वसीयत कहानी भगवती चरण वर्मा

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वसीयत कहानी भगवती चरण वर्मा वसीयत कहानी का सारांश वसीयत कहानी की समीक्षा वसीयत कहानी की समस्या bhagwati charan verma ki kahani story vasiyat हिन्दी

वसीयत कहानी भगवती चरण वर्मा


सीयत कहानी भगवती चरण वर्मा वसीयत कहानी का सारांश वसीयत कहानी की समीक्षा वसीयत कहानी की समस्या bhagwati charan verma ki kahani story vasiyat written by Bhagwaticharan Verma हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठ कहानियाँ 

वसीयत कहानी का सारांश

वसीयत कहानी भगवतीचरण वर्मा जी द्वारा लिखी गयी है। आपकी कहानियों में आरम्भ से अंत तक रोचकता बनी रहती है। इनकी कहानियों का कथानक सामाजिक व पारिवारिक होता है। वसीयत कहानी भी एक सामाजिक एवं पारिवारिक वातावरण पर लिखी गयी कहानी है जिसमें चुटीले व मार्मिक रूप से संवादों का प्रस्तुतिकरण हुआ है। अंत तक पाठकों का कौतूहल बना रहता है। यह एक व्यंगपूर्ण कहानी हा। इसमें परिवार के लोगों का स्वार्थमय चरित्र दिखाया गया है।
वसीयत कहानी भगवती चरण वर्मा

वसीयत कहानी के प्रमुख पात्र चूड़ामणि जी अपने परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आदतों से सर्वथा परिचित थे। वह उन पर विश्वास नहीं करते थे। यहाँ तक कि अपनी पत्नी जसोदा देवी पर भी उन्हें विश्वास नहीं था। उन्हें वसीयत सौंपने या अपना उत्तराधिकारी बनाने के योग्य भी उन्होंने उसे नहीं समझा और अपने परम शिष्य जनार्दन जोशी को वह वसीयत सौंप देते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद वही उसे परिवारवालों के सामने पढ़कर सुनाये। आचार्य जी को लेखक ने व्यावाहारिक दिखाया है। वह वसीयत इसीलिए करना चाहते थे कि उनके बाद परिवारवालों के बीच कोई विवाद न हो। वह वसीयत का विभाजन न्यायपूर्ण तरीके से कर देना चाहते थे। 

इस कहानी में सभी पात्रों की कमजोरियों को दर्शाया गया है। व्यंगात्मक ढंग से उनकी कमियों को दर्शाने का प्रयास किया गया है साथ ही समाज की आधुनिक व्यवस्था पर भी करार व्यंग किया गया है। वसीयत में अपना नाम व कमजोरियों सुनकर सभी पात्र पहले तो क्रोधित होते हैं पर जब रुपये पैसे की बात आती है तो चुप हो जाते हैं और सभी वसीयत में लिखी कठोर शर्तों को मानने को तैयार हो जाते हैं। 

प्रस्तुत कहानी वसीयत पात्रों के चयन के आधार पर भी एकदम सही है। कोई भी पात्र कहानी में थोपा गया सा प्रतीत नहीं होता है। हमें अपने आसपास ही ऐसे कई चेहरे देखने को मिल जाते हैं। कहानी की भाषा सरल व सीधी है। लेखक ने पारिवारिक प्रसंग को बड़े चुटीले संवादों द्वारा रोचक बना दिया है तथा कहानी में मार्मिकता का पुट भी है। उपसर्ग ,प्रत्यय एवं तत्सम तद्भव शब्दों का प्रयोग भी खुलकर हुआ है। लेखक ने आम बोलचाल में आनेवाले मुहावरों का भी यत्र तत्र प्रयोग कर कहानी को सरस व रोचक बना दिया है। कहानी अंत में उत्सुकता बनाने रखने में सक्षम है तथा पाठकों को मंत्रबुध कर अंत तक बांधे रखती है। 


वसीयत भगवती चरण वर्मा कहानी का उद्देश्य 

भगवतीचरण वर्मा की कहानी वसीयत सामाजिक परिवेश तथा पारिवारिक संबंधों पर प्रकाश डालती हैं। जब परिवार के संबंधों के बीच में धन आ जाता है तो सम्बन्ध संवेदनशील न होकर स्वार्थमय हो जाते हैं। आदर ,त्याग ,आत्मीयता और स्नेह के भाव गायब हो जाते हैं। 
भगवतीचरण वर्मा
भगवतीचरण वर्मा

आचार्य चूड़ामणि सुखी ,संपन्न और बड़े परिवार के मालिक थे। उन्होंने बीमार होने पर वसीयत की तथा अपने शिष्य जनार्दन जोशी को बुलाकर वसीयत उसके हाथों सौंपकर प्राण त्याग दिए। आचार्य अपने परिवार वालों की आदतों और कमजोरियों से परिचित थे ,इसीलिए वसीयत में कठोर शर्तों का उल्लेख था। लेखक यहाँ यह बताने में समर्थ रहा है कि आज के भौतिकवादी युग में परिवार वालों की उत्सुकता वसीयत की शर्तें जानने व अधिकार पाने में थी न कि मरनेवाले का शौक मनाने में। यह मनुष्य की स्वार्थमयी प्रवृत्ति को दर्शाता है। रक्त के सम्बन्ध भी मरने वाले के साथ मर जाते हैं। 

आचार्य जी ने अपना अंतेष्टि सनातन धर्म के अनुसार करने की शर्त रखी। उसके दोनों बेटे शर्त के नियमों पर खरे तो नहीं उतरे पर उन्हें मन मारकर सामाजिक दिखावे के लिए अपने पिता के आदेश का पालन करना पड़ा। वसीयत का शेष भाग दाह संस्कार के बाद पढ़ा गया। दाह संस्कार करने वाले की पत्नी को छ महीने तक स्नान करके ग्यारह ब्राह्मणों का भोजन बनाने की शर्त थी। धन के लालच में वह अनिच्छा से शर्त मानने को तैयार हो जाती है। 

लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि जब परिवार वालों के नाम पढ़कर उनके चरित्र का वर्णन होता तो सब क्रोधित हो बूढ़े को कोसते और जब उन्हें धनराशी मिलने का उल्लेख होता तो उनकी प्रतिक्रिया बदल जाती। इस प्रकार लेखक ने आज के परिवेश में कुटुंब की स्वार्थपरक मानसिकता को रेखांकित किया है। मनुष्य स्वजनों की मृत्यु का दुःख तो भुला सकता है परन्तु उसके द्वारा छोड़ी संपत्ति खोने का नहीं। 


वसीयत कहानी शीर्षक की सार्थकता 

किसी भी कहानी के शीर्षक की सार्थकता के लिए यह आवश्यक है कि शीर्षक कहानी के मूल भाव ,विषय व उद्देश्य के अनुरूप हो। अपनी बात को पाठकों तक पहुचाने में समर्थ हो। शीर्षक पढ़कर पाठकों में एक उत्सुकता बनी रहे। वसीयत का अर्थ है अपनी जायदाद किसी के नाम करना। इस कहानी के प्रमुख पात्र आचार्य चूड़ामणि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के रीडर थे। उनके मित्र तथा शिष्य हैं - जनार्दन जोशी जो अंतिम समय में भी उनके साथ हैं। उन्ही के हाथ में वह वसीयत है जिसे वह परिवार के सदस्यों के सामने पढने वाले हैं। हर पात्र इस वसीयत के बारे में जानने को उत्सुक है। आचार्य जी ने बड़े विस्तार से परिवार के हर व्यक्ति के विषय में उसमें लिखा है। अतः प्रत्येक सदस्य अपने विषय में जानने को उत्सुक है। 

यह कहानी में वसीयत को लेकर हर पात्र में एक अजीब बेचैनी व उत्सुकता दिखाई देती है। पाठक भी अत्यंत उत्सुक होकर वसीयत में लिखी बात जानना चाहता है। अतः हम कह सकते हैं कि कहानी का शीर्षक सार्थक व रोचक है। शीर्षक के विषय में एक बात यह भी प्रमुख है कि वह संक्षिप्त है तथा रचना का मूल सन्देश पाठकों तक पहुँचाने में समर्थ है। 


आचार्य चूड़ामणि का चरित्र चित्रण 

वसीयत कहानी के प्रमुख पात्र आचार्य चूड़ामणि हैं जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनके मित्र व शिष्य जनार्दन जोशी ,जो उसी विश्वविद्यालय में लेक्चरर थे ,उनके विशेष कृपापात्र थे। वह उन पर विश्वास करते थे। चूड़ामणि जी के दो पुत्र लालमणि और नील मणि तथा तीन पुत्रियाँ सरस्वती ,सावित्री और सौदामिनी थी। तीनों पुत्रियाँ का विवाह बड़े घरानों में हुआ था तथा बेटे भी बड़े पदों पर कार्य करते थे। 

चूड़ामणि जी के अंतिम समय में जनार्दन जोशी ही उनके परम आत्मविश्वासी व सगे सम्बन्धी बने हुए हैं जिन्हें वह परिवार की वसीयत पढने का उत्तरदायित्व सौंपते हैं ,अन्य सदस्यों को वह संदेह की दृष्टि से देखते हैं। आचार्य जी एक स्वाभिमानी व्यक्ति हैं जो कभी किसी पर आश्रित नहीं रहे हैं ,उनके द्वारा किये गए वसीयत के विभाजन पर पहले तो कुछ सदस्य नाक भौं सिकोड़ते हैं पर अंत में प्रसन्नता से उसे स्वीकार करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य चूड़ामणि सुशिक्षित ,स्वाभिमानी ,न्यायप्रिय ,स्पष्टवादी तथा व्यावहारिक गुणों से परिपूर्ण हैं। वह गुणों व अवगुणों के पारखी हैं ,परिवार के प्रत्येक सदस्य की गतिविधियों को इतनी सूक्ष्मता और नजदीक से देखकर ही उन्होंने अपनी वसीयत का विभाजन किया। आज के पैसे के पीछे अंधी दौड़ को देखते हुए ,जहाँ मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं ,कोई भी उनकी मृत्यु पर शोक नहीं मना रहा है और हर सदस्य को अपने हिस्से के बारे में जानने की उत्सुकता है ,उन्होंने सूझ बूझ व दूरदर्शिता का ही काम किया है।आधुनिक पारिवारिक व्यवस्था पर करारा व्यंग करने वाली वसीयत कहानी के पात्र आचार्य चूड़ामणि जी का चरित्र अनुकरणीय है। 

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