पूर्वजन्म के कर्मफल भोग से बचा नहीं कोई

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पूर्वजन्म के कर्मफल भोग से बचा नहीं कोई, चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम चन्द्र हों या गीताज्ञानी योगेश्वर नटवर कृष्ण कन्हाई! पूर्वजन्म के कर्मफ

भगवान राम कृष्ण भी पूर्वजन्म के कर्मफल से बचा नहीं कोई 


पूर्वजन्म के कर्मफल भोग से बचा नहीं कोई, 
चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम चन्द्र हों 
या गीताज्ञानी योगेश्वर नटवर कृष्ण कन्हाई!
 
पूर्वजन्म के कर्मफल भोग से बचा नहीं कोई, 
चाहे भगवान राम की माता हो कौशल्या माई 
या विमाता कैकई कर्मफल से बंधे सभी भाई!

चाहे लाख करो छल, छंद, चतुराई, बुराई,भलाई,
जस करनी तस भोग बिना मुक्ति किसने पाई?
कैकई का हस्र सुनो जिसने राम वनवास दिलाई!
 
राम की विमाता कैकई ही, कृष्ण की माँ देवकी,
राम ही कृष्ण थे,रावण बने मामा कंश; कृष्ण के,
राम पिता दशरथ हुए कान्हा के पिता वसुदेवजी! 

कैकई पर कामासक्त दशरथ ने चौदह वर्षों तक  
पूर्वजन्म के कर्मफल भोग से बचा नहीं कोई
पुत्र को वनवास दिया,पुत्र कामना नारी वासना में
देहत्याग कर,देवकी रुपी कैकई संग में हुए कैदी!

काली काल कोठरी में केवल एकही काम आठोयाम, 
देवकी से वसुदेव का संभोग पुत्रयोग वियोग हलकान, 
बीत गए चौदह साल बेड़ी बंधी कोख में लौटे राम! 

वसुदेव ने आठवें कृष्ण के पूर्व पैदा की सात संतति, 
सातवां बलराम छोड़कर कंश के हाथों मारी गई सभी,
पुत्र हेतु लालायित दशरथ, लालायित रहे वसुदेव भी!

श्रीराम घनश्याम बनकर देवकी माँ की कोख से आए,
उधर कौशल्या यशोदा माँ बनके बैठी थी आस लगाए,
वसुदेव ने कंश के डर से यशोदा की गोद में डाल गए!

चौदह वर्षों तक दशरथ ने कौशल्या की गोद सूनी की, 
चौदह साल तक वसुदेव ने यशोदा की आंचल भरी थी, 
चौदह वर्षीय कृष्ण ने वसुदेव देवकी को कैद मुक्ति दी!

ये संयोग नहीं राम का पुनर्जन्म कर्मफल सिद्धांत कि 
जिस सीता की राम ने अग्निपरीक्षा लेकर बेवफाई की,
वही अगले जन्म की राधा,ब्याहता नहीं बनी कृष्ण की!

सीता नहीं किसी ज्ञात ख्यात राजा महाराजा की कन्या,
सीता की माता भूमि थी, पिता का कुछ नहीं अता-पता, 
अनुश्रुति कहती रावण मंदोदरी थे सीता के माता पिता!

काश धोबी को सीता माँ का ये जन्म वृतांत ज्ञात होता,
जिसने सीता पर आक्षेप किया,राम ने सीता त्याग दिया,
काश राम जटायु सा पिता मान रावण का श्राद्ध करता!

राम को वनवास मिला पर अनुज लक्ष्मण का साथ लिया,
लक्ष्मण भार्या उर्मिला को अकारण चौदह वर्ष संताप दिया, 
सीता दंडित नहीं पर उनको वन लाके भोग-विलास किया! 

इसी कर्म से राम कनिष्ठ कृष्ण,लक्ष्मण ज्येष्ठ बलराम थे, 
सीता को दो-दो बार वनवास और परित्याग के कारण से,
कृष्ण छत्र विहीन वंचित हुए राजमुकुट सिर पर धारण से!

राम ने बाली पर छिपकर प्रहार किए,उसने धिक्कार दिए,
जैसे राम ने व्याध बनकर मारा मुझे वैसे ही मारूंगा उसे, 
त्रेता के राम द्वापर में कृष्ण व्याध तीर के शिकार हुए! 

राम ने सीता की जिस अक्षत युवा रुप की कल्पना की,
सीता ने उस सद्यस्नाता राधा रुप में कृष्ण सामना की,
मगर वो यशोदा बंधु रायण को ब्याही गई परकीया थी! 

सीता विरह में राम ने सोलह हजार एक सौ आठ बार,
हा सीते! कहकर आठ-आठ आँसू बहाए, पर उसे पाकर 
आखिर त्याग दिए,ग्रहण-त्याग के ऊहापोह में पड़ कर! 

सोलह हजार एक सौ आठ बार, हा सीते! तुमसे प्यार
जो कहे राम ने, सोलह हजार एक सौ आठ स्वरूप धर
सीता ही, कृष्ण के जीवन में रानियाँ बनी थी आकर! 

जो सोलह हजार एक सौ राजपुत्री कैद थी नरकासुर की
लांक्षित हो गई,किसी की ब्याहता नहीं बन सकती थी, 
कृष्ण ने सिंदूर दानकर नारकीय जीवन से दी आजादी, 

सीता का प्रेम जितना सच्चा, शंकालु राम उतना कच्चा,
राम जब देवकी गर्भ से प्रकट हुए थे कृष्ण रुप धर के,
सीता ने कंश से कृष्ण की जान बचाई नंदसुता बन के!

राजा जनक ही जन्मे थे नंद गोप; पति यशोदा माई के, 
राधा के पिता बने वृषभानु वैश्य; राजा जनक के भाई थे,
कर्मफल भोग हेतु सीता के पिता रावण थे,मामा कृष्ण के!

नारी सृष्टि की माता, नारी से बड़ा नहीं नर देव विधाता,
हल की सीत मांग में सिंदूरी बीज डालने से बनती सीता, 
अज्ञात कुल शील नारी की माँग भरने से आती पवित्रता!

राम मर्यादित चरित्र का, मानव को मर्यादित बनानेवाला,
सीता सतीत्व की पराकाष्ठा,भारतीय नारी की सत्यनिष्ठा,
सीता सी पवित्र होती सिंदूरी मांग की हर नारी परिणीता!


- विनय कुमार विनायक 
दुमका,झारखण्ड-814101

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