मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध | Essay On My Favourite Poet Tulsidas In Hindi

SHARE:

मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध मेरे प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध hindi me nibandh tulsidas par hindi me essay tulsidas par

मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध


मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध मेरे प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध hindi me nibandh tulsidas par hindi me essay tulsidas par - हिंदी साहित्य अनेक श्रेष्ठ कवियों का भण्डार है। मुझे गोस्वामी तुलसीदास का जीवन और काव्य विशेष रूप से पसंद है। उनकी कविता को पढ़कर मुझे भरपूर रस और प्रेरणा मिलती है। 

महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय 

मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध | Essay On My Favourite Poet Tulsidas In Hindi
तुलसीदास का जन्म संवत १५५४ को बांदा जिले के राजपुर गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दूबे थे। इनका बचपन बहुत कष्टों में बीता था। उन्हें अनाथों की भाँती दर -दर भटकना पड़ा। गुरु नरहरी ने इन्हें राम मन्त्र की दीक्षा दी थी। संवत १५८३ में रत्नावली नामक सुंदरी से इनका विवाह हुआ। वे पत्नी पर बहुत आसक्त थे। एक दिन पत्नी की डपट खाकर वे रामभक्ति की ओर मुड़ चले। संवत १६८० को उनका देहांत हो गया। 

तुलसीदास का महत्व 

तुलसीदास का जीवन राममय था।  वे भगवान राम के परम भक्त थे। भक्ति भावना का जैसा सुन्दर रूप उनके काव्य में प्रकट हुआ है ,वैसा अन्य किसी कवि की कविता में नहीं हुआ। वे प्रभु राम के सामने स्वयं को लघु मानते हुए कहते हैं कि - 

राम सो बड़ो है कौन,मोसो कौन छोटो ! 
राम सो खरो है कौन,मोसो कौन खोटो ! 

समन्वयवादी 

तुलसीदास ने राम का चरित्र को उज्जवल बनाकर प्रस्तुत किया। वे श्रेष्ठ पुत्र ,योग्य पति ,अच्छे भाई और कुशल राजा हैं। वे शील ,शक्ति और सौन्दर्य के अवतार हैं। तुलसीदास उन्हें जगत के कण कण में फैला हुआ देखते हैं - 

सियाराम मय सब जग जानी।
करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी |।





तुलसीदास ने शिव भक्तों और विष्णु भक्तों के वैर भाव को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने भक्ति ,ज्ञान और कर्म के तालमेल पर बल दिया। वे लोकमंगल को महत्व देते थे। वे उसी कविता को श्रेष्ठ मानते थे जो जन कल्याण करे - 

कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥ 
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥

भाषा सौन्दर्य 

तुलसीदास की कविता रस का भण्डार है। उनकी चौपाइयों और दोहे तो जन जन के गले का हार बने हुए हैं। उन्हें गाकर आज भी गायक धन्य होते हैं। उनकी भाषा इतनी सरल ,सरस और मधुर है कि प्रत्येक श्रोता उसके आनंद में गोते लगाने लगता है। 

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका