कुबेरनाथ राय का जीवन परिचय निबंध शैली व रचनाएँ

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कुबेरनाथ राय का जीवन परिचय


हिन्दी साहित्य को ललित निबंधों से समृद्ध करने वाले प्रमुख लेखक के रूप मे कुबेरनाथ राय जी का नाम लिया जाता है ।आप का जन्म 3 जनवरी 1935 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर मे हुआ था।आपकी शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय मे हुई । विद्यार्थी जीवन से ही आपकी रुचि लेखन कार्य मे रही है । माधुरी और विशाल भारत मे आपकी रचनाएँ निरंतर प्रकाशित होती रही है । शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उन्होने अध्यापन कार्य को चुना और नलबारी कॉलेज मे अँग्रेजी भाषा के प्रमुख के पद पर कार्य करने लगे । आपका निधन जून 1996 मे हुआ । 

कुबेरनाथ राय ने 1962 से निरंतर लिखना प्रारम्भ किया।ललित निबंध लेखक के रूप मे आपकी ख्याति फैली हुई है । प्राचीन भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन आपकी रचनाओं मे झलकता है । प्राचीन संस्कृति को आधुनिकता के आलोक मे देखने और परखने का कार्य आपने किया है । गहन चिंतन मनन तथा कला प्रेम से युक्त आपके निबंध सुंदर बन पड़े हैं । आपके निबंधों मे विषय की विविधता है । अर्थ गांभीर्य और व्यंजना की दृष्टि से भी आपके निबंध श्रेष्ठ हैं । आपके निबंधों मे एक विशेष प्रकार की आत्मीयता ,भावुकता एवं काव्यात्मकता रहती है । भारतीय संस्कृति से आगाध प्रेम भी आपकी रचनाओं मे झलकता है । 

कुबेरनाथ राय की निबंध शैली

कुबेरनाथ राय का नाम निबंध लेखन से अभिन्न रूप से जुड़ा है । नयी पीढ़ी के ऐसे बहुत कम हिन्दी लेखक हैं जिनके न केवल अपनी परंपरा को आत्मसात किया है बल्कि आधुनिकता की आवश्यकताओं को भी स्वीकारा है । समस्त युगीन चेतना को प्राचीन सांस्कृतिक परिवेश मे रखकर देखने का आपका प्रयास सरहनीय है । 

कुबेरनाथ राय की भाषा शैली

कुबेरनाथ राय का जीवन परिचय निबंध शैली व रचनाएँ
कुबेरनाथ राय जी की लेखन शैली अत्यंत लालित्यपूर्ण और रोचक है । उनकी भाषा विषयानुकूल है । माधुर्य और ओज का सम्मिश्रण ,उक्ति वैचित्र ,इतिहास पुराण के नूतन संदर्भ ,प्रतिकात्मकता और चित्रात्मकता उनकी भाषा शैली की निजी विशेषताएँ हैं । तत्सम शब्दों की प्रधानता होते हुए भी उनकी रचनाओं मे उर्दू फारसी ,अँग्रेजी ,देशज एवं तद्भव शब्दों का यथास्थान प्रयोग किया गया है । कुबेरनाथ राय जी ने पौराणिक आख्यानों पर निबंध लिखें हैं । छोटे - छोटे सरस वाक्यों के द्वारा वे अपनी बात कहते हैं और भाषा को जटिल अथवा बोझिल नहीं होने देते हैं । उनकी प्रवाहपूर्ण ,काव्यमयी भाषा का एक उदाहरण प्रस्तुत है - 

"संस्कृत कूप जल मात्र नहीं । उसकी भूमिका विस्तृत और विशाल है । वह भाषा नदी को जल से सनाथ करने वाला पावस मेघ है ,वह परम पद का तुहिन व्योम है ,वह हिमालय के हृदय का ग्लेशियर अर्थात हिमवाह है । जब हिमवाह लगता है तभी बहते नीर वाली नदी मे जीवन संचार होता है ।"

आप लेखन मे बोलचाल की भाषा के समर्थक हैं परंतु तभी तक जब तक कि वह विचारों को वहन करने मे सक्षम हो ,यथा - 
"मैं शत प्रतिशत मानता हूँ कि लेखन मे बोलचाल की भाषा का प्रयोग लेखन को स्वस्थ्य और सबल बनाता है । "


कुबेरनाथ राय की रचनाएँ

आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं - प्रिया नीलकंठी ,रस आखेटक ,गंधयादन ,निषाद बांसुरी ,विषाद योग ,माया बीज ,मन पवन की नौका और दृष्टि अभिसार । आपको अपनी रचनाओं पर अनेक राजकीय पुरस्कार भी प्रपट हो चुके हैं । प्रिय नीलकंठी निबंध संग्रह पर आपको आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार तथा गंध मादन और विषादयोग पर उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कार मिल चुके हैं । आपने हिन्दी मे ललित निबंध लेखन को नए आयाम दिये हैं । हिन्दी साहित्य उनका हमेशा आभारी रहेगा।

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