिंसक होता है, परन्तु कई स्थितियों में युद्ध एक लम्बी, स्थायी शांति के लिये अनिवार्य हो जाते हैं।युद्धो के स्वरूप में काफी परिवर्तन हुआ है; पहले युद्ध एक निश्चित क्षेत्र में लड़े जाते थे। वृद्ध, महिला, बच्चे आदि को रणक्षेत्र से अलग रखा जाता था। एक योद्धा दूसरे योद्धा से छलपूर्वक युद्ध नहीं करता था।परन्तु वर्तमान समय में युद्धों का स्वरूप पूर्णयतः परिवर्तित हो गया है: नरसंहार, हत्यायें, बलात्कार, बच्चों की हत्या आदि युद्ध में आम हो चुके है।

युद्ध का उद्देश्य किसी भी प्रकार से केवल शत्रु को पराजित करना हो चुका है, आज जो राष्ट्र दूसरों को नष्ट कर सकते हैं, वही राष्ट्र शान्ति से जीवित हैं, जो मारने का सामथ्य रखते हैं, वही शान्ति से जीवित " जो शक्तिशाली नहीं हैं, उनपर " फ्रीडम ऑफ स्पीच" और " हयूमन राइट्स' शोपकर शत्रू अपने लाभ को प्राप्त कर लेता है,किन्तु भारतीयों द्वारा लड़े गये युद्धों व अन्य युद्धो में विचारों का काफी अन्तर है।राष्ट्रवाद व राष्ट्रप्रेम जिन्हें अक्सर समान समझा जाता है परन्तु दोनों विचार पूर्णयतः विपरीत है।युद्ध में केवल उसी को सही माना जाता है; जो विजयी होता है।

द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रो को ही शान्ति का उपदेशक माना जाता है क्योंकि वे विजयी हुये, परन्तु कोई इस विषय पर ध्यान नहीं देता कि जर्मनी पर क्या-क्या अनैतिक, शोषित नियम यूरोप द्वारा थोपे गये थे, हिटलर द्वारा किये गये हत्याकाण्डो को तो विश्वभर में पढ़ाया जाता है. किन्तु मित्र राष्ट्रो द्वारा जर्मनी पर किये गये हत्याकाण्डो को भुला दिया गया।नागाशार्थी हिरोशिमा की आम जनता पर किये गये हत्याकाण्डो को भी युद्ध के बाद शान्ति स्थापित करने के लिये आवश्यक बता दिया जाता है। बिस्टन चर्चिल जो बंगाल अकाल के लिये जिम्मेदार था उसे आज भी एक महान राजनेता के रूप में जाना जाता है। काकौरी रेल की घटना को षढयंत्र व चौरी-चौरा की घटना को हत्याकाण्ड कहा जाता है. स्पष्ट है जो विजयी होता है उसी को शान्ति का इत माना जाता है।

जिस देश ने दोनो विश्वयुद्धो में हत्यायें करने हेतु हथियार बेचें, लाओस पर 20 करोड़ बम गिराये, अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, ईराक को युद्ध में झोका आज वही देश 'संयुक्त राष्ट्र संघ" का अनौपचारिक प्रमुख है, जिससे स्पष्ट है कि शक्तिशाली देश ही विश्व में शांति का डंका बजाता है।राष्ट्रप्रेम का उद्देश्य राष्ट्र की रक्षा करने से है, बल्कि राष्ट्रवाद का उद्देश्य अन्य राष्ट्र पर कब्जा करने से है। वर्तमान समय में भी लड़े जा रहे युद्धों का एकमात्र उद्देश्य शांति है।भावी पीढ़ी के अस्तित्व के लिये वर्तमान समय में भी सम्पूर्ण विश्व में लड़े जा रहे हैं।युद्ध रूस - यूक्रेन, इजराइल - हमास, इजराइल - ईरान के मध्य हो रहे युद्धों का कारण भी देश के भावी पीढ़ी को बचाना है। हाँलाकि दोनो ओर से लड़ने वाले राष्ट्रों की विचारधारा कुछ भी हो, परन्तु परम उद्देश्य शान्ति स्थापित करना मात्र ही है ।

राष्ट्रप्रेम के लिये राष्ट्र पर समर्पित होने पर योद्धाओं को सदैव सम्मान व पुशंसा की दृष्टि से देखा जाता है; जो अपना जीवन राष्ट्र की शान्ति के लिये न्यौछावार कर देते हैं, ऐसे महापुरूष सम्मान के पात्र हैं।
 
PEACE IS NOT FREE, IT COSTS SOLDIERS.SOLDIERS ARE NOT NUMBERS THEY ARE SONS,FATHER,AND FAMILY TOO.

- पवन गोला, pawangola2008@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका