नयी शिक्षा नीति 2020 के आलोक में भारतीय ज्ञान प्रणाली नई शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा और दर्शन की समृद्ध विरासत को अपना आधार मानती है।समकालीन
नयी शिक्षा नीति 2020 के आलोक में भारतीय ज्ञान प्रणाली
शोध सारांश : नई शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा और दर्शन की समृद्ध विरासत को अपना आधार मानती है। इसी वजह से नई शिक्षा नीति 2020 शिक्षा के सभी स्तर के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आई.के.एस.) को शामिल करने की सिफारिश करती है। भारतीय ज्ञान प्रणाली पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों और समकालीन ज्ञान प्रणालियों के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करती है। भारत की नई शिक्षा नीति में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 में भारतीय ज्ञान प्रणालियों को व्यापकता और एकीकरण प्रदान करती है। पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियां भारतीय शिक्षा प्रणाली को कैसे पुनर्जीवित और उपयोगी बना सकती इस शोध पत्र के जरिए पता लगाया जा सकता है। इस लेख में नई शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान प्रणाली की प्रासंगिकता को विश्लेषित करने की कोशिश की गई है। इसमें प्राचीन ज्ञान प्रणालियों को वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली में शामिल करने के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करने का भी प्रयास रहेगा है। इसमें वर्तमान भारतीय शिक्षा के विकास के परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति 2020 की उल्लेखनीय भूमिका को दर्शाया है। भारतीय ज्ञान प्रणाली में निहित समकालीन ज्ञान को समझने का प्रयास किया गया है ताकि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का समाधान किया जा सके। यदि नई शिक्षा नीति 2020 का क्रियान्वयन सफल व सुनियोजित रुप से होता है तो यह नई शिक्षा नीति निश्चित रूप से भारत को वैश्विक पटल में एक नया आयाम प्रदान करेगी।
बीज शब्द : भारतीय ज्ञान प्रणाली, नई शिक्षा नीति 2020, भारतीय ज्ञान परंपरा, समकालीन ज्ञान ।
प्रस्तावना : भारतीय ज्ञान प्रणाली प्राचीन काल से चली आ रही एक समृद्ध बौद्धिक धरोहर है। यह प्रणाली दर्शन, विज्ञान, व्याकरण, गणित, खगोलशास्त्र, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला और साहित्य जैसे क्षेत्रों को समाहित किए हुए हैं। प्राचीन ज्ञान प्रणाली ज्ञान, विज्ञान, प्रकृति प्रेम और मानवता को प्रोत्साहित करने वाली थी जो मनुष्य को रचनात्मक बनाता है। प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली के विकास और विस्तार में तक्षशिला विश्वविद्यालय, नालंदा विश्वविद्यालय, वल्लभी विश्वविद्यालय,विक्रमशिला विश्वविद्यालय, ओदंतपुरी विश्वविद्यालय, सोमपुरा महाविहार, जगद्दला महाविहार, नागार्जुन विश्वविद्यालय, पुष्पगिरी विश्वविद्यालय, मिथिला विश्वविद्यालय आदि का विशेष योगदान रहा है। यह विश्वविद्यालय शिक्षा और ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र था, जहां दुनिया भर से विद्वानों, चिकित्सकों और दार्शनिकों ने भी ज्ञान प्राप्त किया है। भारतीय ज्ञान प्रणाली में जैसे सुश्रुत, चरक, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, पाणिनि, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, चाणक्य, चक्रपाणि दत्ता, माधव, पतंजलि, नागार्जुन, गौतम, पिंगला, शंकरदेव, मैत्रेयी, गार्गी और तिरुवल्लुवर जैसे महान विद्वानों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। भारतीय ज्ञान प्रणाली वैदिक काल से लेकर बौद्ध और जैन काल तक विद्यमान थी। इसके तहत महान गुरु-शिष्य परंपरा के ज़रिये कई सालों से प्राप्त ज्ञान को आत्मसात और विश्लेषण करके नए ज्ञान का संश्लेषण किया जाता था। आज के समय में प्रचलित भारतीय ज्ञान और विदेशों में की जाने वाली नई खोजों का उल्लेख भारतीय प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलती है, ये सभी प्रमाण भारतीय ज्ञान प्रणाली की समृद्धि का है। भारतीय ज्ञान प्रणाली प्राचीन और समकालीन ज्ञान का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में व्यवस्थित हस्तांतरण है। भारतीय शिक्षा प्रणाली के माध्यम से शोध, संवर्द्धन और नए उपयोगों के ज़रिये भारतीय ज्ञान परंपरा को पोषित और संरक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाना ज़रूरी है। भारतीय ज्ञान प्रणाली गहन समझ को संरक्षित करके सामाजिक अनुप्रयोग की प्रेरणा देती है।
विश्लेषण: भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) में तीन शब्द मिलकर बना है: भारतीय + ज्ञान + प्रणाली। ‘भारतीय शब्द अखंड भारत अर्थात् अविभाजित भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करता है। ‘ज्ञान’ शब्द ‘मौन ज्ञान’ को संदर्भित करता है अर्थात् ज्ञान की इच्छा रखने वालों की बुद्धि से निहित है। यहाँ ‘प्रणाली’ शब्द से आशय सुव्यवस्थित कार्यप्रणाली और वर्गीकरण योजना से है ताकि ज्ञान के समूह तक सहजता से पहुँचा जा सके। भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) में तीन शब्द शामिल हैं: भारतीय, ज्ञान और प्रणाली। इन्हें सूक्ष्मता से विश्लेषण कुछ इस प्रकार कर सकते हैं –
भारतीय: भारतीय ज्ञान प्रणाली में भारतीय शब्द को वृहद रूप में देखा गया है। यह अखंड भारत के अविभाजित भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करता है। यह वर्मा से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिंद महासागर तक के क्षेत्र को समाहित किए हुए है। चाणक्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में एक विशिष्ट भूमिका अदा की थी। संस्कृत व्याकरण रचने वाले पाणिनि ने प्राचीन भारत के तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा अर्जित की थी जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद है। भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा कला, संस्कृति, वास्तुकला, दर्शन, साहित्य, विज्ञान, इंजीनियरिंग, शिल्प और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक विशेष मुकाम हासिल किया था। अधिकांश जो विदेशी ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत आए और इस ज्ञान को पश्चिमी देशों या और दुनिया के अन्य कोनों में अपने हिसाब से प्रसार किया।
ज्ञान: भारतीय ज्ञान प्रणाली संदर्भ में ज्ञान‘मौन ज्ञान’ को संदर्भित करता है। यह ज्ञान चाहने वालों की बुद्धि में निहित है। यह व्यक्तिगत अनुभवों में अंतर्दृष्टि, अवलोकन, वास्तविक जीवन की समस्याओं का सामना करने और उन्हें समाधान करने के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। ज्ञान साहित्यिक और गैर-साहित्यिक रूप में विद्यमान हो सकता है। इस मौन ज्ञान को नए सिद्धांतों और रूपरेखाओं के प्रस्ताव को व्यवस्थित रूप से स्थानांतरित किया जाता है।
प्रणाली: भारतीय ज्ञान प्रणाली संदर्भ में प्रणाली से आशय है ज्ञान के एक समूह तक पहुँचने के लिए उपयोगी-सुव्यवस्थित योजना। संहिताकरण और वर्गीकरण ज्ञान साधक की आवश्यकता, रुचि और क्षमता पर आधारित होते हैं ताकि वह अंतर्निहित ज्ञान तक पहुँच सके। इससे उन्हें समग्र ज्ञान और जानकारी से अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद मिलेगी कि विभिन्न ज्ञान घटक तार्किक रूप से एक दूसरे के पूरक हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली प्राचीन और समकालीन ज्ञान का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में व्यवस्थित हस्तांतरण करने का कार्य कर रही है। यह वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिए विभिन्न प्रकार के माध्यम से प्राचीन ज्ञान को संजोए हुए है। यह ज्ञान भारतीय भाषाओं और बोलियों में मौजूद है।
भारतीय ज्ञान परंपरा एक समृद्ध और प्राचीन धारा है, जो न केवल धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष स्थान रखती है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू - विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा, कला और समाजशास्त्र आदि में भी गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। भारतीय ज्ञान परंपरा के चलते भारत का अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। भारत सरकार ने भारतीय ज्ञान प्रणाली (आई.के.एस.) को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने के लिए नई शिक्षा नीति 2020 के तहत एक बड़ा कदम उठाया है।
भारतीय ज्ञान प्रणाली के उद्देश्य
भारतीय ज्ञान प्रणाली वर्तमान सामाजिक समस्याओं को संबोधित करने के लिए स्वास्थ्य, मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान, प्रकृति, पर्यावरण और मानव के सतत विकास सहित कई क्षेत्रों में अधिक अध्ययन-अनुसंधान को समर्थन, प्रोत्साहन तथा सुविधा प्रदान करना चाहती है। अतीत से सीखने और भारतीय ज्ञान प्रणालियों को एकीकृत करने का मुख्य लक्ष्य हमारी पुरानी ज्ञान प्रणालियों का उपयोग करना है, जो ज्ञान हस्तांतरण की एक अखंड परंपरा और एक विशिष्ट दृष्टिकोण की विशेषता रखते हैं, ताकि भारत और विश्व में मौजूदा और उभरती चुनौतियों (भारतीय दृष्टि) का समाधान किया जा सके। इस व्यापक ढांचे का उद्देश्य पारंपरिक भारतीय ज्ञान को समकालीन अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के ताने-बाने में एकीकृत करना, सहयोग को बढ़ावा देना और भारत की समृद्ध बौद्धिक विरासत के संरक्षण और प्रसार को मुख्यधारा में लाने के लिए सुनिश्चित करना है। शिक्षा क्षेत्र में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) का एकीकरण एक महत्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों के लिए विविध और समग्र शिक्षण अनुभव पेश करना है ताकि समावेशी और सांस्कृतिक रूप से निहित दृष्टिकोण की ओर एक आदर्श बदलाव दर्शाया जा सके।
भारतीय ज्ञान परंपरा के कुछ प्रमुख स्तंभ कुछ इस प्रकार हैं-
भारतीय ज्ञान प्रणाली के सिद्धांत
भारतीय ज्ञान प्रणाली किसी भी क्रियाकलाप या गतिविधि को करते वक्त मुख्यतः तीन मूलभूत सिद्धांतों पर नज़र देती है-1. परम्परा 2. दृष्टि 3. लौकिक-प्रयोजन।
1.परम्परा: भारतीय ज्ञान प्रणाली की एक विशालकाय धरोहर और परंपरा को मानना है। भारतीय ज्ञान प्रणाली का उद्देश्य सदियों से चली आ रही ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि को बनाए रखना और उसे अग्रसर करना है। इसका लक्ष्य प्राचीन काल से चली आ रही अखंड भारत की अखंड ज्ञान परंपराओं को उजागर करना है।
2.दृष्टि: भारतीय ज्ञान प्रणाली एक अलग दृष्टिकोण प्रदान करती हैं जो इस ज्ञान प्रणाली को 'भारतीय' बनाती हैं और वर्तमान भारत की उभरती चुनौतियों का समाधान करने में अत्यधिक मूल्यवान प्रतीत होती है। पारंपरिक ज्ञान को वर्तमान कालीन ज्ञान के साथ जोड़कर, हम ऐसे समग्र समाधान की ओर अग्रसर हो सकते हैं जो किसी भी दृष्टिकोण की सीमाओं से परे हैं।
3.लौकिक-प्रयोजन: वर्तमान दौर में भारत और विश्व की उभरती चुनौतियों का समाधान करनेके लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली की व्यावहारिक उपयोगिता औरप्रयोजन को जग जाहिर करना है। भारत के सामाजिक महत्व और उसकी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर भारतीय ज्ञान प्रणाली को मुख्यधारा में लाकर समाज में ठोस बदलाव लाने का प्रयास करती है।
