अवध नारायण सिंह हिंदी साहित्यकार जीवन परिचय

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उपन्यासकार व कथाकार अवध नारायण सिंह साठोत्तरी हिंदी कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर अवध नारायण सिंह की रचनाएँ एक बिंदु अनेक कोण आत्मीय खोलाबाड़ी दावेदार गद्

उपन्यासकार व कथाकार अवध नारायण सिंह 


हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कथाकार व उपन्यासकार अवध नारायण सिंह का जन्म सन १९३१ में वाराणसी ,चौरी के रबेली गाँव में हुआ था। आपके पिता स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण सिंह किसान थे। अवधनारायण सिंह का जीवन संघर्षों की लम्बी गाथा है। आपने दिगंबर जैन विद्यालय कोलकाता में वर्षों तक अध्यापन कार्य किया था। वर्ष १९९६ में सेवानिवृत्त होने के बाद आप अपने पैतृक गाँव आ गए और यही पर जीवन पर्यंत रहे।पिछले लगभग दो दशकों से वे अपने गाँव में ही रह रहे थे ।एक समय में देश की सभी प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ छपा करती थी ।आपने ९२ वर्ष की आयु में २२ जून २०२२ को अंतिम साँस ली। 

उपन्यासकार व कथाकार अवध नारायण सिंह

साठोत्तरी हिंदी कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर

हिंदी कहानी के विकास की दृष्टि से सातवाँ दशक अत्यंत महत्वपूर्ण है। भाव ,भाषा और शिल्प की दृष्टि से इस युग की कहानियों में पूर्व की परंपरा से नितांत भिन्नता रेखांकित की जा सकती है। अवधनारायण सिंह इस दशक के महत्वपूर्ण कहानीकार है। अवधनारायण सिंह की कहानियों का जगत निम्नमध्यम वर्गीय जीवन है। इस जीवन की यातना ,घुटन ,दैन्य ,अभाव को आपने पूरी ईमानदारी से देखा और परखा है। जीवन का यह अनुभव ,संबंधों का टूटना ,मानव के अन्दर अमानवीय संवेदना का बढ़ना ,मनुष्य का निरीह होना कहानीकार की दृष्टि से वर्तमान वर्ग विभाजित व्यवस्था की परिणिति है। थके -हारे ,पराजित से लगने वाले अवधनारायण सिंह की कहानियों के पात्र अपनी दृष्टि से विचार करने पर असामान्य प्रतीत होते हैं ,परन्तु उनकी यह असामान्यता सामान्य जीवन की मजबूरी का प्रमाणिक दस्तावेज़ है। अपने से लड़ने की मजबूरी में लड़ने की विवशता लिए सामाजिक समस्याओं से पलायन का ढोंग करते हुए भी ,अवधनारायण सिंह की कहानियों के पात्र व्यवस्था से भले जूझते हुए नहीं प्रतीत होते हैं ,परन्तु उनमें इतनी समझदारी है कि वे व्यवस्था के सही रूप को जानते हैं। संकल्पों का विकल्प बन जाना ,व्यक्ति की नहीं सामाजिक शक्तियों द्वारा निर्धारित नियति है। 

अनुभव और अनुभूति के धरातल पर अवधनारायण सिंह की कहानियों में किसी प्रकार की यांत्रिकता नहीं है। यौन कुंठा का नितांत अभाव कहानीकार का युग महत्व स्थापित करती है। कहानियों की भाषा में अजीब पैनापन है। सहज और सरल भाषा पात्रों के मनोवेगों की पूर्ण रूप से तार्किकता उपस्थित करती है। कहानियों में कथानक की सूक्ष्मता ,घटना विहीनता और केन्द्रीय चरित्र का वातावरण प्रधान हो जाना ,कहानी में जीवन के व्यापक रूप को मूर्त करता है। 

आपकी कहानियाँ केवल मनोरंजन के लिए नही है बल्कि समाज के निम्न वर्ग के लोगों को उठाने के लिए ,दुर्व्यवस्था और अन्याय को समाप्त करने के उद्देश्य से लिखी गयी है। निश्चित उद्देश्य होते हुए भी आपकी कहानियों में विषय वैविध्य है। इनके चरित्र सहज मानवीय संवेदना को जगाकर वर्तमान व्यवस्था के रूप को स्पष्ट कर देते हैं। व्यंग का पुट कथोपकथनों को प्रभावशाली बना देता है। 

अवध नारायण सिंह की रचनाएँ

आपने मुख्यतः गद्य में ही रचना की है। आपकी निम्नलिखित प्रसिद्ध रचनाएँ हैं - 

कहानी संग्रह - एक बिंदु अनेक कोण ,आत्मीय,कंठ करेजी,पारा,दावेदार आदि।चर्चित कहानी आत्मीय अनुवादित होकर यूनेस्को से प्रकाशित हुई है। प्रमुख भारतीय भाषाओं में आपकी कहानियों का अनुवाद हो चुका है। 

उपन्यास - धुंध में डूबे हुए लोग ,खोलाबाड़ी आदि प्रमुख उपन्यास है। 


विडियो के रूप में देखें - 




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