हिन्दी की उत्पत्ति की विवेचना | History of Hindi Language

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हिन्दी की उत्पत्ति पर संक्षिप्त लेख


हिन्दी की उत्पत्ति कैसे हुई हिन्दी भाषा की उत्पत्ति हिन्दी की मूल उत्पत्ति किससे हुई हिंदी भाषा का जन्म कैसे हुआ origin of hindi how hindi language was born - हिन्दी शब्द का निर्माण 'सिंध' या 'सिंधी' शब्द से हुआ है। प्राचीन काल में इस शब्द का जो अर्थ था, उससे आधुनिक अर्थ तक पहुँचते-पहुँचते इस शब्द ने कई सदियों की लम्बी यात्रा की है। ऋग्वेद में 'सिन्ध' शब्द नदी के अर्थ में और 'सप्त-सिन्धवः' शब्द सात नदियों के अर्थ में भी व्यवहृत हुआ है। एक स्थान (ऋ0 2-8-96) पर यह प्रदेश के अर्थ में भी व्यवहृत है। यही 'सिन्ध' शब्द जब ईरान पहुँचा तो वहाँ की प्राचीन भाषा अवेस्ता में इसका व्यवहार 'हैन्दु', 'हप्तहैन्दवो' तथा 'हिन्दु' आदि रूपों में हुआ। संस्कृत 'की 'स' ध्वनि का 'ह' में तथा 'महाप्राण' व्यंजनों का 'अल्पप्राण' व्यंजनों के रूप में प्रयोग अवेस्ता के लिए सामान्य बातें हैं। इस प्रकार 'हैन्दु' तथा 'हिन्दु' शब्द संस्कृत 'सिन्ध' शब्द के उच्चारण-भेद मात्र हैं। प्रयोग की यह परम्परा आगे बढ़ती गयी और मध्य ईरानी काल में इसके साथ एक प्रत्यय 'ईग्' या 'ईक्' जोड़कर 'हिन्दीग' या 'हिन्दीक' शब्द भारत देश के निवासियों तथा यहाँ से गयी हुई वस्तुओं के नाम के साथ व्यवहत होने लगा। थोड़े समय बाद ही इस शब्द का अन्तिम व्यंजन 'क्' या 'ग्' लुप्त हो गया और 'हिन्दी' शब्द हिन्दुस्तान के निवासियों तथा यहाँ की वस्तुओं के अर्थ में व्यवहृत होने लगा। इस प्रकार 'हिन्दी' शब्द ईरानियों द्वारा विकसित शब्द है। 

हिन्द देश के निवासियों की भाषा हिंदी 

आगे चलकर हिन्द देश के निवासियों की भाषा के लिए भी 'हिन्दी' शब्द का ही व्यवहार हुआ। लेकिन यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक है। 'हिन्दी' शब्द का विकास संस्कृत के 'सिन्धी' शब्द से भले ही हुआ हो, इसका व्यवहार 'सिन्ध' प्रान्त में बोली जानेवाली भाषा के रूप में नहीं हुआ। जिन ईरानियों के माध्यम से इस शब्द को विकास प्राप्त हुआ, उन्होंने इसे गुजरात से लेकर मध्यदेश तक की भाषा के रूप में स्वीकार किया। अरबयात्री मसऊद (303 हिजरी) लिखता है - "सिन्ध में वहाँ की अपनी भाषा है जो हिन्द की भाषाओं से भिन्न है।” इस प्रकार अरबयात्रियों ने 'सिन्ध' और 'हिन्द' प्रदेश को अलग माना है। कश्मीर की तराई से 'सिन्ध' नदी के किनारे तक को वे ‘सिन्ध’ तथा गुजरात से लेकर भीतरी देश को ‘हिन्द' कहते हैं। 
 
अरबयात्रियों द्वारा भारत देश की भाषा का 'हिन्दी' नामकरण व्यापक अर्थ में हुआ है। 'हिन्दी' के अन्तर्गत उन्होंने यहाँ की सभी प्राचीन भाषाओं संस्कृत, पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश आदि को स्वीकार किया है। इस प्रकार भारत में रहनेवाले फारसी लेखक सामान्य रूप से भारत के, मध्यदेश में बोली जानेवाली सभी साहित्यिक और देशी भाषाओं के लिए 'हिन्दी' शब्द का व्यवहार करते रहे।

प्रारंभिक हिंदी 

हिन्दी की उत्पत्ति की विवेचना | History of Hindi Language
किसी भाषा की उत्पत्ति-तिथि का निर्धारण करना कठिन ही नहीं, प्रायः असम्भव है क्योंकि प्रत्येक नवोदित भाषा अपनी पूर्ववर्ती भाषा की क्रोड़ में बहुत दिनों तक पलने के बाद पर्याप्त विकसित हो जाने पर प्रकाश में आती है। इसलिए उसके उद्भव काल का निर्धारण करने में सौ दो-सौ वर्षों का हेर-फेर हो जाना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। हिन्दी के उद्भव के सम्बन्ध में भी यही सत्य है । ईसा की बारहवीं शताब्दी में हेमचन्द ने 'शब्दानुशासन' की रचना कर परिनिष्ठित अपभ्रंश के व्याकरण की व्यवस्थित रूपरेखा प्रस्तुत की। इससे प्रकट होता है कि उस समय तक अपभ्रंश जनभाषा से अलग होकर साहित्यिक भाषा के रूप में रूढ़ हो गयी थी । अतः हेमचन्द से कम-से-कम सौ दो सौ वर्ष पहले से ही जनभाषा का जीवन्त रूप विकसित होने लगा होगा। शब्दानुशासन में परिनिष्ठित अपभ्रंश के अतिरिक्त एक ग्राम्य अपभ्रंश का भी उल्लेख है जो निश्चय ही उस समय की जनभाषा थी। तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी में काव्य-रचना करने वाले कवियों ने इसे अवहठ्ठ और देशी भाषा आदि की संज्ञाएँ प्रदान की हैं। हिन्दी-साहित्य के आधुनिक अध्येताओं ने भी इसे परवर्ती अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी, प्रारम्भिक हिन्दी आदि नामों से अभिहित किया है।' आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तत्कालीन साहित्यिक भाषा और जनभाषा में भेद करने के लिए साहित्यिक भाषा को 'प्राकृताभास हिन्दी' और जनभाषा को 'देशीभाषा' कहा है। 

अपभ्रंश और हिंदी साहित्य का संबंध

अधिकांश विद्वान् अपभ्रंश और हिन्दी के बीच की कड़ी को अवहठ्ठ की संज्ञा प्रदान करने के पक्ष में हैं । किन्तु, एतत्सम्बन्धी सामग्री इतनी न्यून है कि उसके स्वरूप का विवेचन करना प्रायः असंभव है । उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं के अन्तिम रूप अपभ्रंश से ईसा की दसवीं शताब्दी के आस-पास विभिन्न आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के प्रारम्भिक रूपों का जन्म हुआ। स्थान भेद से अपभ्रंश के अनेक प्रचलित रूपों में शौरसेनी और अर्द्धमागधी ने धीरे-धीरे विकसित होकर क्रमशः पश्चिमी और पूर्वी हिन्दी का स्वरूप गहण किया। आजकल इन्हीं दोनों भाषाओं के सम्मिलित रूपों को हिन्दी के नाम से जाना जाता है। इस बात की पुष्टि 13वीं-14वीं सदी के फारसी - अरबी के प्रकाण्ड पण्डित अमीर खुसरो की 'खालिकबरी' (कोश) नामक रचना से भी होता है। यहाँ उल्लिखित भारतीय भाषाएँ इस प्रकार हैं- “(1) सिन्धी, (2) लाहौरी, (3) कश्मीरी, (4) बंगाली, (5) गौड़ी, (6) गुजराती, (7) तिलंगी, (8) मावरी (कर्नाटकी, कोंकड़ी), (9) ध्रुव समुन्दरी, (10) अवधी, (11) देहलवी और उसके आसपास की भाषा ।" 

हिन्दी का उद्भव काल

इस उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है कि खुसरो के समय तक 'हिन्दी' नाम की कोई विशिष्ट भाषा नहीं थी। लेकिन खुसरो से ही 'हिन्दी' या 'हिन्दवी' अपना विशिष्ट अर्थ भी धारण करने लगती है। उन्होंने अपनी देशी भाषा की कविताओं की भाषा 'हिन्दी' या 'हिन्दवी' ही बताया है। आगे चलकर दिल्ली के आसपास बोली जानेवाली देशी भाषा और अरबी-फारसी के मेल से बनी भाषा को 'हिन्दवी', 'हिन्दुस्तानी', 'दक्खिनी हिन्दी' कहा गया। दक्खिनी हिन्दी का भी प्रचुर साहित्य आज उपलब्ध है जो हिन्दीसाहित्य के इतिहास का अभिन्न अंग है । 



वैसी तो हिन्दी भाषा के कुछ व्याकरणिक रूपों के दर्शन पालि में ही होने लगते हैं, किन्तु हिन्दी भाषा का वास्तविक आरम्भ 1000 ई० से माना जाता है। हिन्दी का उद्भव काल दसवीं शताब्दी के आस-पास मान लेने से इसका सम्पूर्ण इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना ठहरता है।

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. हिन्दी शब्द पर कपटी धूर्त लोगों की मनगढंत कपट पूर्ण व्याख्या को भाषा का विकास कहते हो❗
    खुद को विदेशी मानने वाले तथाकथित आर्य और इस्लामिक आक्रांताओं ने यहाँ के लोगों को हिन्दू ( जिसका अर्थ "हीन"नीच शूद्र काला कुरूप बुरा आदि है) से सम्बोधित किया❗
    हाथरस कांड में आरोपियों का पिता मीडिया से बोल रहा था कि हम बहुत गरीब है हमारे हालात हिन्दुओं से भी खराब है हमें धान काटना पड़ता है❗ मतलब कि वह खुद को हिन्दू नहीं मानता वह आर्य है, और हिन्दुओं के हालात खराब होते हैं❗

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