इस प्रकार भारतीय ज्ञान प्रणाली के सिद्धांत एक जीवंत परंपरा को विकसित करता है जो नए ज्ञान के निर्माण को बढ़ावा देती है और संचरण के आधार पर भविष्य के नवोन्मेषकों और विद्वानों को प्रेरणा देती है।
भारतीय ज्ञान प्रणाली और नई शिक्षा नीति 2020
भारत प्राचीन काल से ही प्राचीन ग्रन्थों, संस्कृति सभ्यता, प्राचीन संस्कृति और बहुभाषावाद के लिए जाना जाता रहा है। ये सारी चीजें हर भारतीय का हिस्सा ही नहीं बल्कि उसे अपने देश की सांस्कृतिक विरासत में प्राप्त हुआ है। भारतीय संस्कृति की समझ, संरक्षण और संवर्धन के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली का ज्ञान आवश्यक है। संस्कृत, संस्कृति और भारतीयता केवल शब्द नहीं बल्कि भारत की प्राचीन शिक्षा परंपरा से घनिष्ठता से जुडे हैं। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास, राष्ट्रीय उन्नति, तथा सभ्यता एवं संस्कृति के उत्थान के लिए शिक्षा आवश्यक है। भारत के महान शिक्षकों ने शिक्षा के इस गहन महत्व को समझा था। इसके परिणाम स्वरूप भारत में वैदिक काल में शिक्षा की एक सुन्दर व्यवस्था का निर्माण हुआ जिसका मुख्य आधार गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था थी। ज्ञान के रूपों का विस्तार भारत के नालंदा, तक्षशिला, निक्रमशिला, उज्जैनी, काशी, वल्लभी आदि विश्वविद्यालयों द्वारा किया गया, जिसे आगे ले जाने के लिए केवल भारतीय विद्वानों ने कसमकस नहीं दिखाया है बल्कि भारत के बाहर विदेशी विद्वानों ने भी भरसक प्रयास दिखाया है। डॉ. वसंत शिंदे अपनी पुस्तक ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली’ में बताते हैं- “जब हमारी शिक्षा पद्धति भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित थी और यूरोपीय लोगों के आगमन से पहले देश में भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन किया जाता था, तब लोगों के लिए अनुकूल और प्रासंगिक होने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में बहुत ही मजबूत अर्थव्यवस्था थी।”1 गार्गी, अपाला, ऋतंभरा, मैत्रिया लोपामुद्रा आदि विदुषी महिलाओं ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। वहीं बुद्ध, चरक, कात्यायन, आर्यभट्ट, शंकराचार्य, विवेकानंद, महात्मा गांधी, वाराहमिहिर, कणाद आदि ने ज्ञान और बुद्धि से इस विशालकाय भारत भूमि को धन्य किया है।
हमारी प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा अनादिकाल से सतत, दीर्घकालीन एवं शाश्वत रही है, जो संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए प्रयासरत है। वर्तमान नई शिक्षा नीति के सन्दर्भ में भारतीय ज्ञान परम्परा की समीक्षा करना अत्यंत आवश्यक है। अनादि काल से अनेक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते रहे और यह व्यवस्था गुरु-शिष्य परम्परा के रूप में भारत में लम्बे समय तक चलती रही। पूजा शर्मा के शब्दों में “भारतीय ज्ञान प्रणालियों में ज्ञान, विज्ञान और जीवन दर्शन शामिल हैं जो अनुभव, अवलोकन, प्रयोग और कठोर विश्लेषण से विकसित हुए हैं। मान्यता और व्यवहार में लाने की इस परंपरा ने हमारी, शिक्षा, कला, प्रशासन, कानून, न्याय, स्वास्थ्य, विनिर्माण और वाणिज्य को प्रभावित किया है। भारतीय ज्ञान परंपरा एक ऐसी कच्ची सड़क के समान है जिस पर कई तरह के पत्थर मिलते हैं, पर साथ ही निर्धारित स्थान तक पहुँचने का मार्ग भी बनाती है।”2 भारत की इस महान शैक्षिक परंपरा ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया और अखंडता, विनम्रता, आत्मनिर्भरता, अनुशासन और आपसी प्रेम- सम्मान जैसे मूल्यों पर जोर दिया। भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने विशाल प्राचीन साहित्य को संरक्षित किया और ज्ञान को बढ़ावा दिया। भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य की सोच की कई सीमाएं हैं, लेकिन पश्चिमी ज्ञान इसका विरोध करता रहा है और ज्ञान की एक ही धारा का जश्न मनाता रहा है और उसका प्रसार करता रहा है। हम सब आज भी उस धारा का हिस्सा बने हुए हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली, जो प्राचीन काल से प्रचलित है, हमेशा से ही भारतीय ज्ञान को दबाने और पश्चिमी ज्ञान को आगे बढ़ाने का प्रयास करती रही है। यही कारण है कि स्वाधीनता प्राप्त करने के इतने साल बाद भी हम अपने दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक ज्ञान समन्वय-सामाजिक समरसता से कोसों दूर हैं। भारत के विकास के लिए हमें अपने पारंपरिक ज्ञान को जानना, समझना, फैलाना और अर्जित करना अत्यंत आवश्यक है। नई शिक्षा नीति 2020 द्वारा भारतीय ज्ञान प्रणाली को शिक्षा व्यवस्था में स्थान देने से हमें भारतीय शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा। भारतीय ज्ञान प्रणाली को अगर हम सफलतापूर्वक लागू करके दुनिया के सामने श्रेष्ठ शिक्षा का एक मिसाल खड़ा कर पाएं तो भारत को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
नई शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान प्रणालियों का एकीकरण भारत की शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तनकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है। यह नीति शिक्षा के सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली के एकीकरण को प्रोत्साहित करने में विशेष भूमिका अदा करेगी। ज्ञान के विविध रूपों को स्वीकार और शामिल करके यह नीति शिक्षा के लिए अधिक समावेशी और बहुलवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देगी जो छात्र-छात्राओं को विविधता पूर्ण शिक्षण की हितों और जरूरतों को पूरा करने में सहयोग करेगी। भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर एक वैकल्पिक पाठ्यक्रम माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे उन्हें उन समृद्ध परंपराओं को जानने का विकल्प मिलेगा। नई शिक्षा नीति यह विकल्प प्रदान करती है कि यूजी या पीजी कार्यक्रमों में प्रत्येक छात्र-छात्राओं को भारतीय ज्ञान प्रणाली में क्रेडिट पाठ्यक्रम लेना चाहिए। भारतीय ज्ञान प्रणाली क्रेडिट का कम से कम पचास प्रतिशत प्रमुख विषय से संबंधित होना चाहिए और शिक्षण का माध्यम कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। यह शिक्षा नीति राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को शिक्षार्थियों के लिए समर्पित पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए अपनी मूल संस्कृतियाँ, कलाओं, शिल्प, परंपराओं आदि का दस्तावेजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। नई शिक्षा नीति के दिशा-निर्देशों में पाठ्यक्रम एकीकरण, संकाय प्रशिक्षण, कलाकारों-कारीगरों के साथ सहयोग, भारतीय विरासत और संस्कृति पर आधारित पाठ्यक्रमों की शुरुआत, अनिवार्य क्रेडिट घटक, क्षेत्रीय पाठ्यक्रमों की रूपरेखा, सहयोग का दायरा, ऑनलाइन/ओडीएल पाठ्यक्रम, भर्ती, नियमित संकाय प्रशिक्षण, व्यावहारिक शिक्षण अवसर, अनुसंधान और नवाचार के लिए समर्थन और जनभागीदारी को बढ़ावा देने जैसे विभिन्न पहलुओं को आगे बढ़ाने का सुअवसर प्रदान होगा। नई शिक्षा नीति 2020 भारतीय नागरिकों में भारतीय ज्ञान प्रणाली के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करने में सहयोग करेगी। प्रशिक्षण कार्यक्रमों और पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों के माध्यम से भारतीय ज्ञान प्रणाली की खोज में रुचि को बढ़ावा देना और उसके प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य कर नई शिक्षा नीति कर रही है।
