हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व

SHARE:

हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व Importance of Sravana Masam क्या है श्रावण मास का महत्व सावन में हे गोरी जल अम्बर से बरसे, मोर प्यासा मन तरसे, का

सवनवा में हो …. सवानवा में


हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व Importance of Sravana Masam क्या है श्रावण मास का महत्व - ज्येष्ठ-आषाढ़ मास के तप्त दिवस और उमस भरी रात्रि की बेचैनी के उपरांत श्रावण की शीतल फुहार से सम्पूर्ण धरा मिट्टी की सोंधी-सोंधी सुगंध से सुवासित हो उठी है । फिर यह सोंधी सुगंध पवन की गति को थामें सर्वत्र ही श्रावण के सुखद आगमन की सूचना देने के लिए चंचल बालक के सदृश चतुर्दिक भाग-दौड़ करने लगता है । एक ओर रिमझिम फुहारों के बीच मेघाच्छन मटमैले आकाश में एक छोर से दूसरे छोर तक तने सतरंगी रामधनुख (इंद्रघनुष) का मनोहर दर्शन होता है, तो दूसरी ओर धरती पर विविध सप्तरंगी मानवीय संस्कृतियों का अनोखा समायोजन दर्शन देने लगता है । धरती भी अपने प्रिय श्रावण के आगमन का संकेत पाकर हरीतिमा युक्त गर्वित परिधान धारण कर पवन-हिंडोले पर लहर-लहर कर पेंग मारने लगती है । जहाँ-तहाँ धवल रजत वर्णी गर्वित जलकुण्ड व जलधाराएँ तथा पवन-वेग से इतराते कदम्ब, गुलर, अनार आदि के फूल-फल धरती के हरित-पट पर विविध स्वरूपीय रंग-बिरंगे बूटों को आभासित करने लगते हैं । प्रफुल्लित श्रृंगारित धरती की प्रिय मिलन की आतुरता मोर, दादुर, कोयल, सुग्गा आदि की सम्मिलित सरगम में अभिव्यक्त होने लगती है । ऐसे में आसमान में उमड़ते घने कजरारे मेघ अपने मल्हार राग से और शीतल वायु पवन राग से सभी जीव-जन्तु व पादप-पुंज को हर्षित कर झुमाने लगते हैं । दिन काली अंधियारी रात्रि बन जाती है जिसमें रह-रह कर बिजली अपनी हर्षित चंचलता को क्षणिक तीव्र ज्योति से प्रदर्शित करने लगती है । अनंत के शोख कजरारे मेघ धरती के रजत तंतुओं से नव निर्मित हरित परिधान को अपने प्रभाव से श्यामल-मलिन और आर्द्र कर गर्व महसूस करते हैं । ऐसे में बेचारी रूपसी धरा को अपनी जग हंसाई की चिंता तो बढ़ ही जाती है । 

सावन में हे गोरी । 
जल अम्बर से बरसे, मोर प्यासा मन तरसे, काहे हे गोरी । 
भीगे बदन, तन लिपटे वसन, मन माने न लाख जतन गोरी ।
माने न बतिया, बेदर्दी मोर बालम, जग में होई हँसाई मोरी ।   

इन्द्रपुरी की रमणीयता से प्रतिपल प्रतिस्पर्धा करती श्रावणी वसुंधरा के लावण्य सौन्दर्य का आभास पाते ही सुरलोक निवासी अशरीर ‘मदन’ को भी अपने आप पर नियन्त्रण नहीं रह जाता है । फिर तो वह भी अति द्रुतगति से अपनी प्रियतमा ‘रति’ को साथ लिये धरती पर श्रावणी-रस को लेने के लिए आ धमकते हैं । शायद आगमन में विलम्बता का आभास उन्हें हो ही जाता है । अतः व्यर्थ में समय बिन गँवाए ‘मदन’ मधुमक्खियों के शहद की कोमल रसीली रज्जु से बंधित, मिठास से परिपूर्ण इक्षुः दण्ड से निर्मित अपने बंकिम धनुष पर अशोक के सुवासित श्वेत पुष्पों के साथ, नीलवर्णी पंकज, नवमल्लिका (चमेली) और रसाल पुष्पों से निर्मित काम-बाणों को चतुर्दिक त्वरित गति से छोड़ने लगते हैं । जिससे स्थूल से लेकर सुक्ष्मजीवी प्राणी का हृदय विदीर्ण होने लगता है । मदन के वे अदृश्य, परंतु तीव्र काम-बाण श्रावण की फुहार रस में डूबे कोमल, पर हृदय विदारक होने के कारण प्राणिमात्र पर आघात कर उनमें काम-तृष्णा जनित भयानक ज्वर उत्पन्न कर देते हैं, जिससे वे तड़प-तड़प कर अपने संगी-स्नेही के मधुर प्रेमपाश में बंधकर कुछ मानसिक और कुछ शारीरिक शीतलता को प्राप्त करना चाहते हैं ।

