निराला की प्रतीक प्रस्तुति की समीक्षा

SHARE:

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रतीक-प्रस्तुति हिंदी कविता की सबसे अनूठी और शक्तिशाली उपलब्धि है। उन्होंने प्रतीक को कभी सजावट का सामान नहीं बनने दिय

निराला की प्रतीक प्रस्तुति की समीक्षा


सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रतीक-प्रस्तुति हिंदी कविता की सबसे अनूठी और शक्तिशाली उपलब्धि है। उन्होंने प्रतीक को कभी सजावट का सामान नहीं बनने दिया, बल्कि उसे जीवन का सबसे गहरी पीड़ा, सबसे तीखे विद्रोह और सबसे सूक्ष्म करुणा का जीता-जागता शरीर बना दिया। उनके यहाँ प्रतीक मरकर नहीं जीते हैं – वे साँस लेते हैं, चीखते हैं, रोते हैं, हँसते हैं और बदला लेते हैं। निराला ने सबसे पहले प्रकृति को छायावाद की कोमल सेज से उतारकर धूल-धूसरित सड़कों, खदानों और खेतों में खड़ा कर दिया। 

पूरी सभ्यता का अपराधबोध

‘वह तोड़ती पत्थर’ इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। दोपहरी की जलती धूप में एक अकेली स्त्री पत्थर पर हथौड़ा चला रही है। पत्थर यहाँ केवल पत्थर नहीं है – वह सारा शोषण-तंत्र है, सारी पितृसत्ता है, सारी पूँजीवादी क्रूरता है। हथौड़े की हर चोट एक सवाल है जो सभ्यता के मुँह पर पड़ रही है। और वह स्त्री? वह कोई दुर्बल अबला नहीं, वह साक्षात् दुर्गा है जो अपना ही रूप धारण किए बिना भी चट्टानें चूर कर रही है। सूर्य उसकी पीठ पर आग बरसा रहा है, पर उसकी आँखें ठंडी हैं – यह ठंडक निराला की क्रांतिकारी करुणा है जो हिंसा में भी दिखाई देती है।‘जूही की कली’ में एक छोटी-सी कली को कुचल दिया जाता है। बस इतनी-सी बात। लेकिन निराला ने उसे इस तरह लिखा है कि वह कली एक साथ उनकी बेटी भी है, भारत की हर लड़की भी है, और सारा कुंवारा सौंदर्य भी है जो अभी फूल बना भी नहीं कि रौंद दिया जाता है। कली का कुचला जाना सिर्फ एक दृश्य नहीं, एक पूरी सभ्यता का अपराधबोध बन जाता है।

निराला एक कुशल भाषा-मर्मी और शब्द-शिल्पी हैं। कवि स्वभावतः अधिक भावुक और संवेदनशील होता है। अतः वह अभिधा के साथ-साथ लक्षणा और व्यंजना का भी प्रयोग करता है। किसी भाव अथवा विचार को स्पष्टता और बोधगम्यता प्रदान करने के लिए कवि अनेकानेक प्रतीकों का सहारा लेता है। अपेक्षाकृत छायावादी रचनाकारों ने अधिक मात्रा में प्रतीकों का प्रयोग करके अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावशाली बनाने का सफल प्रयास किया है। प्रतीकों के द्वारा एक कुशल रचनाकार अपने अन्तरीण भावों को वांछित स्वरूप प्रदान करने में सफल होता है। निराला की भाव-व्यंजना इन्हीं प्रतीकों के माध्यम से आगे बढ़ी है। क्या आध्यात्मिक, क्या प्रेम-विषयक चित्र सभी में कवि ने सजीव एवं मार्मिक प्रतीकों का संगुम्फन किया है। 'सन्ध्या सुन्दरी' शीर्षक कविता में निराला जी ने प्रतीकों की उत्तम व्यवस्था की है। परी के लिए कवि ने सर्वथा नवीन प्रतीक विधान किया है। निश्चय ही कवि निराला ने उदात्त भावों को व्यक्त करने का प्रयास किया है। यथा- दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी धीरे-धीरे-धीरे । 

अलसता की-सी लता 
किन्तु, कोमलता की वह कली 
सखी नीरवता के कन्धे पर डाले बाँह 
छाँह-सी अम्बर- पथ से चली। 

सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक प्रतीकों की बहुलता

निराला के काव्य-साहित्य में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक प्रतीकों की बहुलता प्रतीक समसामयिक परिस्थितियों को अभिव्यक्ति प्रदान करने में सर्वथा समर्थ रहे हैं। है। ये उदाहरणार्थ उनकी लम्बी कविता 'राम की शक्तिपूजा' कृतिवासीय रामायण की कथा पर आधारित एक लम्बी कविता है। इस कविता में राम और रावण के बीच हुए अंतिम चरण के युद्ध के मार्मिक कथा का वर्णन है। राम पराजित होने लगते हैं। फलत: जय की कामना को लेकर माँ दुर्गा की आराधना में संलग्न होते हैं। आराधना के दौरान लगता है राम यहाँ भी असफल होंगे किन्तु अन्ततः माँ दुर्गा उनके पक्ष में हो जाती हैं और राम विजयी हो जाते हैं। अस्तु इस कथा से स्पष्ट है कि सात्विक व्यक्ति का संघर्ष अन्ततः सफल होता है। 

निराला की प्रतीक प्रस्तुति की समीक्षा
‘राम की शक्ति-पूजा’ तो निराला की प्रतीक-योजना का मुकुट है। यहाँ राम कोई विजेता नहीं, पराजित हैं। लंका जीतने के बाद भी वे शक्ति के सामने असहाय हैं। शक्ति बंदी है, उसकी आँखों में आँसू हैं और गले में बेड़ियाँ। वह गा रही है – “विजय का वर मुझे दो, हे विश्वपते!” यह गीत सुनकर राम का ध्वंस हो जाता है। यहाँ निराला ने राम को मनुष्य बना दिया और शक्ति को जनता। बंदी शक्ति का वह करुण गीत दरअसल सारी पराधीन भारत की आवाज़ है, सारी दमित नारी की चीख है, सारे शोषितों का अंतिम आर्तनाद है। राम का सिर झुक जाना निराला का अपना सिर झुकाना है – उस सत्ता के सामने जो सैकड़ों वर्षों से जन-शक्ति को बाँधे हुए है।‘सरोज-स्मृति’ में अपनी मृत बेटी सरोज को याद करते हुए निराला ने मृत्यु को सबसे सुंदर चेहरा दे दिया। सरोज मरती नहीं, वह फूल बनकर उड़ जाती है, फिर बादल बनकर लौटती है, फिर नदी बनकर बहती है। मृत्यु यहाँ अंत नहीं, निरंतर परिवर्तन है। एक पिता का व्यक्तिगत शोक अचानक समूचे विश्व के क्षय और पुनरुज्जीवन का प्रतीक बन जाता है। “तुम्हारी स्मृति में मैं जीता हूँ” – यह पंक्ति केवल बेटी के लिए नहीं, जीवन के हर खोए हुए हिस्से के लिए कही गई है।‘भिक्षुक’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘नए पत्ते’ जैसी कविताओं में निराला ने समाज के सबसे निचले पायदान के लोगों और चीज़ों को प्रतीक बनाया। भिखारी खड़ा है, हाथ फैलाए, लेकिन उसका हाथ माँग नहीं रहा, वह समाज को उसकी क्रूरता का आईना दिखा रहा है। कुकुरमुत्ता विषैला है, पर वह उगता है जहाँ कोई फूल उगने की हिम्मत नहीं करता – वह निम्न वर्ग की वह संतान है जिसे जन्म लेते ही जहर कहा जाता है, फिर भी वह जीता है।

प्रतीक कभी किताबी नहीं लगते

निराला के बादल कभी करुणा बनकर बरसते हैं, कभी क्रांति बनकर गरजते हैं। ‘बादल राग’ में बादल कोई मौसम की घटना नहीं, वह सारी पृथ्वी पर छाई हुई उदासी का जवाब है। उनकी बिजलियाँ चमकती हैं तो लगता है सदियों का अन्याय एक साथ जल रहा है।सबसे बड़ी बात यह है कि निराला के प्रतीक कभी किताबी नहीं लगते। वे ग्रामीण उत्तर प्रदेश की माटी से उपजे हैं, खेतों की मेढ़ों से, गाँव की गलियों से, मेलों के शोर से, मंदिरों की घंटियों से। इसलिए वे हिंदी के पाठक के रग-रग में समा जाते हैं।

निराला ने प्रतीक को इतना जीवंत बना दिया कि वह पाठक के भीतर जाकर बैठ जाता है और सालों-साल दर्द देता रहता है, विद्रोह जगाता रहता है, करुणा बरसाता रहता है। यही कारण है कि आज भी, सौ वर्ष बाद भी, उनकी कविताएँ पढ़ते समय लगता है जैसे कोई हमारे सीने पर हथौड़ा चला रहा हो – और हम चीखते नहीं, मुस्कुराते हैं, क्योंकि वह हथौड़ा हमें तोड़ने नहीं, आज़ाद करने आया है।यही निराला की प्रतीक-शक्ति का चमत्कार है – वे प्रतीक नहीं, साँस लेती हुई सच्चाइयाँ हैं।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका