भ्रष्ट आचरण से धन तो पाया जा सकता है लेकिन संतुष्टि नहीं धन की प्राप्ति के लिए भ्रष्ट आचरण अनुचित है और इससे व्यक्ति को संतोष और खुशहाली नहीं मिलती है
भ्रष्ट आचरण से धन तो पाया जा सकता है लेकिन संतुष्टि नहीं
भ्रष्ट आचरण से धन तो पाया जा सकता है लेकिन संतुष्टि नहीं। यह कथन व्यापक रूप से मान्य है, क्योंकि यह बताता है कि भ्रष्ट या अनैतिक आचरण धन की प्राप्ति में सफलता ला सकता है, लेकिन यह सुख, आनंद, और आत्मसंतुष्टि नहीं प्रदान करता है।भ्रष्ट आचरण से धन कमाना या प्राप्त करना बहुत लोगों की प्राथमिकताओं में से एक हो सकता है, लेकिन यह सुख और संतोष का स्रोत नहीं है। धन की प्राप्ति अक्सर स्वार्थपूर्ण और न्याय विरुद्ध तरीकों के माध्यम से होती है, जिसमें नेताओं और अधिकारियों के भ्रष्टाचार का भी सहारा लिया जाता है। ऐसा आचरण सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ होता है और समाज के लिए नुकसानदायक होता है।
सफलता का मापदंड
धन की प्राप्ति के लिए भ्रष्ट आचरण करने वाले लोग अक्सर निरंतर अपनी लालच और आकांक्षाओं के पीछे भागते रहते हैं। वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी भी कीमत पर चलते हैं, चाहे वह कानून का उल्लंघन करना हो या नैतिक मूल्यों को ताक पर रखना हो। इस प्रकार के आचरण से, व्यक्ति को तो धन मिल सकता है, लेकिन साथ ही साथ उसे चिंता, अशांति, तनाव और असंतोष का भी सामना करना पड़ सकता है।धन की प्राप्ति केवल भौतिक सफलता की मापदण्ड नहीं होनी चाहिए, बल्कि व्यक्ति के जीवन के अन्य पहलुओं के साथ भी संतुष्टि को मापा जाना चाहिए। संतुष्टि और सुख का अनुभव धन से ही नहीं होता है, बल्कि व्यक्ति के सामाजिक संबंध, परिवार, स्वास्थ्य, आत्मसम्मान, सामरिक और मानसिक स्थिति, शिक्षा आदि के आधार पर भी निर्भर करता है।
धन ही सब कुछ नहीं है
धन केवल भोग और आनंद का स्रोत नहीं है। संतोष और आनंद की प्राप्ति वास्तविक जीवन के अन्य पहलुओं से होती है, जैसे कि स्वास्थ्य, परिवार, सद्भावना, सामाजिक संबंध और समान्य आत्मसंतुष्टि। यहां तक कि धन की प्राप्ति के बाद भी अनेक लोग खुश नहीं रह पाते हैं, क्योंकि उन्हें सामाजिक सम्मान, प्रेम और संतुष्टि का आनंद महसूस करने के लिए अन्य तत्वों की आवश्यकता होती है।
अतः धन की प्राप्ति के लिए भ्रष्ट आचरण अनुचित है और इससे व्यक्ति को संतोष और खुशहाली नहीं मिलती है। संतोष और आनंद की प्राप्ति के लिए हमेशा नैतिकता, ईमानदारी, कर्मठता, सच्चाई, और समाजहित के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। इससे हम अपने आप को संतुष्ट और पूर्णतः खुशहाल महसूस करेंगे और साथ ही साथ समाज को भी लाभ पहुंचाएंगे।यदपि मानव जीवन में धन का महत्व है, लेकिन धन ही सब कुछ नहीं हैं.
मनुष्य को धन के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी. इसके लिए आवश्यक है कि उसे अपने मन पर नियन्त्रण रखना होगा. क्योंकि मन की साधना ही संतोष की साधना हैं, संतोष की साधना ही सच्चे सुख की साधना है.इसलिए मनुष्य को प्रयत्न करके इस प्रकार की साधना करनी चाहिए, क्योंकि जिसने संतोष रुपी सच्चे सुख को पा लिया हैं उसको फिर इस संसार में कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा नहीं रह जाती हैं. वह अपना जीवन सुख शांति और ईश्वर के अधीन करके जीना प्रारम्भ कर देता हैं.
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