वे आँखें कविता सुमित्रानंदन पंत Class 11 Hindi NCERT आरोह

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वे आँखें कविता सुमित्रानंदन पंत


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वे आँखें कविता की व्याख्या  


अंधकार की गुहा सरीखी
उन अाँखों से डरता है मन, 
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन ! 

वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा अाँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि जो शोषित किसान हैं, उनकी आँखें मानो अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं, जिनसे मेरा मन भयभीत है | ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें दूर तक कोई कष्टप्रद व दुःख का मौन रुदन भरा हुआ है | 

आगे कवि कहते हैं कि वह सदैव स्वाधीन किसान था | उसके अपने खेत थे | उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था | परन्तु, आज संसार ने उसे समस्याओं के मँझधार में छोड़कर उससे दूर चला गया है | आज वह किसान अकेला पड़ गया है | 


लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से !

आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा, 
कारकुनों की लाठी से जो 
गया जवानी ही में मारा | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि एक समय था, जब किसान की आँखों के सामने उसके अपने खेत लहलहाते नज़र आते थे | लेकिन अब उन खेतों से उसे बेदखल कर दिया गया है अर्थात् जमींदारों ने उसके खेत हड़प लिए हैं | कभी इन खेतों के तिनके-तिनके में हरियाली का वर्चस्व था, जो उसके जीवन को सुखमय बनाती थी | अफ़सोस, आज वह सब कुछ कहीं गुम हो गया है | 

आगे कवि पंत जी कहते हैं कि किसानों की आँखों का तारा अर्थात् उनके जवान बेटे, जिसका चित्र अब भी उसकी आँखों में घूमता रहता है | कभी किसानों के जवान बेटों को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था | 


बिका दिया घर द्वार, 
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह 
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी !

उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती ?  
अह, आँखों में नाचा करती  
उजड़ गई जो सुख की खेती !

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में,
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि जब किसान कर्ज में डूब गए तो महाजन ने किसानों के घर-द्वार बेच दिए और अपने ब्याज की कौड़ी-कौड़ी वसूली ली | किसानों को उनके घर से बेघर कर दिया | किसानों को अत्यधिक पीड़ा तब हुई, जब उनके बैलों को भी नीलाम कर दिया गया | यह बात आज भी किसानों की आँखों में चुभती है, जिसके कारण उन्हें गहरा दर्द मिला और उनके रोज़गार का साधन छीनने का कारण बना |

आगे कवि पंत जी कहते हैं कि किसान के पास उजरी नाम की दुधारू अर्थात् दूध देने वाली गाय थी, जो उसके सिवा किसी और को अपने करीब दूध दुहने नहीं आने देती थी | मजबूरीवश किसान को उसे भी बेचना पड़ा | इस बात का किसान को बहुत दुःख है | ये तमाम दृश्य उसकी आँखों में अब भी नाचते हैं |  किसान की सुख की खेती उजड़ गई, जिसके कारण वह उदास व दुखी है | 


बिना दवा दर्पन के घरनी 
स्वरग चली, ---आँखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर ! 

घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन ! 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि गरीब किसान की पत्नी दवा के अभाव में चल बसी | यह सोचकर किसान की आँखों में आँसू आ जाते हैं | उचीत देख-रेख न होने के कारण पत्नी की मृत्यु के पश्चात् किसान की दुधमुँही बच्ची भी दो दिन बाद मर गई | 

आगे कवि पंत जी कहते हैं कि घर में एक विधवा बहु बची हुई थी, जिसका नाम लक्ष्मी था | परन्तु, अफ़सोस कि उसे अपने पति की मौत का जिम्मेदार माना जाता था | एक ऐसा काला दिन भी आया, जब गाँव के कोतवाल ने उसे बुलवाकर उसकी इज्जत लूट ली | परिणाम स्वरूप, किसान के बहु ने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली | अत: किसान का पूरा परिवार ही बिखर गया | 


खैर, पैर की जूती, जोरू 
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती | 

पिछले सुख की स्मृति आँखों में 
क्षण भर एक चमक है लाती, 
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन 
तीखी नोक सदृश बन जाती |  

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता वे आँखें से उद्धृत हैं | प्रस्तुत कविता में, कवि पंत जी के द्वारा भारतीय कृषकों के शोषण व दयनीय दशा को वर्णित किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि किसानों की दयनीय स्थिति का बेहद मार्मिक चित्रण करते हुए कहते हैं कि खैर, किसान को पत्नी की मृत्यु पर शोक नहीं है |  क्योंकि वह उसे पैर की जूती समान समझता है | एक के जाने के बाद दूसरी आ सकती है | पर किसान अपने जवान बेटे की मौत से बेहद दुखी है | उसकी छाती पर कष्ट रूपी साँप लोटते हैं | 

आगे कवि पंत जी कहते हैं कि किसान जब अपने पिछले सुखमय जीवन को स्मरण करता है तो उसकी आँखों में एक पल के लिए खुशियों की चमक समा जाती है | पर जैसे ही अगले पल किसान अपने वर्तमान को देखता है तो उसकी दृष्टि शून्य में गड़ जाती है और उसकी दृष्टि तीखी नोक के समान चुभने लगती है | 


वे आँखें कविता का सारांश मूल भाव 

प्रस्तुत पाठ या कविता वे आँखें कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित है | यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है | युगों- युगों से शोषण के शिकार किसानों का जीवन कवि को आहत करता है | कवि के अनुसार, स्वतंत्रता पश्चात् भी भारत में कृषकों के हक़ में तात्कालीन व्यवस्था या शासन की तरफ़ से कोई निर्णायक फैसला नहीं लिया गया और किसान की स्थिति बद से बदतर होती चली गई | इस कविता में विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है | प्रस्तुत कविता ऐसे ही दुश्चक्र में फंसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है | 


वे आँखें कविता के प्रश्न उत्तर question answer 


अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन | 

प्रश्न-1 आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है ? 

