अप्रत्याशित | हिंदी कहानी

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अप्रत्याशित माँ......" अरविंद ने आते ही पुकारा और सोफे पर पसर गया। "कैसा रहा पेपर ?" माँ ने छूटते ही पूछा। संस्कारी मध्यमवर्गीय परिवार के बेटे अरविंद

अप्रत्याशित


माँ......" अरविंद ने आते ही पुकारा और सोफे पर पसर गया। "कैसा रहा पेपर ?" माँ ने छूटते ही पूछा। संस्कारी मध्यमवर्गीय परिवार के बेटे अरविंद ने सिर हिलाकर पेपर के ठीक होने का संकेत दिया। देखने में आकर्षक, पढ़ने में ठीक-ठाक, मेहनती और शरारती अरविंद की आज इंजीनियरिंग प्रवेश की परीक्षा थी, जिसपर उसका भविष्य टिका था। "अब कुछ दिन थोड़ा आराम कर" माँ को अपने बेटे पर दया आ गई। आराम, मौज-मस्ती, दोस्तों के साथ सैर-सपाटे के दिन मानो किसी उड़न-खटोले की तरह पंख लगाकर उड़ गए। इस बीच अरविंद का बारहवीं का रिजल्ट ठीक-ठाक आ गया, साथ ही उसको दिल्ली के एक प्रतिष्ठित संस्थान में इंजीनियरिंग की सीट भी मिल गई।

सरकारी बॉयज स्कूल में पढ़ा हुआ, ऊँचा-पूरा, स्मार्ट अरविंद अपने डाक्यूमेंट्स की फाइल को संभाले कॉलेज की लॉबी में अपना नाम पुकारे जाने की प्रतीक्षा में बैठा-बैठा विस्फारित नेत्रों से उस बड़े से कॉलेज को जी भरकर देख रहा था, साथ ही हल्की सी घबराहट को समेटे आसपास के माहौल को समझने की कोशिश भी कर रहा था। साफ-सुथरा कॉरिडोर, करीने से सजाया हुआ फूलों वाला गार्डन, फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते हुए स्टाइलिश लड़के-लड़कियाँ, आत्मविश्वास से भरे टीचर्स की आवाजाही...सब कुछ उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था। "मैं कौन सा कम हूँ" अरविंद ने अपने-आप को समझाया। अरविंद को अपने आकर्षक चेहरे और कद-काठी पर काफी घमंड था, ऊपर से उसके दोस्तों ने भी उसे खूब चढ़ा रखा था, वे अक्सर उसे " ओए हीरो" कहकर ही संबोधित करते थे। "मैं भी तो हैंडसम और स्मार्ट हूँ, मोहल्ले की सारी लड़कियाँ मुझे कनखियों से देखती हैं और खुद ही शर्मा जाती हैं।" सोचकर अरविंद हौले से मुस्कुराने लगा। अपने दोस्त जतिन की बात याद करके अरविंद मन ही मन खुश हो गया, "यार, तेरी हथेली में शुक्र पर्वत बहुत बढ़िया है, लड़कियाँ तुझसे दोस्ती करने के लिए हमेशा आतुर रहेंगी।" अरविंद ने तुरंत अपना हाथ देखा और खुद को आश्वस्त किया। "चलिए नेक्स्ट अंजना सचदेव और अरविंद त्यागी आप दोनों आकर सिग्नेचर कीजिए और अपने-अपने मोबाइल नंबर लिखिए।" आवाज़ सुनकर अरविंद की तंद्रा टूटी और वो हड़बड़ाकर उठ गया। सामने से एक खूबसूरत सी लड़की भी उठ खड़ी हुई। पीला टॉप, टाइट नीली जीन्स, खुले हुए लहराते बाल, हील वाली सैंडिल...अरविंद उसे एक पल को देखता ही रह गया। "अंजना सचदेव", उसने मन ही मन नाम रट लिया था। अंजना ने साइन किए, अपना मोबाइल नंबर लिखा और वापस अपनी सीट की ओर मुड़ गई, फिर अरविंद ने भी अपना नाम और नंबर लिखा लेकिन साथ ही उसके शैतानी दिमाग ने जल्दी-जल्दी अंजना का नंबर भी याद कर लिया, 9452.......।

एडमिशन की औपचारिकताएँ समाप्त करके अरविंद घर लौट आया था। अपना सामान वगैरह लेकर उसे अगले हफ्ते होस्टल में रहने के लिए जाना था। अंजना का नंबर उसने "अंजू" लिखकर सेव कर लिया था। व्हाट्सएप्प के प्रोफाइल पिक में कोई कार्टून था। एक दिन बड़ी हिम्मत से उसने उसे मैसेज किया था "हाय"। बड़ी देर बाद और बहुत इंतजार के बाद जवाब आया था, "हाय ! आप कौन हैं?" उसने पूछा था। अरविंद की खुशी का ठिकाना न रहा, उसने अपना नाम बताया, परिचय दिया और अपनी ब्रांच बताई। बस फिर क्या था, अरविंद और अंजू की व्हाट्सएप्प में बातें शुरु हो गईं..., कॉलेज की, पढ़ाई की, घर की बातें।

अप्रत्याशित
अरविंद को तो मानो पर ही लग गए, नया कॉलेज, नई पढ़ाई, नए दोस्त और उसकी स्पेशल दोस्त अंजना उर्फ अंजू....,इन सबमें उसका मन रम गया था। अंजना उसकी क्लास में ही थी। ढेर सारे छात्र-छात्राओं की बड़ी सी क्लास में अंजना रोज नए-नए प्रकार के माडर्न ड्रेसेस में बालों को लहराती हुई आती, पढ़ने में बस सामान्य ही थी। अरविंद, अंजना को पसंद करता था, लेकिन अरविंद को एक बात कभी समझ नहीं आती थी कि व्हाट्सएप्प पर इतने सारे मैसेज करने के बावजूद भी अंजना उसे देखकर बेगानों की तरह व्यवहार क्यों करती थी? मानो वह उसे जानती ही न हो। वह अपने फ्रेंड सर्कल में रहती थी और अरविंद की ओर देखती भी नहीं थी। "शायद शर्म आती है" अरविंद अक्सर सोचता, "लेकिन इतनी मॉडर्न लड़की को मुझसे बात करने में कैसी शर्म? वह आश्चर्य से अपने आप से ही पूछता, लेकिन उसे जवाब मिलता ही नहीं था। वह व्हाट्सएप्प पर ज्यादा कुछ पूछने से भी डरता था कि कहीं अंजना नाराज न हो जाए। "किसी दिन अंजना को सामने से पूछूँगा", आए दिन अरविंद यही निश्चय करता, लेकिन अंजना को देखते ही उसे जाने क्या हो जाता, उसकी जुबान तालू से चिपक जाती, ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे ही रह जाती।

व्हाट्सएप्प पर संदेशों का खेल चलता रहा। दोनों के बीच कुछ मीठी बातें भी होने लगी थी। अंजू कभी संजीदा तो कभी शायराना अंदाज़ में तीन-चार पंक्तियाँ लिखती। अरविंद को बड़ा आश्चर्य होता, अंजना को देखकर ऐसा हरगिज़ नहीं लगता था कि उसकी सोच में इतनी गहराई होगी। अंजना के व्यक्तित्व से उसके व्हाट्सएप्प पर भेजे गए संदेश बिल्कुल मेल नहीं खाते थे। अरविंद के लिए अंजना एक गूढ़ रहस्य बनती जा रही थी।

