जरा पॉजिटिव सोचा करो दुनिया बहुत बदल गई है। पहले लोग सलाह देने से बचते थे।कहीं सलाह उलटी पड़ गई तो बदनामी होगी। आज जमाना उलटा है। लोग सलाह दे
जरा पॉजिटिव सोचा करो
दुनिया बहुत बदल गई है। पहले लोग सलाह देने से बचते थे।कहीं सलाह उलटी पड़ गई तो बदनामी होगी। आज जमाना उलटा है। लोग सलाह देने का इंतज़ार करते हैं। आप बस एक सांस भरी आवाज़ निकाल दें, सामने वाला तुरंत कहेगा,"जरा पॉज़िटिव सोचा करो!"
"पॉज़िटिव सोच "ऐसा शब्द हो गया है जैसे पुराने ज़माने का बाम।सिर दुखे तो भी वही, पैर दुखे तो भी वही, दिल दुखे तो भी वही। फर्क इतना है कि बाम लगाने से दर्द उतरता था, पर पॉज़िटिव सोचने की सलाह सुनकर आदमी की आँखें ही जल जाती हैं।
मेरे एक मित्र हैं।नाम न लें तो बेहतर। नाम लेने से उनके भीतर जो निगेटिव ऊर्जा उमड़ेगी, उसका दोष भी वे मुझ पर डाल देंगे।वे अक्सर शिकायत करते हैं,"दुनिया खराब है। काम नहीं मिलता। महंगाई बढ़ गई। पेट्रोल 115 रुपये। राजनीति में भ्रष्टाचार।"... और भी ना जाने क्या क्या।
मैंने कहा,,"भाई, परेशान क्यों होते हो?"
वे बोले,"परेशान कैसे न होऊँ?
मैंने उनसे कहा,"यार, जरा पॉज़िटिव सोचा करो!"
वाक्य में जादू था। वह चौंक गए। एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मैंने उन्हें जीवन का गुप्त ताला खोलने की चाबी थमा दी हो।उन्होंने तुरंत अपने दुख से ध्यान हटाकर मुझ पर ध्यान लगाया।
बोले,"अच्छा… !तो तुम भी उन लोगों में से हो गए? यानी जब समस्या का समाधान न मालूम हो, तो पॉज़िटिविटी की ढक्कन लगा दो?"
मुझे पहली बार समझ आया।यह वाक्य किसी का जीवन बदलने के लिए नहीं बोला जाता, बल्कि खुद को झंझट से बचाने के लिए बोला जाता है।
पॉज़िटिव सोच के प्रचारक दो तरह के होते हैं। एक, जिन्हें जिंदगी ने इतना पकाया है कि अब कुछ भी जले-सड़े में उन्हें सुगंध आती है।दूसरे, जिन्हें दूसरों पर ज्ञान झाड़ने का शौक है।ये दोनों मिलकर आपको हर परिस्थिति में पॉज़िटिव रहना सिखाते हैं।
आप कहें,"भाई साहब, नौकरी चली गई।"
वे कहेंगे,"अरे, जरा पॉज़िटिव सोचो, इस बहाने तुम अपने असली पैशन को अवसर दे सकोगे।"
कैसा पैशन?
उस वक्त आदमी का एक ही पैशन होता है। पेट भरना। ऑफिस में पॉज़िटिविटी एक और प्राणी होता है।जिसे बॉस कहते हैं।
"काम का दबाव?"
...अरे!दबाव से ही हीरा बनता है।जरा पॉज़िटिव सोचा करो।" लगता है दुनिया के सारे हीरे कोयले से नहीं, कर्मचारियों के तनाव से बने हैं।
HR विभाग भी बड़ा आशावादी होता है।
कहते हैं,"हम आपको नौकरी नहीं, अवसर देते हैं।"
...और जब निकालते हैं, तो कहते हैं।"हम आपको आज़ादी दे रहे हैं। नई दिशा खोजिए!"
