पिता पर कविता है एक शख्स वह पिता हमारा , जिसनें चलना सिखलाया । तन मन में पुलकन भर भर कर ,बाँहों में हमें झुलाया ।।1।। शिष्टाचार सभ्यता तौर तरीका , पग पग पर हमको बतलाये । किस तरह बनें जीवन सुखमय ,चुन चुन कर पाठ पढ़ाये ।।2।। दूर पराजय भगा भगा कर , कैसे विजयी रहना है ।
पिता पर कविता
है एक शख्स वह पिता हमारा , जिसनें चलना सिखलाया ।
तन मन में पुलकन भर भर कर ,बाँहों में हमें झुलाया ।।1।।
शिष्टाचार सभ्यता तौर तरीका , पग पग पर हमको बतलाये ।
किस तरह बनें जीवन सुखमय ,चुन चुन कर पाठ पढ़ाये ।।2।।
दूर पराजय भगा भगा कर , कैसे विजयी रहना है ।
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पिता पर कविता |
दुष्कर प्रलयंकर और भयंकर , स्थिति से कैसे लड़ना है ।।3।।
जो करते अपमान पिता का , वह कभी सँभल ना पाते हैं ।
होता व्यतीत दुःख में जीवन , वह कभी नहीं सुख पाते हैं ।।4।।
जो दिया सहारा बचपन में , वह मूल्य चुका ना पाओगे ।
गर तनिक किया अपमान पिता का, जीवन भर पछताओगे।।5।।
भारत देश के रीति रिवाज - बारह मासा
प्राक्कथन- अपना भारत वर्ष परम्पराओं और त्योहारों का देश है । यहाँ बारहों महीने में अलग अलग तरह से पृथक् पृथक् त्यवहार और परम्पराएँ मनाई जाती हैं । प्रस्तुत छन्दों में इन्हीं का चित्रण किया गया है ।
मास- चैत्र
भारत देश महान हवै जँह , बारहों मास अनन्द बुझाला ।
चैत के मास में चैता गांवै सब, सो सुनिके जियरा हर्षाला ।
गेहूं चना अरहर मटरा से ,चारिउ कोना घरा भरि जाला ...।
अइसन आपन देश हवै जँह,आपस कै सब बैर भुलाला ।।
मास -- वैशाख
वैशाख के मास में शादी विवाहे कै, धूम मचल चहुंओर रहै ।
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रूद्र नाथ चौबे |
घर भीतर बाहर बजै कँगना , अँगना में त माड़ौ गड़ाई रहै ।
साजि के बाजा बजै दुअराँ, मवुरा के महतारी पुजाइ रहै ।
माँगैलीं नेग अ जोग प्रजा सब, भाभी बुआ के रिझाइ रहै ।।
मास-- ज्येष्ठ
जेठ महीना में आवै पसीना , त सीना उघारि चलैं लोगवा ।
भागल जालै लोग सबै , धनियाँ चलैली पिय के सँगवां।
केतिक दूर हौ केतिक दूर हौ , छाँव क ठाँव हवै जँहवां ।
अंगार अपार गिरै नभ से , अरु सूरज जारि रहै तनवाँ ।।
मास -- अषाढ़ (अ)
व्याकुल हाल बेहाल सबै जन,मास अषाढ़ कै बाट निहारैं ।
जन्तु जरैं जस साँवाँ पकै सब,रामहिं राम हा राम पुकारैं ।
बा आगि लगल अब त्राहि मचल,व्याकुल होई के लोस गुहारैं ।
निराशा बढै अब आशा घटै, कबलौं अइसन रही लोग विचारैं ।।
( ब )
हाहाकार पुकार धरा से चली, नभ मंडल छाइ रहैं ।
घनघोर कठोर हुँकार भरैं, गरजन सुनि बाघ लजाइ रहैं ।
छन छन छम छम छन छन छम छम, पानी के बूँद रिझाइ रहैं।
ऐसहि बीति आषाढ़ गयल, चकवा चकयी हर्षाइ रहैं ।।
मास -- श्रावण
बाढ़त वेग अपार अब बारिश कै, घनघोर फुहार भरैं बदरा ।
डारिन पै झलुआ पड़ि गयिलन,धान रोपावन लगे चतुरा।
सावन सेज सुहावन लागत, अहिवातिन कै हर्षै हियरा ।
दूध पिआवैं नागन के तिय, अरु लूटि रहे कजरी लहरा ।।
- रचनाकार -- पं० रूद्र नाथ चौबे ( "रूद्र" ) ,
सहायक अध्यापक-- पूर्व माध्यमिक विद्यालय रैसिंह पुर,
शिक्षा क्षेत्र-- तहबरपुर, आजमगढ़
ग्राम -- ददरा, पोस्ट -- टीकापुर, जनपद-- आजमगढ़ ( उत्तर प्रदेश )
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