वर्तमान संदर्भ में श्री रामचरितमानस की प्रासंगिकता भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में श्री रामचरितमानस का स्थान आज भी उतना ही जीवंत और प्रासंगि
वर्तमान संदर्भ में श्री रामचरितमानस की प्रासंगिकता
भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में श्री रामचरितमानस का स्थान आज भी उतना ही जीवंत और प्रासंगिक है जितना सोलहवीं शताब्दी में था जब गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसे रचा। यह केवल एक काव्यग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन, एक सामाजिक संहिता और एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है जो समय की हर परत को छूता हुआ आज भी मनुष्य के अंतर्मन को झकझोरता है। वर्तमान संदर्भ में जब समाज तेजी से भौतिकवादी हो रहा है, नैतिकता संकट में है, परिवार विखंडन की ओर बढ़ रहा है और व्यक्ति अकेलेपन की गहरी खाई में गिरता जा रहा है, तब रामचरितमानस एक दीपस्तंभ की तरह मार्ग दिखाता है।आज का युग विज्ञान और तकनीक का युग है। मनुष्य चंद्रमा पर घर बनाने की बात कर रहा है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन के हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है, परंतु इसके साथ ही मनुष्य का मन अशांत है। चिंता, अवसाद, तनाव और एकाकीपन महामारी की तरह फैल रहे हैं। ऐसे में रामचरितमानस का मूल संदेश—मर्यादा, धैर्य, संयम और भक्ति—सीधे हृदय को स्पर्श करता है। जब राम वनवास जाते हैं, तब वे कोई विद्रोह नहीं करते, कोई क्रोध नहीं दिखाते। वे पिता की आज्ञा, मर्यादा और धर्म को सर्वोपरि मानते हैं।
आज का युवा जो हर छोटी-बड़ी बात पर विद्रोह करने को तैयार रहता है, उसे राम की यह मर्यादा सिखाती है कि सच्ची शक्ति क्रोध में नहीं, संयम में होती है।परिवार आज सबसे बड़े संकट में है। संयुक्त परिवार टूट चुके हैं, माता-पिता और संतान के बीच संवाद की दीवारें खड़ी हो गई हैं। रामचरितमानस में परिवार के हर रिश्ते को इतनी सुंदरता से चित्रित किया गया है कि वह आज भी आदर्श प्रस्तुत करता है। दशरथ-कौशल्या का प्रेम, राम-लक्ष्मण का भ्रातृभाव, सीता-राम का पति-पत्नी धर्म, भरत का भाई के प्रति त्याग और समर्पण—ये सब आज के टूटते परिवारों को जोड़ने की शक्ति रखते हैं। जब भरत राम के चरण-पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर चौदह वर्ष राज्य चलाते हैं, तब वह आज के उन युवाओं को संदेश देता है जो सत्ता और संपत्ति के लिए भाई-भाई को मारने-काटने पर उतारू हो जाते हैं।आज समाज में जाति, वर्ग और लिंग के नाम पर जितना वैमनस्य बढ़ रहा है, उतना शायद पहले कभी नहीं था। सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को अपमानित करना, घृणा फैलाना आम हो गया है। रामचरितमानस इन सबके बीच समत्व और समानता का संदेश देता है।तुलसीदास जी ने निषादराज गुह, शबरी, केवट जैसे तथाकथित निचली जातियों के पात्रों को राम के सबसे प्रिय सखा बनाया है। जब राम केवट की नाव पर सवार होते हैं और उसके चरण धोने को तैयार हो जाते हैं, तब वह आज भी कहता है कि भक्ति और प्रेम में कोई ऊँच-नीच नहीं होती। यह संदेश आज के आरक्षण, जातिवाद और छुआछूत के विषैले वातावरण में अमृत की तरह है।महिला सशक्तिकरण और नारी गरिमा का प्रश्न आज सबसे बड़ा मुद्दा है। रामचरितमानस में सीता एक अबला नहीं, बल्कि प्रबल चरित्र हैं। वे वनवास सहती हैं, रावण का प्रतिकार करती हैं, अग्निपरीक्षा देती हैं और अंत में धरती माता में समा जाती हैं—यह सब उनकी स्वतंत्र चेतना और आत्मसम्मान का प्रतीक है। सीता का चरित्र आज की उन महिलाओं को सिखाता है कि सशक्तिकरण का अर्थ केवल नौकरी या अधिकार नहीं, बल्कि आत्मगौरव और मर्यादा में भी है। वहीं राम का सीता के प्रति व्यवहार आज के पुरुषों को सिखाता है कि सच्चा पुरुष वही है जो अपनी पत्नी को संदेह की दृष्टि से नहीं, पूर्ण विश्वास और सम्मान से देखे।आज पर्यावरण का संकट भी कम गंभीर नहीं है। जंगल कट रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं, धरती त्राहि-त्राहि कर रही है। रामचरितमानस में प्रकृति और मनुष्य का गहरा संबंध दिखाया गया है। राम वन में रहते हैं, पशु-पक्षियों से प्रेम करते हैं, पेड़-पौधों के साथ एकात्म अनुभव करते हैं। जब सीता धरती में समा जाती हैं, तब वह संदेश देती हैं कि धरती हमारी माता है। यह चिंतन आज के पर्यावरण-आंदोलनों को भी दिशा दे सकता है।सबसे बड़ा संकट है नैतिकता का। भ्रष्टाचार, झूठ, स्वार्थ और हिंसा चारों ओर फैले हैं।
रामचरितमानस का राम एकमात्र ऐसा चरित्र है जो हर परिस्थिति में सत्य, धर्म और न्याय पर अडिग रहता है। वह राजा है, पर भिखारी के समान जीवन जीता है। वह परम शक्तिशाली है, पर रावण से युद्ध में भी धर्म युद्ध के नियमों का पालन करता है। यह आज के नेताओं, अधिकारियों और आम नागरिकों को सिखाता है कि सत्ता अहंकार के लिए नहीं, सेवा के लिए होती है।अंत में कहना होगा कि रामचरितमानस कोई पुरातन ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवंत संवाद है जो हर युग में नए अर्थ खोलता है।
आज जब मनुष्य बाहर की चकाचौंध में अंदर से खोखला होता जा रहा है, तब रामचरितमानस उसे फिर से अपने भीतर की राम-ज्योति जलाने की प्रेरणा देता है। यह ग्रंथ केवल हिंदुओं का नहीं, पूरे मानव-समाज का है क्योंकि इसमें जो मूल्य हैं—प्रेम, त्याग, करुणा, मर्यादा, सत्य और धर्म—वे सार्वभौमिक और शाश्वत हैं। इसलिए आज भी जब हम रामचरितमानस पढ़ते या सुनते हैं, तब लगता है कि तुलसीदास जी आज ही की दुनिया को देखकर लिख रहे थे और राम आज भी हमारे बीच जीवित हैं। यही इसकी सबसे बड़ी प्रासंगिकता है।


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