विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता | World Environment Day Poem In Hindi 2023

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विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता vishwa paryavaran diwas par kavita बेवफ़ा इंसान ग़र जिंदा रहना चाहते हो तो अब भी होश में आओ और अपने हाथ का कुल्हाड़ा

 दरख़्त - अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस (5 जून 2023) पर विशेष कविता

                       
पना कैमरा लटकाये 
बहुत दूर निकल जाता हूं मैं 
और कैमरे की आंख से देखता हूं
तो मुझे रोक लेता है एक दरख़्त 
उसे गौर से देखता हूं
वो काफ़ी बूढ़ा हो चुका था
उसके लम्बे केश लटक कर
जमीन को छू रहे थे
मुझे लगा वो कुछ बीमार- सा है
और रह -रह कर खांस भी रहा है
मेरी अंगुली अचानक दब जाती है 
और एक ‘क्लिक’ के साथ
पूरा दरख़्त मेरे कैमरे में आ जाता है
जीते रहो बेटा ! बूढी आवाज
जैसे मेरे कानों से टकराई
मैंने देखा अपने पोपले मुंह से
दरख़्त मुस्कुरा रहा था
ऐसा लगा जैसे मेरे दादा जान बुला रहे हैं
विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता | World Environment Day Poem In Hindi
मैं करीब चला गया
उसने मुझे प्यार से
अपनी बाहों में भर लिया 
और बेतहाशा चूमने लगा
मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े
और मैं बिल्कुल बच्चा बन गया
दादाजी, आप बीमाल ओ
हां बेटा, कई सालों से
कोई ख़ैरख़्वाह नहीं
सभी ग़म देने वाले हैं
मेरे बाज़ू कत्ल करने वाले हैं
क्या दादा जान सचमुच ? 
तो तुम क्या महज़ कैमरा
बाजू में लटकाए घूमते हो
और खुबसूरत दोशीज़ाओं की
तस्वीरें उतारते हो ?
बूढ़ा दरख्त अब गुस्से से लबरेज़ था
देखते नहीं तुम्हारी धरती 
अब कितनी नंगी हो चुकी है
बच्चे, जवान, बूढ़े हर दरख़्त को
मुसल्सल काट रहे हो तुम लोग
सारे जंगल तबाह कर डाले हैं
लेकिन मत भूलो / इस तबाही के बरक्स 
एक दिन तुम सब भी तबाह हो जाओगे
ख़ूबसूरत दुनिया का बेडा ग़र्क हो जाएगा 
मुझे महसूस हुआ मेरे कानो में जैसे 
पिघलता हुआ शीशा रवां हो रहा है
तुम सब तो काबिल इन्सान हो
क्या इतना भी नहीं जानते
तुम्हारी गंदी कार्बन डाई ऑक्साइड
हम जज़्ब कर लेते हैं 
और तुम्हारी बेहतरी/ तुम्हारी सलामती के लिए
साफ़ सुथरी आक्सीज़न हम देते हैं
लेकिन बदबख़्त इंसान
तुमने हमें यही सिला दिया
और अपने हाथों में कुल्हाड़ा लेकर 
हमारी बोटी-बोटी काट डाली 
इसका ख़ामियाज़ा तो तुम्हें 
रफ़्ता रफ़्ता भुगतना ही है 
जमीन का कटाव, सैलाब और 
हवाओं में घुलता जहर
अब तो तुम्हारा मानसून भी बदल रहा है 
तुमने तरक्की के नाम पर
मोटरगाड़ियां, कारखाने और
खड़े कर लिये हैं सीमेंट के जंगल 
यही तुम्हें एक दिन लील जाएंगे 
तुमने सूरज को मुट्ठी में कैद करने की ठानी है 
अपनी बेइंतहा गर्मी से पैबस्त कर वो 
तुम्हें जला कर राख़ कर डालेगा 
 तुम्हारे हिमालय मोम की मानिन्द/पिघल जायेंगे 
और साग़र ग़ुस्से में
सारी कायनात को निगल जायेगा 
बेवफ़ा इंसान ग़र जिंदा रहना चाहते हो
तो अब भी होश में आओ 
और अपने हाथ का कुल्हाड़ा  
किसी दरिया में फेंक दो
और सारी दुनिया में ये अलग जगाओ 
इस नंगी होती धरती पर 
हर सूं दरख़्त लगाओ ..... 



- रावेल पुष्प 
नेताजी टावर,278/A,एन.एस.सी.बोस रोड, कोलकाता- 700047.
ई.मेल : rawelpushp@gmail.com
चलन्तभाष: 9434198898

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. बहुत सुंदर कविताएं। विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक बधाई।

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