इस बीच फर्स्ट ईयर का रिजल्ट आ गया। अरविंद पास हो गया था। "अंजुलिका सान्याल" नाम की किसी लड़की ने सभी ब्रांचेस में टॉप किया था। "देख वो रही अपनी टॉपर, चल उसे बधाई देते हैं" किशोर ने कहा तो उसने अंजुलिका को पहली बार नज़र भरकर देखा। गेंहुआ रंग, मेकअप विहीन भोला सा, शांत, पारदर्शी चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, अधरों पर हल्की सी सौम्य मुस्कान, पीछे की ओर बँधे हुए बाल, सलवार-कमीज़...उसे देखकर जाने क्यों अरविंद का मन अनजाने ही एक सम्मान की भावना से भर गया। अंजुलिका ने मुस्कुराकर अभिवादन किया और दो-चार औपचारिक बातें भी की।

समय को गुजरते देर नहीं लगती। देखते ही देखते तीन साल बीत गए। अरविंद ठीक-ठाक ढंग से पास होता चला गया। अंजना उर्फ अंजू के साथ व्हाट्सएप्प पर उसकी चैटिंग भी बदस्तूर जारी थी। अंजली सान्याल ने हर साल टॉप किया। अभी तक अरविंद, अंजना से आमने-सामने बात ही नहीं कर पाया था। व्हाट्सएप्प मैसेज के अलावा अंजना को अरविंद से मानो कुछ लेना-देना ही नहीं था। अंजना का व्यवहार अरविंद के लिए किसी पहेली से कम नहीं था। "अभी नहीं तो कभी नहीं, आज तो मैं अंजू से बात करके ही रहूँगा।", उस दिन बड़ी हिम्मत बटोरकर अरविंद ने निश्चय किया था। "मुझे तुमसे कुछ बात करना है।", अरविंद की ये बात सुनकर अंजना ने आश्चर्य से अचकचाकर भौंहे चढ़ाई और कहा,"बोलो !" " कॉफ़ी हाउस चलें?, ओनली फॉर वन ऑवर प्लीज़।" अरविंद ने विनती की थी। "तुम व्हाट्सएप्प पर तो मुझसे खूब बातें करती हो, लेकिन ये जानते हुए भी कि मैं तुम्हें कितना पसंद करता हूँ, क्लास में मुझसे इतनी अनजान क्यों बन जाती हो? मैं बहुत हर्ट हो जाता हूँ अंजू।" कॉफ़ी हाउस में बैठकर अरविंद ने अंजना से कहा तो अंजना तो मानो आसमान से गिर पड़ी,"क्या !!!!! मैंने कब तुमसे चैटिंग की? मैं तो आज पहली बार तुमसे बात कर रही हूँ और तुमने मुझे "अंजू" क्यों कहा? मैंने तो ये हक तुम्हें नहीं दिया। तुम्हारा दिमाग ठीक तो है?" आश्चर्य की पराकाष्ठा में अंजना ने डाँटकर पूछा था। जवाब में अरविंद ने उसे मोबाइल की चैटिंग दिखाई तो अंजना हँसते-हँसते दोहरी हो गई और कहा कि "ये नंबर तो मेरा है ही नहीं।" अंजना साफ-साफ शब्दों में यह कहकर चली गई कि उसकी अरविंद में कोई दिलचस्पी नहीं है।

अरविंद को मानो काटो तो खून नहीं ! "ये किसका नंबर है? जरूर नंबर नोट करते समय मुझसे गलती हो गई होगी और मैंने किसी और का नंबर नोट कर लिया होगा। किसके साथ मैं तीन साल से चैटिंग कर रहा हूँ? कौन मुझसे इतनी सारी बातें करता है?" सोच-सोचकर अरविंद की बेचैनी बहुत बढ़ गई, कैसे भी उसे इस रहस्य का पर्दाफाश करना ही होगा सोचकर उसने व्हाट्सएप्प पर उस अंजान लड़की को मैसेज किया, "मुझे तुमसे तुरंत मिलना है, अभी कॉफ़ी हाउस आ जाओ प्लीज।" "ओके" उधर से जवाब आया था।

