बालकृष्ण भट्ट की निबंध शैली की विशेषताएं

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बालकृष्ण भट्ट की निबंध शैली की विशेषताएं बालकृष्ण भट्ट को हिंदी गद्य साहित्य का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई दिशा दी और इसे समृ

बालकृष्ण भट्ट की निबंध शैली की विशेषताएं


बालकृष्ण भट्ट को हिंदी गद्य साहित्य का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई दिशा दी और इसे समृद्ध बनाया। उनके निबंध, उपन्यास और नाटक हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण रत्न हैं।

भारत के विशाल भाल पर बिन्दी के समान सुशोभित हिन्दी के स्वरूप को सँवारने वाले साहित्यकारों में पं. बालकृष्ण भट्ट का नाम अग्रण्य है। भट्ट जी ने जीवन भर प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए अडिग आस्था और दृढ़ निष्ठा के साथ हिन्दी की सेवा की। वे भारतेन्दु मण्डल के प्रबल सार्थक और सहयोगी थे। उनमें भारतेन्दु युग की समग्र विशेषताएँ विद्यमान हैं। भारतेन्दु युग के समान मस्ती, हास्य, व्यंग्य और वाक्चातुर्य उनकी रचनाओं में प्राप्त होता है। उस युग में भट्ट जी से अधिक स्वाधीन और सतर्क विचारक अन्य कोई नहीं था । उन्होंने देवताओं को प्राकृतिक तत्त्वों का प्रतीक माना और उनके प्रति समाज में फैले हुए अन्धविश्वासों को समाप्त किया। वेदों की अलौकिकता उनकी स्वाधीन विचारों की प्रयोगशाला में पहुँचकर मानसिक सरलता बन गयी। प्रसिद्ध समीक्षक डॉ. रामविलास शर्मा ने कहा है- "वे (बालकृष्ण भट्ट) विचारों की उदारता में युग के साथ थे, कहीं-कहीं उससे आगे भी युग धर्म, दर्शन, इतिहास आदि के प्रति भट्ट जी के विचारों को देखते हुए कह सकते हैं कि वे अपने के सबसे महान् विचारक थे।”

बालकृष्ण भट्ट की साहित्य सेवा

भट्ट जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने आलोचना, उपन्यास, कहानी, नाटक तथा कविताएँ भी लिखीं, परन्तु निबन्ध के क्षेत्र में की गयी उनकी साहित्यिक सेवा हिन्दी निबन्ध का 'प्रकाश-स्तम्भ' है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्हें सफलता प्राप्त हुई । निरन्तर, आर्थिक कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए उन्होंने 33 वर्षों तक 'हिन्दी-प्रदीप' पत्र का प्रकाशन किया तथा एक हजार से अधिक निबन्धों की रचना की, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। उनके अधिकांश निबन्ध निम्नलिखित चार संकलनों में प्रकाशित हैं- 
  • साहित्य सरोज, 
  • साहित्य सुमन, 
  • भट्ट निबन्धावली भाग 1 तथा 2, 
  • भट्ट निबन्धमाला भाग 1 तथा 2 ।

बालकृष्ण भट्ट की भाषा

बालकृष्ण भट्ट की निबंध शैली की विशेषताएं
भट्ट जी के युग में अंग्रेजी भाषा का बोलबाला था। वे अंग्रेजी के पाठकों को हिन्दी की ओर आकर्षित करना चाहते थे। अतः उन्होंने भाषा के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाया। उनके निबन्धों में हमें भाषा के रूप प्राप्त होते हैं - 
  • संस्कृतनिष्ठ भाषा, 
  • उर्दू शब्दावली से युक्त भाषा, 
  • अंग्रेजी शब्दावली से युक्त भाषा ।
 