चाह है तेरी शीतलता को आज जी भर छूलूं,
चाह है प्रेम-भंवर में अपना सब कुछ भूलूं ।
हे सावन के बादल, बरस घनघोर तू इतना,
तेरी टिप-टिप बूंदों में, मैं सारी दुनिया को भूलूं ।

मदन के ऐसे तीखे काम-बाण से भला कौन बच सकता है ? हाँ स्मरण हो आया ! वह हैं कालजयी ‘महाकालेश्वर’। अपनी दिव्य शक्ति के गर्व में चूर सठ मदन ने एक बार आम्र वृक्ष की ओट लेकर समाधिस्थ महाकालेश्वर पर ही पुष्प-निर्मित अपने काम-बाण को चला दिया था, जो भोले शंकर के हृदय को स्पर्श कर गया, जिससे उनकी समाधि टूट गई । तब क्रोधातुर भोले शिव जी ने अपने त्रिनेत्र की कोमल अग्नि श्रृंखला से मदन को ही जला कर भस्म कर दिया था । यह तो उसकी पत्नी ‘रति’ की पतिव्रता उपासना का ही फल है कि मदन अशरीर रहते हुए भी सदैव प्रभावशाली रहने के वरदान को प्राप्त किया । ऐसे औघड़ दानी भोले शंकर का त्रिलोक विख्यात भक्त लंकेश ‘दशशीश’ ने स्तुति करते हुए कहा है - 

‘ललाटचत्वरज्वलद धनंजयस्फुलिंगभानिपीतपंचसायकं नमन्निलिम्प नायकं ।
 सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालि संपदे शिरो जटालमस्तु नः ।।’ – ‘शिवतांडवस्तोत्रम’ 

श्रावणी गर्वित पवन के हिंडोले पर सवार उसी अशरीर मदन के आभास को पा कर उसके सहायक पेड़ों की हरित शाखाएँ-प्रशाखाएँ एवं उसके कोमल पल्लव व पुष्प सब के सब प्रफुल्लित होकर नाचने और इठलाने लगते हैं । पर यह ‘श्रावण’ तो मदन के गर्व के विनाशक त्रिलोक के समस्त सकरात्मक ऊर्जाओं के स्वामी भोले ‘शिव जी’ का पवित्र माह है । अतः प्रातःकालीन शैशव सूर्य की अमल रक्त-स्वर्णिम आभा में स्नात सम्पूर्ण प्रकृति ही ‘हर हर महादेव’, ‘जय भोले नाथ’, ‘बोल बम’ ‘भोले बाबा पार करेगा’ आदि की ‘शंकरमय’ पावन धुनी से परिपूर्ण एक विशाल ‘शिवाला’ प्रतीत होती है । खेतों की हरीतिमा के मध्य कुछ नम और कीचड़युक्त पगडंडियों पर गेरुए वेशधारी अपने कंधों पर ‘काँवर’ लचकाते शिवभक्तों की टोली किसी छोटी मंथर सरिता सदृश आगे बढ़ती ही जाती है । फिर उनके पीछे बहुत देर तक उनके ‘काँवर’ की रुन-झुन-रुन-झुन की ध्वनि वातावारण में कर्णप्रिय संगीत को गूंजित करती रहती है । श्रावण मास में हमारा मन भी तो शिव का ‘शिवाला’ ही बन जाता है । 

‘मेरे प्रभु का स्वरूप है निराला, मेरे मन को भी तू बना दे शिवाला ।
हे भोले बाबा तू है औघड़ दानी, तू ही जग के रक्षक, और तू ही है हर्ता । 
तू ही तो है मेरे मालिक डमरूवाला ।।’