कभी-कभी जीवन में कोई-कोई दिन बेहद अप्रत्याशित गुजरता है। अरविंद के लिए आज का दिन वैसा ही था। कॉफ़ी हाउस में बैठे अरविंद के लिए एक-एक पल मानो एक-एक युग की तरह था। "ये मैंने क्या कर दिया...जाने किसके साथ इतने दिन चैटिंग की...कितनी सारी बातें शेयर की...उफ्फ !! मेरे साथ ये क्या हो रहा है..." अरविंद बेहद बेचैन हो उठा, तभी उसने अपने सामने अंजुलिका सान्याल को पाया। "हाय ! इतनी जल्दबाजी में मुझे क्यों बुलाया? मैं तो घबरा ही गई।", ऐसा कहते हुए अंजुलिका सामने वाली चेयर पर बैठ गई थी। "ओह !! तो ये नंबर अंजुलिका का था ! वो इतने समय तक अंजुलिका से चैटिंग कर रहा था !" सोचकर उसके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं। फिर कुछ पल अरविंद ने खुद को संयत करने में लगाए, अंजुलिका सामने बैठी उसे देखती रही। अरविंद की नज़रें अंजुलिका से टकरा गईं, अंजुलिका के चेहरे पर एक अनोखी सी चमक थी, उसकी बड़ी-बड़ी गहरी सी आँखें उत्सुकता और प्रेम की ज्योत से उज्जवल थीं। अधरों पर मीठी मुस्कान की लालिमा थी। अरविंद धीमे शब्दों में उसे सब कुछ बताता रहा कि कैसे उसने अंजना के भ्रम में अंजुलिका का नंबर नोट किया था और कैसे वह उसे अंजना समझकर चैटिंग करता रहा था। सबकुछ सुनकर अंजुलिका की आँखों में नमी उतर आई जिसने उसके आँखों की चमक को 'दप्प' से बुझा दिया, जैसे किसी ने दीए में पानी डाल दिया हो। उसका चेहरा अचानक ही कुम्हला गया जैसे ठंड की गुनगुनी धूप में अचानक ही बादल घिर आए हों। अंजुलिका के भोले से चेहरे की उदासी ने अरविंद को झकझोर दिया। अंजुलिका न चीखी, न चिल्लाई, न ही उसने अरविंद को डाँटा,"अरविंद तुम्हें कभी भी मेरी जरूरत हो तो जरूर बताना, वी आर फ्रेंड्स और हमेशा रहेंगे...और देखो, खुश रहना।" कहकर अंजुलिका वहाँ से तेज कदमों से निकल गई।

उसके बाद अंजुलिका का कभी कोई मैसेज नहीं आया। अरविंद की भी हिम्मत नहीं हुई, लेकिन उस दिन के बाद अरविंद का लापरवाह सा खिलंदड़ स्वभाव गंभीरता में बदलने लगा था। उस दिन के बाद अरविंद को अंजना की कभी याद नहीं आई और न ही उसका उससे कभी भी बात करने का मन हुआ, लेकिन ऐसा कोई दिन नहीं हुआ जब उसे अंजुलिका का ध्यान न आया हो। अंजुलिका के उदास चेहरे और नम आँखों की याद उसे रातों में सोने नहीं देती थी। मन के किसी कोने में दुबककर चुपचाप बैठा अपराध बोध उसे चैन नहीं लेने देता था। "काश उस दिन अंजुलिका ने मुझे खूब खरी-खोटी सुनाई होती, मुझपर चिल्लाई होती तो मेरा मन मुझे ऐसे तो न कोसता, लेकिन उस भली लड़की ने तो कुछ भी नहीं कहा, उल्टे मुझे दुआएँ देती हुई चली गई।" अरविंद सोचता।