नई शिक्षा नीति 2020 के साथ भारतीय ज्ञान प्रणाली का एकीकरण अंतर्निहित समकालीन सामाजिक मुद्दों को समझने और उन मुद्दों के अनुरूप अनुसंधान का अवसर प्रदान करने में सहयोगी भूमिका निभाएगी। यह विभिन्न हितधारकों के बीच समृद्ध व विविध स्वदेशी ज्ञान के विकास- समझ को बढ़ावा देगी और आधुनिक तकनीक की मदद से पारंपरिक ज्ञान को फिर से जीवंतता प्रदान करेगी। डॉ देशबंधु लिखते हैं - “आज के इस भौतिकवादी युग में सम्पूर्ण विश्व पुनः इसी भारतीय ज्ञान और विज्ञान की ओर आकृष्ट हो रहा है क्यों कि केवल भारतीय ज्ञान परंपरा में ही मानव मात्र के विकास के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण को भी प्राथमिकता दी गई है। प्रकृति को हानि पहुंचाकर मानव मात्र का विकास भारतीय ऋषियों को कदापि स्वीकार्य नहीं रहा।”3 नई शिक्षा नीति 2020 ने भारतीय शिक्षा के विकास और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए रूपरेखा को निर्धारित किया है। नवीन अनुसंधान, शिक्षा और भारतीय ज्ञान प्रणाली के प्रसार को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ भारतीय ज्ञान प्रणाली केंद्र स्थापित किए जाने की भी योजना बनाई गई है। चल रही अंतःविषय अनुसंधान परियोजनाओं में प्राचीन धातु विज्ञान, प्राचीन नगर नियोजन, जल संसाधन प्रबंधन और रसायन शास्त्र पर ध्यान केंद्रित करने वाली उच्च अंतः विषय अनुसंधान सुविधाएं भी शामिल हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली पर इंटर्नशिप को बढ़ावा और संकाय विकास की पेशकश की गई है। भारतीय ज्ञान प्रणाली ने अपने पाठ्यक्रम में पारंपरिक ज्ञान परंपरा को शामिल किया है तथा लाखों पुस्तकों को डिजिटल बनाने का संकल्प भी लिया गया है। अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए एन.आर.एफ. से भी जोड़ा गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित अनुसंधान के लिए एन.आर.एफ. के माध्यम से समर्पित अनुदानों के माध्यम से प्राथमिकता अनुसंधान निधि प्रस्तावित करने की सिफ़ारिश है। अंतर-विषयक भारतीय ज्ञान परंपरा अनुसंधान में शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए सरकारी परिकल्पों/ योजनाओं से जोड़कर भारतीय ज्ञान परंपरा को अग्रसर करने का प्रस्ताव है। भारत-केंद्रित अनुसंधान के लिए भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद् जैसे निकायों के माध्यम से वैश्विक सहयोग तक पहुँचने के लिए संस्थानों को प्रोत्साहित करने की योजना को देख सकते हैं। इसके साथ नई शिक्षा नीति में शिक्षार्थियों द्वारा भारत की समृद्ध विविधता के ज्ञान को प्रत्यक्ष आत्मसात करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। देश के विभिन्न क्षेत्र में छात्र-छात्राएँ पर्यटन जैसी गतिविधियाँ को प्रोत्साहित किया जाएगा।
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ पहल के तहत, सौ पर्यटन स्थलों की पहचान की जाएगी, जहां शैक्षणिक संस्थान छात्र-छात्राओं को इन क्षेत्रों के इतिहास, कला, साहित्य, ज्ञान, शोध व अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किए जाएंगे। भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग 2047 तक लागू करने के विजन और मिशन से आगे बढ़ने के लिए तत्पर है। बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों के सहयोग से एक समृद्ध भारतीय ज्ञान प्रणाली को शुरू करने के लिए रूपरेखा तैयार है ताकि भारतीय ज्ञान प्रणाली के विशाल ज्ञान भंडार का लाभ उठाकर समकालीन मुठभेड़ को संदर्भित करने के साथ-साथ अनुसंधान को भी बढ़ावा और समर्थन