सोशल मीडिया का युवा पीढ़ी पर प्रभाव विषय पर भाषण

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सोशल मीडिया का युवा पीढ़ी पर प्रभाव विषय पर भाषण हम सोशल मीडिया के मालिक बनेंगे, गुलाम नहीं असली सफलता फॉलोअर्स की संख्या में नहीं, हमारे चरित्र और

सोशल मीडिया का युवा पीढ़ी पर प्रभाव विषय पर भाषण


माननीय प्रधानाचार्य महोदय, सम्मानित शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों,सादर नमस्कार!
आज मैं आपके सामने एक ऐसे विषय पर बोलने जा रहा हूँ जो हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है – सोशल मीडिया का युवा पीढ़ी पर प्रभाव।हम वह पहली पीढ़ी हैं जिसने बचपन से ही स्मार्टफोन को अपने हाथों में थामा है। हमारे लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, टिकटॉक और स्नैपचैट कोई नई चीज नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। सुबह उठते ही सबसे पहले फोन खोलना, रात को सोने से पहले आखिरी बार स्क्रोल करना – यह हमारी आदत नहीं, हमारी जरूरत बन चुका है। लेकिन सवाल यह है कि यह शक्तिशाली हथियार हमारे लिए वरदान है या अभिशाप?सोशल मीडिया ने हमें वह आवाज दी है जो पहले कभी नहीं थी। 

आज एक आम युवा भी अपने विचार दुनिया के सामने रख सकता है। #MeToo, #BlackLivesMatter, जलवायु परिवर्तन हो या किसान आंदोलन – इन सारे आंदोलनों को ताकत देने में सोशल मीडिया की सबसे बड़ी भूमिका रही है। आज का युवा जागरूक है, सूचित है और बदलाव लाने की क्षमता रखता है। कई युवा तो इसी प्लेटफॉर्म पर अपना करियर बना रहे हैं – इन्फ्लुएंसर, कंटेंट क्रिएटर, डिजिटल मार्केटर, यूट्यूबर – ये नए जमाने के पेशे हैं जो सोशल मीडिया ने ही पैदा किए हैं। दूर बैठे रिश्तेदारों से वीडियो कॉल पर बात करना, दुनिया के किसी कोने-कोने की खबरें तुरंत जानना – ये सब सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता।लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। 

सोशल मीडिया का युवा पीढ़ी पर प्रभाव विषय पर भाषण
और इस सिक्के का दूसरा पहलू बहुत गहरा और खतरनाक है।सबसे बड़ा नुकसान हुआ है हमारी एकाग्रता का। पहले हम घंटों किताब पढ़ लेते थे, आज दस मिनट का लेख भी भारी लगता है। हमारा दिमाग अब 8-10 सेकंड की रील्स के लिए ट्रेन हो चुका है। लंबी बातें बोरिंग लगती हैं, गहराई वाली चर्चा नहीं होती। हम स्क्रोल करते जाते हैं, लेकिन कुछ याद नहीं रहता। नतीजा यह है कि हमारी पढ़ाई-लिखाई, हमारा करियर, हमारा भविष्य – सब प्रभावित हो रहा है।दूसरा सबसे बड़ा असर पड़ा है हमारी मानसिक सेहत पर। हर कोई अपनी जिंदगी का सिर्फ सबसे खूबसूरत हिस्सा दिखाता है – लग्जरी छुट्टियाँ, परफेक्ट बॉडी, महंगी गाड़ियाँ, खुशहाल रिश्ते। और हम अपनी साधारण जिंदगी को देखकर खुद को कमतर समझने लगते हैं। "मैं पास यह क्यों नहीं है?", "मैं इतना अच्छा क्यों नहीं दिखता?" – ये सवाल हमारे दिमाग में दिन-रात घूमते रहते हैं। चिंता, तनाव, अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति – ये सब आज की युवाओं में तेजी से बढ़ रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, जो युवा दिन में 5 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर बिताते हैं, उनमें डिप्रेशन का खतरा तीन गुना ज्यादा होता है।

फिर आता है FOMO – Fear of Missing Out। हमें डर लगता है कि कहीं हम कुछ मिस न कर दें। इसलिए रात के 2-3 बजे तक भी फोन हाथ में रहता है। नींद गायब, आँखों में जलन, सिर दर्द – ये सब आम बात हो गई है। और सबसे दुखद बात यह है कि असल जिंदगी के रिश्ते कमजोर पड़ते जा रहे हैं। हम सैकड़ों-हजारों फॉलोअर्स के साथ भी अकेला महसूस करते हैं। सामने बैठे दोस्त से बात करने की बजाय हम मैसेज करते हैं। भावनाएँ व्यक्त करने की बजाय इमोजी भेज देते हैं। हमारा इमोशनल इंटेलिजेंस खत्म होता जा रहा है।साइबर बुलिंग, बॉडी शेमिंग, ट्रोलिंग, फेक न्यूज़ – ये सब सोशल मीडिया के जहरीले पहलू हैं जो युवाओं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा रहे हैं। एक गलत कमेंट, एक वायरल मीम भी किसी की जिंदगी बर्बाद कर सकता है।

तो अब सवाल यह है कि हम क्या करें?हमें सोशल मीडिया को छोड़ना नहीं है, बल्कि उसे समझदारी से इस्तेमाल करना है। हमें डिजिटल डिटॉक्स की आदत डालनी होगी। दिन में कुछ घंटे फोन को पूरी तरह फोन से दूर रखें। असल जिंदगी के रिश्तों को समय दें। किताबें पढ़ें, खेलें, प्रकृति के साथ समय बिताएँ। स्क्रीन टाइम को सीमित करें। जो कंटेंट हमें निगेटिव फील कराता है, उसे अनफॉलो करें। और सबसे जरूरी – खुद से प्यार करना सीखें। हम जैसा हैं, वैसा ही काफी हैं। किसी की परफेक्ट दिखने वाली जिंदगी से अपनी तुलना करना बंद करें।मेरे प्यारे दोस्तों,सोशल मीडिया एक औजार है – न अच्छा, न बुरा। अच्छा या बुरा इसे बनाता है हमारा इस्तेमाल। यदि हम इसे संतुलन और समझदारी से इस्तेमाल करेंगे तो यह हमें नई ऊँचाइयाँ छूने में मदद करेगा। लेकिन यदि हम इसके गुलाम बन गए तो यह हमें अंदर से खोखला कर देगा।

आइए हम संकल्प लें कि हम सोशल मीडिया के मालिक बनेंगे, गुलाम नहीं। हम अपनी जिंदगी को असल दुनिया में जिएँगे, वर्चुअल दुनिया में नहीं। हम अपने सपनों को सच करेंगे, लाइक्स और फॉलोअर्स के पीछे नहीं भागेंगे।क्योंकि असली खुशी लाइक्स में नहीं, दिल में होती है।और असली सफलता फॉलोअर्स की संख्या में नहीं, हमारे चरित्र और कर्मों में होती है।

धन्यवाद। 

जय हिंद! जय भारत!

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