रहीम की काव्यगत विशेषताएँ | Rahim Ki Kavyagat Visheshtayen

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रहीम दास की काव्यगत विशेषताएँ rahim ke kavya ki visheshtayen रहीम की प्रमुख रचनाएँ रहीम का हिंदी साहित्य में स्थान रहीम की कला पक्ष की दो विशेषताएं

रहीम की काव्यगत विशेषताएँ

हीम दास की काव्यगत विशेषताएँ rahim ke kavya ki visheshtayen रहीम की प्रमुख रचनाएँ रहीम का हिंदी साहित्य में स्थान रहीम की कला पक्ष की दो विशेषताएं Rahim Ke Kavya Ki Bhasha Ki Visheshtayen रहीम का जीवन और काव्य - रहीमदास जी मुसलमान होते हुए भी कृष्ण भक्त थे तथा धार्मिक कट्टरता से कोसों दूर थे। उनका दृष्टिकोण बड़ा उदार था। उन्होंने राजसी सुख और निर्धनता दोनों को भोगा। उनका हिन्दू और मुसलमान के प्रति समान व्यवहार था। रहीम की कविता में उनकी परिभा ,असीम ज्ञान और विविधता के दर्शन होते हैं। उनकी कविता में जीवन की व्यावाहारिकता विद्यमान है। नीति ,श्रृंगार और भक्ति उनके काव्य का विषय है। उन्होंने मानव व्यवहार तथा उसकी प्रकृति का गहन अध्ययन किया और उसके व्यावहारिक पक्ष की उद्घाटन किया है। वे बहुमुखी प्रतिभा के कवि हैं। 

अरबी ,फ़ारसी ,तुर्की और संस्कृत का रहीम को अच्छा ज्ञान था। वे हिंदी काव्य के मर्मज्ञ ,सहृदय कवि थे। हिंदी कवियों का ये बड़ा सम्मान करते थे। इनकी दानशीलता की अनेक लोक कथाएँ प्रचलित हैं। कवि गंग के एक छप्पय पर प्रसन्न होकर इन्होने उसे छत्तीस लाख मुद्राओं का पुरस्कार दिया था। गोस्वामी तुलसीदास से भी इनकी मित्रता थी। अकबर के बाद जहाँगीर से इनकी नहीं बनी। जहाँगीर ने राजद्रोह का अभियोग लगाकर इनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली और इन्हें बंदी बना लिया। जेल से मुक्त होने पर इन्होने अपना शेष जीवन चित्रकूट में बिताया। शेष जीवन बड़ी निर्धनता में बीता। इनकी रचनाओं में जीवन के खट्टे -मीठे और चटपटे अनुभवों का चित्रण हैं।आपने लिखा है कि - 

ए रहीम दर दर फिरहिं, माँगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छोड़िये वे रहीम अब नाहिं॥

सन १६२७ ई. में इनकी मृत्यु हो गयी। 

रहीम की प्रमुख रचनाएँ

रहीम ने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें प्रमुख हैं - रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि प्रमुख हैं। 

काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष और कलापक्ष की दृष्टि से रहीम के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं - 

रहीम की काव्यगत विशेषताएँ | Rahim Ki Kavyagat Visheshtayen
रहीम की कला पक्ष की दो विशेषताएं
रहीम का वर्ण्य विषय - रहीम ने जीवन में अनेक उतार चढ़ाव देखे थे। ये बहुत दयालु स्वभाव के थे। ये योग्यता के सच्चे पारखी थे। इन्हें संसार का गहन अनुभव था। अतः इनकी रचनाओं में जीवन के विविध प्रकार के चित्र मिलते हैं। इन्होने भक्ति ,नीति ,ज्ञान ,वैराग्य सम्बन्धी दोहे लिखे हैं।

नीतिपरक दोहे - इनके नीति सम्बन्धी दोहों में सांसारिक ज्ञान कूट -कूटकर भरा है। उनके दोहे जीवन के सत्य को प्रदर्शित करते हैं। जीवन की गहरी अनुभूति रहीम के दोहों की विशेषता हैं। रहीमदास जी लिखते हैं कि - 

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। 
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

कृष्ण भक्ति की विशेषता - रहीम मुसलमान होते हुए भी श्रीकृष्ण के भक्त थे। कृष्ण प्रेम इनके रोम रोम में समाया हुआ था। कृष्ण से मिलने के लिए वे प्रतिक्षण व्याकुल रहते थे। कृष्ण के प्रति इनका प्रेम चन्द्र -चकोर के समान था। आप लिखते हैं कि - 

जेहि 'रहीम' मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।
निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर॥

रहीम की भाषा शैली

रहीम का ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं पर संमान अधिकार था। किन्तु अधिकाँश पदों एवं ग्रंथों की रचना इन्होने ब्रज भाषा में ही की। ये हिंदी ,संस्कृत ,अरबी ,फ़ारसी भाषा के विद्वान थे। इन्होने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया। इनकी भाषा अत्यंत सरल ,सुबोध ,परिमार्जित तथा माधुर्य एवं प्रसाद गुण से युक्त हैं। आपकी शैली सरल ,सरस और सुबोध है। शैली वर्णनात्मक होने के साथ ही कवि ने सूक्तिपरक उपदेशात्मक शैली को भी अपनाया है। 
रस ,छंद तथा अलंकार - रहीम के काव्य में श्रृंगार ,शांत और हास्य रस का प्रयोग प्रचुर मात्रा में है। आपको श्रृंगार रस विशेष प्रिय था। श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्ष आपकी रचनाओं में विद्यमान हैं। आपकी रचनाओं में उपमा ,रूपक ,उत्प्रेक्षा और दृष्टान्त अलंकारों का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है। आपके अलंकार स्वाभाविक एवं विषय को स्पष्ट करने वाले हैं। रहीम के प्रिय छंद दोहा ,सोरठा ,बरवै ,कवित्त ,सवैया आदि हैं। 

रहीम का हिंदी साहित्य में स्थान

रहीम एक ऐसे मुसलमान कवि हुए जो धर्म से मुसलमान और संस्कृति से शुद्ध भारतीय थे। विभिन्न परिस्थितियों में इनके यथार्थ अनुभव प्राप्त हुए। भक्तिकाल का युग रहीम के बिना अधूरा है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में - "रहीम के दोहों में मार्मिकता है। उनके भीतर से एक अच्छा ह्रदय झाँक रहा है। आपके दोहे हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।" 

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