मिल सकेगा। भारतीय ज्ञान प्रणाली अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के ताने-बाने में एकीकृत करके भारतीय ज्ञान प्रणाली को फिर से जीवंत और मुख्यधारा में लाना नई शिक्षा नीति 2020 का ध्येय है। आने वाले समय में इस नई शिक्षा नीति के जरिए भारतीय ज्ञान प्रणाली को वैज्ञानिक तरीके से स्कूल और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा। भारतीय ज्ञान प्रणाली पाठ्यक्रम में आदिवासी ज्ञान, स्वदेशी और पारंपरिक शिक्षण विधियों को भी शामिल किया जाएगा। नई शिक्षा नीति (NEP)2020, शिक्षार्थियों के समग्र विकास का उपयोग करके भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलने का श्री गणेश हो चुका है। यह रूपरेखा शिक्षा प्रणाली के विकास के लिए एक व्यापक और एकीकृत रणनीति प्रदान करेगी। भारतीय ज्ञान प्रणाली कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं व प्रतिभाओं को कौशल प्रदान करने में और रोजगार के अवसर सृजन करने में सहयोग करेगी।
निष्कर्ष: प्रस्तुत शोधपत्र में विश्लेषण करने से यह ज्ञात होता है कि नई शिक्षा नीति 2020 वर्तमान परिदृश्य में प्रासंगिक है, जिसमें भारतीय ज्ञान प्रणाली की उल्लेखनीय भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। नई शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान प्रणाली को वर्तमान शिक्षा की ज़रूरतों से जोड़ने का एक सुनियोजित प्रयास है। भारतीय ज्ञान प्रणाली व्यक्ति को कर्तव्य की भावना, मन में स्थिरता और तनाव प्रबंधन आदि को समायोजित करने के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ-साथ विभिन्न ज्ञान-विज्ञान, सांसारिक और रहस्यों को समझने के लिए सहायता प्रदान भी करता है। यह शिक्षा नीति विद्यार्थियों के बहुआयामी विकास सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक सुधार की कामना करती है। नई शिक्षा नीति 2020 विद्यार्थी केन्द्रित है। यह शिक्षा संरचना, शिक्षण प्रशिक्षण और परीक्षा प्रणाली में और अधिक सुधार लाकर प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली में निहित ज्ञान को नवीन पाठ्यचर्या में लाने के लिए आग्रही है। यह शिक्षा नीति 5+3+3+4 के प्रारूप को अपनाते हुए विद्यार्थियों के शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, चारित्रिक, नैतिक एवं मानवीय मूल्यों के विकास को महत्वपूर्ण मानती है। यदि यह नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन सफल व सुनियोजित रुप से होता है तो यह शिक्षा नीति निश्चित रूप से भारत को वैश्विक पटल पर एक नए आयाम प्रदान करेगी। इस प्रकार भारतीय ज्ञान प्रणाली में जो ज्ञान का विशाल भंडार है वह नए आलोक में विश्व के कल्याण और मानवता के उद्धार के लिए एक अग्रणी भूमिका निभाने के लिए आग्रही होगा।
संदर्भ सूची:
1. शिंदे डॉ. वसंत, भारतीय ज्ञान प्रणाली, भीष्म प्रकाशन, पुणे, संस्करण-2022, पृष्ठ संख्या – 4.
2. सिरोला डॉ. देबकी, संपादक, भारतीय ज्ञान परंपरा एवं शिक्षा, शर्मा पूजा, भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक प्रोद्योगिकी की शैक्षणिक विकास में प्रासंगिकता, कुणाल बुक्स, नवीन संस्करण, पृष्ठ संख्या – 80.
3. यादव डॉ. नीलम, प्रधान संपादक, भारतीय ज्ञान परंपरा: विविध आयाम, इंशा पब्लिकेशन, प्रथम संस्करण-2023, दिल्ली, भूमिका, पृष्ठ संख्या -12.
- श्री आनंद दास
सहायक प्राध्यापक, श्री रामकृष्ण बी. टी. कॉलेज (Govt. Aided.), दार्जिलिंग
संपर्क - 27 गांधी रोड, बागमारी हाउस, दार्जिलिंग - 734101,
पोस्ट ऑफिस- दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल
ई-मेल - anandpcdas@gmail.com, 9382918401, 9804551685.


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