भाषा को सशक्त, सरस और प्रवाहपूर्ण बनाने के लिए भट्टजी ने मुहावरों, सूक्तियों और उद्धरणों का भी प्रयोग किया है। इसलिए उनके निबन्धों में 'गुन-औगुन, मिठास, आसनाई जैसे तद्भव शब्दों; इत्तफाक, पसन्द, बदमिजाज आदि उर्दू शब्दों और ऐजूकेशन, केरेक्टर, कल्चर आदि अंग्रेजी शब्दों का भी खुलकर प्रयोग हुआ है। उनके साहित्यिक एवं भावात्मक निबन्धों में संस्कृतनिष्ठ एवं प्रवाहपूर्ण भाषा के दर्शन होते हैं। एक उदाहरण पर्याप्त होगा" भारत के हर एक प्रसंग का तोड़ अन्त में इसी बात पर है। शत्रु संहार और निजकार्य साधन निमित्त व्यास ने महाभारत में जो-जो उपदेश दिये हैं और राजनीति की काट व्योंत जैसी दिखायी है, उसे सुन विस्मार्क सरीखे इस समय के राजनीति के मर्म में कुशल राजपुरुषों की अक्ल भी चरने चली जाती होगी युधिष्ठर धर्म के अवतार और सत्यवादी प्रसिद्ध हैं पर उनकी सत्यवादिता, निजकार्य साधन के समय सब खुल गयी- "अश्वत्थामा हतः नरो वा कुंजरो वा” इत्यादि कितने उदाहरण इस बात के हैं।"
 

बालकृष्ण भट्ट की निबंध शैली की विशेषताएँ

भट्टजी की शैली पर उनके व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट है। उनका प्रत्येक वाक्य उनके हँसमुख स्वाभाव का परिचय देता ज्ञात होता है। उन्होंने सामयिक शैलियों में निबन्ध रचना कर गद्य साहित्य के विकास में व्यापक योगदान किया। उनके निबन्धों में हमें शैली के निम्नलिखित रूपों के दर्शन होते हैं- 
  1. वर्णनात्मक शैली-भट्टजी ने कुछ निबन्ध वर्णनात्मक शैली में लिखे हैं। इनमें दिल बहलाव के जुदे-जुदे तरीके निबन्ध सर्वोत्तम कहा जा सकता है। इसे प्रसाद शैली भी कहा जा सकता है। इसमें सरल व्यावहारिक भाषा और सरल वाक्य रचना के माध्यम से अपनी बात को लेखक ने बड़ी स्पष्टता के साथ कह दिया है। उर्दू और पूर्वी देशज शब्दों का इसमें खुलकर प्रयोग किया है। इनके वर्णन में चित्रात्मकता का गुण विशेषतः विद्यमान है। प्रसंग का पूरा शब्द चित्र पाठक के सामने खड़ा करना वे बखूबी जानते थे। एक उदाहरण देना उपयुक्त होगा- "कितनों का दिल बहलाव हुक्केबाजी है। सब काम से फुरसत पाकर किसी बैठक में आ बैठे। हा हा ठी ठी करते जाते हैं और चिलम पर चिलम उड़ाते जाते हैं। हा हा ठी ठी, धौल धक्कड़ का मौका न मिला तो बे-जड़, बे-बुनियाद जी उबियाऊ कोई दास्तान छेड़कर बैठे । घण्टों इसमें समय बिताया घर की राह ली, जी बहल गया।” 
  2. विवेचनात्मक शैली-उनके विचारात्मक निबन्धों में इस शैली के दर्शन होते हैं, वह शुद्ध विचारवादी लेखक थे। अपने विचारों के प्रतिपादन में तर्क, युक्ति और कार्य-कारण सभी का सहारा लेते हैं। इस शैली में प्रौढ़ भाषा के दर्शन होते हैं। इस शैली में विषय के विश्लेषण की प्रवृत्ति अधिक दिखायी देती  'क्योंकि' 'इसलिए' आदि शब्दों द्वारा वे कार्य-कारण सम्बन्ध प्रकट करते हैं, जबकि 'वे तो निश्चय', 'सच तो यह है', मान लीजिए आदि तर्क और युक्ति के लिए प्रायः प्रयोग करते थे। इन निबन्धों में कहीं-कहीं बात के प्रतिपादन में भट्टजी ने तीखे व्यंग्य और ओजपूर्ण शब्दावली का भी प्रयोग किया है, जिसके दर्शन निम्नलिखित गद्यांश में हो जाते हैं-"हम ऊपर लिख आये हैं कि हिन्दू-जाति में कौमियत छिन्न होने का सूत्रपात पुराणों के द्वारा हुआ और तन्त्रों ने उसे बहुत पुष्ट किया। शेष शाक्त, वैष्णव, जैन, बौद्ध इत्यादि अनेक जुदे-जुदे फिरके हो गये, जिनमें इतना दृढ़ विरोध कायम हुआ कि एक-दूसरे के मुँह देखने के रबादार न हुए। तब परस्पर की सहानभूति कहाँ रही ? जब समस्त हिन्दू जाति का एक सम्प्रदाय न रहा तो वह मसल चरितार्थ हुई कि “एक नारि जब दो से फँसी, जैसे सत्तर वैसे अस्सी ।" हमारी हिन्दू-जाति के असंख्य टुकड़े होते-होते यहाँ तक खण्ड हुए कि अब तक नये-नये धर्म और मत-प्रवर्तक होते ही जाते हैं। 