जहाँ-तहाँ जलकुण्डों में एकत्रित मटमैले जल कुछ स्थिर होकर स्वच्छता युक्त पारदर्शी स्वरूप को धारण करने लगते हैं । फिर उनमें थाल सदृश कमल के बड़े-बड़े हरित पत्रक भी उभर आते हैं, जिन पर पड़े जल बिन्दु मोती होने का भ्रम पैदा करने लगते हैं । देखते ही देखते ये जलकुण्ड अपने में हरिताभ, श्वेताभ, पीताभ, रक्ताभ मधुर शिशु पद्म-कलियों को धारण कर लेते हैं, जो कालांतर में शतदल के रूप में पूरे जलाशय में बिखर कर शांत जल में प्रफुल्लित तैरते प्रतीत होने लगते हैं ।  

हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व
ऐसे में ही कहीं दूर सावन की इस मधुर फुहार में भींगता कोई चन्द्रवंशी गोप किसी ऊँचे मेड़ पर खड़े होकर अपने पशुओं को चराते हुए अपनी बाँसुरी पर राग मल्हार छेड़ता हुआ, किसी प्रकृति-प्रेमी कवि की कल्पना प्रतीत होता है । कीचड़ युक्त मटमैले जलकुण्डों में छोटे-छोटे नंगे-अधनंगे बच्चें भागते-गिरते उसमें स्नात किसी सहृदय चितेरे के चित्रपट के चित्र नजर आते हैं । गाँव के ही छोटे-छोटे बाग़-बगीचों और अहातों में आम, कदम्ब, महुआ या पीपल की शाखाओं से लटकते अगिनत झूलों पर घर की नववधुओं सहित ननद-भौजाइयों के शरीर से चिपके उनके आर्द्र पीताभ व हरित वसन, हाथों में लालिमायुक्त मेहँदी और हरी चूड़ियाँ, कानों से लटकते झुमके, माथे से भव्य ललाट पर लटकते मांग-टीका और उनके गौर तथा श्यामल चहरे से सरक कर ढुलकते श्रावणी जल बूंद आदि उनके पारंपरिक श्रृंगार को और भी मनमोहक बनाते हैं । उन झूलों पर झूलती वाक् तथा आंगिक छेड़-छाड़ करती ग्रामीण बलाएँ और सुन्दरियाँ अपने सांसारिक संघर्षमय जीवन में भी हँसी-ख़ुशी के श्रावणी मधुररस को प्रकृति से जबरन छीन लेने का प्रयास करती हैं – 

‘ओ ननद मोरी, .... सुन, ओ ननद मोरी ।
लिखद पाती आपन भइया के नाम । 
इ सवनवा के बदरा बनल जी के जंजालवा,
रहि-रहि देहिया में बिरहा के अगनी जलावे ।  
ओ ननद मोरी, ....... सुन ननद मोरी। 
लिखद पाती आपन भइया के नाम ।’

नवविवाहिता पहला-पहल सावन की प्रेम-प्रहार को अपने मायके में ही अपने बचपन की सहेलियों के साथ ही झेलना श्रेयकर मानती हैं । एक तो मायके में ससुराल पक्ष की बंदिशों से पूर्णतः मुक्त परिंदों की तरह स्वछन्द रहना और दूसरा अपने वैवाहिक जीवन के कुछ रंगीन-हसीन पलों को तथा अपने जीवन में आगत कुछ विशेष परिवर्तनों को उन्मुक्त भाव से अपनी सहेलियों के साथ ही साझा करने का विशेष मौका जो उन्हें मिल जात है । अपनी सहेलियों द्वारा मधुर छेड़-छाड़ से उत्पन्न परम आनंद का अवसर प्राप्त हो जाता है । फिर तरह-तरह के खट्टे-मीठे फलों और पकवानों का भी उन्मुक्त आनंद उन्हें अपने मायके में प्राप्त होते हैं । सर्वत्र दुलार ही दुलार, कोई बंदिश नहीं । फिर भला किसका मन न चाहेगा मायके के लिए ? संध्या काल से ही देर रात तक गाँव-गाँव में कजरी के मधुर ढोल-थाप पर पुराने पेड़ों और कच्चे मकानों की धरानियों पर झुला लगा कर झूलती सुहागिन स्त्रियों की युगलबंदी के लयात्मक स्वर दूर से ही मन को आंदोलित करने के लिए पर्याप्त होते हैं – 

