कुंडली में ग्यारहवाँ भाव शुभ या अशुभ

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ग्यारहवाँ भाव शुभ या अशुभ किसी भी पत्रिका का ग्यारहवाँ भाव इच्छापूर्ति तथा लाभ के बारे में बताता है। ग्यारहवाँ भाव दशम भाव का दूसरा भाव है। दशम भाव क

ग्यारहवाँ भाव शुभ या अशुभ


किसी भी पत्रिका का ग्यारहवाँ भाव इच्छापूर्ति तथा लाभ के बारे में बताता है। ग्यारहवाँ भाव दशम भाव का दूसरा भाव है। दशम भाव कर्म भाव कहलाता है अतः ग्यारहवाँ भाव कर्म का धन है। जातक की मेहनत या कर्म का पारितोषिक कितना होगा, यह इस भाव से पता चलता है, इसलिए यह भाव प्रोफेशन (काम-काज या पेशा) से प्राप्त होने वाला लाभ या जातक की आय को बताता है। इसके साथ ही ग्यारहवाँ भाव जातक की संगति के बारे में भी सूचना देता है। ग्यारहवें भाव के ढेर सारे अच्छे कार्यकत्व होने के बावजूद भी पराशर ऋषि ने इस भाव के स्वामी को पापी कहा है। 

पाराशर जी ने तीनों त्रिषडाय भावों अर्थात् तीसरे, छटवें और ग्यारहवें भावों के स्वामियों को पापी ग्रहों की संज्ञा दी है। हमारे महान ऋषि मुनियों ने काम, क्रोध व लोभ को नर्क का द्वार कहा है। तीसरा भाव कामनाओं का भाव कहलाता है। छटवाँ भाव क्रोध को बढ़ाने वाला भाव है तथा ग्यारहवाँ भाव लोभ का भाव है। इस प्रकार ग्यारहवें भाव के स्वामी की दशा अथवा अंतर्दशा में जातक के अंदर लोभ का संचार होता है। यही कारण है कि ग्यारहवें भाव का स्वामी पापी ग्रह कहलाता है। उदाहरण के लिए यदि पत्रिका में ग्यारहवें भाव तथा चतुर्थ भाव के स्वामियों के बीच कोई संबंध हो तो जातक के मन में प्रॉपर्टी तथा सुख/आराम को लेकर लोभ या लालच होता है, क्योंकि चतुर्थ भाव प्रॉपर्टी तथा सुख/आराम का भाव है, साथ ही यह मन की स्थिति को दर्शाने वाला भी भाव है, इसलिए इस स्थिति में जातक के मन में इन चीजों की अधिकता प्राप्त करने के प्रति लोभ की भावना रहती है। इसीप्रकार यदि पत्रिका में दूसरे भाव तथा ग्यारहवें भाव के स्वामियों के बीच कोई संबंध हो तो ऐसी स्थिति में जातक को धन का लोभ रहता है तथा धन के मामले में जातक स्वार्थी हो सकता है।

यदि पत्रिका में पांचवें भाव तथा ग्यारहवें भाव के स्वामियों के बीच में कोई संबंध हो तो ऐसी स्थिति में जातक ज्ञान के मामले में लोभी होता है तथा वह ज्ञान प्राप्ति की दिशा में स्वार्थी बनकर सदैव आगे रहने की कोशिश कर सकता है, जिसके कारण ज्ञान प्राप्त करने के बावजूद भी वह उत्तम नहीं बन पाता है। लेकिन इस स्थिति में जातक को ज्ञानी व्यक्तियों की संगति का लाभ अवश्य प्राप्त होता है क्योंकि एकादश भाव संगति का तथा पंचम भाव ज्ञान का भाव है। इस स्थिति में जातक को सदैव अपनी संगति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यदि संगति अच्छी होती है तो पंचम भाव के अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त चूँकि पंचम भाव संतान का भी भाव है इसलिए इस स्थिति में जातक अपने बच्चों के लिए स्वार्थी बन सकता है। उसकी इच्छा सदैव यही हो सकती है कि केवल उसके बच्चे को ही लाभ प्राप्त हो, अन्य किसी को नहीं, क्योंकि पंचम भाव संतान का भी भाव होता है। यदि किसी जातक की पत्रिका में नवम भाव तथा एकादश भाव के स्वामियों के बीच संबंध बन रहा हो तो इस स्थिति में जातक को बड़े ज्ञान की भूख अवश्य होती है तथा वह ज्ञान की पराकाष्ठा को पाने के लिए स्वार्थी भी बन सकता है। इस स्थिति में यदि जातक को अच्छे गुरु की संगति मिल जाए तो उसे श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

ग्यारहवाँ भाव शुभ या अशुभ
ग्यारहवें भाव में जो ग्रह बैठता है वह जातक की इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि ग्यारहवें भाव में लग्न का स्वामी स्थित हो जाए तो जातक स्वयं के प्रयासों से ही इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है तथा लाभ की प्राप्ति कर सकता है। यदि ग्यारहवें भाव में द्वितीय भाव का स्वामी स्थित हो तो जातक अपनी वाणी, अपने कुटुंब या अपने थन की सहायता से अपनी इच्छापूर्ति करता है। यदि तीसरे भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में बैठ जाए तो जातक को बातचीत की कला से या छोटे भाई-बहनों के द्वारा लाभ प्राप्त हो सकता है। यदि चौथे भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो जाए तो व्यक्ति प्रॉपर्टी या गाड़ी खरीदकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है। यदि पंचम भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति अपने ज्ञान, बुद्धि या संतान के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। छटवें भाव का स्वामी यदि ग्यारहवें भाव में स्थित हो जाए तो प्रतियोगिताओं के माध्यम से जातक की इच्छापूर्ति हो सकती है। यदि सप्तम भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो जाए तो बिजनेस या रिलेशनशिप के द्वारा जातक को लाभ की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन इसका एक अर्थ यह भी है कि व्यक्ति के कई संबंध हो सकते हैं। यदि आठवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में हो तो जातक को पैत्रिक संपत्ति के द्वारा अथवा ऐसी संपत्ति के कारण जिसे जातक ने कमाया न हो, लाभ प्राप्त हो सकता है। यदि नवम भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो जाए तो तो जातक को पिता या गुरु के द्वारा लाभ अथवा इच्छापूर्ति हो सकता है। यदि दशम भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो कर्म के द्वारा जातक को लाभ की प्राप्ति हो सकती है। यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में ही स्थित हो तो लाभ की प्राप्ति के लिए यह बहुत ही अच्छी स्थिति है। यदि बारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को किसी चीज का त्याग करने के उपरांत ही लाभ की प्राप्ति होगी, क्योकि ग्यारहवां भाव अलगाव का भी भाव है।

ज्योतिष शास्त्र में केंद्र और त्रिकोण के भावों को अच्छा माना गया है। छटवें, आठवें और बारहवें भाव को दुःख स्थान कहा गया है लेकिन इसके बावजूद भी दूसरे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामियों को तभी खराब माना जाता है जब उन ग्रहों की दूसरी राशि खराब भाव अर्थात् तीसरे, छटवें, या ग्यारहवें भाव में आती हो। तीसरे, छटवें और ग्यारहवें भाव को त्रिषडाय कहा गया है और इन भावों के स्वामियों को उत्तरोत्तर पापी कहा गया है। अर्थात् छटवें भाव का स्वामी को तीसरे भाव के स्वामी से अधिक पापी माना गया है और ग्यारहवें भाव के स्वामी को छटवें भाव के स्वामी से अधिक पापी माना गया है। अतः ग्यारहवें भाव के स्वामी को सर्वाधिक पापी कहा गया है। भावत्-भावम् के सिद्धांत के अनुसार ग्यारहवाँ भाव छठवें भाव का छटवाँ तथा बारहवें भाव का बारहवाँ है। अर्थात ग्यारहवें भाव में छठवें तथा बारहवें दोनों भावों के परिणाम भी समाहित होते हैं। कदाचित इसलिए भी ग्यारहवें भाव के स्वामी को पापी माना गया है। तीसरा, छठवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ भाव उपचय भाव भी कहलाते हैं। इन उपचय भावों में भी ग्यारहवाँ भाव सर्वाधिक बड़ा उपचय भाव माना जाता है। अतः ग्यारहवें भाव के स्वामी की दशा अवधि में जातक को लाभ की प्राप्ति तो होती है, लेकिन यदि ग्यारहवें भाव के स्वामी का संबंध लग्न अथवा लग्नेश से हो तो इस दशा अवधि उसे संघर्ष या रोगों का सामना भी करना पड़ सकता है। यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी उपचय भाव में ही बैठा हो अर्थात् तीसरे, छटवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में ही बैठा हो तो ग्यारहवें भाव के स्वामी की दशा में जातक को कीर्ति की प्राप्ति संभव है।

चूँकि ग्यारहवाँ भाव इच्छा पूर्ति का भाव है अतः कुंडली में ग्यारहवें भाव का विश्लेषण करके यह पता लगाया जा सकता है कि जातक की इच्छा क्या है तथा उसके परिणाम क्या होंगे। यदि एकादश भाव अथवा एकादशेश पाप प्रभाव में हो तो एकादश भाव के स्वामी की दशा आने पर जातक अपनी इच्छा पूर्ति करने के लिए अपना विवेक खो देता है तथा यहीं से उसके पतन की शुरुआत होती है। यही कारण है कि एकादश भाव को त्रिषडाय भावों में सर्वाधिक खराब भाव माना गया है। जब त्रिषडाय भावों के स्वामी उपचय भाव में बैठ जाए अथवा त्रिषडाय भावों के स्वामियों का आपस में स्थान परिवर्तन हो तो अपनी दशा/अंतर्दशा में त्रिषडाय भावों के स्वामी अच्छे परिणाम देते हैं। यदि एकादश भाव पर अथवा एकादशेश पर त्रिकोण भाव के स्वामी की दृष्टि पड़ जाए अथवा एकादशेश का संबंध त्रिकोण भाव के स्वामी के साथ हो जाए, तब भी त्रिषडाय भावों के स्वामी अपनी दशा/अंतर्दशा में अच्छे परिणाम देते हैं क्योंकि इन स्थितियों में जातक की इच्छाओं में सात्विकता का समावेश हो जाता है। यदि एकादश भाव अथवा एकादशेश पर नैसर्गिक शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तब भी एकादशेश अपनी दशा/अंतर्दशा में कुछ हद तक शुभ प्रभाव देता है, लेकिन यदि त्रिकोण भाव के स्वामी का संबंध हो जाए तब अधिक अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है।

काल पुरुष की कुंडली में तीसरे और छठवें भाव में क्रमशः मिथुन व कन्या राशि आती है जो कि बुध की राशियाँ हैं तथा ग्यारहवें भाव में कुंभ राशि आती है। राहु बुध की राशियों में अच्छे परिणाम देता है साथ ही कुंभ राशि में भी अच्छे परिणाम देता है क्योंकि कुंभ राशि राहु की अपनी राशि है, राहु को कुंभ राशि का सह स्वामित्व प्राप्त है। यही कारण है कि राहु त्रिषडाय भावों में स्थित हो तो अच्छे परिणाम देता है। राहु एक पापी ग्रह है, वह जातक की इच्छाओं को बल प्रदान करता है। एकादश भाव में स्थित होने पर वह जातक की इच्छाओं की पूर्ति करता रहता है तथा नई इच्छाएँ भी जाग्रत करता रहता है। इच्छाएँ अनंत होती हैं, एक इच्छा की पूर्ति होते दूसरी इच्छा सर उठाने लगती है। अतः यदि किसी जातक की पत्रिका में राहु एकादश भाव में स्थित हो तो इस स्थिति में जातक को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना चाहिए, क्योंकि जातक अपनी जड़ों से कटकर, अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर, अपने नैतिक मूल्यों व सिद्धांतों को भूलकर पतन की राह पर जा सकता है, क्योंकि एकादश भाव में स्थित राहु जातक को येन केन प्रकारेण इच्छापूर्ति में संलग्न कर देता है। लेकिन यदि इस पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो अथवा त्रिकोण भाव के स्वामी का प्रभाव हो तो इस स्थिति में राहु अच्छे परिणाम देता है क्योंकि तब राहु के कार्यकत्वों में सात्विकता का समावेश हो जाता है। इस स्थिति में जातक सही राह पर चलकर अपनी इच्छा पूर्ति करता है।

