मानक हिंदी का स्वरूप | Form of Standard Hindi | मानक हिन्दी की व्याकरणिक संरचना

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मानक हिंदी का स्वरूप और मानक हिन्दी की व्याकरणिक संरचना


हिंदी भारत की राजभाषा है और देश में सर्वाधिक बोली ,समझी और पढ़ी जाने वाली भाषा है ।शिक्षण तथा जनभावनाओं की अभिव्यक्ति दोनों का सशक्त माध्यम हिन्दी बन रही है। पूरे भारत में सूचनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी है। राजकाज चलाने का प्रमुख माध्यम भी यही भाषा है। कुछ समय पहले हर मामले में अंगरेजी का वर्चस्व था, पर अब यह घटता जा रहा है। भारत में अब सूचनाओं का आदान-प्रदान प्रायः प्रान्तीय भाषाओं या हिन्दी के माध्यम से हो रहा है। अंगरेजी राजभाषा होने के कारण औपचारिक ढंग से प्रयुक्त अवश्य की जा रही है, पर इसके हिन्दी अनुवाद निरन्तर साथ लगे रहते हैं। धीरे-धीरे हिन्दी पूरे भारत की माध्यम भाषा का रूप लेती जा रही है।हिंदी, भारत की आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा है और विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। हिंदी भाषा की मान्यता और अपार उपयोगिता के कारण, इसे भारतीय संविधान में स्वीकृत किया गया है। यह भाषा दक्षिण एशिया में बहुत सारे लोगों द्वारा बोली जाती है और यह हिंदी बोलने वालों की एक महत्वपूर्ण साधारित तत्व भी है।

शिक्षण का माध्यम हिंदी

भारत के अधिकांश राज्यों में हिन्दी शिक्षण का भी माध्यम है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र के अधिकांश भागों में माध्यमिक स्तर तक तो शिक्षण का माध्यम निश्चित रूप से हिन्दी ही है। अब धीरे-धीरे उच्च शिक्षा में भी इसका प्रयोग माध्यम रूप में हो रहा है। उच्च शिक्षा में अभी माध्यम रूप में अंगरेजी का बोलबाला है, परन्तु अब हिन्दी भी महत्त्व पाने लगी है। इस दिशा में हिन्दी में तैयार किये गये विविध विषयात्मक ग्रन्थों का विशेष योगदान है। विज्ञान, गणित, संचार तकनीकी, कम्प्यूटर, गणित, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान तथा अन्यानेक विषयों में, श्रेष्ठ पुस्तकों का लेखन कार्य हिन्दी में हुआ है। इसी कारण अब यह उच्च शिक्षा में भी शिक्षण का माध्यम बनने को बिल्कुल तैयार सशक्त भाषा बन गयी है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि में तो उच्च शिक्षा की माध्यम भाषा हिन्दी ही है । मानक हिंदी (Standard Hindi) वास्तव में खड़ी बोली (colloquial language) पर आधारित है, जिसे लोग दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं। इसके लिए देशभर में कई लोगों को ज्ञान का भंडार होना चाहिए ताकि वे इसे सही रूप से समझ सकें और इसका सही इस्तेमाल कर सकें। मानक हिंदी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय अखबारों, पत्रिकाओं, विज्ञान लेखों, सरकारी दस्तावेजों, शिक्षा प्रणालियों, और बच्चों की पाठशालाओं में एक सामान्यता बनाई जाए।

अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी

एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी ने विश्व संस्था यू.एन.ओ. में भी प्रवेश कर लिया है। इसका श्रेय पूर्व प्रधानमंत्रियों स्व. वी.पी. सिंह, स्व. नरसिंहराव और माननीय अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है। इन्होंने यू.एन.ओ. में हिन्दी को अपने संबोधन का माध्यम बनाया। धीरे-धीरे विश्व के कई देशों में हिन्दी को विश्वविद्यालयीय शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलता जा रहा है। मानक हिंदी में क्रमबद्धता, व्याकरण, वर्ण-माला, विराम चिन्ह, और शब्दावली जैसे महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। इन तत्वों का सही इस्तेमाल आवश्यक है ताकि हम सही संदेश प्रस्तुत कर सकें और सही संवाद कर सकें। मानक हिंदी के विकास के लिए, हिंदी साहित्य, विज्ञान, और तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत लोगों के बीच एक मानकीकृत प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।

