पर फूल लगे हजार | साहित्यिक निबंध

SHARE:

पर फूल लगे हजार हजारों की तादाद में बड़े-बड़े कटोरेनुमा लाल रक्तिम पुष्प जनित अतुल समृद्धि से आच्छादित सेमल वृक्ष साहित्यिक निबंध

पर फूल लगे हजार


सन्त पंचमी के अवसर पर ‘माँ वागेश्वरी’ की पूजा-अराधना के साथ उसी दिन से ‘वसंत ऋतु’ का भी चुपके से आगमन हो गया । अब तो यह वसंत सर्वत्र ही यौवन-ऐश्वर्य से मदमाते और इठलाते हुए शुष्क फगुनाहट पर सवार होकर रंगीन रंग-अबीर-गुलाल के साथ चारों तरफ भाग-दौड़ करने लगा है । संध्योपरांत वह गाँव के चौपालों में ढोल-मजीरों के ताल पर फागुनी गीत गाते लोगों के चहरे को रंगीन बनाने लगा है । इस प्रकार इधर वासंती रंगोत्सव की तैयारी हो रही है और उधर प्रकृति भी अपने बाग-बगीचों के अधिकांश नग्न पत्रहीन गाछ को पुनः मसृण पत्तों और छोटे-बड़े विविध रंगों के पुष्पों से सजा कर फाग रचने की तैयारी में लगी हुई है । उन्हीं के बीच में कहीं-कहीं शर्मीली नवेली दुल्हन-सी छिप कर बैठी कोयलिया की मृदु 'कुहुक' कानों में अमृत रस भी घोलने लगी है । 

प्रकृति हजारों वर्षों से अपने ही आधार पर अपनी होली मनाती आ रही है । नैसर्गिक का यह फागोत्सव फरवरी में जो प्रारम्भ हो जाता है, फिर वह अप्रैल-मई तक निर्वाध चलता ही रहता है । इन्हें देख कर लगता है कि लोग भी शायद होली जैसे रंगोत्सव की प्रेरणा इन मनमोहक और मादक प्रकृति स्वरूपों को ही देखकर ही ली है ।

विगत कई दिनों से देख रहा हूँ, कुछ ही दूरी पर हजारों की तादाद में बड़े-बड़े कटोरेनुमा लाल रक्तिम पुष्प जनित अतुल समृद्धि से आच्छादित वह वृक्ष अपनी शोखी बघारते बड़ा ही गर्वित नजर आ रहा है । जैसे कि नाला या छोटी नदी अत्यधिक बरसाती जलराशि को प्राप्त कर अपनी ख़ुशी को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं, और जग जाहिर करने के लिए बाढ़ की सृष्टि कर देते हैं । बाबा तुलसीदास को यह बात बिलकुल ही पसंद न थी । अरे भाई ! देव योग से सुख-समृद्धि पाए हो, तो शांत और सौम्य बने रहो । इतरा क्यों रहे हो ? 

छुद्र नदी भरि चलीं तोराई । जस थोरेहुँ धन खल इतराई ।।
भूमि परत भा ढाबर पानी । जनु जीवहि माया लपटानी ।।

पर आखिर में यह है कौन ? जो क्रमशः बढ़ती उष्णता में अपने एक भी पत्ते को न बचा पाया, पर प्रकृति योजना के
पर फूल लगे हजार
विपरीत यह बड़े-बड़े रक्तिम पुष्पों से शायद किसी से प्रतिस्पर्धा के लिए पूर्णतः उद्धत हो रहा है । देखने में तो लगता है कि प्राकृतिक उष्णता के प्रकोप से यह परे है, अन्यथा जहाँ जान पर ही आफत बन पड़ी हो, वहाँ यह साज-श्रृंगार का क्या प्रयोजन ?

हाँ भाई ! स्मरण हो आया । यह तो सेमल का स्थूल वृक्ष है । जाते-जाते शीत ने इसके बक्र टहनियों से समस्त पत्तों को एक-एक कर निचोड़ अपने साथ ले गया और इसे पर्णरहित कर दिया । तो क्या हुआ ? क्या यह पराजित हो गया ? 

