कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

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 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी


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कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ या यात्रा-वृतांत कल्लू कुम्हार की उनाकोटी लेखक के. विक्रम सिंह जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ के माध्यम से लेखक ने अपनी त्रिपुरा यात्रा का वर्णन करते हुए वहाँ के लोगों, धर्मों, दर्शनीय स्थलों, वेशभूषा आदि का सुंदर चित्रण किया है | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक आदतन सूर्योदय के समय जागते हैं | चाय ख़ुद से बनाकर अख़बार लेकर सुबह का आनंद लेने में व्यस्त हो जाते हैं | लेकिन एक रोज लेखक की नींद अचानक बादलों की गर्जना और बिजलियाँ चमकने की कानफोड़ू आवाज़ से खुल गई | इसी दौरान लेखक को दिसम्बर, 1999 की एक घटना याद आ गई, जब वे 'ऑन द रोड' शीर्षक से एक टीवी श्रृंखला बनाने के लिए त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की यात्रा पर गए थे | आगे इस पाठ या यात्रा-वृतांत के अनुसार, 'ऑन द रोड' टीवी श्रृंखला का मक़सद त्रिपुरा राज्य की राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से यात्रा करने और राज्य के विकास से संबंधित गतिविधियों के बारे में जानकारी का संचार करना था | आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, त्रिपुरा राज्य बांग्लादेश से तीन ओर से घिरा है, जिसमें एक ओर से भारत के दो राज्य असम और मिजोरम लगे हुए हैं | त्रिपुरा राज्य की जनसंख्या 34 प्रतिशत है | बेलोनिया, कैलासशहर, सोनुपुरा, सबरूम त्रिपुरा के महत्वपूर्ण शहर माने जाते हैं, जो बांग्लादेश निकटतम हैं | देखा जाए तो अस्मा, बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों से लोगों की बहुतायत आवक ने त्रिपुरा की जनसंख्या को असंतुलित कर दिया है, जो त्रिपुरा राज्य में आदिवासी असंतोष की मुख्य वजहों में शामिल है | 

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

आगे इस पाठ या यात्रा-वृतांत के अनुसार, शुरूआती तीन दिनों में लेखक 'के. विक्रम सिंह' जी ने अगरतला और उसके नजदीकी जगहों की शूटिंग किया | वास्तव में, त्रिपुरा राज्य में बाहरी लोगों के आने से समस्याओं में बढ़ोतरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप, त्रिपुरा राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बना है | वास्तव में, लेखक के अनुसार, त्रिपुरा राज्य में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चार बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है | उल्लेखनीय है कि 'उज्जयंत महल' त्रिपुरा की राजधानी अगरतला का मुख्य महल है, जिसमें अब वहाँ की राज्य विधानसभा का अस्तित्व सक्रिय है | आगे पाठ के अनुसार, लेखक टीलियामुरा कस्बा पहुँचे, जो एक बड़ा गाँव है | इसी गाँव में लेखक का मिलन 'हेमंत कुमार जमातिया' से हुई | उल्लेखनीय है कि 'हेमंत कुमार जमातिया' को सन् 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है | वास्तव में, हेमंत जी 'कोकबारोक बोली' में गाते हैं, जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से एक है | तत्पश्चात्, हेमंत जी हथियारबंद संघर्ष का रास्ता त्याग कर चुनाव लड़े और जिला परिषद के सदस्य के रूप में चुने गए | 


जब लेखक की मुलाकात हेमंत जी से हुई तो जिला परिषद ने लेखक के शूटिंग इकाई के लिए एक भोज का प्रबंध भी किया, जिसमें उन्हें साधारण भोजन परोसा गया | भोजन ग्रहण करने के पश्चात् लेखक ने हेमंत से गीत सुनाने का अनुरोध किया | हेमंत जी ने लेखक को सुंदर-निर्मल हवाओं, धरती पर प्रवाहित शक्तिशाली नदियों और शांति का एक मधुर गीत सुनाया | आगे पाठ के अनुसार, बॉलीवुड के बेहतरीन और मौलिक संगीतकारों में से एक "एस. डी. बर्मन" साहब त्रिपुरा राज्य से ही ताल्लुक़ रखते थे | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, आगे का वृतांत के अनुसार, टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में लेखक की मुलाकात एक दूसरे गायक 'मंजू ऋषिदास' से हुई | उल्लेखनीय है कि ऋषिदास मोचियों के एक समुदाय का नाम है, जो जूते बनाने के साथ-साथ ढोल और तबला जैसे वाद्ययंत्रों के निर्माण के लिए भी जाने जाते हैं | लेखक के अनुसार, मंजू ऋषिदास रेडियो कलाकार होने के अलावा नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी सम्भालती थीं | उन्होंने लेखक को अपने दो गीत सुनाए, जिनका लेखक ने टीवी श्रृंखला के लिए शूटिंग भी किया | 

आगे प्रस्तुत यात्रा-वृतांत के अनुसार, टीलियामुरा शहर के बाद त्रिपुरा का हिंसाग्रस्त इलाका आरम्भ होता है | लेखक वहाँ से सी.आर.पी.एफ. की हथियारबन्द गाड़ी में मनु कस्बे की ओर चल पड़े | पाठ के अनुसार, मनु कस्बा, मनु नदी के किनारे में स्थित है | उल्लेखनीय है कि वहाँ अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींके तैयार करना हर घर के लिए एक लोकप्रिय गतिविधि में से है | बाँस की पतली सींके तैयार करने के पश्चात् अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें गुजरात और कर्नाटक भेजा जाता है | शाम के वक़्त लेखक मनु कस्बा पहुँचे | वे लोग उत्तरी त्रिपुरा जिले में पहुँच चुके थे | आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, उत्तरी त्रिपुरा जिले का मुख्यालय 'कैलासशहर' है, जो बांग्लादेश की सीमा से नजदीक में ही है | तत्पश्चात्, लेखक ने यहाँ के जिलाधिकारी (कलेक्टर) से टी.पी.एस (टरु पोटेटो सीड्स) के बारे में जानकारी हासिल की | यह तकनीक मात्र 100 ग्राम में ही एक हेक्टेयर की बुआई करने में सक्षम है | 

आगे इस पाठ या यात्रा-वृतांत के अनुसार, लेखक को 'उनाकोटि' के बारे में मालूम पड़ा, जो देश के सबसे बड़े तीर्थों में से एक माना जाता है | यदि इसका शाब्दिक अर्थ के बारे में बात करें तो 'उनाकोटी' का अर्थ होता है 'एक करोड़ से कम' |  

एक दंतकथा के मुताबिक उनकोटी में 'शिव' की एक करोड़ में से एक मूर्ति कम है | पहाड़ों को अंदर से काटकर मूर्तियों का निर्माण किया गया है | मान्यतानुसार, एक विशाल चट्टान पर गंगा अवतरण की कथा को भी चित्रित किया गया है | वास्तव में, इन आधार-मूर्तियों का निर्माणकर्ता कौन है...? ये बता पाना थोड़ा कठिन है | आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, आदिवासियों के मुताबिक इन मूर्तियों का निर्माता 'कल्लू कुम्हार' था | कल्लू देवी 'पार्वती' का बड़ा भक्त था | एक बार कल्लू, शिव-पार्वती के साथ कैलाश जाने की इच्छा प्रकट किया था | पार्वती के बहुत जोर देने पर शिव कल्लू को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए थे, परन्तु उन्होंने शर्त रखी कि एक रात में कल्लू कुम्हार को शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी | कल्लू भगवान शिव के द्वारा दी गई शर्तों को पूरा करने के लिए रात भर काम में जुटा रहा, परन्तु सुबह में उसकी मूर्तियों की संख्या एक करोड़ में से एक कम निकलीं | अत : इसी बात का बहाना बनाते हुए भगवान शिव ने कल्लू कुम्हार से अपना पीछा छुड़ा लिया और कल्लू को लिए बगैर कैलाश चले गए | आगे पाठ के अनुसार, उनाकोटी की शूटिंग करते हुए लेखक को चार बजे गए थे | उनाकोटी में अँधेरा छा गया और बादलों की गर्जना के साथ बारिश भी होने लगी थी | अत: इस तरह संयोगवश आज के गर्जन ने लेखक 'के. विक्रम सिंह' जी को तीन साल पूर्व वाले 'उनाकोटी' के गर्जन की याद पुनः ताज़ा कर दिया था...|| 


के. विक्रम सिंह का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक के. विक्रम सिंह जी हैं | इनका जन्म 1938 में हुआ था | प्रारंभ में अध्यापन कार्य में शामिल रहे तथा इन्होंने सरकारी नौकरी के विभिन्न ऊँचे पदों को सुशोभित भी किया है | इनके जीवन में एक मोड़ ऐसा भी आया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय में निदेशक (फ़िल्म नीति) के पद पर कार्य करते हुए समय से पहले ही नौकरी को विदा कह अपनी विशेष दिलचस्पी के कारण सिनेमा और टेलिविज़न के क्षेत्र में सक्रिय हो गए | 

विकास, पर्यावरण और देशाटन की तरफ़ विशेष झुकाव रखने वाले के. विक्रम सिंह जी ने 'अंधी गली' (1984), 'न्यू डेल्ही टाइम्स' (1985) के निर्माण में सहयोग करने के साथ-साथ 'तर्पण' (1994) का निर्देशन तथा कवि और कविता श्रृंखला का निर्माण एंव निर्देशन भी किया | साठ से अधिक वृत्तचित्र भी बनाए | अनेक वृत्तचित्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में प्रदर्शित भी हुए | लेखक 'के. विक्रम सिंह' जी आजकल फ़िल्म कार्य के साथ-साथ जीवन, समाज और कलाओं से संबंधित विषयों पर जनसत्ता में नियमित रूप से स्तंभ लेखन करते हैं...|| 


कल्लू कुम्हार की उनाकोटी प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 'उनाकोटी' का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है ? 

उत्तर- यदि 'उनाकोटी' का शाब्दिक अर्थ के बारे में बात करें तो 'उनाकोटी' का अर्थ होता है 'एक करोड़ से कम' | एक दंतकथा के मुताबिक उनकोटी में 'शिव' की एक करोड़ में से एक मूर्ति कम है | वास्तव में, इन आधार-मूर्तियों का निर्माणकर्ता कौन है...? ये बता पाना थोड़ा कठिन है | आदिवासियों के मुताबिक इन मूर्तियों का निर्माता 'कल्लू कुम्हार' था | कल्लू देवी 'पार्वती' का बड़ा भक्त था | एक बार कल्लू, शिव-पार्वती के साथ कैलाश जाने की इच्छा प्रकट किया था | पार्वती के बहुत जोर देने पर शिव कल्लू को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए थे, परन्तु उन्होंने शर्त रखी कि एक रात में कल्लू कुम्हार को शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी | कल्लू भगवान शिव के द्वारा दी गई शर्तों को पूरा करने के लिए रात भर काम में जुटा रहा, परन्तु सुबह में उसकी मूर्तियों की संख्या एक करोड़ में से एक कम निकलीं | अत : इसी बात का बहाना बनाते हुए भगवान शिव ने कल्लू कुम्हार से अपना पीछा छुड़ा लिया और कल्लू को लिए बगैर कैलाश चले गए | तब से इसका नाम 'उनाकोटी' पड़ गया | 

