शिवप्रसाद सिंह का साहित्यिक जीवन परिचय shivprasad singh lekhak parichay shiv prasad singh ka jeevan parichay शिवप्रसाद सिंह जीवन परिचय रचनाएँ कहानी
शिवप्रसाद सिंह का साहित्यिक जीवन परिचय
शिवप्रसाद सिंह का साहित्यिक जीवन परिचय shivprasad singh lekhak parichay shiv prasad singh ka jeevan parichay शिवप्रसाद सिंह जीवन परिचय - डॉ शिवप्रसाद सिंह का जन्म सन १९२९ ई में बनारस में एक समृद्ध जमींदार परिवार में हुआ था। वाराणसी में रहकर ही उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने वही अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया और इसी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में विभागाध्यक्ष के पद तक पहुँचे।
अध्यापन के साथ आपकी लेखन में रूचि होने के कारण उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं को अपनी रचनाओं द्वारा समृद्ध किया। उनकी पहली कहानी दादी माँ ,सन १९५१ में प्रतिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। तत्पश्चात उनके कर्मनाशा की हार ,आरपार की माला ,इन्हें भी इंतज़ार है ,राग गुजरी और भेदिये आदि कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। डॉ सिंह की सम्पूर्ण कहानियाँ दो खण्डों में भी प्रकाशित हुई है।
शिवप्रसाद सिंह की रचनाएँ
अलग -अलग वैतरणी ,गली आगे मुडती है और नीला चाँद उपन्यासों की रचना कर शिव प्रसाद सिंह ने उपन्यास के क्षेत्र में अपनी अलग अलग पहचान बनायीं है। अलग -अलग वैतरणी में लेखक ने अपने जीवन को बहुत सुन्दर ढंग से उकेरा है। सन १९९० ई. में उन्हें नीला चाँद उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। आपका निधन 1998 ई० को वाराणसी में हुआ ।
घाटियाँ गूँजती हैं ,शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित एक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय नाटक है और शिखरों के सेतु ,कस्तूरी मृग तथा चतुर्दिक उनके प्रसिद्ध निबंध संग्रह है। विद्यापति ,आधुनिक परिवेश और नवलेखन तथा आधुनिक परिवेश और आस्तित्ववाद डॉ.सिंह के प्रसिद्ध आलोचनात्मक लेख है।
शिवप्रसाद सिंह आंचलिक सोच और जन जीवन के कथाकार है। फलत: उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थ और सामायिक सोच के साथ सामायिक सत्य मुखर हो उठा है। आंचलिकता से जुड़े होने के कारण ग्रामीण परिवेश आपको रुचिकर लगा और जन जीवन के प्रति गहरा लगाव उनके मन में मानव के प्रति विशेष संवेदना जगा लगा। मानव की आज जो स्थिति है - कहीं वह रूढ़ियों में जकड़ा तिलमिला रहा है ,कहीं अपनों से ही सताया जा रहा है ,कहीं नियति का शिकार होकर छटपटा रहा है ,कहीं छला जाकर बेबस होकर तड़प रहा है। उस सबका चित्रण उनकी कहानियों में पूर्ण यथार्थ के साथ हुआ है। आज मानव के चारों ओर समस्याओं ,त्रासदियों ,पीडाओं ,छल आदि का ऐसा जाल बुन दिया गया है ,जिससे बाहर आने को वह छटपटा रहा है ,पर विवश है ,मुक्ति का कोई उपाय उसे नहीं दीखता है। इनकी कहानियों में इसी मानवीय त्रासदी (नर और नारी दोनों की ) को बखूबी उभरती दिखाई देती है।
डॉ.शिव प्रसाद सिंह का विचार दर्शन
डॉ.शिव प्रसाद सिंह ने अपने जीवन में महर्षि अरविन्द से बहुत प्रभावित रहे हैं। अपनी कहानियों को तो लेखक ने ग्रामोन्मुखी बनाकर मानों नयी कहानी की शुरुआत ही की है। लेखक ने केवल परिवेश को ही प्रस्तुत नहीं किया है ,वरन सामाजिक विसंगतियों पर भी तीखा व्यंग करते हुए अनेक अंतरविरोधों को भी पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। लेखक ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को खोखला करने वाले अंधविश्वासों पर भी चोट की है।
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