रैदास के पद Class 9 Hindi Sparsh

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Raidas Ke Pad in Hindi Class 9


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रैदास के पद के अर्थ class 9 व्याख्या


अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी | 
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी | 
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा | 
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती | 
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा | 
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा ||  

भावार्थ - 
प्रस्तुत पंक्तियाँ संत कवि 'रैदास' जी के द्वारा रचित कविता या पदों से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से अपने अाराध्य (ईश्वर) को संबोधित करते हुए कहते हैं कि प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लगी हुई है, वह कैसे छूटेगी ? जिस प्रकार चंदन पानी के संपर्क में आते ही पानी में अपनी सुगंध छोड़ देता है, ठीक उसी प्रकार मेरे तन-मन में आपके प्रेम रूपी सुगंध प्रवाहित हो रही है | कवि अपने आराध्य से कहते हैं कि बेशक आप आसमान में छाए काले बादल के समान हो और मैं वन में नाचने वाला मोर हूँ | जिस तरह बारिश के दिनों में घुमड़ते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाच उठता है, ठीक उसी तरह मैं आपके दर्शन को पाकर खुशी से फूला न समाता हूँ | जिस प्रकार चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रमा की ओर ताकता रहता है, ठीक उसी प्रकार मैं भी हमेशा आपका प्रेम और दर्शन पाने के लिए लालायित रहता हूँ | कवि अपने आराध्य (ईश्वर) को संबोधित करते हुए कहते हैं कि आप दीपक हो और मैं उसकी बाती, जो दिन-रात आपके प्रेम में जलता रहता है | आप मोती हो और मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ | हमारा मिलन मानो सोने पे सुहागा है | अंतिम पंक्ति में कवि रैदास अपने आराध्य से कहते हैं कि आप मेरे स्वामी हैं और मैं आपका दास मात्र हूँ | 

(2) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै | 
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै || 
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै | 
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै || 
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै | 
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ संत कवि 'रैदास' जी के द्वारा रचित कविता या पदों से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से अपने अाराध्य (ईश्वर) को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! एक मात्र आप ही हैं, जो दिन-दुखियों पर कृपा-दृष्टि रखने वाले हैं | आपके सिवा कौन यहाँ कृपालु है | कवि कहते हैं कि एक आप ही हैं, जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया | कवि कहते हैं कि आपकी दया से नामदेव, कबीर जैसे जुलाहे, त्रिलोचन जैसे सामान्य, सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए | उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई | अंतिम पंक्ति में कवि रैदास कहते हैं कि --- हे संतों, सुनो ! हरि जी सब कुछ करने में समर्थ व सक्षम हैं | 



रैदास का जीवन परिचय इन हिंदी


रैदास के पद Class 9 Hindi Sparsh
संत रविदास

कवि रैदास का मूल नाम संत रविदास था | परन्तु, इनको ख्याति 'रैदास' के नाम से हासिल हुई | ऐसी मान्यता है कि कवि रैदास का जन्म 1388 और निर्वाण 1518 में बनारस में ही हुआ | इनकी ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था | मध्ययुगीन साधकों में कवि रैदास का विशिष्ट स्थान है | मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का तनिक भी विश्वास नहीं था | वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म माना करते थे | 


संत कवि रैदास की रचनाओं में सरल और व्यवहारिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है, जिसमें, राजस्थानी, अवधि, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी शब्दों का भी मिश्रण है | उल्लेखनीय है कि कवि रैदास के 40 पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहिब' में भी सम्मिलित हैं...|| 




रैदास के पद के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए --- 

(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए | 

उत्तर- पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना निम्नलिखित चीज़ों से की गई हैं --- 

• भगवान की घन वन से, भक्त की मोर से
• भगवान की चंद्र से, भक्त की चकोर से
• भगवान की दीपक से, भक्त की बाती से
• भगवान की मोती से, भक्त की धागे से
• भगवान की सुहागे से, भक्त की सोने से
• भगवान की चंदन से, भक्त की पानी से

(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे -- पानी, समानी आदि | इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए | 

उत्तर- शब्द छाँटकर लिखा - 

• बाती, राती
• धागा, सुहागा
• मोरा, चकोरा
• दासा, रैदासा 

(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं | ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए --- 

उदाहरण : दीपक            बाती
           .............  ................
           .............  ................
           .............  ................
           .............  ................

उत्तर- शब्दों को छाँटकर - 

• मोती            धागा
• घन बन          मोर
• सुहागा          सोना
• चंदन            पानी
• दासा            स्वामी

(घ) दूसरे पद में कवि ने 'गरीब निवाजु' किसे कहा है ? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कवि ने भगवान को 'गरीब निवाजु' कहा है | क्योंकि ईश्वर ही गरीबों या दीन-हिनों का उद्धार करते हैं | सबके कष्ट हरते हैं | 'गरीब निवाजु' का अर्थ है, गरीबों पर दया करने वाला | 

(ङ) दूसरे पद की 'जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति 'जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै' से आशय यह है कि गरीब और निम्नवर्ग के लोगों को समाज सम्मानित नज़रों से नहीं देखता | उनसे दूरियाँ बनाकर रखता है | लेकिन ईश्वर में कोई भेदभाव नहीं होता | वह उन पर दया करते हैं, उनकी मद्द करते हैं तथा उनकी पीड़ा को हर लेते हैं | 

(च) 'रैदास' ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाज़, गुसईया, प्रभु आदि नामों से पुकारा है | 

(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए --- 

मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसइआ

उत्तर- 
शब्दों के प्रचलित रूप

• मोरा - मोर
• चंद - चन्द्रमा
• बाती - बत्ती
• बरै - जले
• राती - रात
• छत्रु - छत्र
• धरै - रखे
• छोति - छुआछूत
• तुहीं - तुम्हीं
• राती - रात
• गुसइआ - गौसाई

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रैदास के पद पाठ से संबंधित शब्दार्थ 



• छोति – छुआछूत 
• जगत कौ लागै – संसार के लोगों को लगती है 
• हरिजीऊ – हरि जी से 
• नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत 
• तिलोचनु – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे।
• सधना – एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं। 
• सैनु – रामानंद का समकालीन संत।
• हरिजीउ - हरि जी से 
• सभै सरै - सबकुछ संभव हो जाता है
• बास – गंध
• घन – बादल 
• चितवत – देखना 
• चकोर – तीतर की जाति का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है।
• बरै – बढ़ाना या जलना 
• सुहागा – सोने को शुद्ध करने के लिए प्रयोग में आने वाला क्षार द्रव्य 
• लाल – स्वामी 
• ग़रीब निवाजु – दीन-दुखियों पर दया करने वाला 
• माथै छत्रु धरै – मस्तक पर स्वामी होने का मुकुट धारन करता है  | 


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