तुलसीदास जी की काव्यगत विशेषताएँ तुलसीदास की काव्य भाषा तुलसीदास की भाषा शैली तुलसीदास के काव्य की विशेषता तुलसीदास का भावपक्ष और कलापक्ष भक्ति भावना
तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ
तुलसीदास की भक्ति भावना
तुलसीदास |
इनके काव्य का वर्ण विषय एकमात्र रामकथा है। गोस्वामी जी ने जो कुछ भी लिखा है - अन्तकरण की प्रेरणा से लिखा है। उन्होंने अपनी स्वांत: सुखाय रचना कवित्व प्रदर्शन अथवा उपदेश देने के उद्देश्य से कदापि नहीं रची है। फिर भी उनकी कविता में लोकहित की भावना इतनी प्रबल है है कि उनकी स्वांत: सुखाय रचना ,बहुजन हिताय हो गयी है। गोस्वामी जी आशावादी कवि हैं। उनका अडिग विश्वास है कि रावणत्व की पराकाष्ठ पर लोकरक्षक राम का आभिर्भाव अवश्यभावी है। यथा -
गोस्वामी तुलसीदास ने अपने काव्य में भक्ति के साथ शील आचार ,मर्यादा और लोक संग्रह का सन्देश सुनाकर हिन्दू जाति में अटूट दृढ़ता प्रदान की है। भावपक्ष और कलापक्ष का जैसा समनवय उनकी रचनाओं में हुआ है ,वैसा अन्यत दुर्लभ है। सारे भेदभावों से पृथक हो सियाराम मय सब जग जानी द्वारा इनकी उदार कल्पना में विश्व वन्धुत्व का अमर सन्देश छिपा हुआ है। उनके काव्य का यह स्वरुप लोक कल्याण की प्रेरणा का स्त्रोत है। रामचरितमानस उनका सर्वोत्तम महाकाव्य है। मानव जीवन की सारी समस्याओं का सूक्ष्म विवेचन गोस्वामी जी ने अपने इस महाकाव्य ग्रन्थ में किया है। वे एक ओर जहाँ सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादा की रक्षा करते हैं ,वहीं दूसरी ओर पारस्परिक मतभेदों को दूरकर उनमें समनव्य भी स्थापित करते हैं। रामचरितमानस के राम वन गमन ,भारत -मिलाप ,सीता हरण ,सीता का अशोक वाटिका में विलाप आदि अनेक मार्मिक स्थलों के चित्रण में गोस्वामी जी के काव्यगत भावपक्षीय गंभीरता की अभिव्यक्ति हुई है। गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं को देखने से उसमें दो प्रकार की विचारधाराएँ विशेष रूप से दिखलाई पड़ती है -
- लोकमंगल की भावना ,
- भक्ति भावना
तुलसीदास की समन्वय भावना
गोस्वामी तुलसीदास को लोकनायक ,सम्नावाय्कारी ,युग परिवर्तक एवं लोक मंगलकारी सभी कुछ कहा जा सकता है। वे सच्चे अर्थों में साहित्यकार थे। उनके काव्य में तत्कालीन परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण बड़ी ही निर्भीकता के साथ किया गया है। उनके काव्य में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में सामायिक विषम परिस्थितियों के निराकरण हेतु अनेक समन्वयवादी दृष्टिकोण को अपनाया गया। जैसे - धार्मिक समन्वय ,शैव और वैष्णव का समन्वय ,सगुनापसना ,ज्ञान -कर्म और भक्ति में समन्वय आदि। उक्त समन्वयवादी विचारों के अतिरिक्त गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य में निम्नलिखित लोक मंगलकारी भावनाओं का समावेश भी है -
- उच्च सामाजिक आदर्शों की स्थापना का प्रयास
- समाज के निराश और हतप्रभ व्यक्तियों को भक्ति की ओर उन्मुख करने का प्रयास।
- कर्तव्यनिष्ठा और मानवीय भावनाओं के उदय का प्रयास।
- भक्तिभावना के अनुपमेय उदारहण द्वारा समाज को प्रेरणा प्रदान करने का प्रयास। गोस्वामी तुलसीदास जी की भक्ति भावना सेवक सेव्य भाव की कोटि में आती है। राम इनके उपास्य हैं ,उनके प्रति इनकी दास्य भक्ति अत्यंत ही उच्चकोटि की है। भक्ति भावना का निखार इनके विनय पत्रिका नामक काव्य ग्रन्थ में हुआ है। इनकी भक्ति में समर्पण भावना का बाहुल्य है। गोस्वामी जी का दृढ़ विश्वास है कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं ,ईश्वर की इच्छा से ही कर रहे हैं। वे बराबर भगवान से प्रेम भक्ति और अनुराग की भीख मांगते हैं।
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