शिक्षक अपनी कक्षा तथा समाज का एक नेता होता है शिक्षक अपनी कक्षा तथा समाज का नेता होता है तथा कक्षा व समाज में शिक्षक का विशेष महत्त्व होता है। शिक्षक
शिक्षक अपनी कक्षा तथा समाज का एक नेता होता है
शिक्षक अपनी कक्षा तथा समाज का नेता होता है तथा कक्षा व समाज में शिक्षक का विशेष महत्त्व होता है। शिक्षक अपने छात्रों को केवल शिक्षा ही नहीं प्रदान करता है, बल्कि उन्हें इस योग्य बनाने का प्रयास करता है कि वे समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी बन सकें तथा वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को समझकर उन्हें पूरा करने में समर्थ हो सकें। शिक्षा प्राप्त करने के समय विद्यार्थी को एक निश्चित कक्षा निर्धारित की जाती है। प्रत्येक कक्षा का एक कक्षाध्यापक तथा अन्य सहायक शिक्षक होते हैं, जो विद्यार्थियों को अपने-अपने विषय में शिक्षा प्रदान करते हैं।
शिक्षक छात्रों के गुणों एवं अवगुणों का निरीक्षण हर समय करता रहता है तथा उनमें पनपने वाले प्रत्येक अवगुण को दूर करने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त शिक्षक छात्रों के शैक्षिक ज्ञान का परीक्षण भी समय-समय पर करते रहते हैं। शैक्षिक ज्ञान की जानकारी प्राप्त करने के लिए समय-समय पर परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं।इन सभी निरीक्षणों एवं परीक्षणों से शिक्षक का छात्रों पर नियंत्रण बना रहता है तथा अपने नेतृत्व के द्वारा शिक्षक छात्रों का उचित मार्गदर्शन कर उन्हें उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है।
यही छात्र जब शिक्षा पूरी करके उच्च पद पर पहुँचते हैं तो समाज में उन्हें विशेष सम्मान मिलता है। छात्र में सदैव उन शिक्षकों के प्रति श्रद्धा बनी रहती है, जिन्होंने उन्हें इस उच्च पद को प्राप्त करने के योग्य बनाया है। अतः इस प्रकार शिक्षक का समाज में भी विशेष स्थान होता है। इसके अतिरिक्त समाज भी शिक्षक को विशेष सम्मान देता है, क्योंकि यह बात पूर्ण सत्य है कि समाज को अच्छे नागरिक प्रदान करने वाला व्यक्ति कोई दूसरा नहीं बल्कि ये शिक्षक ही होते हैं। अत: समाज का प्रत्येक सदस्य शिक्षक को विशेष महत्त्व देता है।
छात्रों के संरक्षक जो समाज में रहते हैं शिक्षकों को विशेष महत्त्व देते हैं। संरक्षक छात्रों की पूरी जिम्मेदारी शिक्षकों पर छोड़ देते हैं तथा शिक्षक को वे अपने आप से अधिक महत्त्वपूर्ण समझते हैं। छात्र भी शिक्षक पर पूर्णतः आश्रित हो जाता है तथा वह भी शिक्षक को अपने माता-पिता व संरक्षकों से अधिक सम्मान प्रदान करता है। इस प्रकार छात्र के विकास का वास्तविक मार्गदर्शक एवं नेता अब शिक्षक ही होता है।
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शिक्षा प्रक्रिया एक सामाजिक प्रक्रिया है तथा विद्यालय समाज का ही एक लघु रूप है जिसमें छात्रों का सबसे प्रमुख नेता उसका शिक्षक ही होता है। छात्र शिक्षकों से ही सामाजिक- आवश्यकताओं को जानते हैं। वैसे तो छात्र के प्रति शिक्षक के अनेक कर्त्तव्य होते हैं, परन्तु इन सभी कर्त्तव्यों में से दो कर्त्तव्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं-प्रथम- छात्रों को पुस्तकीय ज्ञान कराना, द्वितीय - छात्रों को योग्य एवं कुशल नागरिक बनाना।पुस्तकीय ज्ञान प्रदान करके शिक्षक छात्रों को अनेक तथ्यों का ज्ञान कराते हैं। पुस्तकीय ज्ञान के माध्यम से छात्र ज्ञानात्मक उपलब्धि करते हैं तथा इसमें आने वाली समस्याओं के निराकरण हेतु वे अध्यापकों से सम्पर्क करते हैं। इस प्रकार पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करके छात्र योग्य एवं कुशल नागरिक बनते हैं तथा समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त करते हैं और अपनी जीविका कमाने के योग्य होते हैं।
छात्र के विकास के लिए केवल पुस्तकीय ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें सामाजिक ज्ञान प्रदान करना भी अनिवार्य है। आधुनिक समाज में उनसे क्या आकांक्षा की जा रही है, समाज की समस्याएँ क्या हैं, समाज की उन्नति हो रही है या अवनति ।यदि अवनति हो रही है तो इसके क्या कारण हो सकते हैं। इन सभी बातों का ज्ञान छात्रों को शिक्षक ही देते हैं तथा वे इस समाज में किस प्रकार अपनी पहचान बनाकर समाज के लिए उपयोगी कार्य करें इसका मार्गदर्शन भी शिक्षक ही करते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षक बालकों में अनुशासनहीनता की भावना को पनपने से रोकता है तथा बालकों को समाज में सभ्य व शिक्षित नागरिक बनाकर खड़ा करता है।
अतः छात्र के विकास की पूरी जिम्मेदारी शिक्षक पर ही होती है और छात्र भी शिक्षक पर पूर्णतया निर्भर होता है। शिक्षक ही एक असभ्य एवं अयोग्य बालक को एक सभ्य एवं योग्य नागरिक बनाकर समाज में भेजते हैं। अतः शिक्षक अपनी कक्षा तथा समाज का नेता. होता है।


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