Hamid Khan Class 9

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Hamid Khan Class 9 हामिद खाँ - एस. के. पोट्टेकाट


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हामिद खाँ पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ हामिद खाँ लेखक एस. के. पोट्टेकाट जी के द्वारा लिखित है | तक्षशिला (पाकिस्तान) भ्रमण के दौरान लेखक को हामिद खाँ नामक व्यक्ति से मुलाकात होती है, जिसकी याद लेखक को एक रोज अख़बार पढ़ते हुए आती है | दरअसल, इन्हीं यादों का चित्रण इस पाठ में किया गया है | 

आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, एक रोज लेखक समाचार-पत्र पढ़ने के दौरान तक्षशिला(पाकिस्तान) में आगजनी की ख़बर पढ़ते हैं, जिस खबर की वजह से लेखक को उस हामिद खाँ नामक व्यक्ति की याद आ जाती है, जिससे उनकी मुलाकात तक्षशिला भ्रमण के दौरान हुई थी | तत्पश्चात् लेखक हामिद खाँ के लिए ईश्वर से हिफ़ाज़त की दुआ माँगते हैं | 

आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, तकरीबन दो साल पूर्व लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने के लिए गए थे | वहाँ कड़ी धूप और भूख-प्यास की वजह से लेखक का बुरा हाल हो रहा था | लेखक रेलवे स्टेशन के नजदीक ही पौने मील दूर स्थित एक गाँव की तरफ़ चल पड़े | वहाँ पर उनको तंग बाज़ार, धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें दिखाई दीं | कहीं पर से तो सड़े चमड़े की दुर्गंध आ रही थी | वहाँ होटल का कहीं नामोनिशान न था | यकायक, लेखक को एक दूकान दिखाई दिया, जहाँ पर चपातियाँ सेंकी जा रही थीं | उस दुकान पर एक अधेड़ उम्र का पठान (हामिद) चपातियाँ बना रहा था | जब लेखक ने खाने के बारे में उससे पूछा तो दुकानदार ने लेखक को बेंच पर बैठने के लिए संबोधित किया | दुकानदार ने चपातियाँ बनाते हुए लेखक को संबोधित करते हुए पूछा कि वे कहाँ के रहने वाले हैं ? तभी लेखक ने दुकानदार को बताया कि वह हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर पर मद्रास के आगे मालबार क्षेत्र का रहने वाला है | इतने में दुकानदार ने लेखक से पूछा कि क्या वे हिन्दू हैं ? तभी लेखक ने 'हाँ' भाव में हामी भरा | 
एस. के. पोट्टेकाट
एस. के. पोट्टेकाट

आगे पाठ के अनुसार, जब दुकानदार को पता चला कि लेखक हिन्दू हैं, तो इसपर दुकानदार ने उनसे पूछा कि क्या वे मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे ? इसपर लेखक ने हामिद को संबोधित करते हुए जवाब दिया कि उनके यहाँ यदि किसी को बहुत बढ़िया चाय पीना हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना कुछ सोचे-समझे या बेझिझक मुसलमानी होटलों में चले जाते हैं | दुकानदार हामिद को लेखक की बातों पर यक़ीन न हो सका | लेखक ने उसे यह बताया कि उनके यहाँ पर हिन्दू और मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं होता है | दुकानदार हामिद लेखक की बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर बोला कि काश! वह भी यह सब देख पाता | 


आगे पाठ के अनुसार, दुकानदार हामिद ने लेखक का दिल से स्वागत करते हुए उन्हें खाना खिलाया | लेखक ने खाना खाने के पश्चात् जब हामिद को पैसे देने लगे तो उसने लेने से साफ इनकार कर दिया | 

लेखक के द्वारा बहुत जिद करने पर हामिद ने पैसे ले लिए, परन्तु पुनः उसे लेखक को लौटाते हुए हामिद खाँ ने कहा कि मैंने पैसे ले लिए , मगर मैं चाहता हूँ आप इस पैसे से हिंदुस्तान जाकर किसी मुसलमानी होटल में पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद को याद करें | तत्पश्चात्, लेखक वहाँ से तक्षशिला के खंडहरों की तरफ़ चले गए | उसके पश्चात् लेखक ने दुकानदार हामिद खाँ को कभी नहीं देखा | पर लेखक के दिल में हामिद खाँ की आवाज़ और उसके साथ बिताए लम्हों की यादें आज भी ताज़ा है | अत: लेखक हामिद खाँ और उसकी दुकान को सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग से बचे रहने की प्रार्थना में जुट गए थे...|| 


