रोज गैंग्रीन कहानी की समीक्षा | अज्ञेय

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रोज गैंग्रीन कहानी की समीक्षा अज्ञेय एक विवाहित स्त्री, मालती, के जीवन की एक झलक प्रस्तुत करती है एक विवाहित नारी के अभावों में घुटते हुए व्यक्तित्व

रोज गैंग्रीन कहानी की समीक्षा | अज्ञेय


रोज गैंग्रीन कहानी की समीक्षा अज्ञेय एक विवाहित स्त्री, मालती, के जीवन की एक झलक प्रस्तुत करती है। रोज कहानी एक नवविवाहिता स्त्री, मालती, के जीवन की एक झलक प्रस्तुत करती है। कहानी का शीर्षक ही कहानी का सार दर्शाता है। मालती का जीवन एकरसता और यांत्रिकता से भरा है। हर दिन एक ही काम, एक ही दिनचर्या, और एक ही उबाऊपन।

लेकिन, जैसे ही वे घर लौटते हैं, मालती की भावनाएं बदल जाती हैं। घर वापस आते ही, मालती फिर से अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में फंस जाती है - खाना बनाना, घर की सफाई करना, और अपने पति की देखभाल करना।

इस दिनचर्या में, मालती को अपनी कोई पहचान नहीं दिखती। वह खुद को एक मशीन की तरह महसूस करती है, जो हर दिन एक ही काम करती है।

रोज कहानी का उद्देश्य

कहानी का उद्देश्य एक युवती मालती के यांत्रिक वैवाहिक जीवन के माध्यम से नारी जीवन और उसके सीमित घरेलू परिवेश में बीतते उबाऊ जीवन की कथा है।
 
एक विवाहित नारी के अभावों में घुटते हुए व्यक्तित्व की त्रासदी का चित्रण है। रोज़ एक ही दिनचर्या पर चलती मालती के जीवन की कहानी जो शीर्षक से भी बयान होती है। 

रोज कहानी का प्रकाशन

यह कहानी सर्वप्रथम गैंग्रीन नाम से प्रकाशित हुआ लेकिन बाद में इसका शीर्षक बदलकर रोज़ कर दिया गया। यह कहानी अज्ञेय के कहानी संकलन विपथगा के पहले संस्करण में हैं, पर पाँचवें संस्करण में, जो 1990 में नेशनल पब्लिशिंग हॉउस, दिल्ली से प्रकाशित हुआ, यही कहानी गैंग्रीन शीर्षक नाम से प्रकाशित है।
 

रोज कहानी की समीक्षा

रोज गैंग्रीन कहानी की समीक्षा | अज्ञेय
इस कहानी को तीन भागों में दर्शाया गया है इस कहानी में एक विवाहिता के मन की उदासी और अकेलेपन अनुभूति का चित्रण है। कहानी में जब उसका भाई उससे वर्षों बाद मिलने आता है तो मालती उसका स्वागत बड़े ही औपचारिक ढंग से करती है। मालती में थोड़ा भी उत्साह नहीं दिखाई देता है।
 
उससे उसका हाल समाचार तक नहीं पूछती। एक बातूनी लड़की शादी के दो वर्षों में ही एक यांत्रिक लड़की में तब्दील हो गयी है। पूछे गए प्रश्नों के उत्तर केवल हाँ और न में देती है या दो-चार शब्दों में देती है। इससे यह प्रतीत होता है कि उसके पास कहने को कुछ भी नहीं है। वह या तो घर के कार्य या अपने बच्चे को संभालने में लगी रहती है। प्रथम भाग में कहानी में मालती की बाह्य स्थिति दिखती है। दूसरे भाग में मालती के मनः स्थिति का चित्रण है। जिसमें उसके हाव-भाव और मानसिक उथल-पुथल उसके मन के भीतर के द्वंद्व को बयान करते हैं। कहानी का केंद्रबिंदु मालती और उसका जीवन है। कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर के डिस्पेंसरी से लौटने का जिक्र है।
 
महेश्वर अपने डिस्पेंसरी के गैंग्रीन से पीड़ित मरीजों का जिक्र करता है। कहानी में मालती को अपने रोज होने वाले दिनचर्या या घटनाओं की आदि-सी हो चुकी थी। जैसे टिटी के रोने से ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ता उसके पलंग से भी गिर पड़ने से उसे कोई खासा फर्क नहीं पड़ता। मालती के नज़र में ये तो रोज़ की बात है जो वह गिर पड़े या रोता रहे।

रोज कहानी का विश्लेषण

  • विषय: "रोज" कहानी स्त्री जीवन की एकरसता और यांत्रिकता को उजागर करती है। यह कहानी स्त्री मन की गहरी उदासी और अकेलेपन को भी दर्शाती है।
  • शिल्प: अज्ञेय ने इस कहानी में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का कौशल दिखाया है। उन्होंने मालती के मनोभावों और उसकी मानसिक उथल-पुथल को बारीकी से चित्रित किया है।
  • भाषा: कहानी की भाषा सरल और सहज है। अज्ञेय ने भाषा का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से किया है।

रोज कहानी की विशेषताएं

  • एकरसता और यांत्रिकता का चित्रण: कहानी में मालती का जीवन एकरसता और यांत्रिकता से भरा है। हर दिन एक ही काम, एक ही दिनचर्या, और एक ही उबाऊपन।
  • स्त्री मन का चित्रण: कहानी में स्त्री मन की गहरी उदासी और अकेलेपन को बारीकी से चित्रित किया गया है।
  • मनोवैज्ञानिक विश्लेषण: कहानी में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का कौशल दिखाया गया है।
  • भाषा: कहानी की भाषा सरल और सहज है।

रोज कहानी का महत्व

  • "रोज" कहानी हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कहानी है।
  • यह कहानी स्त्री जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करती है।
  • यह कहानी पाठकों को स्त्री मन की गहरी उदासी और अकेलेपन को समझने में मदद करती है।
  • कहानी का मुख्य स्वर मालती के द्वारा किए गए समझौते पर है न कि उसकी चुनौतियों पर। चरित्र-चित्रण के लिए कई विधियों का सहारा लिया गया है जिनमें अंतर्द्वद्व की प्रस्तुति, सार्थक संक्षिप्त संवाद, जीवंत भाषा आदि है । 

रोज हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कहानी है। यह कहानी हमें एक विवाहित स्त्री के जीवन की वास्तविकता से परिचित कराती है। कहानी में मनोवैज्ञानिक चित्रण, भाषा का कुशल प्रयोग, प्रतीकात्मकता, और उपयुक्त शीर्षक इसकी विशेषताएं हैं।अज्ञेय की कहानी 'रोज़' को हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कहानी माना जाता है।

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