समय का चक्र चलता रहा। पढ़ाई पूरी हो गई, अधिकांशतः सबका ही कैम्पस सिलेक्शन हो गया था। प्रतिभाशाली अंजुलिका का बहुत अच्छी जगह सिलेक्शन हुआ था। मिलन और बिछोह प्रकृति का नियम है, यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं। साल दर साल बीतते चले गए, अरविंद और अंजुलिका प्रारब्ध द्वारा निर्धारित अपने-अपने जीवन पथ पर चलते रहे। अंजुलिका को अरविंद कभी भूल नहीं पाया। वह विवाह भी नहीं कर पाया था, क्योंकि वह हर लड़की में अंजुलिका को ढूँढता। "काश एक बार मिल जाए तो अंजुलिका से माफी माँग लूँ" अरविंद अक्सर सोचता। "मेरे पास कोहिनूर था, लेकिन मैं तो पत्थर के पीछे भाग रहा था। मैंने कोहिनूर को पाकर भी खो दिया।" अरविंद पछतावे की आग में जलता, व्हाट्सएप्प के पुराने मैसेज निकालकर पढ़ता।

आखिर ईश्वर को शायद अरविंद पर दया आ ही गई। अरविंद एक दूसरी कंपनी में स्विच करने जा रहा था।आज उसकी वहाँ जॉयनिंग थी। वहाँ जाते ही उसे पता चला कि अंजुलिका उसी कंपनी में हायर पोस्ट पर है। अंजुलिका ने उसे वहाँ देखा तो उसने उसका मुस्कुराकर स्वागत किया और बहुत खुश होकर सबको बताया, "वी आर बैचमेट्स !!" अरविंद को अंजुलिका पहले से कहीं ज्यादा सुंदर लगी, वही सौम्य चेहरा, बड़ी-बड़ी चमकदार आँखें, मधुर आवाज़, सलीके का पहनावा। उसकी चाल-ढाल में आत्मविश्वास का पुट आ गया था। एक दिन मौका पाकर अरविंद, अंजुलिका के चेंबर में पहुँच गया, "थोड़ी देर के लिए बात कर सकता हूँ क्या?" अरविंद ने पूछा। "अरे ! इतनी औपचारिकता क्यों अरविंद? आराम से बैठो और बताओ कैसे हो।" अंजुलिका ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ कहा। कुछ देर इधर-उधर की बातें करके उसने धीमे से पूछा,"अंजू मुझे माफ तो कर दिया ना तुमने?" "अरविंद मैं तो अतीत की सिर्फ खुशगवार बातें ही याद रखती हूँ और अनजाने में की गई गलती, गलती नहीं होती। तुम अपने मन में कोई बोझ मत रखो और देखो माफी वाली बात अब कभी मत करना प्लीज़।" अंजुलिका ने बहुत प्यार से कहा। "तुम्हें तुम्हारी पसंद की लड़की मिली या नहीं?" अंजुलिका ने माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से उससे पूछा। "मेरी पसंद तो तुम ही हो अंजू।" अरविंद ने बहुत धीरे से कहा लेकिन उसका वाक्य पूरा होता उसके पहले ही एक सज्जन ने चेंबर में प्रवेश किया और बड़े अधिकार से अंजुलिका से कहा, "अब चलो लंच कर लो, रोज देर करती हो।" "मीट माई केयरिंग हसबैंड अभिषेक।" अंजुलिका ने दोनों का परिचय करवाया। तीनों ने कुछ देर बातचीत की और फिर अंजुलिका अपने पति के साथ लंच के लिए निकल गई।

उस दिन अंजुलिका के चेहरे का नूर देखकर और उससे बातें करने के बाद अरविंद के मन पर सालों से रखा बोझ अचानक ही गायब हो गया जैसे कोई बर्फ की सिल्ली स्नेह की गर्माहट से पिघल गई हो। उसे महसूस हुआ कि उसे अपने कोहिनूर को सदा के लिए खोने का बहुत दुख है, लेकिन इस बात की उसे बेहद खुशी भी है कि उसका कोहिनूर पूरे आन बान और शान से अपनी चमक बिखेर रहा है।




- डॉ. सुकृति घोष,
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र,
शा. के. आर. जी. कॉलेज,ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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