एस. के. पोट्टेकाट का जीवन परिचय 

प्रस्तुत पाठ के लेखक एस. के. पोट्टेकाट जी हैं | इनका जीवनकाल 1913 से 1982 के मध्य रहा है | ये मलयालम के प्रसिद्ध कथाकार हैं | इनका पूरा नाम शंकरन कुट्टी पोट्टेकाट है | इन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करके साहित्य-सृजन में लग गए | इनकी कहानियों में किसान और मजदूरों की आह और वेदना का सजीव चित्रण हुआ है | एस. के. पोट्टेकाट ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय से परे मानवीय सौहार्द को उभारने में सफलता अर्जित किए हैं | इनकी कहानियों व कथाओं में विश्वबंधुत्व और भाईचारे का संदेश मिलता है | 

एस. के. पोट्टेकाट जी को साहित्य अकादमी तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है | इनकी कहानियों का विश्व की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है | इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं --- विषकन्या, प्रेम शिशु और मूडुपडम्...|| 



हामिद खाँ पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, गर्मी के दिनों में लेखक तक्षशिला के खंडहर देखने के लिए गए हुए थे | वहाँ कड़ी धूप और भूख-प्यास की वजह से लेखक का बुरा हाल हो रहा था | लेखक रेलवे स्टेशन के नजदीक ही पौने मील दूर स्थित एक गाँव की तरफ़ चल पड़े | वहाँ पर उनको तंग बाज़ार, धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें दिखाई दीं | कहीं पर से तो सड़े चमड़े की दुर्गंध आ रही थी | वहाँ होटल का कहीं नामोनिशान न था | 

यकायक, लेखक को एक दूकान दिखाई दिया, जहाँ पर चपातियाँ सेंकी जा रही थीं | तभी लेखक उस दुकान में चला गया | उस दुकान का मालिक हामिद खाँ था | इसी प्रकार लेखक का परिचय हामिद खाँ से हुआ | 

प्रश्न-2 'काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता |' हामिद ने ऐसा क्यों कहा ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जब हामिद खाँ को पता चला कि लेखक हिंदू है तो उसने पूछा कि क्या वह मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे ? तभी लेखक ने हामिद को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हमारे हिंदुस्तान में हिंदू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है | 

हमारे यहाँ यदि किसी को बहुत बढ़िया चाय पीना हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना कुछ सोचे-समझे या बेझिझक मुसलमानी होटलों में चले जाते हैं | दुकानदार हामिद को लेखक की बातों पर यक़ीन न हो सका | दुकानदार हामिद लेखक की बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर बोला कि 'काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता |' 

प्रश्न-3 हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने जब हामिद को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे हिंदुस्तान में हम बढ़िया खाना खाने मुसलमानी होटल में जाते हैं | वहाँ हिंदू-मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं होता है | हम सभी आपस में मिलजुलकर रहते हैं | लेखक की इन्हीं सब बातों पर हामिद को विश्वास नहीं हो रहा था | 

प्रश्न-4 हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, हामिद खां ने लेखक को अपना मेहमान माना था | हामिद को इस बात की ख़ुशी थी कि एक हिन्दू ने उसके होटल में खाना खाया | इसलिए उसने खाने का पैसा लेने से इंकार किया | 

प्रश्न-5 तक्षशिला में आगजनी की ख़बर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा ? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषता का परिचय मिलता है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, तक्षशिला में आगजनी की ख़बर पढ़कर लेखक के मन में हामिद खां का विचार कौंधा, जिसके होटल में तक्षशिला भ्रमण के दौरान उसने खाना खाया था | इससे लेखक के सौहार्दपूर्ण भावना, धार्मिक सहिष्णुता, एक-दूसरे के प्रति हमदर्दी आदि स्वभाव की विशेषता का परिचय मिलता है | 



हामिद खाँ पाठ के शब्दार्थ


• अलमस्त - मस्त
• बेतरतीब -  बिना किसी तरीके के
• दढ़ियल - दाढ़ी वाला
• जहान  - दुनिया
• बेखटके - बिना संकोच के
• फख्र - गर्व
• आतताइयों - अत्याचार करने वालों
• नियति - भाग्य
• पश्तो - एक प्राचीन भाषा
• क्षुधा - भूख
• तृप्त - संतुष्ट
• आगजनी - उपद्रवियों या दंगाइयों द्वारा आग  लगाना
• पौराणिक - प्राचीन काल की
• हस्तरेखाएँ - हथेलियों में बनीं रेखाएँ
• सहज - स्वाभाविक
• सोंधी - सिंकने के कारण आती अच्छी सुगंध
• तंग - सँकरा
• बदबू - दुर्गंध
• अधेड़ - ढलती उम्र का
• सालन - गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरबा  | 



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