अज्ञेय की कहानी कला की समीक्षा

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अज्ञेय की कहानी कला की समीक्षा अज्ञेय हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जिन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से पाठकों को गहन मनोवैज्ञानिक अनुभव

अज्ञेय की कहानी कला की समीक्षा


ज्ञेय हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जिन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से पाठकों को गहन मनोवैज्ञानिक अनुभव प्रदान किया है। उनकी कहानियों में जीवन की जटिलताओं, मानवीय संघर्षों और अस्तित्व के गूढ़ प्रश्नों का गहराई से चित्रण किया गया है।

अज्ञेय इस युग के सर्वाधिक प्रतिभा-सम्भपन्न कथाकार के रूप में विख्यात हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में सर्वथा पाश्चात्य कथा-शैली को अपनाया है और जीवन के बाह्य संघर्षों की अपेक्षा अन्तः संघर्षों का चिन्तन ही इनका विशिष्ट उद्देश्य दिखाई पड़ता है। अज्ञेय जी की कला में बेहद बल और शक्ति है। इसको कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर देखा जा सकता है।

अज्ञेय की कहानियों का कथानक

अज्ञेय जी ने कहानी कला के विविध प्रयोग स्वतन्त्र रूप से किए हैं। कथानक संक्षिप्त भी हैं और वृहदाकार भी हैं। सामाजिक और प्रेम सम्बन्धी कहानियों में इतिवृत्तात्मकता है और क्रान्ति जीवन की कहानियों में आत्म-चिन्तन और घटनाओं का सुन्दर समन्वय है। चरित्र-प्रधान कहानियों में जटिल और साधारण दो प्रकार के कथानक मिलते हैं। गूढ़ और जटिल मनोग्रन्थियों वाले चरित्रों का विश्लेषण करने वाले कहानियों के कथानक अनेक सूत्रात्मक तथा जटिल और साधारण मनोवृत्ति के पात्रों वाली कहानियों के कथानक एक सूत्रात्मक होते हैं। विचार और भाव समन्वित कहानियों में भी कथानक विधान दो प्रकार से हुआ है। कुछ कथानक पात्रों के आत्म-चिन्तन द्वारा और कुछ चिन्तन और घटनाओं के संयोग द्वारा निर्मित हुए हैं। इस प्रकार अज्ञेय की कहानियों में कथानक-निर्माण भिन्न-भिन्न रूपों में होता है ।
 

अज्ञेय की कहानियों की पात्र योजना व चरित्र चित्रण

अज्ञेय की कहानी कला की समीक्षा
अज्ञेय जी के पात्र सजीव और स्वाभाविक हैं । चरित्र प्रधान कहानियों में पात्रों के व्यक्तित्व की प्रधानता है और उनका अवतरण मनोवैज्ञानिक आधार पर लिया गया है। डॉ. ब्रह्मदत्त शर्मा ने लिखा है कि इनकी कहानियों के पात्र समाज के व्यापक क्षेत्र से लिए गये हैं। उनमें व्यक्तिगत की प्रधानता है। वे सामान्य न होकर विशेष हैं। इनके पुरुष पात्रों की अपेक्षा स्त्री पात्र अधिक आकर्षक हैं, वे अधिक उदार, साहसी, देश प्रेमी तथा कर्त्तव्य परायण हैं। इनके पात्रों में सात्विक, राजनीतिक तथा सामाजिक सब ही वृत्तियों के व्यक्ति हैं। पात्रों का चरित्र-चित्रण करते समय इन्होंने वार्तालाप तथा वर्णन पद्धतियों को अपनाया है। कहीं-कहीं संकेत अथवा घटनाओं द्वारा भी पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को उपस्थित किया गया है।
 
जैनेन्द्र की भाँति अज्ञेय जी की कहानियों में भी कथावस्तु के स्थान पर पात्रों के चरित्र विश्लेषण की प्रधानता मिली है। इस चरित्र विश्लेषण पर फ्रायड के मनोविश्लेषण शास्त्र का स्पष्ट प्रभाव है। पात्र भी व्यक्तिवादी अधिक हैं और वे अपने चरित्र की निजी विशेषताएँ लेकर हमारे सामने आते हैं। इसलिए ये चरित्र जैनेन्द्र के पात्रों की भाँति साधारण न रहकर विशिष्ट बन गये हैं। अपनी कहानियों में अज्ञेय जी ने ऐसे चरित्रों की सृष्टि की है जो स्वभाव से विद्रोही हैं। उनका विद्रोह सामाजिक, राजनैतिक और व्यक्तिगत प्रश्नों को लेकर चला है।
 