‘ई सवनवाँ में, हो .. ई सवनवाँ में, ....  
इ सावन मनभावन न भावे पियु बिनु, इ अंगनवा में, 
कइसे रहल जाई पियु बिनु ए ननदी, इ सवनवाँ में ।’ 

लेकिन जो बहन-बेटियाँ किसी करणवश अपने मायके न लौट पायीं, तो उनके मायके से श्रावणी तीज के अवसर पर पाहुर के रूप में ‘खुरमा-ठेकुवा’, ‘गाजा-खाजा’, ‘कोथली-घेवर’, गुलगुले-मट्ठियाँ आदि खाद्य व्यंजन रंगीन कपड़ों में लिपटे उनके ससुराल अवश्य ही पहुँच जाते हैं । फिर तो नवविवाहिता उन्हीं ‘पाहुर’ से अपने पति की लम्बी उम्र के लिए ‘मधुश्रावणी’ व्रत का भी पालन करती हैं । 

ऐसे में कभी बरसते कजरारे तथा कभी नील गगन में श्वेत बादलों की भागम-भाग के तले दूर तक खेतों में घुटने भर पानी में धान की रोपाई करती हुई ‘रोपनियों’ के कुछ पारम्परिक और कुछ वर्तमान की स्थिति को अपने में लपेटे सम्मिलित लयात्मक कर्णप्रिय गीत राह चलते पथिकों के पैरों को वहीं जकड़ लेने का प्रयास करते हैं । उन्हें उठने ही नहीं देते हैं –  

‘पीया हो, अबकी न जाइब नैहरवा, इ सवनवा में, 
संग करब हम रोपाई, खेतवा के धानवा, इ सवनवा में ।’

ऐसे पारम्परिक सामूहिक गीत सम्पूर्ण ग्रामीण श्रावणी परिवेश को सरगम के सुर-लय से आबद्ध कर कला-सांस्कृतिक के संगम से रचित इन्द्रधनुषी रंगीन मंचीय स्वरुप प्रदान करते हैं । 

पर वास्तव में ये तो सब श्रावणी पारम्परिक स्थितियाँ हैं । हलाकि मानवीय अप्राकृतिक क्रिया-कलापों का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव प्रकृति पर अब खूब दिखने लगा है, जिसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव जलवायु परिवर्तन के रूप में दिखाई दे रहा है । देखिए न, अभी श्रावण माह चल ही रहा है, पर देश के कई क्षेत्रों में लोग तथा पशु-पक्षी पानी-पानी के लिए तरस रहे हैं, जबकि कई क्षेत्रों में अतिवृष्टि के कारण जलप्लावन से लोग अस्त-व्यस्त हो रहे हैं । समस्त प्राणी ही अपने प्राणों के रक्षार्थ त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं । इन प्राकृतिक जानलेवा विपदा में ‘मदन’ के काम-बाणों से कितने लोग और कितने प्राणी विदीर्ण होते हैं ? प्राकृतिक परिवर्तन और विपदाओं ने ‘मदन’ के काम-बाणों को भी भोथरा दिया है ।