नहीं, कदापि नहीं । पर इसका साहस तो देखिए । 
साहस और पुरूषार्थ की पहचान भी तो विपत्तियों में ही हुआ करती है । कालजयी वही होता है, जो दुर्दांत समय में भी हजारों कोमल पुष्पों को धारण कर मृत्यु पर अट्टहास करता हो । यह वृक्ष भी मकरंद से भरे हजारों कटोरेनुमा बड़े-बड़े रक्तिम पुष्पों को अपने ऊपर लाद अनगिनत गौरया, तोता, मैना, कौआ, तितर, बुलबुल आदि तरह-तरह के पक्षियों का सभा-स्थल बने, दूर से ही प्रकृति-प्रेमियों का ध्यान अपनी रंगीन अदा से खींच ही लेता है । मानो इन पक्षियों के कलरव के साथ अपनी खुशियों को उनके सुर में शामिल कर गा उठता है –  

"पत्ता नहीं एक, पर फूल हैं हज़ार,
क्या खूब छाई है, सेमल पर बहार ।"

पर इस सेमल के साथ रंगोत्सव होली का परस्पर गहरा संबंध भी है । एक तो अपने लाल रंग के फूलों से पूर्णतः आच्छादित रंगोत्सव का अभिनन्दन करता है और दूसरे में होली के पूर्व होलिका दहन हेतु जो डंडा गाड़ा जाता है, वह इसी सेमल वृक्ष का या फिर अरण्डी का ही होता है । ऐसा संभवत: इसलिए किया जाता है कि इसके डंठल पर जो काँटे होते हैं, उन्हें बुराई का प्रतीक मानकर ही उसे होलिका संग जला दिया जाता है । हाँ, स्मरण हो आया, सेमल के बड़े-बड़े आकर्षक कटोरेनुमा पुष्पों में कोई सुगन्ध नहीं होता है । तो फिर इसके बड़े-बड़े होने का क्या औचित्य ? बिना सुगंध के पुष्प और बिना महत्व के व्यक्ति को निर्गुणी संतों ने उपेक्षित ही माना है । कबीर ने तो साफ़ ही कहा भी है –

“ऐसा यह संसार है, जैसा समर फूल ।
दीन दश के व्यवहार में झूठे रंग न भूल ।”

इसके प्रारम्भिक तने पर मोटे तीक्ष्ण काँटे होते हैं, परन्तु वह आत्मरक्षा भर के लिए ही होते हैं, जो जानवरों से इसकी रक्षा करते हैं । लेकिन उम्र और ऊँचाई बढ़ने के साथ ही साथ इस पर काँटों की संख्या कम होते-होते बाद में बिल्कुल गायब ही हो जाया करते हैं । वैसे भी आत्मरक्षा हेतु अस्त्र-शस्त्र का संग्रह कोई अनुचित नहीं है, अनुचित तो तब कहलायेगा, जब उनका प्रयोग दूसरों को आतंकित करने के लिए किया जाय । बिन अस्त्र-शस्त्र के आप समाज में सुख-शांति की कामना भी तो नहीं कर सकते हैं । सेमल भी अपने इन तीक्ष्ण काँटों से किसी को आतंकित करने की कोशिश कदापि नहीं करता है । पर कोई आकर जबरन ही इससे रगड़ करने लगे, तो फिर यह बेचारा क्या करे ? आत्मरक्षा के लिए कुछ तो उपक्रम करना ही पड़ता है । भला किसको अपना प्राण प्रिय न होता है ? तब भला इसका क्या दोष ? महाबली हनुमान जी को भी तो अपना प्राण प्रिय रहा । तभी तो उन्होंने भी अशोक वाटिका में आत्म रक्षार्थ निशाचरों सहित रावण-तनय अक्षय कुमार का बध किया था -  

“सब कें देह परम प्रिय स्वामी । मारहिं मोहि कुमारग गामी ॥
जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे । तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे ।।”  

गज सुन्ढ़ सदृश तनायुक्त सेमर वृक्ष मूलतः उष्ण कटिबन्धीय पूर्णतः सामाजिक व व्यवसायिक महत्व का वृक्ष माना जाता है । जो जहाँ-तहाँ कुदरती रूप में स्वतः ही उग जाया करता है । बड़े-बड़े पाँच पंखुड़ियों से युक्त आकर में बड़े, गहरे लाल तथा आकर्षक होने के कारण बाजार में इसके फूलों की बड़ी माँग बनी रहती है ।
 
वसंत और उसके बाद के समय में इसकी पर्णरहित अवस्था को देख कर इसके भोजन (प्रकाश संश्लेष्ण) विहीन जीवन को लेकर कुछ चिंता उत्पन्न जाना स्वाभाविक ही है, पर आप तनिक भी न घबराने की आवश्यकता नहीं है । वनस्पति शास्त्रियों का मानना है कि यह वृक्ष अपने मोटे तनों तथा डंठलों में भविष्य के लिए भोज्य-पदार्थ को संग्रह करने की अद्भुत क्षमता रखता है, जिसे वह पर्णरहित अवस्था में भी सरलता से अपने जीवन को साध लेता है । कितनी अचरज की बात है, न ! यह तो मध्यकालीन संतों-भक्तों की टोली का लगता है, जो सामाजिक मान-अपमान से परे ही रहते थे । पर बाकी के समय में यह सेमल वृक्ष घने पत्तियों और सघन छाया का स्वामी है । 

अपने निरालेपन के कारण यह सेमल वृक्ष दुनिया के सुंदर वृक्षों में अपना एक विशेष स्थान रखता है । यह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्वी एशिया के ऑस्ट्रेलिया, हाँगकाँग, अफ्रीका और हवाई द्वीप में जहाँ-तहाँ कभी तो हरे पत्तों से परिपूर्ण और कभी लाल बड़े-बड़े पुष्पों से आच्छादित शानदार दिखाई देता है । हाँ, इसके प्रारम्भिक तीक्ष्ण काँटों और अत्यधिक ऊँचाई पर बिना सुगंध वाले पुष्प लगने के कारण इसे पुष्प वाटिकाओं में कोई विशेष उपयुक्त स्थान नहीं प्राप्त हो पाया है ।  

फिर कुछ ही दिनों के बाद इसकी मोटी-मोटी गज सुन्ढ़ टहनियों पर पहले हरे केले की आकृति के फल लगते हैं, जो कालांतर में सामान से भरे थैलियों के रूप को धारण कर लेते हैं । इसके फल पकने पर सुख कर स्वतः ही फट जाते हैं और उसमें से बीज सहित अत्यंत ही मुलायम और सफेद रेशे ‘रूई’ निकलती है, जो मुक्त गगन में हवा पर तैरती-इतराती दूर-दूर की सफ़र करती फिरती है । इसकी रूई बहुत मुलायम और आरामदायक होने के कारण इसका उपयोग तकियों में और शीत रोधक रजाइयों में ज्यादा होता है । शायद इसी को केंद्र कर इसे अंग्रेजी में 'कॉटन ट्री' भी कहा जाता है । जबकि संस्कृत साहित्य में इसे 'शाल्मली' और काँटों के कारण इसे ‘कंटक द्रुम’ भी खा जाता है । अन्य भारतीय भाषाओँ में इसे हिमला, सिमिलीकांट, मुल्लिलबु, बुरुगा, रक्तसिमुल आदि नामों से भी पुकारा जाता है । कुछ विशेष जन-जातियों के द्वारा इसके फूल और कच्चे फलों को सब्जी के रूप में भी उपयोग किया जाता है । जबकि सेमल वृक्ष के सर्वांग ही विविध कार्यों में उपयोगी होता है । इसकी पत्तियाँ पशुओं के चारे के रूप में, पुष्प कलिकाएँ सब्जी के रूप में , तने से औषधीय गोंद 'मोचरस' निकलता है, जिसे ‘कमरकस’ के रूप में जाना जाता है । इसकी लकड़ी नरम होने के कारण खिलौने बनाने तथा माचिस की तीलियाँ बनाने के काम आती हैं । इसके रेशमी रूई के बारे में तो आप सभी जानते ही हैं । इसके बीजों से तेल निकाला जाता है, जो खाद्य के रूप में तथा दर्द निवारक औषधि बनाने के रूप में उपयोग किया जाता है । इसके अतिरिक्त इसके फल, फूल, पत्तियाँ, छाल, जड़, बीज आदि से निर्मित औषधि का उपयोग रक्त प्रदर, रक्तपित,अतिसार, आग्नि-जलन, नपुंसकता, पेचिश, गिल्टी या ट्यूमर आदि रोगों को दूर करने में किया जाता है ।

इस प्रकार सेमल के वृक्ष को पत्रहीन हजारों फूलों का स्वामी कहने के साथ ही इसे ‘वृक्ष एक, पर उपयोग हजार’ भी खा जा सकता है ।



- श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101 (पश्चिम बंगाल)
सम्पर्क सूत्र - 9062366788
ई-मेल सम्पर्क सूत्र – rampukar17@gmail।com
8 मार्च, 22, 1495 शब्द   

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका