सिर्फ स्वच्छ ईंधन का प्रयोग ही काफी नहीं है

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ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार घातक कारकों में सड़कों पर दौड़ाने वाले वाहनों की बेतहाशा बढ़ती संख्या एक प्रमुख कारक है. सार्वजनिक वाहनों को छोड़ कर जानल

पर्यावरण बचाने को सीएनजी की तरफ बढ़ता बिहार


ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार घातक कारकों में सड़कों पर दौड़ाने वाले वाहनों की बेतहाशा बढ़ती संख्या एक प्रमुख कारक है. सार्वजनिक वाहनों को छोड़ कर जानलेवा व दूषित कणों को उत्सर्जित करने वाली निजी गाड़ियों का उपयोग लोगों का स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है. यही कारण है कि अधिकतर संपन्न परिवारों में दो-दो, तीन-तीन बाइक व मोटर कार दिख जाएंगे. शहरों को छोड़िए, अब तो गांव-गांव में अधिकतर परिवारों के पास दोपहिया वाहन दिख जाएंगे. दूषित ईंधन के रूप में प्रयुक्त होने वाले पेट्रोल-डीजल चालित वाहन हवाओं को अधिक जहरीला बना रहे हैं. दिल्ली को ग्रीन राजधानी बनाने के ख्याल से कई साल पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पेट्रोल-डीजल की जगह हरित ईंधन के रूप में सीएनजी का प्रयोग शुरू किया गया था. इसके साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों में सीएनजी बसों आदि का परिचालन शुरू हुआ. अब भी बहुत सारे राज्य ऐसे हैं, जो सीएनजी के उपयोग में पीछे हैं.

इस दिशा में देर से ही सही बिहार आगे बढ़ रहा है. देश के चुनिंदा राज्यों में बिहार भी शामिल है, जो ग्रीन बजट बना कर पर्यावरण संरक्षण के लिए ग्रीन फ्यूल के इस्तेमाल के लिए ‘स्वच्छ ईंधन योजना’ के क्रियान्वयन में लगी है. इस योजना के तहत डीजल एवं पेट्रोल चालित तिपहिया वाहनों को सीएनजी में बदलने के लिए सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया है. बैटरी चालित वाहन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. अगले साल के ग्रीन बजट में डीजल बसों को सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए भी सब्सिडी देने पर जोर दिया गया है. वायु प्रदूषण कम करने के लिए बिहार में डीजल चालित बसों को सीएनजी में बदलने की योजना पर गंभीरतापूर्वक काम चल रहा है. इसके लिए राज्य सरकार सब्सिडी भी दे रही है.

सिर्फ स्वच्छ ईंधन का प्रयोग ही काफी नहीं है
सीएनजी बसों के लिए सीएनजी फ्यूलिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाने को लेकर विभाग प्रयासरत है. पटना, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, गया, भागलपुर जैसे शहरों में सीएनजी स्टेशनों की संख्या इस साल के अंत तक लक्ष्य के अनुरूप बढ़ायी जायेगी. मुजफ्फरपुर जिले में अबतक आठ सीएनजी स्टेशन शहर से सटे पेट्रोल पंप पर खोले जा चुके हैं. साथ ही 18 और पेट्रोल पंपों पर सीएनजी स्टेशन खोले जा रहे हैं. दिसंबर 2023 अंत तक इन सभी नये सीएनजी स्टेशनों को चालू करने का लक्ष्य रखा गया है. इस पर आइओसीएल सीएनजी की टीम पूरी मुस्तैदी से काम कर रही है. खतरनाक स्तर तक बढ़ रहे प्रदूषण की रोकथाम के लिए इस वर्ष एक अक्टूबर से मुजफ्फरपुर के शहरी क्षेत्र में 15 साल पुराने डीजल चालित तीन पहिया वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी गयी है. इनका परिचालन नगर निगम क्षेत्र के बाहर होगा. 

जिले में कुल 9,38,400 वाहन निबंधित हैं, जिनमें से 1,26,513 व्यावसायिक एवं 8,11,887 निजी वाहन हैं. डीटीओ सुशील कुमार का कहना है कि फिलहाल 178 सरकारी गाड़ियों की सूची तैयार की गयी है, जो 15 साल पुरानी हैं. डीजल चालित पुरानी गाड़ियों से उत्सर्जित जहरीले धुएं से लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है. शहर की आबो-हवा भी खतरनाक स्तर तक दूषित होती जा रही है. इसलिए यह प्रतिबंध लगाया जा रहा है. चिकित्सक डॉ. हेमनारायण विश्वकर्मा कहते हैं कि पिछले वर्ष जारी वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के मुताबिक, मुजफ्फरपुर दुनिया का 20वां एवं पटना 10वां सबसे प्रदूषित शहर रहा है. इसका प्रतिकुल असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. अस्थमा एवं क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पलमनरी डिजीज के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. हर उम्र के लोग सांस संबंधी विकारों से ग्रसित हो रहे हैं. 

बिहार सरकार पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीरता दिखा रही है. इसी कड़ी में ग्रीन टैक्स का प्रावधान किया गया है, जिसका उद्देश्य है वातावरण को स्वच्छ बनाने और लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण को कम करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है. हरित बजट में बिहार मोटरयान करारोपण अधिनियम 1994 की धारा 5 की उपधारा-6 के तहत 12 साल से अधिक पुराने वाहन पर ग्रीन टैक्स का  प्रावधान है. इसके रजिस्ट्रेशन में कुल कर का 10 प्रतिशत ग्रीन टैक्स के रूप में वसूला जायेगा. राज्य के बड़े शहरों में 15 साल से अधिक पुराने वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने की योजना भी बनायी जा सकती है. अभी यह नियम पटना नगर निगम, दानापुर, खगौल व फुलवारी नप क्षेत्र में ही लागू है.

गत दिनों राज्य परिवहन सचिव पंकज कुमार पाल ने कहा था कि बिहार स्वच्छ ईंधन योजना के तहत पटना शहरी क्षेत्र में चल रही पुरानी डीजल चालित बसों को नयी सीएनजी चालित बसों के रूप में बदलने पर अनुदान दिया जाएगा. पटना शहरी क्षेत्र में डीजल की जगह सीएनजी बसों के परिचालन से वायु प्रदूषण में कमी आयेगी. बिहार राज्य पथ परिवहन निगम द्वारा वर्तमान में कुल 161 सीएनजी बसों का परिचालन विभिन्न रूटों पर किया जा रहा है, जिनमें 111 सीएनजी बसों का परिचालन पटना नगर सेवा के कई रूटों पर हो रहा है. परिवहन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक आम उपभोक्ता अब भी पेट्रोल वाली गाड़ियां ही अधिक पसंद करते हैं. एक जनवरी से 31 जुलाई 2022 के बीच छह लाख 48 हजार से अधिक बिके वाहनों में से 5,57,998 वाहन पेट्रोल से चलने वाले हैं, जबकि पेट्रोल व सीएनजी मिश्रित वाले 3415 वाहन बिके. इलेक्ट्रिक से चलने वाले वाहनों में 24 हजार 528 की बिकी हुई, जबकि डीजल से चलने वाले 47,869 और सीएनजी से चलने वाले 8348 वाहनों की बिक्री हुई है. लिहाजा, ये आंकड़े इंगित करते हैं कि राज्य सरकार पॉलिसी के स्तर पर तो काम कमोबेश काम कर रही है, लेकिन सीएनजी वाहनों को लेकर आम उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता व जानकारी की बेहद कमी है.

देश में सीएनजी का बड़े पैमाने पर उपयोग सबसे पहले राजधानी दिल्ली में हुआ है. वाहन प्रदूषण के बढ़ते खतरों से निबटने की दिशा में 1998 का सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश काफी महत्वपूर्ण है, जिसमें दिल्ली की सड़कों पर चल रहे वाहनों के लिए स्वच्छ ईंधन के रूप में सीएनजी को अनिवार्य कर दिया गया था. देश की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आने वाले सालों में भी कई सख्त आदेश दिए हैं. 1 अप्रैल 2001 से केवल सीएनजी चालित बसों को ही दिल्ली की सड़कों पर चलाने की इजाजत दी गई है. केंद्र व राज्य सरकार एवं दिल्ली परिवहन निगम के उदासीन रवैये के बीच एक बार फिर 5 अप्रैल 2002 को सर्वोच्च न्यायालय का सख्त आदेश आता है और राजधानी दिल्ली की पूरी सार्वजनिक सड़क परिवहन प्रणाली सीएनजी युक्त हो जाती है. इस तरह दिसंबर 2002 तक वायु प्रदूषण के लिए सबसे घातक डीजल चालित बसें दिल्ली की सड़कों से ओझल गयीं.

इन सब प्रयासों के बाद भी आज दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली समेत देश के कई शहर गिने जाते हैं. कुछ शहर ऐसे भी हैं, जिनकी वायु गुणवत्ता बहुत अच्छी है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियमित रूप से देश के कई शहरों में वायु गुणवत्ता पर नजर रखती है. काश! पूरा देश मिजोरम की राजधानी आइजोल एवं मेघालय की राजधानी शिलांग जैसा हो जाता, जिसकी नवंबर 2022 में एक्यूआई क्रमशः 22 व 20 दर्ज की गयी थी. सबसे कम प्रदूषित इन घने जंगलों व पहाड़ों की ओट में बसे शहरों की वायु गुणवत्ता पर नजर दौड़ाएं, तो साफ जाहिर होता है कि सिर्फ स्वच्छ ईंधन का प्रयोग ही काफी नहीं है, बल्कि पेड़-पौधों एवं जंगलों का जाल भी बिछाना जरूरी है. (चरखा फीचर)


- डॉ. संतोष सारंग
मुजफ्फरपुर, बिहार

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