केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय

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केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय


केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय केदारनाथ सिंह की कविताएं केदारनाथ सिंह की भाषा शैली केदारनाथ सिंह की रचनाएं  kedarnath singh poems in hindi kedarnath singh in hindi kedarnath singh poems kedarnath singh ka jeevan parichay - नयी कविता के सशक्त हस्ताक्षर एवं हिन्दी के भावुक एवं सरस कवि केदार नाथ सिंह जी का जन्म सन 1934 मे चकिया ,जिला बलिया उत्तर प्रदेश मे हुआ था । साधारण कृषक परिवार मे जन्में केदार जी की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा गाँव मे खुले ,स्निग्ध वातवारण मे हुई । बी. ए की परीक्षा आपने उदय प्रताप कॉलेज से पास की और काशी विश्वविद्यालय से आपने एम. ए किया।'आधुनिक हिंदी कविता में बिम्ब विधान का विकास' विषय पर आपने शोध कार्य कर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।  आपने अध्यापन कार्य अपनाया और उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी ,सेंट एंडरस कॉलेज ,गोरखपुर ,उदित नारायण कॉलेज ,पडरौना तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया।  सन १९७६ में आपने दिल्ली में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य आरम्भ किया।  

केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय
विधिवत काव्य लेखन आपने १९५३ से प्रारम्भ किया। सन १९५४ में एलुअर की प्रसिद्ध कविता "स्वतंत्रता " का अनुवाद किया ,जिनके जरिये नयी सौन्दर्य दृष्टि और समकालीन काव्य चेतना से पहला परिचय हुआ।  कुछ समय तक बनारस से निकलने वाली पत्रिका ,"हमारी पीढ़ी ' से सम्बद्ध रहे। पहला कविता संग्रह सन १९६० में छपा जिसका शीर्षक था ,"अभी बिलकुल अभी। " इसके पश्चात जमींन पक रही है (१९८० ) तथा यहाँ से देखो (१९८३ ) में प्रकाशित हुए।  १९८९ में उनका काव्य संग्रह अकाल में सारस प्रकाशित हुआ।"कल्पना और छायावाद ' आपकी आलोचनात्मक पुस्तक है। आपकी चुनी हुई कविताओं का संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। 1989 में प्रमुख कृति ‘अकाल में सारस’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। 

आप पेशे से अध्यापक रहे थे परन्तु आपका कार्यक्षेत्र महानगर से लेकर ठेठ ग्रामांचल तक फैला है। सन १९८० में आपको केरल के कुमारन आशन कविता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष २०१३ में आपको साहित्य के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।  आपका देहांत १९ मार्च २०१८ में दिल्ली में हुआ। 
 
केदारनाथ जी कविता ,संगीत और अकेलेपन से प्यार करते हैं। एक व्यवाहरिक व्यक्ति के खुलेपन का अभाव संभवतः उनमें हैं इसीलिए मित्र कम बना पाए थे।  तीसरा सप्तक के सहयोगी कवि के रूप में केदारनाथ सिंह हिंदी जगत के सम्मुख आये।  तीसरा सप्तक में संग्रहित आपकी कविताओं में सहज ,भावुक ,सरस गीतकार के रूप में आप उभरे। लोक गीतों जैसी सहज भावुकता आपके तरल रोमानी गीतों में मिलती हैं।  बाद में चलकर आपने गीत लेखन प्रायः छोड़ दिया और आप मुक्त छंद में अधिक लिखने लगे।  आप के गीत अत्यंत मधुर है। फागुन का गीत की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य है - 

गीतों से भरे दिन फागुन के ये गाए जाने को जी करता ! 
अनगाए भी ये इतने मीठे
इन्हें गाएँ तो क्या गाएँ,
ये आते, ठहरते, चले जाते
इन्हें पाएँ तो क्या पाएँ

केदारनाथ सिंह की भाषा शैली

केदारनाथ सिंह जी की कविता में सरल ,बातचीत की भाषा में बात करने का प्रयास सर्वत्र दिखाई पड़ता है। भाषा बिम्बात्मक है। तुकांत गीत और मुक्त छंद की कवितायें आपने एक साथ लिखी है। परमानन्द श्रीवास्तव जी के अनुसार - हिंदी कविता के समकालीन परिदृश्य में केदारनाथ सिंह की कविता अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके पास अनुभवों का एक ठोस संसार है, जिसे उन्होंने अपने आसपास को गहरे डूबकर प्यार करते प्राप्त किया है। उनकी काव्य संवेदना का दायरा गाँव से शहर तक फैला है जिसमें आने वाली छोटी से छोटी चीज़ उनके उत्कृष्ट मानवीय लगाव से जीवंत हो उठती है। अपनी धरती और अपने लोगों की गहरी पहचान से निसृत उनकी कवितायें बेहद आत्मीय लगती है।  उनका भावबोध और रचनारूप पाठक को आतंकित नहीं करता बल्कि अपनी रागात्मक सौम्यता में सम्मोहित करता है।  शब्दों और भावनाओं को वे अपूर्व संतुलन के साथ पेश करते हैं।  विसंगतियों भरे इस दौर में उन्हें आदमियत की तालाश है और उनके होने पर गहरा भरोसा भी है। प्रकृति इसमें उनकी प्रेरक और सहायक है ,जिसमें समकालीन जीवन की जड़ता और पदार्थमयता उन पर हावी नहीं हो पाती है। यही कारण है कि उनकी कवितायें हम से बराबर सौन्दर्य और उल्लास की ओर चलते रहने का आग्रह करती है।  


केदारनाथ सिंह की रचनाएँ

आपकी प्रमुख रचनाओं की सूचि निम्नलिखित है - 

कविता संग्रह - अभी बिल्कुल अभी ,जमीन पक रही है,यहाँ से देखो,बाघ,अकाल में सारस ,सृष्टि पर पहरा .

आलोचना ग्रन्थ - कल्पना और छायावाद,आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान,मेरे समय के शब्द,मेरे साक्षात्कार .



विडियो के रूप में देखें - 




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