मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती

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मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती


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मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ या आत्मकथा मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय लेखक धर्मवीर भारती जी के द्वारा लिखित है | वास्तव में देखा जाए तो यह पाठ लेखक धर्मवीर भारती जी की आत्मकथा है | इस पाठ के अनुसार, वर्ष 1989 में लेखक को लगातार तीन हार्ट-अटैक का सामना करना पड़ा था |सम्भवतः उनकी साँसें, नब्ज़, धड़कन आदि की सक्रियता समाप्त हो चुकी थी | लगभग सभी डॉक्टरों ने तो उन्हें मृत मान लिया था | लेकिन उन्हीं डॉक्टरों में एक 'डॉक्टर बोर्जेस' थे, जिसने अब तक अपनी हिम्मत नहीं हारी थी | डॉक्टर बोर्जेस ने लेखक के मृत पड़ चुके शरीर को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक दिए, जिसके कारण उनका प्राण तो वापस लौट गया, लेकिन लेखक के हार्ट का लगभग साठ प्रतिशत भाग ख़राब हो चुका था | केवल चालिस प्रतिशत भाग ही कुछ ठीक बचे थे | वो भी लेखक के हार्ट में तीन रुकावटें या खराबियाँ उत्पन्न हो गई थीं | तत्पश्चात्, यह तय किया गया कि लेखक का ऑपरेशन बाद में किया जाएगा | 

आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक को घर लाया गया | यूँ समझ लीजिए कि लेखक के शरीर में सिर्फ जान बाकी थी, वरना उनका चलना, बोलना, पढ़ना आदि सब कुछ बन्द हो गया था | लेखक के कहने पर उन्हें उनकी किताबों वाले कमरे में लिटा दिया गया | लेखक को अपने सामने रखीं किताबें देखकर ऐसा आभास होता था, मानो उनकी जान किताबों में ही बसती हो | वास्तव में देखा जाए तो वे सारे किताब लेखक के लिए पिछले चालीस से पचास वर्षों की जमा-पूँजी थीं | अब तो उन किताबों के संग्रह से लेखक के कमरे में एक पुस्तकालय का अस्तित्व बन चुका था | आगे प्रस्तुत पाठ या आत्मकथा के अनुसार, एक समय लेखक के पिता आर्यसमाज रानी मंडी के प्रधान हुआ करते थे और माँ ने स्त्रियों की शिक्षा के लिए 'आदर्श कन्या पाठशाला' की स्थापना की थी | लेखक के जन्म से पहले ही लेखक के पिताजी ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी | नियमित रूप से लेखक के घर में पत्र-पत्रिकाएँ आती थीं | जैसे --- 'वेदोदम', 'सरस्वती' , 'आर्यमित्र साप्ताहिक' , 'गृहिणी' | लेखक के लिए विशेष रूप से 'चमचम' और 'बालसखा' दो बाल पत्रिकाएँ भी घर में आती थीं, जिन पत्रिकाओं को पढ़ना लेखक को बेहद अच्छा लगता था | लेखक को 'सत्यार्थ प्रकाश' भी पढ़ना बहुत पसंद आता था | वे बाल पत्रिकाओं के साथ-साथ 'आर्यमित्र' और 'सरस्वती' भी पढ़ते रहते थे | वास्तव में, लेखक अपने स्कूल या पाठ्यक्रम की किताबों से ज़्यादा यही सब पत्रिकाओं और किताबों को पढ़ा करते थे | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक के पिताजी नहीं चाहते थे की लेखक पर बुरी संगति का प्रभाव पड़े | परिणामतः
मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती

शुरूआती चरण में लेखक को स्कूल नहीं भेजा गया तथा लेखक की शुरूआती पढ़ाई के लिए घर पर ही मास्टर रखा गया | जब लेखक तीसरी कक्षा में पहुँचे तो उनका दाख़िला स्कूल में करवाया गया | आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक जब पाँचवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए और अंग्रेजी में सबसे अधिक नंबर हासिल किए तो उन्हें बदले में पुरस्कार स्वरूप स्कूल से दो किताबें मिलीं | जिन किताबों से लेखक ने विभिन्न प्रकार की पक्षियों और पानी की जहाजों के बारे में जानकारी हासिल किए | एक वक़्त ऐसा आया कि 
लेखक के पिता ने अलमारी के खाने से अपनी चीज़ें हटाकर खाली स्थान बना दिया और लेखक को संबोधित करते हुए बोले कि यह अब तुम्हारी लाइब्रेरी | अत: कह सकते हैं कि यहीं से लेखक की निजी लाइब्रेरी की शुरुआत हुई थी | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी, जो लेखक के लिए बैठकर पढ़ने का केन्द्र था | उस समय विश्व साहित्य की किताबों का हिंदी में अनुवाद करना या होना बहुत जोर प्रचलन में था | इस तरह लेखक को विश्व का भी अनुभव होता रहता था | उस दौरान लेखक का आर्थिक संकट बहुत बढ़ गया था | लेखक के पिता की मृत्यु हो चुकी थी | यहाँ तक कि वे अपने प्रमुख पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी सेकंड-हैंड ही लिया करते थे | जो पुस्तकें उनको नहीं मिलती थीं, उन पुस्तकों का वे अपने सहपाठियों से लेकर नोट्स बनाया करते थे | 

आगे प्रस्तुत पाठ या आत्मकथा के अनुसार, लेखक ने अपने निजी लाइब्रेरी की पहली पुस्तक कैसे ख़रीदी, उसका वर्णन किया है | उस वर्ष लेखक ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के पश्चात् अपनी पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए की पुस्तकें लेने के उद्देश्य से सेकंड-हैण्ड पुस्तकों की दूकान पर खड़े थे | जब लेखक बी.ए की पाठ्यपुस्तकें खरीद लिए तो उनके पास आख़िरी में शेष दो रूपए बचे | वहीं सामने के सिनेमाघर में 'देवदास' फ़िल्म लगी हुई थी | लेखक बचे दो रूपए को लेकर सिनेमा घर गए |  दरअसल, फ़िल्म शुरू होने में अभी कुछ समय की देरी थी | इसी बीच लेखक सामने के एक पुस्तकों की दूकान के पास चक्कर लगाने लगे | इतने में उनकी दृष्टि 'देवदास' की पुस्तक पर जा टिकी | उस पुस्तक की कीमत दस आने थी, इसलिए लेखक ने पुस्तक को ले लिया | अब लेखक के पास जितने पैसे बचे थे, वे उतने में फ़िल्म देख सकते थे | लेकिन उन बचे हुए पैसे को लेखक ने अपनी माँ को दे दिया | इस तरह 'देवदास' पुस्तक की निजी लाइब्रेरी की पहली पुस्तक बनी | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, अब लेखक के लाइब्रेरी में नाटक, उपन्यास, कथा संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण इत्यादि हर किस्म की पुस्तकें मौजूद हैं | लेखक की मनोदशा की बात करें तो लेखक देश-विदेश के महान लेखकों-चिंतकों की कृतियों व रचनाओं के मध्य खुद को भरा-पूरा महसूस करते हैं | 

इस आत्मकथा के अनुसार, लेखक का ऑपरेशन कामयाब होने के पश्चात् एक बार लेखक से मिलने मराठी के वरिष्ठ कवि 'विंदा करंदीकर' आते हैं | वे लेखक से कहते हैं कि ये सैकड़ों महापुरुषों के आश्रीवाद के कारण ही उन्हें पुनर्जीवन मिला है | कवि 'विंदा करंदीकर' की इन बातों को लेखक भी बिल्कुल सच मानते हैं...|| 


धर्मवीर भारती का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक धर्मवीर भारती जी हैं | इनका जीवनकाल 1926 से 1997 के मध्य रहा | धर्मवीर जी बहुचर्चित लेखक एवं संपादक रहे हैं | बहुमुखी प्रतिभा के धनी धर्मवीर भारती की लेखनी ने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, आलोचना, अनुवाद, रिपोर्ताज इत्यादि अनेक विद्याओं द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है | 

इनका नाम कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं से जुड़ा, परन्तु अंत में इन्होंने 'धर्मयुग' के संपादक के रूप में गंभीर पत्रकारिता का एक मानक निर्धारित किया है | 

इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं --- मेरी वाणी गैरिक वसना, साँस की कलम से, कनुप्रिया, सात गीत-वर्ष, सपना अभी भी, ठंडा लोहा, सूरज का सातवाँ घोड़ा, बंद गली का आखिरी मकान, कहनी-अनकहनी, पश्यंती, शब्दिता, अंधा युग, मानव-मूल्य और साहित्य तथा गुनाहों का देवता | लेखक धर्मवीर भारती जी पद्मश्री की उपाधि के साथ ही व्यास सम्मान एवं अन्य कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत हुए हैं...|| 


मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ या आत्मकथा के अनुसार, लेखक के दिल का लगभग 60 प्रतिशत भाग ख़राब हो चुका था | सिर्फ 40 प्रतिशत भाग ही कुछ बहुत काम कर रहा था | सर्जन को ऐसा लग रहा था कि शायद लेखक का ऑपरेशन करने के बाद उनका दिल पुनः काम नहीं कर पाएगा | इसलिए लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन हिचक रहे थे | 

प्रश्न-2 ‘किताबों वाले कमरे’ में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ‘किताबों वाले कमरे’ में रहने के पीछे लेखक के मन में यह भावना थी कि 
उनको ऐसा एहसास होता था, जैसे परी कथाओं में किसी राजा के प्राण तोते में बसते थे, वैसे ही लेखक के प्राण भी उन किताबों में बसते थे | 

प्रश्न-3 लेखक के घर में कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थीं ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक के घर में जो पत्रिकाएँ आती थीं, उनका नाम इस प्रकार हैं --- बालसखा, चमचम, आर्यमित्र साप्ताहिक, सरस्वती, वेदोदम और गृहिणी | 

प्रश्न-4 लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, देखा जाए तो लेखक को किताबों से जुड़ाव बचपन से ही था | क्योंकि बचपन में उनके घर में कई पत्रिकाएँ और किताबें आती थीं | इस तरह लेखक को पढ़ने का शौक लगा | लेखक जब पाँचवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए और अंग्रेजी में सबसे अधिक नंबर हासिल किए तो उन्हें बदले में पुरस्कार स्वरूप स्कूल से दो किताबें मिलीं | जिन किताबों से लेखक ने विभिन्न प्रकार की पक्षियों और पानी की जहाजों के बारे में जानकारी हासिल किए | एक वक़्त ऐसा आया कि लेखक के पिता ने अलमारी के खाने से अपनी चीज़ें हटाकर खाली स्थान बना दिया और लेखक को संबोधित करते हुए बोले कि यह अब तुम्हारी लाइब्रेरी | अत: कह सकते हैं कि यहीं से लेखक की निजी लाइब्रेरी की शुरुआत हुई थी | अत: हम कह सकते हैं कि यहीं से लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक लगा होगा | 

प्रश्न-5 माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी ? 

उत्तर- लेखक की माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर इसलिए चिंतित रहती थी, क्योंकि लेखक जितना मन से दूसरी पुस्तकें या पत्रिकाएँ पढ़ा करते थे, उतना मन से कोर्स की पुस्तकें नहीं पढ़ते थे | 

प्रश्न-6 स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने इस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए कि एक पुस्तक में जहाजों, नाविकों, समंदर और समुद्री जीवों के बारे में लिखा गया था, तो दूसरी किताब में चिड़ियों की दुनिया के बारे में बड़े रोचक ढ़ंग से बताया गया था | वास्तव में यह सब बातें लेखक के लिए नई थी, जो उन्हें बहुत पसंद आया | 

प्रश्न-7 ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का | यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है’ --- पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली ? 

उत्तर- 
‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का | यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है’ --- पिता के इस कथन से लेखक को किताबें सहेजने की प्रेरणा मिली | 

प्रश्न-8 ‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ’ --- का आशय स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- 
वास्तव में लेखक को किताबों से बहुत लगाव है | तरह-तरह की किताबें पढ़ना उनकी रूचि में शामिल है | उन्होंने अनेक किताबें खरीदी है, जिन किताबों से उन्होंने अपनी निजी पुस्तकालय को भरा है | 

लेखक के लाइब्रेरी में नाटक, उपन्यास, कथा संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण इत्यादि हर किस्म की पुस्तकें मौजूद हैं | लेखक की मनोदशा की बात करें तो लेखक देश-विदेश के महान लेखकों-चिंतकों की कृतियों व रचनाओं के मध्य खुद को भरा-भरा महसूस करते हैं | 



मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय पाठ के शब्दार्थ


• सनक - जिद
• अनिच्छा - बेमन से
• कसक - पीड़ा
• शिद्दत - अधिकता
• वरिष्ठ - बड़ा
• सहमति - मंजूरी
 नब्ज़ - नस
• शॉक्स - चिकित्सा के लिए बिजली के दिए  जानेवाले झटके
• अवरोध - रुकावट
• सर्जन - शल्य चिकित्सक
• अर्धमृत्यु - अधमरा
• विशेषज्ञ - विशेष जानकार
• सहेजना - संभालकर रखना
• खंडन-मंडन - तर्क-वितर्क करके पुष्टि करना
• पाखण्ड - दिखावटी
• अदम्य - जिसे दबाया ना जा सके
• शैली - विधि
• प्रतिमाएँ - मूर्तियाँ
• मूल्य - आदर्श
• रूढ़ियाँ - प्रथाएँ
• कुल्हड़ - मटकेनुमा मिटटी का छोटा-सा बर्तन  | 



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