अज्ञेय की कहानियों के कथोपकथन

अज्ञेय जी के कथोपकथन सरल और व्यावहारिक होते हैं। कहानियों में आए हुए संवाद कथावस्तु को भी आगे बढ़ाते हैं और पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को सामने लाते हैं। एक आलोचक का कहना है कि कथोपकथन के क्षेत्र में उन्हें एक सिद्धहस्त कलाकार माना जा सकता है। उनके कथोपकथन मार्मिक, गम्भीर, सारगर्भित, संक्षिप्त, चरित्र के उद्घाटन तथा नाटकीयता की सृष्टि करने वाले होते हैं।
 

अज्ञेय की कहानियों के देशकाल वातावरण

वातावरण का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण करने में अज्ञेय जी निपुण हैं। वातावरण के द्वारा वे सर्वत्र अमिट प्रभाव की सृष्टि करने में भी सफल रहते हैं। अज्ञेय जी के हृदय में अग्नि प्रज्वलित है, उसी की ज्वाला आपकी कला में भी झलक जाती है। हिन्दी कहानीकारों में आपकी कला में ही सबसे अधिक विप्लव और क्रान्ति की भावना है। वे अपने वर्णन कौशल द्वारा वातावरण का ऐसा चित्रण करते हैं कि कहानी का प्रभाव अपने आप ही मुखर हो उठता हैं। उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ वातावरण तथा प्रभाव प्रधान हैं।
 

अज्ञेय की भाषा शैली

अज्ञेय की भाषा विषयानुकूल है। विषय को स्पष्ट तथा रोचक बनाने के लिए आपने उपयुक्त शक्ति का प्रयोग किया है। आपकी भाषा संस्कृतनिष्ठ और स्वाभाविक है। शैली मौलिक एवं आकर्षक है जो पाठक को अपनी ओर खींचती है। एक आलोचक ने लिखा है कि भाषा-शैली भावपूर्ण है। वाक्य कहीं उखड़े-उखड़े से अवश्य प्रतीत होते हैं क्योंकि वाक्य समाप्त कर देने के बाद आप बिन्दुओं के प्रयोग द्वारा और अनेक बातों की ओर संकेत करते रहते हैं। प्रचलित देशज शब्दों का प्रयोग आपने निःसंकोच रूप से किया है। जैनेन्द्र कुमार के शब्दों में उनकी भाषा में एक अटपटा भोलापन है जो अनुकूल स्थलों में बड़ा मोहक मालूम होता है, पर कहीं-कहीं बहुत बेमेल हो जाता है और व्यक्ति-वैचित्र्य के कारण बनावटी जान पड़ता है। अज्ञेय की भाषा सर्वत्र गम्भीर और संयत रहती हुई विषय और वस्तु के साथ काफी बदलती रहती है। भाषा की ही भाँति 'अज्ञेय' के कथा-विधान में भी सदैव एक-सफाई और परिष्कार (फिनिश) रहता है।
 
शिल्प रचना की दृष्टि से अज्ञेय जी ने कहानी कला की प्रायः सभी शैलियों को अपनाया है। ऐतिहासिक आत्म चरित्रात्मक, पात्रात्मक, डायरी आत्मक, नाटकीय, मिश्र सभी प्रकार की शैलियों का व्यवहार उनकी कहानियों में हुआ है।
 

अज्ञेय की कहानियों का प्रभाव

अज्ञेय की कहानियों ने हिंदी कहानी साहित्य को एक नई दिशा दी। उन्होंने कहानी को एक गंभीर साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कहानियों ने कई युवा लेखकों को प्रभावित किया और उन्होंने हिंदी कहानी साहित्य में एक नई पीढ़ी को जन्म दिया।

अज्ञेय की कहानी कला हिंदी साहित्य का एक अनमोल खजाना है। उनकी कहानियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी पहले थीं। उनकी कहानियों को पढ़कर हम जीवन के गहन सत्यों को समझ सकते हैं और अपने अंदर छिपे हुए भावों को उजागर कर सकते हैं।

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