  3. प्रलाप एवं आवेग शैली-भट्टजी के भावात्मक निबन्धों में आवेग एवं प्रलाप शैली का प्रयोग हुआ है। इस शैली में भाषा माधुर्य, पूर्ण भावों का जमघट तथा प्रवाहात्मकता देखने को मिलती है। भट्टजी के स्वभाव की भावुकता इस शैली का प्राण है। इन निबन्धों में काव्यात्मकता के दर्शन होते हैं। छोटे-छोटे वाक्यों से युक्त लम्बे वाक्य यहाँ अपने पूरे प्रवाह के साथ विद्यमान रहते हैं। आँसू, चन्दोदय, पत्नी स्तव, हामिक और उनकी हिकमत आदि निबन्धों में मुख्यतः इस शैली के दर्शन होते हैं। यहाँ कोमलकान्त पदावली वाली भाषा का माधुर्य प्राप्त होता है। 'पत्नी स्तव' से उक्त कथन की पुष्टि हो जाती है – “गजगामिनी, जिसकी चाल के आगे हंसों का अपनी चाल का घमण्ड चला जाता है, जिस पिकबैनी की वचन माधुरी सुन कोकिला लज्जित हो मौनव्रत धारण कर लेती है, जिसके नवनीत कोमल अंगों के साथ होड़ होने में कोमलता पत्थर-सी कड़ी मालूम होती है, शोभा और सौन्दर्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी जिसके लावण्य जलधि की लहरों के अचम्भे में आप गोता खाने लगती है—'एक नारी सुन्दरी वा दरी वा' भृर्तहरि की यह उक्ति ऐसी ही सहधर्मिणी के मिलने से सुघटित होती है। 
  4. व्यंग्य-प्रधान शैली – इस शैली में भट्टजी के व्यक्तित्व की छाप है। वे विनोदी स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके सभी प्रकार के निबन्धों में इस शैली का प्रयोग हुआ है। इसमें मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है। उनके द्वारा प्रयुक्त व्यंग्य अत्यधिक मार्मिक है, जो पाठक को अभिभूत किये बिना नहीं रहते। इन व्यंग्यपरक वाक्यावलियों के प्रयोग से निबन्ध में रोचकता का समावेश हो गया है। एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा- 'बाज-बाज नौसिखिए, नई रोशनी वाले, जिनका किया धरा आज तक कुछ नहीं हुआ, मुल्क की तरक्की के खब्त में आप आज इस सभा में जाय हड़ाकू मचाया, कल उस क्लब में जाय टाय-टांय कर आये, दिल बहलाव हो गया । इन्हीं में से कोई धाऊ धप्प गुरु घण्टाल किसी क्लब या समाज के सेक्रेटरी या खजान्ची बन बैठे और सैकड़ों रुपया वसूल कर डकारने लगे। ” 

बालकृष्ण भट्ट का हिन्दी साहित्य में स्थान

इस प्रकार हम देखते हैं कि पं. बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु मण्डल के ऐसे प्रमुख निबन्धकार थे, जिनका हिन्दी गद्य साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतेन्दु युग की सभी विशेषताएँ भट्टजी के निबन्धों में प्राप्त होती है। हिन्दी में आलोचना का वास्तविक सूत्रपात भट्टजी ने ही किया है। बाबू श्यामसुन्दर दास ने उन्हें हिन्दी का 'मोनटेण्ट' कहा है। डॉ. भागीरथ मिश्र ने भट्टजी के योगदान और हिन्दी पद्य साहित्य की प्रशंसा इन शब्दों में की है- "बालकृष्ण भट्ट ने हिन्दी गद्य शैली को नवीन रूप दिया। उनके निबन्धों में अलंकारिकता और दुरुहता नहीं मिलती। उनके निबन्ध उनके आन्तरिक भावों के सच्चे प्रतिरूप हैं। उनमें उनका जीवन झलकता है। निश्चय ही भारतेन्दु मण्डल के निबन्धकारों में भट्ट जी का स्थान सर्वोपरि है।” 

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