प्रश्न-2 कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ या यात्रा-वृतांत के अनुसार, कल्लू देवी 'पार्वती' का बड़ा भक्त था | एक बार कल्लू, शिव-पार्वती के साथ कैलाश जाने की इच्छा प्रकट किया था | पार्वती के बहुत जोर देने पर शिव कल्लू को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए थे, परन्तु उन्होंने शर्त रखी कि एक रात में कल्लू कुम्हार को शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी | कल्लू भगवान शिव के द्वारा दी गई शर्तों को पूरा करने के लिए रात भर काम में जुटा रहा, परन्तु सुबह में उसकी मूर्तियों की संख्या एक करोड़ में से एक कम निकलीं | अत : इसी बात का बहाना बनाते हुए भगवान शिव ने कल्लू कुम्हार से अपना पीछा छुड़ा लिया और कल्लू को लिए बगैर कैलाश चले गए |

प्रश्न-3 'मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई' --- लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, 'मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई' --- लेखक के इस कथन के पीछे विद्रोहियों के द्वारा एक जवान की हत्या की घटना जुड़ी है | दरअसल, लेखक मनु कस्बा में शूटिंग करने में व्यस्त थे | तभी सी.आर.पी.एफ. के एक जवान ने बताया कि निचली पहाड़ियों पर, जहाँ दो पत्थर पड़े हैं, वहाँ दो दिन पहले ही एक जवान को विद्रोहियों ने मार गिराया था | बस यही बात सुनकर लेखक को इतना डर गए कि उनकी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी समा गई | 

प्रश्न-4 त्रिपुरा 'बहुधार्मिक समाज' का उदाहरण कैसे बना ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, त्रिपुरा राज्य में निरन्तर बाहरी लोगों का आगमन जारी रहा | यही वजह है कि त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बनता चला गया | यहाँ पर बौद्ध धर्म भी माना जाता है | त्रिपुरा में 19 अनुसूचित जन जातियाँ और विश्व के चार बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व अस्तित्व में है | 

प्रश्न-5 टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ ? समाज कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय लोकगायक 'हेमंत कुमार जमातिया' और समाज सेविका 'मंजु ऋषिदास' नामक दो हस्तियों से हुआ | 'हेमंत कुमार जमातिया' को सन् 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है | वास्तव में, हेमंत जी 'कोकबारोक बोली' में गाते हैं, जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से एक है | हेमंत जी हथियारबंद संघर्ष का रास्ता त्याग कर चुनाव लड़े और जिला परिषद के सदस्य के रूप में चुने गए | मंजु ऋषिदास नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व करती थीं | उन्होंने वार्ड में नल लगवाने, नल का पानी पहुँचाने और गलियों में ईंटें बिछवाने जैसे समाज उपयोगी कार्य किया | 

प्रश्न-6 कैलाश नगर के ज़िलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी ?

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कैलाश नगर के ज़िलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को जानकारी देते हुए बताया कि आलू की बुआई के लिए पारंपरिक आलू के बीजों की ज़रुरत दो मिट्रीक टन प्रति हेक्टेयर होती है,  जबकि टी.पी.एस (टरु पोटेटो सीड्स) तकनीक मात्र 100 ग्राम में ही एक हेक्टेयर की बुआई करने में सक्षम है | अब तो त्रिपुरा राज्य से टी.पी.एस. का निर्यात पड़ोसी राज्यों और देशों को भी किया जाने लगा है | 



कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का  शब्दार्थ


• मुहैया - उपलब्ध
• आवक - आगमन
• इर्द-गिर्द - आस-पास
• खासी - बहुत
• हस्तांतरण - एक व्यक्ति के हाथ से दूसरे के हाथ में जाना
• प्रतीकित - अभिव्यक्त करना
• मुँहजोर - मुँहफट
• आश्वस्त - विश्वाश से पूर्ण
• इरादतन - सोच-विचार कर
• अलसायी - आलस से भरी
सोहबत - संगति
• ऊर्जादायी - शक्ति देने वाली
• खलल - बाधा
• कानफाड़ू - कानों को फाड़ने वाला
• शुक्र - मेहरबानी
• विक्षिप्तों - पागलों
• तड़ित - बिजली
• अल्लसुबह - बिलकुल सुबह  | 

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