ग्यारहवाँ भाव पंचम भाव से सातवां है इसलिए संतान के जीवनसाथी को भी इसी भाव से देखा जा सकता है। यह भाव नवम भाव से तीसरा भाव है इसलिए इस भाव से पिता की आयु तथा पिता का पुरुषार्थ भी जाना जा सकता है। यह भाव चौथे भाव से आठवाँ है इसलिए माता की आयु भी इस भाव से जानी जा सकती है। ग्यारहवें भाव से पुरस्कार, नेटवर्किंग, बड़े भाई-बहन तथा जातक की संगति भी देखी जा सकता है। यह भाव छठवें का छटवाँ है। चूँकि छटवें भाव कोर्ट केस को बताता है, इसलिए ग्यारहवाँ भाव उन कोर्ट केस के परिणामों को बताता है।

ग्यारहवें भाव का स्वामी जिस भाव में बैठता है, उस भाव को जातक के लिए महत्वपूर्ण बना देता है। यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो जाए तो चूँकि यह स्वयं से तीसरे भाव में स्थित है इसलिए जातक लाभ प्राप्ति के लिए अधिक पुरुषार्थ करता है। इसके अलावा इस स्थिति में जातक के बड़े भाई बहन भी जातक की इच्छापूर्ति में मदद कर सकते हैं। यदि एकादशेश लग्न में स्थित होकर शुभ प्रभाव में हो तो जातक को कम पुरुषार्थ में ही अधिक लाभ, यश, पुरस्कार व सम्मान की प्राप्ति होती है तथा इस स्थिति में जातक की नेटवर्किंग बहुत अच्छी होती है। इसके अतिरिक्त इस स्थिति में यदि लग्नेश से भी एकादशेश का संबंध बन जाता है तो बहुत अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि एकादशेश लग्न में स्थित होकर पीड़ित हो तो जातक लाभ के लिए पुरुषार्थ तो बहुत करता है लेकिन उसे अधिक लाभ व यश की प्राप्ति कम होती है। 

यदि एकादशेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक के लिए उसका कुटुंब महत्वपूर्ण बन जाता है। इस स्थिति में जातक को उसके परिवार से अच्छे संस्कारों की प्राप्ति होती है, जो कि जातक के लिए एक धरोहर का कार्य करती है। यदि एकादशेश शुभ प्रभाव में हो, तो जातक को उसके परिवार या कुटुंब से अतीव धन की प्राप्ति भी हो सकती है। ऐसे जातकों को उनकी वाणी का लाभ मिल सकता है, वे गाने के प्रोफेशन को अपनाकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे जातक होटल के बिजनेस से, हॉस्पिटैलिटी से, शेफ बनकर या फाइनेंस से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

तृतीय भाव जातक के पुरुषार्थ, संघर्ष, भाई-बहन, मित्रगण आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त तृतीय भाव जातक के बाएँ हाथ को तथा एकादश भाव दाएँ हाथ को इंगित करता है। अतः यदि एकादशेश तृतीय भाव में शुभ स्थिति में हो तो जातक के दोनों हाथ मिल जाते हैं तथा वह अपने पुरुषार्थ से व संघर्ष करके लाभ की प्राप्ति कर सकता है। ऐसे जातक बहुत अच्छे खिलाड़ी हो सकते हैं। वे उस प्रकार के खेल में माहिर हो सकते हैं जिनमें दोनों हाथों का इस्तेमाल होता है जैसे रेसिंग इत्यादि। ऐसे जातकों की कम्युनिकेशन स्किल बहुत अच्छी हो सकती है तथा वह इससे लाभ की प्राप्ति भी कर सकता है, उदाहरण के लिए जातक मीडिया से लाभ की प्राप्ति कर सकता है। जातक की छोटे भाई बहन उसके लिए लाभ प्राप्ति का माध्यम बन सकते हैं लेकिन यदि एकादशेश तृतीय भाव में अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के छोटे भाई बहन उसकी लाभ प्राप्ति में बाधा डाल सकते हैं।

चतुर्थ भाव माता का सुख, मन की शांति, घर, गाड़ियाँ, सुख-समृद्धि, प्रारंभिक शिक्षा को दर्शाता है अतः यदि एकादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो तो जातक की माता, जातक का घर, मन की शांति, गाड़ियाँ, प्रारंभिक शिक्षा आदि जातक के लिए अत्यधिक मूल्यवान या महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यदि एकादशेश चतुर्थ भाव में शुभ प्रभाव में हो तथा पत्रिका में चंद्रमा और शुक्र की स्थिति भी अच्छी हो तो जातक का घर बहुत अच्छा हो सकता है, उसके पास बड़ी गाड़ियाँ हो सकती है, माता से उसके संबंध अच्छे हो सकते हैं, उसके पास सुख-समृद्धि का खूब सामान हो सकता है तथा उसकी प्रारंभिक शिक्षा बहुत अच्छे स्कूल में हो सकती है। लेकिन चूँकि चतुर्थ भाव एकादश भाव का छटवाँ भाव है, अतः यदि चतुर्थ भाव में एकादशेश पीड़ित स्थिति में हो तो उसे इन सब चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।

यदि एकादशेश पंचम भाव में शुभ स्थिति में हो तो जातक के लिए उसकी संतान बहुत महत्वपूर्ण होती है। जातक की संतान बहुत अच्छी व आज्ञाकारी होती है। ऐसे जातक की संतान उसका मान बढ़ाने वाली होती है।ऐसे जातक स्वयं भी बहुत पढ़े लिखे व ज्ञानवान होते हैं, साथ ही वे तंत्र मंत्र व अध्यात्म में रुचि भी रखते हैं।

यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी पत्रिका में छठवें भाव में स्थित हो तो जातक के संघर्ष, ॠण और शत्रु या प्रतियोगी काफी बड़े हो सकते हैं। लेकिन चूँकि ग्यारहवाँ भाव छठवें का छठवाँ है, इसलिए ऐसे जातक अपने शत्रुओं का नाश करने वाले होते हैं, क्योंकि एकादशेश का छठवें भाव में स्थित होना विपरीत राजयोग का निर्माण करता है। जातक अपने संघर्षों में विजय प्राप्त करता है, वह बड़े से बड़ा भी ऋण चुका देता है तथा शत्रुओं को पराजित करता है। कई बार ऐसे जातकों को विरोधियों से भी लाभ की प्राप्ति हो सकती है।

यदि एकादशेश सप्तम भाव में स्थित हो तो जातक के लिए उसका पति या पत्नी महत्वपूर्ण होती है अथवा जातक के लिए शारीरिक सुख बहुत मायने रखता है। जातक अपने पति/पत्नी से अत्यधिक अपेक्षाएँ रख सकता है, जिसके कारण सप्तम भाव में एकादशेश की यह स्थिति कभी-कभी दो विवाह के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है। सप्तम भाव में एकादशेश यदि शुभ स्थिति में हो तो जातक अपने पति/पत्नी को काफी सम्मान देता है तथा जातक का पति/पत्नी व्यापार में उसकी मदद करने वाला हो सकता है। जातक को उसके पति/पत्नी से अथवा पार्टनर से लाभ हो सकता है, संभव है कि उसका पति/पत्नी धनी परिवार से हो।

यदि एकादशेश अष्टम भाव में हो तो जातक का स्वभाव चीजों को छुपाने वाला हो सकता है। यदि एकादशेश अष्टम भाव में शुभ स्थिति में हो तो ऐसे जातकों को किसी सीक्रेट सर्विस (जैसे जासूसी, सीआई डी, सी बी आई आदि) अथवा जमीन के नीचे के कार्यों (जैसे माइनिंग आदि) से लाभ हो सकता है। लेकिन यदि एकादशेश अष्टम भाव में अशुभ स्थिति में हो तो जातक गुप्त रूप से कोई गलत काम करके लाभ कमाने वाला भी हो सकता है।

यदि एकादशेश नवम भाव में स्थित हो जाए तो भावत्-भावम् के सिद्धांत के अनुसार ग्यारहवें भाव का ग्यारहवाँ भाव नवम ही होता है, इसलिए यह स्थिति बहुत अच्छी मानी जाती है। इस स्थिति में जातक का काम विदेश से संबंधित हो सकता है अथवा उसका नेटवर्क विदेश तक फैला हुआ हो सकता है। जातक को विदेश से लाभ  की प्राप्ति हो सकती है। जातक का धर्म अथवा जातक की उच्च शिक्षा जातक के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। जातक जीवन भर अपनी प्रतिभा, कौशल या शिक्षा के स्तर को संवारने तथा आगे बढ़ाने की कोशिश करता है। जातक के बड़े भाई/बहन विदेश में बसकर जातक को लाभ प्रदान कर सकते हैं। चूँकि नवम भाव पंचम का पंचम है, इसलिए इस स्थिति में जातक की संतान विदेश में जाकर बस सकती है और यशस्वी हो सकती है।