मानक हिंदी की विशेषताएं

मानक हिंदी का स्वरूप | Form of Standard Hindi | मानक हिन्दी की व्याकरणिक संरचना
मानक हिंदी की महत्वपूर्णता यह है कि यह भाषा हमारी संविधानिक और सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है। इसके माध्यम से हम अपने देश में विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं से आए लोगों के बीच संवाद स्थापित कर सकते हैं। हिंदी भाषा को सीखने से हम अपने संदेशों को बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचा सकते हैं और विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, और व्यावसायिक मंचों पर भाग ले सकते हैं।हिन्दी एक उच्चकोटि के साहित्य सृजन की भाषा है। इसमें साहित्य की सभी विधाओं की रचनाएँ सराहनीय ढंग से की जा रही हैं। साहित्यिक हिन्दी का अपना एक स्वरूप है जिसे इसे मानक हिन्दी कहा जाता है। व्याकरणिक नियमों में बँधकर एकरूपता को विशेष महत्त्व देने वाली भाषा मानक भाषा कहलाती है। हिन्दी के संबंध में मानकता का प्रश्न उठाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र की भाषा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि प्रदेशों की भाषा हिन्दी है । स्वाभाविक है कि इन प्रदेशों की बोलियाँ इसे प्रभावित करती हैं। इसी प्रभाव के कारण हिन्दी की पाँच उपभाषाएँ मानी गयी हैं- (1) पूर्वी हिन्दी (2) पश्चिमी हिन्दी (3) बिहारी हिन्दी (4) राजस्थानी हिन्दी (5) पहाड़ी हिन्दी। इन सभी क्षेत्रीय तत्त्वों को अपने में समाहित करते हुए भी व्याकरणिक एकरूपता वाली भाषा ही मानक भाषा कही जायेगी। मानक भाषा के लिए यह भी आवश्यक है कि इसके विस्तृत परिक्षेत्र के लोग इसे बोलने और लिखने में समानता बनाये रखें। मानक हिंदी के नियमों में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, क्रियाविशेषण, संयुक्त विशेषण, क्रिया पर्यायवाची शब्द, क्रिया विपरीतार्थक शब्द, अव्यय, समास, विराम चिह्न, मात्राएँ, अलंकार, वचन, कारक, संधि, समास आदि शामिल होते हैं। ये नियम भाषा को सुन्दर, स्पष्ट और संगठित बनाने के लिए मददगार होते हैं।

मानक हिंदी में कई शब्द और वाक्यांश उर्दू, संस्कृत, फारसी, अंग्रेज़ी, तेलुगु, तमिल, मराठी, बंगाली आदि से लिए गए हैं। यह भारतीय सभ्यता, साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राजनीति, कला आदि के विभिन्न क्षेत्रों को समावेश करता है।मानक हिंदी एक मधुर, सुंदर और समृद्ध भाषा है जिसे भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतिष्ठित प्रतीक माना जाता है। इसका उपयोग देश की विविधता को सम्मिलित करने और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मानक हिंदी की व्याकरणिक संरचना

मानक शब्द का अर्थ है- शुद्ध (Pure), उच्च (Standard), और परिनिष्ठित (Genuine)। डॉ० भोलानाथ तिवारी के अनुसार- “मानक भाषा किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं, जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित तथा शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में, यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।डॉ० हरदेव बाहरी मानक भाषा की परिभाषा इस प्रकार देते हैं- “मानक या आदर्श का जो चयन होता है, उसे समाज द्वारा, विशेषतः शिक्षित समाज द्वारा स्वीकृत होना चाहिए, बोलचाल में और लिखित में भी। लिखित रूप अधिक महत्त्वपूर्ण होता हैं, क्योंकि इसमें समानता और एकरूपता का निर्वाह भलीभाँति होता है।” 

आशय यह है कि शिक्षित समाज द्वारा स्वीकृत तथा प्रशासन और शिक्षा का माध्यम-भाषा का वह रूप जिसे लिखने में एकरूपता हो, मानक भाषा कहा जायेगा । भाषा के लिखित रूप को मानकता प्रदान करता है- व्याकरण । व्याकरण का ज्ञान भाषा के शुद्ध लेखन में सहायक होता है। इसीलिए द्विवेदी युग में जब हिन्दी के मानकीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई तो सबसे बड़ी आवश्यकता व्याकरण की अनुभव हुई। तब तक हिन्दी के जो व्याकरण लिखे भी गये थे, वे अंगरेजों द्वारा लिखित थे। उन्हें हिन्दी की मूल प्रकृति संस्कृत का ज्ञान अल्प मात्रा में था। उन सभी ने अंगरेजी व्याकरण के आधार पर हिन्दी का व्याकरण लिखा था। आज भी यह प्रवृत्ति विद्यमान है। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अपनी प्रेरणा से कामताप्रसाद गुरु द्वारा हिन्दी का एक स्तरीय व्याकरण ग्रन्थ लिखवाया, जो आज भी अपनी कोई तुलना नहीं रखता और कामताप्रसाद गुरु को हिन्दी के पाणिनि की पदवी दिलाता है। यहीं से हिन्दी के मानकीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। रामचन्द्र शुक्ल को मानक हिन्दी का आदर्श लेखक माना जा सकता है। मानक हिन्दी की सारी विशेषताएँ इनकी रचनाओं में विद्यमान हैं। भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया में वर्णमाला, वर्तनी, शब्द प्रयोग, व्याकरणिक रूप तथा विरामचिह्न आदि में एकरूपता आवश्यक है। आज हम जिसे मानक हिन्दी कहते हैं; उसकी उपर्युक्त विशेषताओं में सर्वत्र एकरूपता देखी जा सकती है। 

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