विश्वविद्यालय एक स्वायत्त निकाय है वर्तमान समय में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि विश्वविद्यालय की स्वायत्त संस्था के रूप में स्वीकार किया जाए या नही
विश्वविद्यालय एक स्वायत्त निकाय है
वर्तमान समय में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि विश्वविद्यालय की स्वायत्त संस्था के रूप में स्वीकार किया जाए या नहीं लेकिन यह पूर्णतः सत्य है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्थाएँ ही हैं। इन विश्वविद्यालयों पर तो राज्य सरकार का और न ही केन्द्र सरकार का नियंत्रण होता है। इनका प्रशासन एवं संचालन सभी पृथक् है। विश्वविद्यालय स्वाधीन है अथवा नहीं इस विषय पर वर्तमान में हमारे लिए एक समन्वित व व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाये जाने की आवश्यकता है हालांकि कुछ विद्वान् ऐसे हैं जो विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को जरा भी कम करने के पक्ष में नहीं है। यदि विश्वविद्यालयों में सरकारी हस्तक्षेप हुआ तो इसके दुष्परिणाम सामने आयेंगे।
मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डॉ. राधास्वामी मुदालियर ने इस सम्बन्ध में कहा था कि "अनेक बातों में शिक्षा मंत्रालय निर्देश भेजता है। सेक्रेटरी हमें बताते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। हमें ऐसे संदेश भेजे जाते हैं कि हम यदि उनका पालन करने लगें तो हम ईश्वर की कहानियों में वर्णित मनुष्य, बालक तथा गधे की कहानी के पात्र स्वरूप हो जायेंगे।" मुदालियर से सहमत होते हुए आर्नोल्ड ए. बी. अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि "वह व्यक्ति जो विश्वविद्यालय से अच्छी तरह परिचित नहीं है एवं उसको अथाह प्रेम नहीं करता, विश्वविद्यालय के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकारी नहीं है।" लेकिन इसके विपरीत कुछ विद्वानों ने अपने मतों को प्रस्तुत किया जिन्होंने विश्वविद्यालय स्वाधीनता के सम्बन्ध में समन्वित सन्तुलित तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया है। इन विद्वानों का कहना है कि विश्वविद्यालय विचारों की स्वतंत्रता को कायम रखे तथा यदि उचित हो तो सरकार की नीति, कार्यक्रम, योजनाओं की तर्कसंगत आलोचना भी करें। लेकिन इसका यह आशय नहीं कि हमारे विश्वविद्यालय स्वाधीनता के नाम पर सरकार विरोधी केन्द्र बनकर जिस वृक्ष से फल प्राप्त करते हैं उसी वृक्ष की जड़ों को काट दें।
दिल्ली विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति डॉ. चिन्तामणि देशमुख ने विश्वविद्यालय की आंशिक स्वाधीनता का पक्ष रखा है और कहा है कि स्वाधीनता सामान्यता अव्यवस्था तथा दूषित प्रशासन को जन्म देती है और ऐसा केवल नियंत्रण के अभाव में होता है उन्होंने कहा है कि यदि विश्वविद्यालय अपने दायित्वों को भूलकर गलत नीति का अनुसरण करने लगे तो क्या मार्गदर्शन का दयित्व किसी का नहीं होना चाहिए। विश्वविद्यालय शिक्षा मंत्रालय के विभाग मात्र न बनकर रह जायँ, साथ ही राज्य व केन्द्रीय सरकारें अपने पास यह अधिकार सुरक्षित रखें कि विश्वविद्यालय को प्रदान किये गये अनुदान का उचित उपयोग हो । विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता व स्वाधीनता के नाम पर असीमित एवं अनियंत्रित अधिकार प्रदान नहीं किये जा सकते। यदि आज विश्वविद्यालयों में तोड़-फोड़, आगजनी, दंगा-फसाद आदि की घटनाएँ होती हैं तो क्या यह कहना उचित होगा कि पुलिस हस्तक्षेप न हो। यदि भ्रष्ट अधिकारी पैसे का गोलमाल करें तथा इसी प्रकार के अन्य भ्रष्ट अपराध करें तो क्या यह उचित होगा कि सरकार इस बारे में कोई कदम न उठाएँ। इन सब विषम परिस्थितियों को सामने रखते हुए विश्वविद्यालय को अपनी स्वाधीनता कायम रखने हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि वे बहुत ही सतर्कता व सावधानी से कार्य करते हुए अपने बौद्धिक एवं प्रशासनिक दायित्वों को लगन एवं ईमानदारी से पूरा करने का प्रयास करें।
इन उपर्युक्त तथ्यों के बावजूद विश्वविद्यालयों को आज स्वायत्त संस्थाएँ ही कहा जाता है। इस बारे में कोठारी आयोग का कथन है कि स्वतन्त्रता की भाँति स्वाधीनता की रक्षा करना सभी पक्षों का दायित्व है। कानून के अन्तर्गत विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाती है इसलिए उन्हें उतनी ही स्वाधीनता प्रदान की जा सकती है जितनी विधिसम्मत हो।
विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता की सीमा - विश्वविद्यालयों में छात्रों के चयन के सम्बन्ध में स्वायत्तता अवश्य होनी चाहिए, लेकिन समाज के हित में प्रमुख रूप से अनुसूचित जातियों/जनजातियों और अविकसित समूहों के लिए आरक्षण का भी ध्यान रखना होगा। इस प्रकार की सरकारी नीतियों का पालन आवश्यक है। विश्वविद्यालयों को किसी विशेष राजनीतिक दल अथवा व्यक्ति के प्रति निष्ठावान होने की आवश्यकता नहीं है। यू. जी. सी. का कार्य विश्वविद्यालयों को मजबूत करना है।
निष्कर्षत: विश्वविद्यालय स्वायत्तशासी संस्थाएँ हैं। अत: उनके इस स्वरूप को सुरक्षित रखा जाए, सरकार अनावश्यक रूप से उनके कार्यों में हस्तक्षेप न करे, परन्तु जनता के पैसे का दुरुपयोग न हो। विश्वविद्यालय सामाजिक और राष्ट्रीय अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य करे। अतः सरकार को विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक एवं वित्तीय मामलों को निश्चित रूप से देखना चाहिए। अन्य मामलों में विश्वविद्यालय को पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा स्वायत्तता मिलनी चाहिए, यह वाह्य और आन्तरिक दोनों ही होगी। स्वायत्तशासी संस्था के रूप में ही विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य कर सकते हैं।


COMMENTS