यदि एकादशेश दसवें भाव में स्थित हो तो इस स्थिति में जातक विदेश में जाकर नौकरी कर सकता है। जातक के लिए उसका करियर अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। जातक को बड़े संस्थानों में कार्य करने का मौका मिलता है। संभव है कि जातक स्वदेश में ही कार्य कर रहा हो,  लेकिन उसका कार्य विदेश से संबंधित हो सकता है। इस स्थिति में एकादशेश स्वयं के भाव से बारहवें भाव में स्थित होता है, इसलिए जातक अपने बड़े भाई-बहनों से दूरी का अनुभव करता है, इसके अलावा ऐसे लोग अपनी आय का एक हिस्सा दान में भी दे सकते हैं। ऐसे जातकों की आय का व्यय अधिक होता है। जातक को सर्वदा यही महसूस होता है कि वह अपनी योग्यता से कम कमा रहा है।

यदि एकादशेश एकादश भाव में ही स्थित हो तो यह जातक की अच्छी आय को दर्शाती है। इसके अतिरिक्त यह स्थिति जातक को पुरस्कार दिलवाने में भी सहायक होती है। ऐसे जातक समाज में यशस्वी होते हैं। ऐसे जातकों की नेटवर्किंग अच्छी होती है तथा उन्हें मित्रों तथा सरकार से लाभ की प्राप्ति भी हो सकती है।

यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी बारहवें भाव में चला हो तो जातक की आय का संबंध विदेश से हो सकता है। जातक काफी खर्चीला हो सकता है। जातक के बड़े भाई-बहन विदेश में बस सकते हैं तथा उनके माध्यम से जातक को लाभ हो सकता है।,इसके अतिरिक्त जातक अस्पताल से, आश्रम से, पागलखाने से या जेल से भी कमा सकता है। यदि इस स्थिति में एकादशेश अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो तो जातक को कानून के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। इस स्थिति में पीड़ित एकादशेश बीमारी पर खर्च करवा सकता है। यदि एकादशेश शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक आध्यात्मिक होता है लेकिन यदि अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो वह शारीरिक सुख व आनंद को अधिक महत्व देता है।

कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे में कहा गया है:

"गोधन, गज-धन, बाजि-धन, और रतन धन-खान।
जब आवे संतोष-धन, सब धन धूरि समान "
 
अर्थात् गो-रूपी धन, हाथी-रूपी धन, घोड़े-रूपी धन और भी तरह-तरह के रतनों की खानें मौजूद होने से भी व्यक्ति का मन कभी भी नहीं भर सकता। लेकिन जब व्यक्ति के पास सन्तोष-रूपी धन आ जाता है, तब बाकी सभी प्रकार के धन धूल के समान हो जाते हैं। अर्थात् संतोष के अभाव में व्यक्ति की इच्छाएँ बढ़ती ही रहती हैं।

अतः जातक की इच्छाएँ ही असंतुष्टि की जड़ हैं। ग्यारहवाँ भाव इच्छा पूर्ति का भाव होने के कारण यह जातक को इच्छाओं के बंधनों से बांध देता है, यही कारण है कि पाराशर जी ने इस भाव को बहुत अच्छा नहीं माना है। इस भाव में बहुत सारे ग्रहों का होना भी अच्छा नहीं माना जाता। यह भाव जातक की भौतिक इच्छाओं की पूर्ति तो करता है लेकिन आध्यात्मिक रूप से यह व्यक्ति का उत्थान नहीं कर पाता। जहाँ बारहवाँ भाव मोक्ष का भाव है, वहीं ग्यारहवां भाव जातक को इच्छाओं के बंधन में जकड़ कर रखता है। इच्छापूर्ति के बंधन में जकड़कर जातक लोभ और लालच के मायाजाल मे फँस जाता है। इसी कारण से हमारे ऋषि मुनियों ने ग्यारहवें भाव की निंदा की है। ज्योतिषशास्त्र सर्वदा देश, काल, परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है। आज के इस कलियुग में इच्छापूर्ति ही जातक के जीवन का परम ध्येय है, उसे मोक्ष या आध्यात्मिक उन्नति से कोई लेना-देना ही नहीं है, तभी तो आज कि परिस्थितियों में ग्यारहवें भाव कि अत्यधिक महत्ता है।


- डॉ. सुकृति घोष
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र ,शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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