पंख उग आये ऋतु के पांव, पैंतालिस की उमर में ज़मीन पर नहीं पड़ रहे। पंख से उग आये हैं। चेहरे की मुस्काराहट तो संपूर्ण शरीर में दिख रही है। चाल, बोल-चा
पंख उग आये
ऋतु के पांव, पैंतालिस की उमर में ज़मीन पर नहीं पड़ रहे। पंख से उग आये हैं। चेहरे की मुस्काराहट तो संपूर्ण शरीर में दिख रही है। चाल, बोल-चाल सब बदल गयी। मैनेजर कुछ बता रहे, गंभीर बात है, ऋतु का ध्यान भाग कर कक्षा ग्यारह चला गया।
दसवीं की बोर्ड परीक्षा के दो स्प्ताह पश्चात नयी कक्षा में विद्यार्थी आ रहे। ऋतु का अपना स्कूल है, के जी से पढ़ रही, हर वर्ष नये आये विद्यर्थियों की मदद करती है। अच्छा अनुभव है। सब ही कह देते हैं “ऋतु से पूछो।”
वो भी आगे बढ़ कर बताती है।
“हाय, में बोपन वैन, पी सी एम विथ कंप्यूटर।”
“मेरे भी यही विषय हैं। हीय बोपन। किस स्कूल से आये?”
“मस्रोबा बॉयस् पब्लिक स्कूल।”
“आह, लड़कियों के साथ पहली बार पढ रहे? बहुुत दुष्ट होती हैं हम।”
“नहीं, कलास पांच तक लड़कियों का साथ था। अब पांच वर्ष फिर से साथ रहेगा। दुष्ट का पता नहीं। तुम नहीं लगती ऐसी।”
“साथ रहोगे तब पता चलेगा” पांच फीट की ऋतु ने छ: फुट के बोपन से कहा।
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कंप्यूटर शिक्षक, श्री टी सी सती ने, ऋतु और बोपन को एक ही मशीन पर कार्य करने का निर्देश दिया। प्रोग्रोमिंग, डिजानिंग, प्रिंटिंग में सहयोग चलता रहा। वाद विवाद में आमने सामने खड़े हो एक दूसरे के तर्क की धज्जियां उड़ा देते, कभी पक्ष आगे, कभी विपक्ष। दो वर्ष समाप्त होने आये। ऋतु का परीक्षाफल निर्विवाद प्रथम रहा। द्वित्य आना सीखा ही नहीँ था। बारहवीं बॉर्ड की अंतिम परिक्षा, गणित की थी। माता पिता बच्चों को घर लेने आये थे। कुछ प्रधानाचार्य को आभार व्यक्त कर रहे थे। ऋतु की मनोदशा उलझ रही थी, घर जाने की खुशी, मन मर्ज़ी करने की छूट, बारह तेरह वर्ष के साथी बिछुड़ रहे। कुछ अपने से, परिवार जैसे, कल ही तो इस कार्यालय में पहली बार भर्ती के लिए आये थे, पलक झपकते समय बीत गया।
फिर भी, कुछ तोफह देना चाहिए। भावुक क्षण में, ऋतु किसी से लिपट गयी, किसी को गले लगाया। बोपन को चूम ही लिया। हतप्रभ, सकुचा कर नौजवान पीछे हट गया। अफवाह उड़ गयी “ऋतु बोपन मित्र हैं। बोपन ने सही लड़की चुनी।”
“ऋतु की बन गयी, पढ़े न पढ़े, बड़े अफसर का बेटा है। पिता की तरह आई ए एस बन जायेगा, इतनी होशियार लड़की का साथ लेगा।”
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पचीस वर्ष पश्चात ऋतु बोपन की कक्षा के विद्यार्थी मिल रहे थे। स्कूल विदाई की रजत जयंती थी। अधेड़ उमर के ‘बच्चे’ लौट रहे थे। पांच वर्षीय बच्चे का उत्साह, हंसी रुकती नहीं, ना खाने का होश, ना भाषा का ध्यान। हो हल्ला, नाच गाना, एक दम बेबाक।
“किसी ने ऋतु को देखा? आई या नहीं?”
“नहीं आयेगी, कंपनी के काम से विदेश गयी है।”
“और बोपन?”
“बोपन, अपनी बीमार पत्नी की सेवा में संलगन है। नौकरी छोड़, देख भाल कर रहा है, मुंबई टाॅटा संस्थान में।”
“कुछ उम्मीद?”
“नहीं, महंगे से महंगा इलाज। पर परोक्षा ने जीने की इच्छा छोड़ दी है।”
“बच्चे?”
“एक बेटा, कनाडा में नाना नानी के पास पढ़ रहा।”
“ओ, … .. ओ।”
लोक प्रिय गाना बजने लगा, रंग बिरंगी रोशनी चमकती, जलती, बुझती रही। सब कुछ भूल मौज मस्ती चलती रही। ज़रूर आना। z
थोड़ी देर में तस्वीरें इंटरनेट पर छा गयी। हँसते गुनगुनाते साथी। तस्वीरें देख, ऋतु की आँखें, अंजाने ही सही, एक चेहरा ढूंढ रहीं थी।
किसी ने लिखा “ऋतु, बोपन, सुमि, निया तुम बहुत याद आये। अगली बार आना।”
अच्छा लगा, मित्र याद कर रहे। कुछ भूले बिसरे साथी फिर याद आ गए। बोपन का कोई संदेश न था।
“होगा कहीँ, बहुत बड़ा आदमी, छोटे मोटे, दो वर्ष साथ पढ़े साथी कहाँ याद होंगे। किसी बड़े विश्विश्वविद्यालय में मित्र होंगे।”
पिता की कही बात याद आ गयी “दुःखी मत हो बच्चे, आगे और साथी मिलेंगे। रात गयी बात गयी।”
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“ऋतु”
“बोपन?” सताइस वर्ष बाद आवाज़ पहचान ली
“हाँ, बोपन। कैसे पहचाना?”
“इंसान हूँ। दिल है। नंबर किस ने दिया।”
“ए आई, का ज़माना है, सब पता चल जाता है।”
“सच?!”
“किकु से लिया।”
“वही एक है, जो बचपन से जुड़ी है, बाकी सब ऋतु को भूल गए। अपनी दुनिया, अपने संसार में। आप कहाँ हैँ? क्या कर रहे।”
“आप को ढूंढते, आप के द्वार पर।”
“आप कौन? हम तो तुम कहते थे।”
“तुम ने ही आप कहा, सो मैंने भी कहा। अंदर नहीं बुलाओगी।” घंटी बज गयी।
ऋतु ने द्वार खोल दिया, बोपन और हु बहु छोटा बोपन सामने खड़े थे।
“निराव, प्यार से डिड्डु। हिय बोलो ऋतु को डिड्डु।”
“हिय ऋतु”
“हिय डिड्डु, हैंडसॉम बॉय, हिय बोपन, कितने बदल गये, फिर भी वही। अंदर चलो।”
बातें करते समय का पता ही नहीं चला।
“क्या ऋतु, परिवार नहीं बनाया?”
“समय नहीं मिला।”
“अब बना लो।”
“किस के साथ?”
“जिसे एक विदाई के दिन किस करा था। क्या वो आज किस लौटा सकता है।”
“श, बच्चा बैठा है।”
“बच्चा नहीं, बाप है, जब से इस की माँ को बीमारी ले गयी, ये जिद्द कर रहा है कि तुम से मिलूँ। ये ले आया मुझे। मैं डर रहा था, तुम्हारा परिवार होगा, पर इसे विश्वास है कि तुम इसे अपना बना लोगी।”
“इसने मुझे क्यों चुना?”
“लंबी कहानी है। जब ये अठारह वर्ष का हुआ, तब मेरी पत्नी ने कहा, बेटा आज बड़ा हो गया। तुम इस के साथ बैठ कर शंपेन का आनंद लो, बाहर सीखे इस से अच्छा है तुम इस का संतुलित परिचय करा दो। तीनों शाम को बैठे।”
“ऋतु, मैने पापा से कहा कोई ऐसी बात बताईये जो माँ को भी नहीं मालूम। पापा जोश में आ गये।”
“मैंने स्कूल से विदाई की बात बता दी। अनहोनी, मेरी पत्नी को टाटा इंस्टिट्यूट में ईलाज कराना पड़ा। बीमारी जीत गयी।”
“ऋतु, आज मेरा जन्म दिवस है, मैं हमेशा के लिए ज़ीलैंड जा रहा हूँ। ये तोफाह दे दो। पापा का साथ दो। धन्यवाद।”
ऋतु के पंख उग आये।
मैनेजर ने घंटी बजाई, ऋतु वर्तमान में लौट आई।
- मधु मेहरोत्रा
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