मतलब नौकरी मिलना भी अवसर है और नौकरी जाना भी अवसर है।लगता है HR विभाग का मंत्र ही है।"कुछ भी हो जाए, बस मुस्कुराते रहो।"
घर-परिवार में पॉज़िटिविटी का विन्यास और भी अद्भुत है।
हम कहें,"बेटे का रिज़ल्ट खराब आया।"तो रिश्तेदार कहते हैं, कोई बात नहीं! जरा पॉज़िटिव सोचिए!हो सकता है,किस्मत में थोड़ी देर से सफलता लिखी हो।"
...और पीठ पीछे , यही रिश्तेदार किसी तीसरे को कहते मिलते हैं,"लड़का ही निकम्मा है। पढ़ता लिखता तो है नहीं, फिर रिजल्ट क्या खाक आएगा।
… देखना, इसकी शादी भी मुश्किल से होगी।
एक बार मुझे जुकाम हुआ।डॉक्टर को दिखाया।उन्होंने कहा,"कुछ नहीं, जरा पॉज़िटिव रहिए।"
मैंने पूछा,"डॉक्टर साहब, पॉज़िटिव रहने से जुकाम कैसे जाएगा?"
वे बोले,"दवाई तो मैं लिख ही रहा हूँ… लेकिन जल्दी वही ठीक होते हैं जो पॉज़िटिव रहते हैं।"
यह सुनकर लगा कि दवाई कम, और मन:स्थिति ज़्यादा जरूरी है।मैंने कहा,
"तो अगली बार दवाई मत लिखिएगा, मैं घर बैठकर सिर्फ हँसता रहूँगा!"डॉक्टर मुस्कुरा दिए।मैं समझ गया।यह मुस्कान भी पॉज़िटिविटी के नाम पर डाल दी जाएगी।
"प्याज 80 रुपये किलो।"
पॉज़िटिव मित्र कहते हैं,"चलो बढ़िया हुआ! अब प्याज कम खाने को मिलेंगे, इससे सेहत तो सुधरेगी।"
हम कहते हैं,"पेट्रोल 115 रुपये।"
तो पॉजिटिव मित्र कहते हैं । बढ़िया है,"पैदल चलोगे तो फिट रहोगे।"
एक दिन ऐसा होगा कि गैस सिलेंडर 2000 रुपये का होगा तो पॉजिटिव मित्र कहेंगे।,"चलो बढ़िया हुआ।अब लकड़ी जलाकर खाना पकाने का आनंद ही कुछ और ही आएगा।"यानी महंगाई का फायदा सिर्फ उन्हीं को होता है जो खर्च नहीं करते।जैसे पड़ोसी, रिश्तेदार और टीवी पर बहस करने वाले विशेषज्ञ।
सोशल मीडिया पर आजकल पॉज़िटिविटी ऐसे बहती है जैसे गंगा में आरती।कोई लिखता है,"आज मन उदास है।"
नीचे कमेंट आता है,"अपनी ऊर्जा बढ़ाइए, ब्रह्मांड आपकी तरंगों को सुन रहा है।"ब्रह्मांड बेचारा कहीं सिर पकड़कर बैठा होगा एक लड़की ने लिखा,"ब्रेकअप हो गया।"नीचे सुझाव,"पॉज़िटिव सोचो, इससे तुम मजबूत बनोगी।"
मतलब दिल टूटा हो, दर्द हो।पर तुम्हें तुरंत शक्ति का स्रोत बन जाना है।यह भी नहीं कह सकते कि दुखी हूँ।किसी की भावना आहत हो जाएगी। सोशल मीडिया पर तो जैसे दुख जताना भी अब सामुदायिक अपराध हो गया है।
भारतीय पड़ोसन जितनी पॉज़िटिव होती है, उतनी पॉज़िटिविटी कहीं देखने को नहीं मिलती ।आपके घर गैस खत्म हो गई हो, वे कहेंगी,"जरा पॉज़िटिव सोचिए, बिना गैस के भी प्रकृति के करीब रहना संभव है।"
आप कहें,"किराया बढ़ गया।
वे कहेंगी,"पॉज़िटिव सोचिए, इससे आप मेहनत करोगे और तरक्की होगी।"
आज समस्या यह है कि लोग आपकी बात सुनते नहीं है,वे बस आपको चुप कराने के लिए पॉज़िटिविटी की पट्टी चिपका देते हैं।
आप कहें,"थोड़ा अकेलापन महसूस हो रहा है।"
वे कहेंगे,"पॉज़िटिव सोचो!"
