ईरान इजरायल युद्ध: मध्य पूर्व में बढ़ता संकट और वैश्विक प्रभाव

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ईरान इजरायल युद्ध: मध्य पूर्व में बढ़ता संकट और वैश्विक प्रभाव ईरान और इजरायल के बीच चल रहा युद्ध, जो 13 जून 2025 से शुरू हुआ, मध्य पूर्व को एक अभूतप

ईरान इजरायल युद्ध: मध्य पूर्व में बढ़ता संकट और वैश्विक प्रभाव


रान और इजरायल के बीच चल रहा युद्ध, जो 13 जून 2025 से शुरू हुआ, मध्य पूर्व को एक अभूतपूर्व संकट की ओर ले गया है। यह संघर्ष, जो अब तक के सबसे तीव्र सैन्य टकरावों में से एक बन चुका है, न केवल इन दोनों देशों की सीमाओं तक सीमित है, बल्कि वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। इस युद्ध की जड़ें दशकों पुरानी दुश्मनी में हैं, जो समय के साथ और जटिल होती गई।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ईरान और इजरायल के बीच तनाव का इतिहास लंबा और जटिल है। 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से, जब ईरान में रुहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में शाह का तख्ता पलट हुआ और इस्लामिक गणतंत्र की स्थापना हुई, दोनों देशों के रिश्ते शत्रुतापूर्ण रहे हैं। ईरान ने क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने के लिए लेबनान के हिजबुल्लाह, गाजा के हमास और यमन के हूती विद्रोहियों जैसे प्रॉक्सी समूहों का समर्थन किया। दूसरी ओर, इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा माना और इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए, जिसमें साइबर हमले, हवाई हमले और खुफिया ऑपरेशन शामिल हैं। 1982 के लेबनान युद्ध से लेकर 2023 में हमास के इजरायल पर हमले तक, दोनों देशों के बीच अप्रत्यक्ष टकराव बार-बार देखने को मिले। लेकिन 2024 में यह तनाव खुले युद्ध में बदल गया, जब 1 अप्रैल को इजरायल ने दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हमला किया, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी अधिकारी मारे गए। इसके जवाब में ईरान ने 13 अप्रैल को इजरायल पर ड्रोन और मिसाइल हमले शुरू किए, जिसने इस युद्ध की नींव रखी।

सैन्य कार्रवाई

ईरान इजरायल युद्ध: मध्य पूर्व में बढ़ता संकट और वैश्विक प्रभाव
13 जून 2025 को इजरायल ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" शुरू किया, जिसमें उसने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। इजरायली वायुसेना के 60 से अधिक लड़ाकू विमानों ने तेहरान, इस्फहान और नटांज जैसे शहरों में ईरानी परमाणु सुविधाओं, मिसाइल उत्पादन केंद्रों और सैन्य अड्डों को निशाना बनाया। इन हमलों में ईरान के सैन्य कमांडरों, जैसे होसैन सलामी और मोहम्मद बघेरी, सहित कई महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारी मारे गए। इजरायल का दावा है कि इन हमलों का उद्देश्य ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता और मिसाइल हमलों की ताकत को खत्म करना था। इजरायली सेना ने यह भी बताया कि उसने ईरान के 70 से अधिक वायु रक्षा बैटरियों और लगभग 40 प्रतिशत बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्चरों को नष्ट कर दिया।

जवाब में, ईरान ने "ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस III" के तहत इजरायल पर बड़े पैमाने पर जवाबी हमले शुरू किए। 13 जून की रात को ईरान ने तेल अवीव और यरुशलम जैसे शहरों पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दागे। इनमें फतह-1 हाइपरसोनिक मिसाइलें भी शामिल थीं, जो ईरान की उन्नत सैन्य तकनीक का प्रदर्शन थीं। हालांकि, इजरायल की आयरन डोम और एरो-3 रक्षा प्रणालियों ने कई मिसाइलों को रोक लिया, फिर भी तेल अवीव और हाइफा जैसे शहरों में भारी नुकसान हुआ। ईरानी हमलों में 24 इजरायली नागरिक मारे गए और 800 से अधिक घायल हुए। दूसरी ओर, इजरायली हमलों में ईरान में 224 लोगों की मौत हुई, जिनमें ज्यादातर आम नागरिक थे, और 1300 से अधिक लोग घायल हुए।

इस युद्ध का प्रभाव केवल सैन्य नुकसान तक सीमित नहीं है। मध्य पूर्व में हवाई क्षेत्र बंद होने से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द हो गईं, जिसके कारण ईरान में फंसे कई विदेशी नागरिक, जिनमें भारत के 300 से अधिक छात्र और धार्मिक यात्री शामिल हैं, मुश्किल में पड़ गए। भारतीय दूतावास ने इजरायल और ईरान में रहने वाले अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की, जिसमें सुरक्षित स्थानों पर रहने और दूतावास में पंजीकरण कराने की सलाह दी गई। तेहरान में खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी हो गई, और सायरन की आवाज के बीच लोग बम शेल्टरों में शरण लेने को मजबूर हैं।

क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव

वैश्विक स्तर पर, इस युद्ध ने तेल की कीमतों में उछाल ला दिया, जिसका असर भारतीय शेयर बाजार सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ा। वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड फ्यूचर्स में 7.5% की बढ़ोतरी हुई, जो मार्च 2022 के बाद सबसे तेज उछाल थी। भारतीय शेयर बाजार में सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट देखी गई, खासकर उन कंपनियों के शेयरों में जो इजरायल के साथ कारोबारी रिश्ते रखती हैं, जैसे अडानी पोर्ट्स और सन फार्मास्युटिकल्स। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर यह युद्ध लंबा खिंचता है, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर और गहरा असर पड़ सकता है।

अमेरिका की भूमिका इस युद्ध में महत्वपूर्ण रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को "बिना शर्त सरेंडर" करने की चेतावनी दी और मध्य पूर्व में F-16, F-22 और F-35 जैसे लड़ाकू विमानों की तैनाती बढ़ा दी। ट्रंप ने यह भी दावा किया कि अमेरिका ने ईरान के आसमान पर कब्जा कर लिया है, जिससे यह आशंका बढ़ गई कि अमेरिका भी इस युद्ध में सक्रिय रूप से शामिल हो सकता है। हालांकि, अमेरिकी सांसद बर्नी सैंडर्स ने चेतावनी दी कि कोई भी सैन्य कार्रवाई बिना संसद की मंजूरी के नहीं हो सकती। दूसरी ओर, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा कि ईरान किसी भी धमकी के सामने झुकेगा नहीं और हर हमले का जवाब देगा।

वैचारिक और रणनीतिक संघर्ष

इस युद्ध ने वैश्विक समुदाय को दो खेमों में बांट दिया है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों ने इजरायल का समर्थन किया, जबकि रूस और उत्तर कोरिया ने ईरान के पक्ष में बयान दिए। भारत ने तटस्थ रुख अपनाया और शांति की अपील की। जी-7 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर तीखी बहस हुई, जिसमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने युद्धविराम की संभावना का जिक्र किया, लेकिन ईरान ने इसे खारिज कर दिया।

ईरान और इजरायल के बीच यह युद्ध केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय प्रभुत्व और वैचारिक टकराव का प्रतीक है। इजरायल का लक्ष्य ईरान की परमाणु क्षमता को खत्म करना और खामेनेई के शासन को कमजोर करना है, जबकि ईरान क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने और इजरायल को चुनौती देने की कोशिश में है। लेकिन इस जंग में सबसे ज्यादा नुकसान आम नागरिकों को हो रहा है, जो दोनों देशों में भय और अनिश्चितता के साये में जी रहे हैं।

भविष्य की अनिश्चितता

इस युद्ध का भविष्य अनिश्चित है। अगर यह लंबा खिंचता है, तो मध्य पूर्व में स्थिरता और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका असर और गहरा हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह एक चुनौती है कि वह इस संकट को कैसे सुलझाता है। शांति वार्ता और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता हो सकता है, लेकिन दोनों पक्षों की अडिग रुख के कारण यह रास्ता मुश्किल लगता है।

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