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ग्राम श्री सुमित्रानंदन पंत
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ग्राम श्री कविता का अर्थ भावार्थ व्याख्या
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'सुमित्रानंदन पंत' जी के द्वारा रचित कविता ' ग्राम श्री' से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि गाँव की मनोरम प्राकृतिक सुंदरता का चित्रण करते हुए कह रहे हैं कि गांव के खेतों में चारों ओर मखमल रूपी हरियाली फैली हुई है | जब उन पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब सारा खेत और आस-पास का वातावरण चमक उठता है | मानो ऐसा प्रतीत होता है कि चाँदी की कोई चमकदार जाली बिछी हुई है | जो हरे-हरे फसलें हैं, उनकी नाजुक तना पर, जब सूर्य की किरणों का प्रभाव पड़ता है, तो उनके अंदर दौड़ता-हिलता हुआ हरे रंग का रक्त स्पष्ट दिखाई देता है | जब हमारी दृष्टि दूर तक आसमान पर पड़ती है, तो हमें ऐसा आभाष होता है, मानो नीला आकाश चारों ओर से झुका हुआ है और हमारी खेतों की हरियाली का रक्षक बना हुआ है |
(2)- रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'सुमित्रानंदन पंत' जी के द्वारा रचित कविता ' ग्राम श्री' से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी खेतों में उग आई फसलों का गुणगान करते हुए कहते हैं कि जब से जौ और गेहूँ में बालियाँ आ गई हैं, तब से धरती और भी रोमांचित लगने लगी है | अरहर और सनई की फसलें सोने जैसा प्रतीत हो रही हैं तथा धरती को शोभा प्रदान कर रही हैं | हवा के सहारे हिल-हिलकर मनोहर ध्वनि उत्पन्न कर रही हैं | सरसों की फसलें खेतों में लहलहा रहे हैं, जिसके फूलों के खिलने से पूरा वातावरण सुगंधित हो गया है | वहीं हरियाली युक्त धरा से नीलम की कलियाँ और तीसी के नीले फूल भी झाँकते हुए धरती को शोभा और सौंदर्य से भर रहे हैं |
(3)- रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी !
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता ग्राम श्री से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि खेतों में विभिन्न रंगों से सुसज्जित फूलों और तितलियों की सुंदरता का मनभावन चित्रण करते हुए कहते हैं कि रंग-बिरंगे फूलों के बीच में मटर के फसलों का सुन्दर दृश्य देखकर आस-पास के सखियाँ रूपी पौधे या फसलें मुस्कुरा रहें हैं | वहीं पर कहीं मखमली पेटियों के समान छिमियों का अस्तित्व का नज़ारा भी है, जो बीज से लदी हुई हैं | तरह-तरह के रंगों से सुसज्जित तितलियाँ, तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों पर उड़-उड़कर बैठती हैं | मानो ऐसा लग रहा है, जैसे ख़ुद फूल ही उड़-उड़कर विचरण कर रहे हैं |
(4)- अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली !
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दाड़िम
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता ग्राम श्री से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बसंत-ऋतु का मनमोहक चित्रण करते हुए कहते हैं कि स्वर्ण और रजत अर्थात् सुनहरी और चाँदनी रंग के मंजरियों से आम के पेड़ की जो डालियाँ हैं, वो लद गई हैं | पतझड़ के कारण पीपल और दूसरे पेड़ों के पत्ते झर रहे हैं और कोयल मतवाली हो चुकी है अर्थात् अपनी मधुर ध्वनि का सबको रसपान करा रही है | कटहल की महक महसूस होने लगी है और जामुन भी पेड़ों पर लद गए हैं | वनों में झरबेरी का अस्तित्व आ गया है | हरी-भरी खेतों में अनेक फल-सब्ज़ियाँ उग आई हैं, जैसे --- आड़ू, नींबू, आलू, दाड़िम, मूली, गोभी, बैंगन अादि |
(5)- पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गये सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता ग्राम श्री से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि प्रकृति के कुछ और सुन्दर दृश्य की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि जो अमरूद पके और मीठे हैं, वो अब पीले हो गए हैं | उन पर लाल चित्तियां या निशान पड़ गए हैं | बैर भी पक कर मीठे और सुनहले रंग के हो गए हैं और आँवले के आकर्षक छोटे-छोटे फल से डाल झूल गई है | खेतों में पालक लहलहा रहे हैं और धनिया सुगंधित हो उठी है | लौकी और सेम भी फलकर, आस-पास फैल गए हैं | मखमल रूपी टमाटर भी पककर लाल हो गए हैं और छोटे-छोटे नाजुक पौधे में हरी-हरी मिर्च का भंडार लग आया है |
(6)- बालू के साँपों से अंकित
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ग्राम श्री |
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता ग्राम श्री से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि आगे गंगा-तट के प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं कि गंगा किनारे जो विभिन्न रंगों में सन्निहित रेत का भंडार है, उस रेत के टेढ़े-मेढ़े दृश्य को देखकर ऐसा लगता है, मानो कोई बालु रूपी साँप पड़ा हुआ है | गंगा के तट पर जो घास की हरियाली बिछी है, वह बहुत सुन्दर लग रही है | साथ में तरबूजों की खेती से तट का दृश्य बेहद सुन्दर और आकर्षक लग रहा है | बगुले तट पर शिकार करते हुए अपने पंजों से कलँगी को ऐसे सँवारते या ठीक करते हैं, मानो वे कंघी कर रहे हैं | गंगा के जल में चक्रवाक पक्षी तैरते हुए नज़र आ रहे हैं और जो मगरौठी पक्षी हैं, वह आराम से सोए हुए विश्राम कर रहे हैं |
(7)- हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोये-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित कविता ग्राम श्री से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी के द्वारा गाँव की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य व दृश्य का सुंदर चित्रण किया गया है | कवि कहते हैं कि जब सर्दी के दिन में हिम अर्थात् ठंड का आगमन धरती पर होता है, तो लोग अालसी बनकर सुख से सोए रहते हैं | सर्दी की रातों में ओस पड़ने की वजह से सबकुछ भीगा-भीगा सा और ठंडक सा महसूस हो रहा है | तारों को देखकर ऐसा आभास हो रहा है, मानो वे सपनो की दुनिया में खोये हैं | इस आकर्षक और मनोहर वातावरण में पूरा गाँव मरकत अर्थात् पन्ना नामक रत्न के जैसा प्रतीत हो रहा है, जो मानो नीला आकाश से आच्छादित है | तत्पश्चात्, कवि कहते हैं कि शरद ऋतू के अंतिम क्षणों में गांव के मासूम वातावरण में अनुपम शांति का अनुभव हो रहा है, पूरा गाँव शोभायुक्त हो गया है, जिसे देखकर और एहसास करके गाँव के सारे लोग प्रफुल्लित हैं | उनका मन बहुत खिला-खिला सा है |
ग्राम श्री कविता का सार सारांश
प्रस्तुत पाठ या कविता ग्राम श्री कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा रचित है | इस कविता में ग्रामीण जीवन की प्राकृतिक मनोहारी दृश्य का चित्रण किया गया है | इस कविता के माध्यम से कवि गाँव की मनोरम प्राकृतिक सुंदरता का चित्रण करते हुए कह रहे हैं कि गांव के खेतों में चारों ओर मखमल रूपी हरियाली फैली हुई है | जब उन पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब सारा खेत और आस-पास का वातावरण चमक उठता है | मानो ऐसा प्रतीत होता है कि चाँदी की कोई चमकदार जाली बिछी हुई है |
जो हरे-हरे फसलें हैं, उनकी नाजुक तना पर, जब सूर्य की किरणों का प्रभाव पड़ता है, तो उनके अंदर दौड़ता-हिलता हुआ हरे रंग का रक्त स्पष्ट दिखाई देता है | जब हमारी दृष्टि दूर तक आसमान पर पड़ती है, तो हमें ऐसा आभाष होता है, मानो नीला आकाश चारों ओर से झुका हुआ है और हमारी खेतों की हरियाली का रक्षक बना हुआ है |
आगे कवि पंत जी खेतों में उग आई फसलों का गुणगान करते हुए कहते हैं कि जब से जौ और गेहूँ में बालियाँ आ गई हैं, तब से धरती और भी रोमांचित लगने लगी है | अरहर और सनई की फसलें सोने जैसा प्रतीत हो रही हैं तथा धरती को शोभा प्रदान कर रही हैं | हवा के सहारे हिल-हिलकर मनोहर ध्वनि उत्पन्न कर रही हैं | सरसों की फसलें खेतों में लहलहा रहे हैं, जिसके फूलों के खिलने से पूरा वातावरण सुगंधित हो गया है | वहीं हरियाली युक्त धरा से नीलम की कलियाँ और तीसी के नीले फूल भी झाँकते हुए धरती को शोभा और सौंदर्य से भर रहे हैं |
आगे कवि खेतों में विभिन्न रंगों से सुसज्जित फूलों और तितलियों की सुंदरता का मनभावन चित्रण करते हुए कहते हैं कि रंग-बिरंगे फूलों के बीच में मटर के फसलों का सुन्दर दृश्य देखकर आस-पास के सखियाँ रूपी पौधे या फसलें मुस्कुरा रहें हैं | वहीं पर कहीं मखमली पेटियों के समान छिमियों का अस्तित्व का नज़ारा भी है, जो बीज से लदी हुई हैं |तरह-तरह के रंगों से सुसज्जित तितलियाँ, तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों पर उड़-उड़कर बैठती हैं | मानो ऐसा लग रहा है, जैसे ख़ुद फूल ही उड़-उड़कर विचरण कर रहे हैं |
आगे कवि बसंत-ऋतु का मनमोहक चित्रण करते हुए कहते हैं कि स्वर्ण और रजत अर्थात् सुनहरी और चाँदनी रंग के मंजरियों से आम के पेड़ की जो डालियाँ हैं, वो लद गई हैं | पतझड़ के कारण पीपल और दूसरे पेड़ों के पत्ते झर रहे हैं और कोयल मतवाली हो चुकी है अर्थात् अपनी मधुर ध्वनि का सबको रसपान करा रही है | कटहल की महक महसूस होने लगी है और जामुन भी पेड़ों पर लद गए हैं | वनों में झरबेरी का अस्तित्व आ गया है | हरी-भरी खेतों में अनेक फल-सब्ज़ियाँ उग आई हैं, जैसे --- आड़ू, नींबू, आलू, दाड़िम, मूली, गोभी, बैंगन अादि |
कवि प्रकृति के कुछ और सुन्दर दृश्य की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि जो अमरूद पके और मीठे हैं, वो अब पीले हो गए हैं | उन पर लाल चित्तियां या निशान पड़ गए हैं | बैर भी पक कर मीठे और सुनहले रंग के हो गए हैं और आँवले के आकर्षक छोटे-छोटे फल से डाल झूल गई है | खेतों में पालक लहलहा रहे हैं और धनिया सुगंधित हो उठी है | लौकी और सेम भी फलकर, आस-पास फैल गए हैं | मखमल रूपी टमाटर भी पककर लाल हो गए हैं और छोटे-छोटे नाजुक पौधे में हरी-हरी मिर्च का भंडार लग आया है |
कवि आगे गंगा-तट के प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं कि गंगा किनारे जो विभिन्न रंगों में सन्निहित रेत का भंडार है, उस रेत के टेढ़े-मेढ़े दृश्य को देखकर ऐसा लगता है, मानो कोई बालु रूपी साँप पड़ा हुआ है | गंगा के तट पर जो घास की हरियाली बिछी है, वह बहुत सुन्दर लग रही है | साथ में तरबूजों की खेती से तट का दृश्य बेहद सुन्दर और आकर्षक लग रहा है | बगुले तट पर शिकार करते हुए अपने पंजों से कलँगी को ऐसे सँवारते या ठीक करते हैं, मानो वे कंघी कर रहे हैं | गंगा के जल में चक्रवाक पक्षी तैरते हुए नज़र आ रहे हैं और जो मगरौठी पक्षी हैं, वह आराम से सोए हुए विश्राम कर रहे हैं |
आगे कवि पंत जी के द्वारा गाँव की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य व दृश्य का सुंदर चित्रण किया गया है | कवि कहते हैं कि जब सर्दी के दिन में हिम अर्थात् ठंड का आगमन धरती पर होता है, तो लोग अालसी बनकर सुख से सोए रहते हैं | सर्दी की रातों में ओस पड़ने की वजह से सबकुछ भीगा-भीगा सा और ठंडक सा महसूस हो रहा है | तारों को देखकर ऐसा आभास हो रहा है, मानो वे सपनो की दुनिया में खोये हैं | इस आकर्षक और मनोहर वातावरण में पूरा गाँव मरकत अर्थात् पन्ना नामक रत्न के जैसा प्रतीत हो रहा है, जो मानो नीला आकाश से आच्छादित है | तत्पश्चात्, कवि कहते हैं कि शरद ऋतू के अंतिम क्षणों में गांव के मासूम वातावरण में अनुपम शांति का अनुभव हो रहा है, पूरा गाँव शोभायुक्त हो गया है, जिसे देखकर और एहसास करके गाँव के सारे लोग प्रफुल्लित हैं | उनका मन बहुत खिला-खिला सा है...||
ग्राम श्री कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' क्यों कहा है ?
उत्तर- कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' इसलिए कहा है, क्योंकि गाँव की प्राकृतिक वातावरण बेहद मनोरम और सौंदर्य से भरा-पूरा है | चारों ओर हरियाली ही हरियाली छाई हुई है | अत: गाँव का अद्भुत नजारा सबके मन को छू रहा है |
प्रश्न-2 कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर- कविता में "बसंत-ऋतु" के सौंदर्य का वर्णन हुआ है |
प्रश्न-3 गाँव को 'मरकत डिब्बे सा खुला' क्यों कहा गया है ?
उत्तर- गाँव को 'मरकत डिब्बे सा खुला' इसलिए कहा गया है, क्योंकि मरकत एक प्रकार का रत्न होता है, जिसका प्रसिद्ध नाम 'पन्ना' है | यह रत्न हरे रंग का होता है | कवि ने मरकत के हरे रंग की तुलना गाँव की हरियाली से की है | जिस प्रकार मरकत चमकता हुआ हरा-भरा सा दिखाई देता है, ठीक उसकी प्रकार धरती भी सूर्य के प्रकाश के कारण चमकती हुई हरी-भरी दिखाई दे रही है |
प्रश्न-4 अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर- अरहर और सनई की फसलें या खेत कवि को सोने जैसा प्रतीत हो रहे हैं तथा धरती को शोभा प्रदान कर रहे हैं |
प्रश्न-5 "बालू के साँपों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती" --- भाव स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि गंगा-तट के प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं कि गंगा किनारे जो विभिन्न रंगों में सन्निहित रेत का भंडार है, उस रेत के टेढ़े-मेढ़े दृश्य को देखकर ऐसा लगता है, मानो कोई बालु रूपी साँप पड़ा हुआ है |
प्रश्न-6 "हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाए-से सोए " --- भाव स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी के द्वारा गाँव की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य व दृश्य का सुंदर चित्रण किया गया है | कवि कहते हैं कि जब सर्दी के दिन में हिम अर्थात् ठंड का आगमन धरती पर होता है, तो लोग अालसी बनकर सुख से सोए रहते हैं | धरती की हँसमुख हरियाली और सर्दी की धूप दोनों खिले-खिले से हैं, जिन्हें देखकर ऐसा आभास होता है मानो दोनों अलसाए हुए सो रहे हैं |
प्रश्न-7 निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर- अलंकार है -
"तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक"
उक्त पंक्तियों में निम्नलिखित अलंकार है ---
• हरे हरे --- पुनरुक्ति अलंकार ( एक शब्द का बार-बार प्रयोग होना) |
• हिल हरित --- अनुप्रास अलंकार ( एक ही वर्ण का एक से अधिक बार प्रयोग होना) |
• तिनकों के तन पर --- मानवीकरण अलंकार ( किसी निर्जीव वस्तु का मानवीय स्वभाव के समान व्यवहार करके प्रयोग करना) |
ग्राम श्री कविता का शब्दार्थ
• रवि - सूर्य, सूरज
• वसुधा - पृथ्वी, धरा
• सनई - एक प्रकार का पौधा, जिसके रेशे से रस्सी का निर्माण किया जाता है |
• मुकुलित - अधखिला
• अँवली - छोटा आँवला
• सरपत - तिनके, सूखी घास
• किंकिणी - करधनी
• वृन्त - डंठल
• मरकत - पन्ना नामक रत्न (हरे रंग का होता है)
• हरना - आकर्षित करना
• सुरखाब - चक्रवाक पक्षी
• हिम-आतप - सर्दी की धूप
• स्वर्ण - सोना
• कोकिला - कोयल पक्षी (जिसकी आवाज़ मीठी मानी जाती है) |
ग्राम श्री हमारे गांव के बारे में लिखा गया है हमारा गांव जिला पन्ना तहसील अमानगंज पोस्ट पिपरवार ग्राम श्री मध्य प्रदेश जो सुमित्रानंदन पंत जी ने लिखा और गुमनाम ही से लिखा उस पर हम केस करेंगे
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