आप कहें,"काम का तनाव है।"
वे कहेंगे,"पॉज़िटिव बनो!"
आप कहें,"दुखी हूँ।"
वे कहते हैं,"निगेटिव मत सोचा करो!”
जैसे दुख, तनाव, परेशानी सब अपराध की श्रेणी में आते हों।आप दुख जताओ तो यह माना जाता है कि आप सामाजिक अनुशासन तोड़ रहे हैं।एक गंभीर सच्चाई यही है कि लोग आपकी समस्या हल नहीं करना चाहते,वे सिर्फ आपको अपनी समस्या न बताने का तरीका सिखाते हैं।
पॉज़िटिविटी का असली अर्थ तो बिल्कुल साधारण है,समस्या का सामना करते हुए मन न टूटे। ..लेकिन आजकल पॉज़िटिविटी का मतलब हो गया है।जिंदगी के हर कड़वे सत्य को चीनी में डुबोकर खाना। सच्ची पॉज़िटिविटी वही होती है।जो बिना किसी प्रयास के अपने भीतर अंदर से आती है।यह वह चीज़ नहीं जो लोग आप पर थोप दें। जैसे शादी में गुलदस्ते देते हैं। आपका लेने का मन हो या नहीं?, आपको लेना ही पड़ता है।
आजकल पॉजिटिविटी नामक फैशन चल रहा है।समस्या आपकी, सलाह हमारी। दर्द आपका, समाधान सिर्फ एक।पॉजिटिव रहिए ।
एक दिन मैंने अपने पॉज़िटिव मित्र से कहा,"भाई, आजकल कुछ अच्छा नहीं लग रहा।" वह बोला,"जरा पॉज़िटिव सोचा करो!"मैंने पूछा,"अगर सबकुछ पॉज़िटिव सोचना ही है, तो संविधान में शिकायत का अधिकार क्यों दिया?"
मित्र चुप हो गए।मैंने आगे कहा,"अगर पॉज़िटिव सोचना ही समाधान है, तो अस्पताल, पुलिस, अदालत सब बंद कर दो। लोग पॉज़िटिव सोच-सोचकर ही अपने-अपने मामलों को सुलझा लेंगे।
उसने गहरी सांस ली और बोला,"यार, तुम तो बिल्कुल निगेटिव हो गए हो।"
मैं हँस पड़ा,"निगेटिव नहीं भाई… बस यथार्थवादी हूँ।"
जिंदगी में पॉज़िटिविटी अच्छी चीज है।जितनी होती है उतनी सुगंध आती है।लेकिन हर चीज़ में पॉज़िटिविटी का पाउडर नहीं छिड़का जा सकता। यदि ऐसा हो जाए तो व्यंग्य करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।दुनिया खुद अपने आप में मजाक बन जाएगी।
इसलिए आपकी समस्या देखकर यदि कोई पॉजिटिव मित्र आपसे कहे,जब अगली बार कोई आपसे कहे,"जरा पॉज़िटिव सोचा करो!" तो मुस्कुराए ,सिर हिलाए, और उनसे कहे,"मित्र पॉज़िटिव तो सोच लूंगा, पर यह समस्या तुम्हारी नहीं।… मेरी है,इसलिए समाधान भी मुझे ही ढूंढना होगा।सिर्फ सोचने मात्र से इसका हल निकलने वाला नहीं।"
- हनुमान मुक्त,
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