कृत्रिमता के आधार पर वर्ष भर लगभग एक-सा ही प्रतीत होने वाला शहरी परिवेश की तो बात ही छोड़ दीजिए । आज ग्रामीण परिवेश में भी अब कितनों के पास पशु-सम्पदा है, जिसे कोई गोप चराने के लिए दूर खेतों या ‘मधुवनों’ में ले जाएगा ? वह अब क्योंकर खेतों के ऊंचे मेढ पर बाँसुरी बजाएगा ? गोप बेचारे तो अब रोजी-रोटी की तलाश में मुम्बई, कोलकता, दिल्ली, सूरत आदि जैसे औद्योगिक शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं । फिर शहरों में वे ठिका-मजदूर बनते जा रहे हैं । पेट की ज्वाला के समक्ष श्रावणी मधुमास का भला क्या चल पायेगा ? रोपनियों के गीतों की जगह खेतों में अब काले विषैले धुँआ छोड़ते असुरी ट्रैक्टर शक्तियों की ‘ठक-ठक-ठक’ की आवाज ही मोर, दादुर, पपीहों के साज बन रहे हैं । सावन में भी गाँव के पेड़ों पर नववधुओं के झूलने के लिए अब कितने झूले लगते हैं ? उन पर झूलने वाली नववधुएँ भी तो ससुराल आते ही ‘मुँह दिखावन’ के बाद पिया संग शहर गमन कर रही हैं । ननद बेचारी जो ससुराल गईं  कि उन्हें नैहर बुलाने वाले भाई-भइया तो खुद ही प्रवासी बने हुए हैं और नई गृह-स्वामिनी की इच्छा से तथा अनावश्यक अतिरिक्त खर्च के डर से अपने मुख को मोड़े हुए हैं । फिर ननद-भौजाई के मध्य आत्मीयता भी कहाँ रह गई है ? अगर ननद बड़ी है, तो उसे अपने सांसारिक जीवन की स्वतंत्रता में बाधक मान कर उससे दूरी कायम रखना ही नितांत आवश्यक हो गया है । और अगर ननद छोटी है, तो फिर वह तो घर की नौकरानी ‘लौड़ी’ मात्र ही तो है । स्नेह और आत्मीयता तो बस किसी और को ही कहने-सुनाने मात्र की कथा रह गई है । बहनें – बेटियाँ तो उस स्नेह और आत्मीयता के लिए निरंतर तरसते ही रहते हैं - 

हे भउजी, हमर भईया से कहिह, हमर भईया से कहिह,
इ सवनवा में नइहरवा हमके बुलइहें, हे भउजी ।।

लेकिन कुछ रीति-रिवाज या परम्परा की ही बातें हो जाए, तो आज भी बचपन में लुक-छिप कर सुने स्त्रियों के वे सम्मिलित श्रावणी गीत कम से कम श्रावण माह में तो अवश्य ही मनस-पटल में स्मरण हो ही जाते हैं और कानों में गूँजने लगते हैं । मन-मयूर को उसी बचपन की अबोधता के वातावरण में जबरन खिंच ले जाते हैं । पर आज उसी को हम अपने बंद कमरे में टेलीविजन के सम्मुख या फिर स्नानघर में अपनी कमर तक गमछे को लपेटे पानी के फुहार के नीचे बैठ गुनगुना कर इस सावन मनभावन की उपस्थिति को आत्मसात् कर लेने का प्रयास मात्र ही कर पाते हैं -

‘इहे सवनवा में हो, इहे सवनवा में,
पहिला पहिल सुहागिन झुला लागल हे सखी, अबकी मोरे नैहरवा में,
ई नान्हें बरसा के बुन्दवा छेदेला मोर करेजवा हे सखी, इहे सवनवा में ।’ 

……………………………………………….




- श्रीराम पुकार शर्मा, अध्यापक, 
श्री जैन विद्यालय, (हावड़ा) 
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101, (पश्चिम बंगाल)
संपर्क सूत्र – 9062366788,
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1412,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,72,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,348,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,340,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,98,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,2,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,38,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व
हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व
हिन्दू धर्म में सावन माह का महत्व Importance of Sravana Masam क्या है श्रावण मास का महत्व सावन में हे गोरी जल अम्बर से बरसे, मोर प्यासा मन तरसे, का
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjam1YLKABbLX0zHuMvEPvWjKm9kSgqibUXJQ4BXEoifBh_SntQnXt0aIHE9ZZzjOPTj6IhfUvQpUfxItyielTYio2M9YzRPvXd3r0bE7IlqTvi4L5V6acmXpRz-uj-1-yehLi588upiyeuk_g1uiSSmRNY09RxCSblXoDetOu2cAcR4qTZdAwVl0JFJQ/s320/shiv-mahadev.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjam1YLKABbLX0zHuMvEPvWjKm9kSgqibUXJQ4BXEoifBh_SntQnXt0aIHE9ZZzjOPTj6IhfUvQpUfxItyielTYio2M9YzRPvXd3r0bE7IlqTvi4L5V6acmXpRz-uj-1-yehLi588upiyeuk_g1uiSSmRNY09RxCSblXoDetOu2cAcR4qTZdAwVl0JFJQ/s72-c/shiv-mahadev.jpeg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2022/07/hindu-dharma-sawan-maas-ka-mahatva.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2022/07/hindu-dharma-sawan-maas-ka-mahatva.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका