धूल पाठ रामविलास शर्मा dhool class 9 ncert solutions

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धूल पाठ रामविलास शर्मा


धूल पाठ dhool class 9 धूल पाठ के लेखक कौन हैं धूल पाठ के प्रश्न उत्तर धूल पाठ का सारांश धूल पाठ के लेखक धूल पाठ की व्याख्या धूल पाठ का सार धूल पाठ के लेखक का नाम है  धूल पाठ में किस पर व्यंग्य किया गया है Class 9 Hindi Dhool Explanation dhool कक्षा नौ पाठ धूल class 9 hindi Class IX Hindi lesson Class 9 Hindi Book NCERT Class 9 Basant Book CLASS 9 CBSE SPARSH HINDI DHOOL  ramvilas sharma Ram Vilas Sharma ncert cbse sparsh dhool class 9 hindi explanation dhool class 9 ncert solutions dhool class 9 hindi question answer dhool class 9 important questions कक्षा नौ पाठ धूल Ram Vilas Sharma Class 9 Hindi Book CBSE Class 9 Hindi Class 9 Hindi Dhool Explanation 


धूल पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ धूल लेखक रामविलास शर्मा जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ में लेखक ने धूल की महिमा और महात्म्य, उपयोगिता और उपलब्धता का बखान करते हुए देशज शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों और दूसरे रचनाकारों की रचनाओं के उद्धरणों से ली गई सूक्तियों तथा पंक्तियों का बख़ूबी इस्तेमाल किया है | वास्तव में लेखक अपने किशोरावस्था और युवावस्था में पहलवानी के शौकीन थे, जिस कारण से रामविलास शर्मा जी अपने इस पाठ के माध्यम से पाठकों को अखाड़ों, गाँवों और शहरों के जीवन-जगत की भी सैर कराते हैं | इसके साथ ही लेखक धूल के नन्हें कणों के वर्णन से देश प्रेम तक का भाव पाठकों के हृदय में सृजित करने में सफल हो जाते हैं | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने धूल-धूसरित शिशुओं को धूल भरे हीरे कहकर संबोधित किया है | इसी संदर्भ में एक काव्य पंक्ति का उल्लेख करते हुए लेखक कहते हैं कि --- 'जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाए |' लेखक के अनुसार, धूल के बिना शिशुओं की कल्पना नहीं की जा सकती है | हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से बचना चाहती है | वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है | 

रामविलास शर्मा
रामविलास शर्मा

आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि जो बचपन में धूल से खेला है , वह जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से वंचित नहीं रह सकता है | यदि रहता भी है तो उसका दुर्भाग्य है और क्या ! 
आगे लेखक कहते हैं कि शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता पर बहुत कुछ कहा जा सकता है, परन्तु यह भी ध्यान देने की बात है कि जितने सारतत्व जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वे सब मिट्टी से ही मिलते हैं | लेखक कहते हैं कि माना कि मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में | मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक का स्पष्ट मत है कि ग्राम भाषाएँ अपने सूक्ष्म बोध से धूल की जगह गर्द का प्रयोग कभी नहीं करतीं | ग्राम भाषाओं में हमने गोधूलि शब्द को अमर कर दिया है | लेखक रामविलास शर्मा जी कहते हैं कि गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम नहीं तोड़ दी, लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी संपत्ति है , जो शहरों के बाटे नहीं पड़ी | धूल, धूलि, धूली, धूरि आदि की व्यंजनाएँ अलग-अलग हैं | धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य, धूलि उसकी कविता है | धूली छायावादी दर्शन है, जिसकी वास्तविकता संदिग्ध है और धूरि लोक-संस्कृति का नवीन जागरण है | इन सबका रंग एक ही है, रूप में भिन्नता जो भी हो | लेखक कहते हैं कि मिट्टी काली, पीली, लाल तरह-तरह की होती है, लेकिन धूल कहते ही शरत् के धुले-उजले बादलों का स्मरण हो आता है | धूल के लिए श्वेत नाम का विशेषण अनावश्यक है, वह उसका सहज रंग है | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, आगे लेखक कहते हैं कि हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे | लेखक कहते हैं कि ये धूल रूपी हीरे अमर हैं और एकदिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे | लेखक 'रामविलास शर्मा' जी को पूर्ण विश्वास है कि इस पाठ को पढ़ने के पश्चात् पाठक 'धूल' को यूँ ही धूल में न उड़ा सकेगा...|| 


रामविलास शर्मा का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक रामविलास शर्मा जी हैं | इनका जन्म सन् 1912 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था | इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हासिल की तथा उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए | तत्पश्चात्, इन्होंने वहाँ से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया और बाद में वहीं पर विश्वविधालय के अंग्रेज़ी विभाग में प्राध्यापक हो गए | प्राध्यापन काल के दौरान ही इन्होंने पीएच डी की डिग्री प्राप्त की | इनकी साहित्यिक सफ़र की बात करें तो इन्होंने शुरुआत में लेखन के क्षेत्र में कविताएँ लिखकर एक उपन्यास और नाटक की रचना किए | तत्पश्चात्, पूर्ण रूप से आलोचना कार्य में जुट गए | 

लेखक की प्रमुख कृतियाँ हैं --- महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, भारतेंदु और उनका युग, प्रेमचंद और उनका युग , भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी (तीन खंड), निराला की साहित्य साधना , भारत में अंग्रेज़ी राज्य और मार्क्सवाद, भाषा और समाज , इतिहास दर्शन , भारतीय संस्कॄति और हिंदी प्रदेश, गाँधी, अंबेडकर , लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएँ , बुद्ध वैराग्य और प्रारंभिक कविताएँ , सदियों के सोए जाग उठे(कविता), पाप के पुजारी (नाटक), चार दिन (उपन्यास) और अपनी धरती अपने लोग (आत्मकथा) | 

लेखक के पुरस्कार के रूप में अर्जित उपलब्धियाँ --- साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान , शलाका सम्मान आदि | इन्होंने पुरस्कारस्वरूप मिली राशि साक्षरता प्रसार हेतु दान कर दी...|| 




धूल पाठ के प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते हैं ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, हीरे के प्रेमी उसे साफ-सुथरा और आँखों में चमक पैदा करता हुआ देखना पसंद करते हैं | 

प्रश्न-2 लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने संसार में अखाड़े की मिट्टी में लेटने, मलने के सुख को दुर्लभ माना है | 

प्रश्न-3 मिट्टी की आभा क्या है ? उसकी पहचान किससे होती है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, मिटटी की आभा धूल है और उसकी पहचान भी धूल से ही होती है | 

प्रश्न-4 धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती ? 

उत्तर- लेखक के अनुसार, धूल का जीवन में अत्यधिक महत्व है | शिशु अपने खेल का वास्तविक आनंद धूल-धूसरित होकर ही उठाता है | वह धूल में ही सनकर विविध खेल खेलता है | धूल जब उसके मुख पर पड़ती है तो उसकी स्वाभाविक सुंदरता में निखार आ जाती है | इसलिए धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती | 

प्रश्न-5 हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है | 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, हमारी सभ्यता धूल से इसलिए बचना चाहती है, क्योंकि वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है | हमारी सभ्यता धूल को अपनी सुंदरता के लिए सही नहीं मानती है | उन्हें धूल से बचने के लिए ऊँचे-ऊँचे इमारतों में रहना पसंद है | 

प्रश्न-6 अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है ? 

उत्तर- लेखक के अनुसार, अखाड़े की मिट्टी सामान्य मिट्टी से बिल्कुल भिन्न होती है | इसे तेल और मट्ठे से सिझाकर देवता पर चढ़ाया जाता है | इस प्रकिया के पीछे यह भाव निहित है कि पहलवानों को अखाड़े की मिट्टी ही विश्वविजेता बनाती है | 

प्रश्न-7 इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि नगरीय सभ्यता का रूझान कृत्रिमता पर अत्यधिक है | वे धूल-धूसरित जीवन से बिल्कुल परे रहना चाहते हैं | उन्हें धूल की वास्तविकता के स्थान पर काँच के हीरे अच्छे लगते हैं | 

प्रश्न-8 लेखक 'बालकृष्ण' के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक 'बालकृष्ण' के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ इसलिए मानते हैं, क्योंकि वह उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है, कृत्रिम प्रसाधन भी वह सुंदरता देने में सक्षम नहीं है | लेखक के अनुसार, धूल से 'बालकृष्ण' के मुँह पर छाई गोधूलि उनकी शारीरिक आभा में चार चाँद लगा देती है | 

प्रश्न-9 लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने धूल और मिट्टी में अंतर बताते हुए कहते हैं कि धूल और मिट्टी में उतना ही अंतर है, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में | मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है | 

प्रश्न-10 ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के विभिन्न सुंदर चित्रों को प्रस्तुत करती है | लेखक कहते हैं कि शिशु के मुख पर धूल फूल की पंखुड़ियों के समान सुंदर व आकर्षक लगती है | प्रकृति शाम के वक़्त गोधूलि के उड़ने की सुंदरता का चित्र ग्रामीण परिवेश में प्रस्तुत करती है जोकि शहरों के हिस्से नहीं पड़ती | बल्कि शहर तो धूल की वास्तविकता और सादापन से अनभिज्ञ है | 

प्रश्न-11 "हीरा वही घन चोट न टूटे" --- का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, "हीरा वही घन चोट न टूटे" --- इससे आशय है कि असली मानो में हीरा वही है, जो हथोड़े की हजार चोटों से भी न टूटे | इसी प्रकार गाँव के लोग भी साधारण होते हुए भी हीरे के समान मजबूत, सुंदर, चमकदार और आकर्षक होते हैं | वे हर मुश्किल परिस्थितियों का सामना करने का दमखम रखते हैं | 

प्रश्न-12 धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं के अंतर्गत धूल यथार्थवादी गद्य है तो धूलि उसकी कविता | वहीं धूली छायावादी दर्शन का रूप है और धूरि लोक-संस्कृति का नवीन जागरण का परिचायक है | गोधूलि गायों एवं ग्वालों के पैरों से सायंकाल में उड़ने वाली धूलि है, जो गाँव के जीवन की अपनी संपत्ति कहलाती है | 

प्रश्न-13 "धूल" पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, "धूल" पाठ का मूल भाव यह है कि धूल से ही हमारा शरीर बना है | लेखक का मानना है कि वर्तमान नगरीय जीवन इससे दूर रहना चाहता है, जबकि ग्रामीण सभ्यता का वास्तविक सौंदर्य  "धूल" ही है | गाँव के लोग धूल-धूसरित जीवन का आनंद उठाते हैं | 

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निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए --- 

प्रश्न-14 फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है | 

उत्तर- 
प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक 'रामविलास शर्मा' जी के द्वारा 'धूल' शीर्षक से लिखित पाठ से ली गई हैं | इन पंक्तियों से तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार फूल के ऊपर धूल आ जाने से वह उसकी श्रृंगार बन जाती है, ठीक उसी प्रकार शिशु के मुख पर धूल उसकी ख़ूबसूरती को और भी निखार देती है | 

प्रश्न-15 'धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की' ---  लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है ? 

उत्तर- 
'धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की' ---  लेखक इन पंक्तियों द्वारा यह कहना चाहते हैं कि वह नर धन्यवाद के पात्र हैं, जो धूरि भरे शिशुओं को गोद में उठाकर गले या अपने सीने से लगा लेते हैं | लेखक धूल को मैला नहीं मानते, इसलिए उन्हें 'मैले' शब्द में हीनता का बोध होता है | लेखक को 'ऐसे लरिकान' में भेदबुद्धी नज़र आती है | वे उस नर को अच्छा मानते हैं, जो बच्चों के साथ अपना शरीर भी धूल के हवाले कर देते हैं | 

प्रश्न-16 हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे | 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, 'हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे...' --- लेखक का इस वाक्य से तात्पर्य यह है कि वे शहर के लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि वे धूल को तुच्छ समझते हैं | लेखक चाहते हैं कि शहरी लोग देश की धूल को भले ही माथे से न लगाए, परन्तु उसकी वास्तविकता और महत्व को जाने | क्योंकि धूल मातृभूमि के प्रतीक के रूप में है, जिसे वीर योद्धा अपने माथे से लगाकर धूल के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं | किसान धूल में ही सन कर खेत-खलिहान के कामों का अंजाम देता है | 

प्रश्न-17 वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा | 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ' वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा...' --- लेखक इस वाक्य के माध्यम से काँच की तुलना नगरीय सभ्यता से तथा हीरे की तुलना ग्रामीण सभ्यता व संस्कृति से की है | कांच जरा सा ठोकर से टूट जाया करता है और बिखर कर दूसरों को भी जख़्मी करता है | जबकि हीरा बहुत मज़बूत होता है | हीरा हथौड़े की ठोकर से भी से भी नहीं टूटता | हीरा काँच को काटने की क्षमता रखता है | ठीक उसी तरह गाँव के लोग, हीरे की तरह मजबूत, सुदृढ़ और चमकदार होते हैं | वे उलटकर चोट भी कर सकते हैं | 

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भाषा अध्ययन 
प्रश्न-18 निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए --- 

उदाहरण: विज्ञपित --- वि (उपसर्ग) ज्ञापित

संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्द्वंद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन | 

उत्तर- 
शब्दों के उपसर्ग

• संसर्ग --- सम (उपसर्ग) सर्ग
• उपमान --- उप (उपसर्ग) मान
• संस्कृति --- सम् (उपसर्ग) स्कृति
• दुर्लभ --- दुर् (उपसर्ग) लभ
• निर्द्वंद --- निर् (उपसर्ग) द्वंद्व
• प्रवास --- प्र (उपसर्ग) वास
• दुर्भाग्य --- दुर् (उपसर्ग) भाग्य
• अभिजात --- अभि (उपसर्ग) जात
• संचालन --- सम् (उपसर्ग) चालन  | 

प्रश्न-19 लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं | धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए | 

उत्तर- वाक्यों में प्रयोग - 

• धूल-धुसरित --- बच्चा पूरा धूल-धुसरित होकर आया है | 

• धूल उड़ाना ---  उसने वर्षों की मेहनत धूल में उड़ा  दी | 

• धूल चटाना --- उसने अखाड़े में दुश्मन की धूल चटा दी | 

• धूल फाँकना --- बेरोजगार युवा दिनभर नौकरी की  तलाश में धूल फाँकते रहते हैं | 

• आँखों में धूल झोंकना --- वह हर बार आँखों में धूल झोंककर भाग  जाता है | 

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धूल पाठ का शब्दार्थ 


• नौबत - हालत
• असारता - सार रहित
• विडंबना - विसंगति
• बाटे - हिस्से
• असूया - ईर्ष्या
• खरादा हुआ - सुडौल और चिकना बनाया हुआ
• रेणु - धूल
• पार्थिवता - पृथ्वी से संबंधित
• अभिजात - कुलीन
• संसर्ग - संपर्क
• कनिया - गोद
• लरिकान - बच्चे  
• प्रवास - प्रदेश वास 
• संदिग्ध - जिसमें संदेह हो 
• कांति - चमक  |

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