उत्तर- आमतौर पर हमें जीवन की उन घटनाओं से डर लगता है, जिसमें हमारे अपनों की मृत्यु, अपमान और कठिन परिस्थितियों का सामना करना, अत्यधिक कष्ट भोगना इत्यादि घटनाएँ शामिल होती हैं | 

प्रश्न-2 उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, उन आँखों से किसानों की दयनीय स्थिति या हालात की ओर संकेत किया गया है | 

प्रश्न-3 कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है ? 

उत्तर-  प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, कवि को उन आँखों से डर इसलिए लगता है, क्योंकि उन आँखों में शोषण, निराशा, दुःख, रुदन, पीड़ा आदि के सिवा कुछ भी नहीं है | 

प्रश्न-4 डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है ? 

उत्तर- डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन इसलिए किया है, क्योंकि दूसरे लोग भी किसान की दयनीय व वास्तविक स्थिति से अवगत हो सकें | किसानों की जिस पीड़ा का अनुभव कवि को हुआ है, उस पीड़ा या दर्द को हर कोई महसूस कर सकें | 

प्रश्न-5 यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता ? 

उत्तर- यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता, शायद तब भी वह कविता लिखता | क्योंकि कविता लिखने के लिए मर्म या भावों का होना आवश्यक है, जो किसी भी परिस्थिति के अनुकुल हो सकता है | 

प्रश्न-6 कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कविता में किसान की पीड़ा के लिए शासक वर्ग, साहूकार, महाजन,  कोतवाल आदि को जिम्मेदार बताया गया है | 

प्रश्न-7 “पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर एक चमक है लाती” --- इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सुमित्रानंदन पंत' जी के द्वारा रचित कविता 'वे आँखें' से उद्धृत हैं | किसान का भी एक भरा-पूरा परिवार था, जिसमें उसकी पत्नी, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू या बहु आदि सभी शामिल थे | किसान अपने परिवार के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था | उसके अपने खेत थे | गाय और बैल भी थे | अत: उक्त पंक्तियों में इन्हीं सुखों की ओर संकेत किया गया है | 


वे आँखें कविता के कठिन शब्द शब्दार्थ 


• कुर्क - नीलामी, बोली लगाना 
• बरघों - बैलों
• घरनी - घरवाली, पत्नी, अर्धांगिनी, जोरू 
• गुहा - गुफा
• सरीखी - समान
• दारूण - निर्दय, कठोर
• चितवन - दृष्टि, नज़र 
• बेदखल - हिस्सेदारी से अलग करना
• कारकुन - जमींदारों के कारिंदे
• दैन्य - दीनता, गरीबी 
• नीरव - शब्द रहित
• रुदन - रोना
• स्वाधीन - स्वतंत्र, आजाद 
• अभिमान - गर्व
• मँझधार - समस्याओं के बीच में 
• कगार - किनारा
• सदृश - समान
• दृग - आँख
• तृन - तिनका
• आँखों का तारा - बहुत प्यारा होना 
• महाजन - साहूकार, ऋणदाता
• कौड़ी - एक पैसा
• उजरी - उजला, सफ़ेद 
• सिवा - बिना, अलावा 
• दुहाने - दूध दुहने के लिए
• अह - आह 
• आँखों में नाचना - बार-बार सामने आना
• दवा-दर्पन - दवा आदि
• सुधकर - याद करना, स्मरण करना 
• साँप लोटते - अत्यधिक परेशान होना
• फटती छाती - बहुत दुख होना
• चमक लाना - खुशी लाना
• शून्य - आकाश
• दुधमुँही - नन्हीं, नवजात 
• पतोहू - पुत्रवधू, बहु 
• लछमी - लक्ष्मी
• घातिन - मारने वाली
• पैर की जूती - उपेक्षित | 


COMMENTS

Leave a Reply: 21
  1. So precisely..and clearly explained!!

    Great effort.
    ❤️

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    1. Jab mene es poem ka pada apne paper se एक din pehle or uska meaning समझा to sachi me mujhe bahut hi bura laga किसानो के etni buried stithi dekhkar or uska bi bhut ज्यादा bi burn laga jidhar ladkiyon ko per ki jutti bola h- by diksha faujdar

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  2. So precisely..and clearly explained!!

    Great effort.
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  3. वे आंखे कविता में नारी के प्रति व्यक्त विचारों पर टिप्पणी लिखिए

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    उत्तर
    1. ish pad ma nari ko pear ki jhuti samjha nari ki baisjati ki esi soch ko humen dor karna hoga nari ki ijat karni hoge

      हटाएं
  4. वे आंखे कविता में नारी के प्रति व्यक्त विचारों पर टिप्पणी लिखिए

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  5. वे आंखे कविता में नारी के प्रति व्यक्त विचारों पर टिप्पणी लिखिए

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  6. Is pankti me nari ko pears lagane ko bola ja raha hai 😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

    जवाब देंहटाएं
  7. Is pankti me nari ko pears lagane ko bola ja raha hai 😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

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  8. बहुत ही अच्छी और सरलता से समझ में आने वाली visay वस्तु है धन्यवाद

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  9. कविता वे आंखों के आधार पर महाजनों के चरित्र पर प्रकाश डालिए

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  10. वे आँखें शोर्ट आनसवर

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  11. nice explaination i would like to study hindi by this for ever

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  12. Nice answer and shorts answer thank you

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